मातङ्गी शतनाम स्तोत्र
एक सौ आठ नामों वाला यह श्रीमातङ्गी
शतनाम स्तोत्र तन्त्रों में गोपनीय है। इस स्तोत्र का पाठ पुण्य व सुख देने वाला
तथा दुर्योग को भी सुयोग बनाने में समर्थ हैं।
श्रीमातङ्गीशतनामस्तोत्रम्
श्रीभैरव्युवाच -
भगवञ्छ्रोतुमिच्छामि मातङ्ग्याः
शतनामकम् ।
यद्गुह्यं सर्वतन्त्रेषु केनापि न
प्रकाशितम् ॥ १॥
श्री भैरवी बोली : हे भगवान,
मैं मातङ्गी देवी के शतनाम स्नोत्र को सुनना चाहती हूँ जो सभी
तन्त्रों में गोपनीय है और जिसे किसी को भी नहीं बताया गया है।
भैरव उवाच -
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि
रहस्यातिरहस्यकम् ।
नाख्येयं यत्र कुत्रापि पठनीयं
परात्परम् ॥ २॥
श्री भैरव बोले : हे देवि ! सुनो,
अत्यन्त गोपनीय शतनाम मैं तुम्हें बता रहा हूँ। यत्र-तत्र इस परम
श्रेष्ठ स्तोत्र को न कहना चाहिए न पढ़ना चाहिए।
यस्यैकवारपठनात्सर्वे विघ्ना
उपद्रवाः ।
नश्यन्ति तत्क्षणाद्देवि वह्निना
तूलराशिवत् ॥ ३॥
इसका एक बार पाठ करने से सभी विघ्न
और उपद्रव उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे अग्नि से रूई का ढेर नष्ट हो जाता है।
प्रसन्ना जायते देवी मातङ्गी चास्य
पाठतः ।
सहस्रनामपठने यत्फलं परिकीर्तितम् ।
तत्कोटिगुणितं देवीनामाष्टशतकं
शुभम् ॥ ४॥
इसके पाठ से मातङ्गी देवी प्रसन्न
होती हैं। सहस्रनाम पाठ से जो फल कहा गया है उससे करोड़ गुना फल इस शुभ एक सौ आठ
नाम के पाठ से होता है।
श्रीमातङ्गीशतनामस्तोत्रम्
विनियोग
: अस्य श्रीमातङ्गीशतनामस्तोत्रस्य भगवान्मतङ्ग ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः मातङ्गी
देवता मातङ्गीप्रीतये जपे विनियोगः ।
महामत्तमातङ्गिनी सिद्धिरूपा तथा
योगिनी भद्रकाली रमा च ।
भवानी भवप्रीतिदा भूतियुक्ता
भवाराधिता भूतिसम्पत्करी च ॥ १॥
धनाधीशमाता
धनागारदृष्टिर्धनेशार्चिता धीरवापीवराङ्गी ।
प्रकृष्टप्रभारूपिणी
कामरूपप्रहृष्टा महाकीर्तिदा कर्णनाली ॥ २॥
कराली भगा घोररूपा भगाङ्गी भगाह्वा
भगप्रीतिदा भीमरूपा ।
भवानी महाकौशिकी कोशपूर्णा
किशोरीकिशोरप्रियानन्द ईहा ॥ ३॥
महाकारणाकारणा कर्मशीला
कपालिप्रसिद्धा महासिद्खण्डा ।
मकारप्रिया मानरूपा महेशी
महोल्लासिनीलास्यलीलालयाङ्गी ॥ ४॥
क्षमाक्षेमशीला क्षपाकारिणी
चाक्षयप्रीतिदा भूतियुक्ता भवानी ।
भवाराधिता भूतिसत्यात्मिका च
प्रभोद्भासिता भानुभास्वत्करा च ॥ ५॥
धराधीशमाता
धरागारदृष्टिर्धरेशार्चिता धीवराधीवराङ्गी ।
प्रकृष्टप्रभारूपिणी
प्राणरूपप्रकृष्टस्वरूपा स्वरूपप्रिया च ॥ ६॥
चलत्कुण्डला कामिनी कान्तयुक्ता
कपालाचला कालकोद्धारिणी च ।
कदम्बप्रिया कोटरीकोटदेहा क्रमा
कीर्तिदा कर्णरूपा च काक्ष्मीः ॥ ७॥
क्षमाङ्गी क्षयप्रेमरूपा क्षपा च
क्षयाक्षा क्षयाह्वा क्षयप्रान्तरा च ।
क्षवत्कामिनी क्षारिणी क्षीरपूर्णा
शिवाङ्गी च शाकम्भरी शाकदेहा ॥ ८॥
महाशाकयज्ञा फलप्राशका च शकाह्वा
