धूमावती कवच
शत्रु अथवा तांत्रिक बाधा दूर करने तथा
जीवन से सभी आर्थिक व शारीरिक कष्ट दूर करने के लिए नित्य माँ धूमावती के कवच का
पाठ करें ।
श्रीधूमावतीकवचम्
अथ धूमावती कवचम् ।
श्रीपार्वत्युवाच -
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतं
विस्तरतोमया ।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव
वदस्व मे ॥ १॥
पार्वतीजी बोलीः हे शम्भो ! मैंने
विस्तार से धूमावती की पूजा सुनी, हे देव ! अब
मैं कवच सुनना चाहती हूं, उसे मुझे आप बतायें।
श्रीभैरव उवाच -
श्रृणुदेवि परं गुह्यं न प्रकाश्यं
कलौयुगे ।
कवचं
श्रीधूमावत्याश्शत्रुनिग्रहकारकम् ॥ २॥
ब्रह्माद्यादेवि सततं
यद्वशादरिघातिनः ।
योगिनोभवछत्रुघ्ना यस्याध्यान
प्रभावतः ॥ ३॥
भैरव बोले : हे देवि! यह शत्रु का
दमन करने वाला धूमावती का कवच कलियुग में अत्यन्त गोप्य है। हे देवि! ब्रह्मा आदि
देव इसके कारण सदा ही शत्रु का संहार करने वाले हुए है। इसके ध्यान के प्रभाव से
योगिजन शत्रु का नाश करने वाले होते हैं।
श्रीधूमावतीकवचम्
ॐ अस्य श्रीधूमावतीकवचस्य पिप्पलाद
ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्रीधूमावती देवता धूं बीजम् स्वाहाशक्तिः
धूमावती कीलकम् शत्रुहनने पाठे
विनियोगः ।
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं
सदावतु ।
धूमानेत्रयुगं पातु वती कर्णौसदावतु
॥ ४॥
दीर्घातूदरमध्ये तु नाभिं मे
मलिनाम्बरा ।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षारक्षतु
जानुनी ॥ ५॥
मुखं मे पातु भीमाख्या स्वाहा
रक्षतु नासिकाम् ।
सर्वं विद्यावतु कष्टं विवर्णा
बाहुयुग्मकम् ॥ ६॥
चञ्चला हृदयं पातु दुष्टा पार्श्वं
सदावतु ।
धूतहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा
॥ ७॥
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला
कुटिलेक्षणा ।
क्षृत्पिपासार्दिता देवी भयदा
कलहप्रिया ॥ ८॥
सर्वाङ्गं पातु मे देवी
सर्वशत्रुविनाशिनी ।
धूमावती कवच फलश्रुति
इति ते कवचं पुण्यं कथितं भुवि
दुर्लभम् ॥ ९॥
न प्रकाश्यं न प्रकाश्यं न
प्रकाश्यं कलौ युगे ।
पठनीयं महादेवि त्रिसन्ध्यं
ध्यानतत्परैः ।
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रं नैव
संस्पृशेत् ॥ १०॥
हे देवि! यह पुण्य कवच जो मैंने तुम
से कहा है, वह दुर्लभ है। कलियुग में इसे
प्रकाशित न करना । प्रातः मध्याह्न तथा सायं ध्यानतत्पर होकर इसका पाठ करना
चाहिये। हे देवि! दुष्यभिचार इसके साधक के शरीर का स्पर्श नहीं कर सकते।
इति भैरवी भैरव संवादे धूमावती तत्त्वे धूमावती कवचं सम्पूर्णम् ।
0 Comments