छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र

छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र

छिन्नमस्ताष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है । जीवन का सभी संकट इसके पाठ से दूर हो जाता है । इससे महासिद्धि की प्राप्ति होती है। यह समस्त विभूतियों का कारणस्वरूप श्रेष्ठ स्तोत्र है। जो इस छिन्नमस्ता स्तोत्र को पढ़ता है, वह कुबेर के समान धनाढ्य होता है। सिद्धियों का ज्ञाता वह राजाओं का मान्य और सामान्य लोगों का आश्रयदाता होता है। यहाँ छिन्नमस्ताष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र के अलावा छिन्नमस्ता द्वादश नाम स्तोत्र भी दिया जा रहा है।

छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र

श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

श्रीपार्वत्युवाच -

नाम्नां सहस्रं परमं छिन्नमस्ता-प्रियं शुभम् ।

कथितं भवता शम्भो सद्यः शत्रु-निकृन्तनम् ॥ १॥

पुनः पृच्छाम्यहं देव कृपां कुरु ममोपरि ।

सहस्र-नाम-पाठे च अशक्तो यः पुमान् भवेत् ॥ २॥

तेन किं पठ्यते नाथ तन्मे ब्रूहि कृपा-मय ।

श्री पार्वती बोली : हे शम्भो ! आपने छिन्नमस्ता के प्रिय तथा शुभ एवं शत्रुनाशक सहस्रनाम को मुझे बताया। मेरे ऊपर आप कृपा करें। मैं पुनः पूछती हूं कि जो मनुष्य सहस्रनाम् के पाठ में अशक्त हो हे नाथ कृपामय! वह क्या पाठ करे? इसे बतायें।     

श्री सदाशिव उवाच -

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां पठ्यते तेन सर्वदा ॥ ३॥

सहस्र्-नाम-पाठस्य फलं प्राप्नोति निश्चितम् ।

श्री सदाशिव बोले: हे देवि! ऐसे व्यक्ति को अष्टोत्तर शतनाम का पाठ करना चाहिए । वह इससे सहस्रनाम का फल अवश्य प्राप्त करता है।

छिन्नमस्ताष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्

ॐ अस्य श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तर-शत-नाम-स्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टुप् छन्दः श्रीछिन्नमस्ता देवता