शकाह्वाशकाख्या शका च ।
शकाक्षान्तरोषा सुरोषा सुरेखा
महाशेषयज्ञोपवीतप्रिया च ॥ ९॥
जयन्ती जया जाग्रतीयोग्यरूपा
जयाङ्गा जपध्यानसन्तुष्टसंज्ञा ।
जयप्राणरूपा जयस्वर्णदेहा
जयज्वालिनी यामिनी याम्यरूपा ॥ १०॥
जगन्मातृरूपा जगद्रक्षणा च
स्वधावौषडन्ता विलम्बाविलम्बा ।
षडङ्गा महालम्बरूपासिहस्ता
पदाहारिणीहारिणी हारिणी च ॥ ११॥
महामङ्गला
मङ्गलप्रेमकीर्तिर्निशुम्भच्छिदा शुम्भदर्पत्वहा च ।
तथाऽऽनन्दबीजादिमुक्तस्वरूपा तथा
चण्डमुण्डापदामुख्यचण्डा ॥ १२॥
प्रचण्डाप्रचण्डा महाचण्डवेगा
चलच्चामरा चामराचन्द्रकीर्तिः ।
सुचामीकराचित्रभूषोज्ज्वलाङ्गी
सुसङ्गीतगीता च पायादपायात् ॥ १३॥
मातङ्गी शतनाम स्तोत्र फलश्रुति
इति ते कथितं देवि नाम्नामष्टोत्तरं
शतम् ।
गोप्यञ्च सर्वतन्त्रेषु गोपनीयञ्च
सर्वदा ॥ १४॥
हे देवि ! यह एक सौ आठ नामों वाला
स्तोत्र मैंने तुम्हें बताया। यह तन्त्रों में गोपनीय है तथा इसे सदा गुप्त रखना।
एतस्य सतताभ्यासात्साक्षाद्देवो
महेश्वरः ।
त्रिसन्ध्यञ्च महाभक्त्या पठनीयं
सुखोदयम् ॥ १५॥
इसके निरन्तर अभ्यास से साधक
साक्षात् देव महेश्वर बन जाता है। प्रातः, मध्याह्न
तथा सायंकाल तीनों सन्ध्याओं में अत्यन्त भक्ति के साथ सुख देने वाले इस स्तोत्र
का पाठ करना चाहिए।
न
तस्य दुष्करं किञ्चिज्जायते स्पर्शतः क्षणात् ।
स्वकृतं यत्तदेवाप्तं
तस्मादावर्तयेत्सदा ॥ १६॥
जो ऐसा करता है उसके स्पर्श मात्र
से कोई कार्य कठिन नहीं रह जाता । जो जो पुण्य होते हैं वे प्राप्त हो जाते हैं।
इस लिए स्तोत्र का सदा पाठ करना चाहिए।
सदैव सन्निधौ तस्य देवी वसति सादरम्
।
अयोगा ये तवैवाग्रे सुयोगाश्च
भवन्ति वै ॥ १७॥
जो इसका पाठ करता है उसके निकट देवी
आदर के साथ निवास करती हैं। जो दुर्योग होते हैं वे निश्चय ही आगे सुयोग बन जाते
हैं।
त एवमित्रभूताश्च भवन्ति
तत्प्रसादतः ।
विषाणि नोपसर्पन्ति व्याधयो न
स्पृशन्ति तान् ॥ १८॥
इसके प्रसाद से वे दुर्योग मित्र बन
जाते हैं। जो इसका पाठ करता है उसके निकट विष और रोग नहीं आते।
लूताविस्फोटकास्सर्वे शमं यान्ति च
तत्क्षणात् ।
जरापलितनिर्मुक्तः कल्पजीवी
भवेन्नरः ॥ १९॥
लूता, फोड़े फुन्सी आदि तत्काल शान्त हो जाते हैं। इसका पाठ करने वाला व्यक्ति
बृद्धावस्था और बालों के पकने आदि दोषों से मुक्त होकर कल्प जीवी हो जाता है।
अपि किं बहुनोक्तेन सान्निध्यं
फलमाप्नुयात् ।
यावन्मया पुरा प्रोक्तं फलं
साहस्रनामकम् ।
तत्सर्वं लभते मर्त्यो
महामायाप्रसादतः ॥ २०॥
और अधिक कहने से क्या,
वह देवी के निकट पहुँच जाता है। मैंने सहस्रनाम पाठ में जो फल कहा
है उसे फल को महामाया देवी के प्रसाद से मनुष्य इस शतनाम पाठ से प्राप्त कर लेता
है।
इति श्रीरुद्रयामले मातङ्गीशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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