नारदसंहिता अध्याय ११

नारदसंहिता अध्याय ११    

नारदसंहिता अध्याय ११ में संक्रांति प्रकरण का वर्णन किया गया है।   

नारदसंहिता अध्याय ११

नारदसंहिता अध्याय ११    

अथ संक्रांतिप्ररणम्  

घोराध्वांक्षीमहोदयं मंदाकिनी नंदा मता ।

मिश्रा राक्षसिका नाम सूर्यवारादिषु क्रमात् ॥ १ ॥

घोरा, ध्वांक्षी, महोदरी, मंदाकिनी, नंदा, मिश्र, राक्षसिका इन नामोंवाली संक्रांति रविवारादि में अर्क होने से जानना जैसे रविवार में संक्रांति अर्क होय तो घोरा नामवाली जानना ।। १ ।

शूद्रविट्तस्करक्ष्मापभूदेवपशुनीचजाः ॥

अनुक्तानां च सर्वेषां घोराद्याः सुखदाः स्मृताः ॥ २ ॥

घोरा सक्रांति शूद्र को सुख देती है, ध्वांक्षी वैश्यों को, महोदरी चोरों को, मंदाकिनी राजाओं को, नंदा ब्राह्मण  तथा पंडितों को, मिश्रा पशुवों को, राक्षसी चांडाळ आदि संपूर्ण नीचजातियों को सुख देती है । २ ॥

पूर्वाह्वे नृपतीन्हंति विप्रान्मध्यदिने विशः ॥

अपराह्नेऽस्तगे शूद्रान्प्रदोषे च पिशाचकान् ॥ ३ ॥

दुपहर पहले संक्रांति अर्क तो राजाओं को नष्ट करै मध्याह्न में ब्राह्मणों को तीसरे प्रहर में वैश्यों को सायंकाल में शूद्रों को प्रदोष समय में पिशाचों को ।। ३ ।।

निशि रात्रिचरान्नाद्यकारानपररात्रिके ॥

गोमाहिषेति संध्यायां लिंगिनो निशि संक्रमः ॥ ४ ॥

रात्रि में राक्षसों को आधीरात पीछे नाचनेवाले और तमासा करनेवालों को पीड़ा करे प्रातःकाल संध्या में अर्कें तो गोमहिष्यादिकों को और उससे भी पीछे बिलकुल प्रभात समय अर्कें तो सन्यासी आदिकों को पीडा करें ॥ ४ ॥

दिवा चेन्मेषसंक्रांतिरनर्थकलहप्रदा ॥

रात्रौ सुभिक्षमतुलं संध्ययोर्वृष्टिनाशनम् ॥ ५॥

दिन में मेष की सक्रांति अर्के तो अशुभफल तथा प्रजा में बैरभाव करै रात्रि में अर्के तो अत्यंत सुभिक्ष हो दोनों संध्याओं में अर्कें तो वर्षा का नाश करै ॥ ५ ॥

रवि 

चन्द्र

मंगल

बुध

गुरु

शुक्र

शनि

वार

उग्र

लघु

चर

मैत्र

स्थिर

मिश्र

तीक्ष्ण

नक्षत्र

घोरा

ध्वांक्षी

महोदरी

मन्दाकिनी

मंदा

मिश्रा

राक्षसी

नाम

शुद्र सुखी

वैश्य सुखी

चोर सुखी

राजा सुखी

ब्राह्मण सुखी

पशु सुखी

चांडाल सुखी

फल

हरिशार्दूलवाराहखरकुंजरमाहिषाः ॥

अधश्वजवृषाः पादायुधाःकरणवाहनाः ॥ ६ ॥

बव आदि जो करण वर्त्तमान हो उसी के क्रम से सिंह व्याघ्र वाराह गधा हाथी भैंसा अश्व श्वान बकरा वृष मुरगा ये वाहन कहे हैं यहां बव में सिंह वाहन होता है और यह ११ करण यथा क्रम से देख लेने चाहिए ॥ ६ ॥

खशबाह्निकवंगेषु संक्रांतिर्धिष्ण्यवाहना ॥

अन्यदेशेषु तिथ्यर्द्धवाहना स्याद्ववादितः ॥ ७ ॥

खश बाह्विक वंग ( बंगाला ) इन देशों में नक्षत्रों के क्रम से सक्रांति का वाहन जानना और अन्यदेश में बव  आदिकरणों के क्रम से संक्रांति का वाहन होता है ॥ ७ ॥

भुशुंडीभिंर्दिपालासिदंडकोदंडतोमरान् ।

कुंतपाशांकुशास्त्रेषून्बिभर्ति करणेष्घिनः ॥ ८ ॥

भुशुंडी भिंदिपाल खङ्ग दंड धनुष तोमर भाला पाश अंकुश अस्त्र (तेगा )वाण ये शस्त्र बव आदि करणों के क्रम से, संक्रांति के कहे हैं ॥ ८ ॥

अन्नं च पायसं भैक्ष्यमपूपं च पयो दधि ॥

चित्रान्नं गुडमध्वाज्यशर्करा ववतो हविः ॥ ९ ॥

और अन्न पायस भिक्षा पूड़ा दूध दही चित्रान्न गुड मधु घृत शर्करा ये संक्रांति के भोजन, बव आदिकरणों के यथाक्रम से जानने चाहियें ॥ ९ ॥

निविष्टी वणिजे विष्टयां बालवे च गरे ववे ।

कौलशकुने भानुः किंस्तुघ्ने चोर्ध्वसंस्थिता ।। १० ।।

और वणिज विष्टि बालव गर वव इन करण में संक्रांति अर्कें तो बैठी जानना, कौलव शकुनि किंस्तुघ्न इनमें खडी जानना ।। १० ॥

