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कर्मकाण्ड

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धूमावती अष्टक स्तोत्र

धूमावती अष्टक स्तोत्र

यह धूमावती अष्टक पुण्य स्तोत्र सब पापों का निवारण करने वाला है । जो साधक भक्ति से इसका पाठ करता है वह वांच्छित फलों की सिद्धि को पाता है। भारी आपत्ति में, महारोग में, महायुद्ध में, शत्रु के उच्चाटन में, शत्रु के मारण में तथा प्राणियों के मोहन में, जो इस स्तोत्र को पढ़ता है वह सर्वत्र सफलता को प्राप्त करता है। देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, सर्प, सिंह, व्याघ्र आदि सभी स्तोत्र के स्मरण मात्र से दूर, बहुत दूर भाग जाते हैं । इस स्तोत्र से सभी प्रकार की शांति हो जाती है और साधक अन्त में मुक्ति को प्राप्त करता है।

धूमावती अष्टक स्तोत्र

श्रीधूमावतीस्तोत्रम् अथवा धूमावत्यष्टकम्

प्रातर्यास्यात् कुमारी कुसुमकलिकया जापमालां जपन्ती

मध्याह्ने प्रौढरूपा विकसितवदना चारुनेत्रा निशायाम् ।

सन्ध्यायां वृद्धरूपा गलितकुचयुगा मुण्डमालां वहन्ती

सा देवी देवदेवी त्रिभुवनजननी कालिकापातु युष्मान् ॥ १॥

बद्ध्वा खट्वाङ्गकोटौ कपिलवरजटा मण्डलम्पद्मयोनेः

कृत्वादैत्योत्तमाङ्गैः स्रजमुरसिशिरश्शेखरं तार्क्ष्यपक्षैः ।

पूर्णंरक्तैः सुराणां यममहिषमहाश्रृङ्गमादायपाणौ

पायाद्वोवन्द्यमानः प्रलयमुदितया भैरवः कालरात्र्याम् ॥ २॥

चर्वन्तीमस्थिखण्डं प्रकट कटकटा शब्दसङ्घातमुग्रं

कुर्वाणि प्रेतमध्ये कहहकहकहा हास्यमुग्रं कृशांङ्गी ।

नित्यं न्नित्यप्रसक्तां डमरुडिमडिमां स्फारयन्तीं मुखाब्जं

पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती ॥ ३॥

टण्टण्टण्टण्टटण्टा ण्रकट टमटमा नाटघण्टां वहन्ती

स्फें स्फें स्फें स्फारकारा टकटकितहसा नादसङ्घट्ट भीमा ।

लोलम्मुण्डाग्रमाला ललहलहलहा लोललोलाग्रवाचं

चर्वन्तीचण्डमुण्डं मटमटमटिते चर्यषन्ती पुनातु ॥ ४॥

वामे कर्णे मृगाङ्कं पलयपरिगतं दक्षिणे सूर्यबिम्बं

कण्ठे नक्षत्रहारं वरविकटजटाजूटके मुण्डमालाम् ।

स्कन्धेकृत्वोरगेन्द्रध्वजनिकरयुतं ब्रह्मकङ्कालभारं

संहारे धारयन्ती ममहरतुभयं भद्रदा भद्रकाली ॥ ५॥

तैलाभ्यक्तैकवेणी त्रपुमयविलसत् कर्णिकाक्रान्तकर्णा

लौहेनैकेन कृत्वाचरणनलिनकामात्मनः पादशोभाम् ।

दिग्वासा रासभेन ग्रसतिजगदिदं मायया कर्णपूरा

वर्षिण्यातिप्रबद्धा ध्वजविततभुजा सासिदेवित्वमेव ॥ ६॥

सङ्ग्रामे हेतिकृत्वैस्सरुधिरदशनैर्यद्भटानां

शिरोभिर्मालामाबद्‍ध्यमूर्ध्नि ध्वजविततभुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा ।

दृष्टा भूतप्रभूतैः पृथुतरजघना बद्धनागेन्द्र काञ्ची

शूलग्रव्यग्रहस्ता मधुरुधिरसदा ताम्रनेत्रा निशायाम् ॥ ७॥

दंष्ट्रा रौद्रेमुखेऽस्मिंस्तवविशतिजगद्देवि सर्वं क्षणार्धात्

संसारस्यान्तकाले नररुधिरवशासम्प्लवेभूमधूम्रे ।

कालीकापालिकी सा शवशयनतरा योगिनी योगमुद्रा

रक्तारुद्धिः सभास्था मरणभयहरा त्वं शिवा चण्डघण्टा ॥ ८॥

श्रीधूमावती अष्टक स्तोत्रम् फलश्रुति  

धूमावत्यष्टकं पुण्यं सर्वापद्विनिवारकम् ।

यः पठेत् साधको भक्त्या सिद्धिं विन्दति वाञ्छिताम् ॥ ९॥

यह धूमावती अष्टक पुण्य स्तोत्र सब पापों का निवारण करने वाला है । जो साधक भक्ति से इसका पाठ करता है वह वांच्छित फलों की सिद्धि को पाता है।

महापदि महाघोरे महारोगे महारणे ।

शत्रूच्चाटे मारणादौ जन्तूनां मोहने तथा ॥ १०॥

भारी आपत्ति में, महारोग में, महायुद्ध में, शत्रु के उच्चाटन में, शत्रु के मारण में तथा प्राणियों के मोहन में,

पठेत् स्तोत्रमिदं देवि सर्वत्र सिद्धिभाग्भवेत् ।

देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ॥ ११॥

हे देवि! जो इस स्तोत्र को पढ़ता है वह सर्वत्र सफलता को प्राप्त करता है। देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, सर्प,

सिंह व्याघ्रादिकास्सर्वे स्तोत्र स्मरणमात्रतः ।

दूराद्दूरतरं यान्ति किं पुनर्मानुषादयः ॥ १२॥ सिंह, व्याघ्र आदि सभी स्तोत्र के स्मरण मात्र से दूर, बहुत दूर भाग जाते हैं, फिर मनुष्य आदि का क्या कहना ।

स्तोत्रेणानेन देवेशि किं न सिद्‍ध्यति भूतले ।

सर्वशान्तिर्भवेद्देविह्यन्ते निर्वाणतां व्रजेत् ॥ १३॥

हे देवेशि ! इस स्तोत्र से पृथिवी पर क्या सिद्ध नहीं हो सकता? हे देवि! इस स्तोत्र से सभी प्रकार की शांति हो जाती है और साधक अन्त में मुक्ति को प्राप्त करता है।

इत्यूर्ध्वाम्नाये धूमावती स्तोत्रं समाप्तम् ॥

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