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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
धूमावती नामाष्टक स्तोत्र
धूमावती नामाष्टक स्तोत्र और कवच का
पाठ करने से सर्वार्थ की सिद्धि होती है ।
धूमावती नामाष्टक स्तोत्र
ऐसा माना जाता है धूमावती की साधना गृहस्थों के लिए नहीं है, पर मेरा मानना है कि माँ बस माँ होती है। इनकी पूजा,साधना भक्तों के लिए कभी भी अहितकारी नहीं हो सकता। यदि किसी भी साधना को पूर्ण सात्विक रूप से किया जाय तो कोई भी देवी-देवता की साधना से साधकों का केवल हित ही होता है।
वैसे ही आप माँ धूमावती के स्वरूप मेरे
अनुसार ध्यान करें और इनके इस सुंदर रूप को निहारें- कितना सुंदर स्वरूप है माता का-
अत्यन्त लम्बी
अर्थात् अपने भक्त को जीवन के हर क्षेत्र में बढ़ाना।
मलिनवस्त्रा,भुक्षिता,रूक्षवर्णा
अर्थात् साधक के जीवन से किसी भी प्रकार के भूख,प्यास, दरिद्रता का नाश कर देना।
कान्तिहीन
अर्थात् अपने भक्त को कान्तिहीन रहने ही न देना।
चंचला,
दुष्टा, बिखरे बालों वाली अर्थात्
साधक के चित्त को स्थिर करना,दुष्टों के संग
छुड़ाना अच्छे मार्ग दिखलाना ।
विधवा अर्थात्
सौभाग्य का उदय करना ।
सूप युक्ता
अर्थात् जीवन से कडुवाहट का सफाई करना ।
कौआ के रथ पर आसीन
अर्थात् जीवन से नकारात्मकता हटाना ।
इस प्रकार आप ध्यान दें तो माँ बस माँ
है। जिनके आंचल की छांव का वर्णन नहीं किया जा सकता ।
धूमावती - मंत्र
घूं धूं धूमावती स्वाहा ।
इस मंत्र से धूमावती की आराधना
करें।
धूमावती –ध्यान
विवर्णा चञ्चला रुष्टा दीर्घा च
मलिनाम्बरा ।
विवर्णकुन्तला रूक्षा विधवा
विरलद्विजा ॥
काकध्वजरथारूढा विलम्बितपयोधरा ।
सूर्यहस्तातिरूक्षाक्षी धृतहस्ता
वरान्विता ॥
प्रवृद्धघोषा तु भृशं कुटिला
कुटिलेक्षणा ।
क्षुत्पिपासार्द्दिता नित्यं भयदा
कलहप्रिया ॥
धूमावती देवी विवर्णा,
चंचला, रुष्टा और दीर्घागी हैं, इनके पहिरने के वस्त्र मलिन, केश विवर्ण और रूक्ष
हैं, संपूर्ण दांत छोटे और दोनों स्तन लम्बे हैं, यह विधवारूपधारिणी और काकध्वजावाले रथ में विराजमान हैं । देवी के दोनों
नेत्र रूक्ष हैं । इनके एक हाथ में सूर्य और दूसरे हाथ में वरमुद्रा है। नासिका
बड़ी और देह तथा नेत्र कुटिल हैं । यह भूख प्यास से कातर हैं। इसके अतिरिक्त यह
भयंकर मुखवाली और कलह में तत्पर है ।
धूमावती मंत्र का जप होम
एक लक्ष मंत्र जपने से इसका
पुरश्चरण होता है और गिलोय की समिधाओं से उसका दशांश होम करे ।
धूमावती नामाष्टक स्तोत्र
धूमावती – स्तव
भद्रकाली महाकाली डमरूवाद्यकारिणी ।
स्फारितनयना चैव टक्कटंकितहासिनी ॥
धूमावती जगत्कर्त्री शूर्पहस्ता
तथैव च ।
अष्टनामात्मकं स्तोत्रं यः
पठेद्भक्तिसंयुक्तः ।
तस्य सर्व्वार्थसिद्धिः स्यात्सत्यं
सत्यं हि पार्वति ॥
भद्रकाली,
महाकाली, डमरू वाद्यकारिणी, स्फारितनयना, टक्कटंकितहासिनी, धूमावती, जगत्कर्त्री तथा
शूर्पहस्ता- इस अष्टनामात्मकस्तोत्र का जो व्यक्ति भक्तियुक्त होकर पढ़ता है, हे पार्वती मैं सत्य कहता हूँ उसे अवश्य ही सर्वार्थ की सिद्धि होती है ।
धूमावती नामाष्टक स्तोत्र
धूमावती कवच
धूमावती मुखं पातु धूं धूं
स्वाहास्वरूपिणी ।
ललाटे विजया पातु मालिनी
नित्यसुंदरी ॥
धुं धुं स्वाहास्वरूपिणी धूमावती
मेरे मुख,
और नित्य सुंदरी मालिनी और विजया मेरे ललाट की रक्षा करें ।
कल्याणी हृदयं पातु हसरों नाभिदेशके
।
सर्वांगं,
पातु देवेसी निष्कला भगमालिनी
॥
कल्याणी हृदय की,
हसरीं नाभि की और निष्कला भगमालिनी देवी सर्वांग की रक्षा करें ।
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः
पठेद्भक्तिसंयुक्तः ।
सौभाग्यमतुलं प्राप्त चांते
देवीपुरं ययौ ॥
इस पवित्र दिव्य कवच को भक्तिपूर्वक
पाठ करने से इस लोक में अतुल सुख-सौभाग्य प्राप्त कर अन्त समय देवी-पुर में जाता
है ।
इति: धूमावती नामाष्टक स्तोत्र कवचम्॥
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