मम-सकल-सिद्धि-प्राप्तये जपे विनियोगः ॥

ॐ छिन्नमस्ता महाविद्या महाभीमा महोदरी ।

चण्डेश्वरी चण्ड-माता चण्ड-मुण्ड्-प्रभञ्जिनी ॥ ४॥

महाचण्डा चण्ड-रूपा चण्डिका चण्ड-खण्डिनी ।

क्रोधिनी क्रोध-जननी क्रोध-रूपा कुहू कला ॥ ५॥

कोपातुरा कोपयुता जोप-संहार-कारिणी ।

वज्र-वैरोचनी वज्रा वज्र-कल्पा च डाकिनी ॥ ६॥

डाकिनी कर्म-निरता डाकिनी कर्म-पूजिता ।

डाकिनी सङ्ग-निरता डाकिनी प्रेम-पूरिता ॥ ७॥

खट्वाङ्ग-धारिणी खर्वा खड्ग-खप्पर-धारिणी ।

प्रेतासना प्रेत-युता प्रेत-सङ्ग-विहारिणी ॥ ८॥

छिन्न-मुण्ड-धरा छिन्न-चण्ड-विद्या च चित्रिणी ।

घोर-रूपा घोर-दृष्टर्घोर-रावा घनोवरी ॥ ९॥

योगिनी योग-निरता जप-यज्ञ-परायणा ।

योनि-चक्र-मयी योनिर्योनि-चक्र-प्रवर्तिनी ॥ १०॥

योनि-मुद्रा-योनि-गम्या योनि-यन्त्र-निवासिनी ।

यन्त्र-रूपा यन्त्र-मयी यन्त्रेशी यन्त्र-पूजिता ॥ ११॥

कीर्त्या कर्पादनी काली कङ्काली कल-कारिणी ।

आरक्ता रक्त-नयना रक्त-पान-परायणा ॥ १२॥

भवानी भूतिदा भूतिर्भूति-दात्री च भैरवी ।

भैरवाचार-निरता भूत-भैरव-सेविता ॥ १३॥

भीमा भीमेश्वरी देवी भीम-नाद-परायणा ।

भवाराध्या भव-नुता भव-सागर-तारिणी ॥ १४॥

भद्र-काली भद्र-तनुर्भद्र-रूपा च भद्रिका ।

भद्र-रूपा महा-भद्रा सुभद्रा भद्रपालिनी ॥ १५॥   

सुभव्या भव्य-वदना सुमुखी सिद्ध-सेविता ।

सिद्धिदा सिद्धि-निवहा सिद्धासिद्ध-निषेविता ॥ १६॥

शुभदा शुभफ़्गा शुद्धा शुद्ध-सत्वा-शुभावहा ।

श्रेष्ठा दृष्ठि-मयी देवी दृष्ठि-संहार-कारिणी ॥ १७॥

शर्वाणी सर्वगा सर्वा सर्व-मङ्गल-कारिणी ।

शिवा शान्ता शान्ति-रूपा मृडानी मदानतुरा ॥ १८॥

छिन्नमस्ताष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र फलश्रुति  

इति ते कथितं देवि स्तोत्रं परम-दुर्लभमं ।

गुह्याद्-गुह्य-तरं गोप्यं गोपनियं प्रयत्नतः ॥ १९॥

हे देवि ! यह परमदुर्लभ स्तोत्र मैंने तुम्हे बताया है। यह गोप्य से भी गोप्यतर है। इसको प्रयत्न से गुप्त रखना चाहिये ।

किमत्र बहुनोक्तेन त्वदग्रं प्राण-वल्लभे ।

मारणं मोहनं देवि ह्युच्चाटनमतः परमं ॥ २०॥

स्तम्भनादिक-कर्माणि ऋद्धयः सिद्धयोऽपि च ।

त्रिकाल-पठनादस्य सर्वे सिध्यन्त्यसंशयः ॥ २१॥

हे प्राणवल्लभे ! तुम्हारे सामने यहाँ अधिक कहने से क्या लाभ? हे देवि ! मारण, मोहन, उच्चाटन और स्तम्भन आदि कर्म, समस्त ऋद्धियाँ तथा सिद्धियाँ भी तीनों संध्याओं में इसका पाठ करने से सिद्ध हो जाती हैं। इसमें कोई संशय नहीं है।

महोत्तमं स्तोत्रमिदं वरानने मयेरितं नित्य मनन्य-बुद्धयः ।

पठन्ति ये भक्ति-युता नरोत्तमा भवेन्न तेषां रिपुभिः पराजयः ॥ २२॥

हे वरानने ! जो अनन्य बुद्धिवाले मनुष्य हैं वे मेरे कहे इस परमोत्तम स्तोत्र को नित्य भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं। वे मनुष्यों में श्रेष्ठ हैं तथा शत्रुओं से उनकी पराजय नहीं होती।

          ॥ इति श्रीछिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् ॥ 

छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रम्

छिन्नग्रीवा छिन्नमस्ता छिन्नमुण्डधराऽक्षता ।

क्षोदक्षेमकरी स्वक्षा क्षोणीशाच्छादनक्षमा ॥ १॥

वैरोचनी वरारोहा बलिदानप्रहर्षिता ।

बलिपूजितपादाब्जा वासुदेवप्रपूजिता ॥ २॥

इति द्वादशनामानि छिन्नमस्ताप्रियाणि यः ।

स्मरेत्प्रातः समुत्थाय तस्य नश्यन्ति शत्रवः ॥ ३॥

इति छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

इस प्रकार छिन्नमस्ताष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र और छिन्नमस्ताद्वादशनामस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।

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