चतुष्पात्तैतिले नागें सुप्तक्रांतिं करोति सा ।

धान्यार्घवृष्टिसु भवेदनिष्टक्रमशस्तदा ॥ ११ ॥

चतुष्पद तैतिल नाग इनमें अर्कें तो सोई हुई संक्रांति जानना, बैठी हुई संक्रांति में अन्न सस्ता खडी में वर्षा और सोई में अशुभ फल जानना ॥ ११ ॥

आयुधं वाहनाहारो यज्जातीयजनस्य च ॥

स्वापोपविष्टतिष्ठंतस्ते लोकाः क्षयमाप्नुयुः ।। १२ ।।

शस्त्र वाहन भोजन ये सब संक्रांति के जिस जाति के जनके हो तथा सोई बैठी खडी जैसी हो उसी प्रकार के जनों का व पदार्थों का नाश हो ॥ १२ ॥

                                                     संक्रांति वाहनादि चक्र  

बव

बालव

कौलव

तैतिल

गर

वणिज

विष्टि

शकुनि

चतुष्पद

नाग

किंस्तुघ्न

करण

सिंह

व्याघ्र

शूकर

खर

हाथी

महिष

घोड़ा

श्वान

मेष

गौ

मुरगा

वाहन

श्वेत

पीत

हरित

पाण्डू

रक्त

श्याम

असित

चित्र

कम्बल

दिशा

मेघ सदृश

वस्त्र

भुशुण्डी

गदा

खड्ग

दण्ड

धनुष

तोमर

भाला

पाश

अंकुश

अस्त्र

बाण

शस्त्र

अन्न

पर मात्र

भिक्षा

पक्वान्न

दुग्ध

दही

विचित्रान्न

गुड़

शहद

घृत

शक्कर

भोजन

कस्तूरी

केशर

चन्दन

माटी

गोरोचन

महावर

बिलारमद

हरिद्रा

सुरमा

अगर

कर्पूर

लेप

देवता

भूत

सर्प

पक्षी

पशु

मृग

विप्र

क्षत्रिय

वैश्य

शुद्र

सङ्करवर्ण

जाति

नाग केशर

चमेली

बकुल

केतकी

बेल

मदार

दूब

कमल

मल्लिका

पांढर

दोपहर

पुष्प

अन्धको मंदसंज्ञश्च मध्यसंज्ञः सुलोचनः ।

पर्यायाद्गणयेद्भानि रोहिण्यादि चतुर्विधम् ॥ १३ ॥

अंध, मंदलोचन, मध्यसंज्ञक, सुलोचन, इस प्रकार रोहिणी आदि नक्षत्रों को क्रम से जानना तहां चार २ नक्षत्रों की ७ आवृत्ति कर लेनी रोहिणी अंधा मृगशिर मंदलोचन इत्यादि ।। १३ ।।

स्थिरभेष्वर्कसंक्रांतिर्ज्ञेया विष्णुपदाह्वया ॥

षडशीतिमुखी ज्ञेया द्विस्वभावेषु राशिषु ।। १४ ।।

वृष, सिंह, वृश्चिक,कुंभ, इन स्थिर राशियों पर सूर्य संक्रांति होय तो विष्णुपदानामक संक्रांति जानना और मिथुन आदि द्विःस्वभावराशियों पर अर्क होय तब षडशीतिमुखी संक्रांति जानना ॥ १४ ॥

सौम्ययाम्यायने नूनं भवेतां मृगकर्किणोः ।

तुलाधराजयोर्ज्ञेयो विषुवत्सूर्यसंक्रमः ॥ १४॥

मकर की संक्रांति अर्कें तब उत्तरायण प्रवृत्त होता है और कर्क की संक्रांति अर्कें उस दिन दक्षिणायन प्रवृत्त होता है और तुळा तथा मेष की संक्रांति अर्के उस दिन विषुवत् अर्थात् दिनरात्रि समान काल होता है ॥ १५॥

अहः संक्रमणे कृत्स्नं महापुण्यं प्रकीर्तितम् ।

रात्रौ संक्रमणे भानोर्व्यवस्था सर्वसंक्रमे । १६ ।।

दिन में संक्रांति अर्के तो सारे दिन में महान् पुण्य कहा है और रात्रि में संक्रति अर्के तो सब संक्रांतियों में व्यवस्था कही है ॥ १६ ॥

सूर्यस्योदयसंध्यायां यदि याम्यायनं भवेत् ।।

तदोदयादहः पुण्यं पूर्वाहः परतो यदि ॥ १७ ॥

जैसे कि सूर्य उदय होने की संधि में दक्षिणायन अर्थात् कर्क की संक्रांति अर्के तो उदय होनेवाले दिन में ही पुण्यकाल जानना और जो उदयकाल की संधि से पहले ही संक्रांति अर्के तो पहले ही दिन पुण्यकाल है यह कर्क की संक्रांति की व्यवस्था है ।।१७ ।।

सूर्यास्तमनवेलायां यदि सौम्यायनं भवेत् ॥

तदोपेयादहः पुण्यं पराह्नः परतो यदि ॥ १८ ॥

और सूर्य के अस्त होने की संधि में मकर की संक्रांति अर्के तो उसी दिन पुण्यकाल जानना संधि से पीछे रात्रि में अगले दिन पुण्यकाल जानना ।। १८।।

अर्थार्कस्तमनात्संध्यासंघटिकात्रयसंमिता ॥

तथैवार्धोदयात्प्रातर्घटिकात्रयसंमिता ॥ १९ ।।

सूर्य का आधा मंडल अस्त हाने के बाद तीन घडी तक सायं संध्या रहती है और आधा मंडल उदय होने से पहिले प्रातःकाल तीन घडी प्रभात की संध्या कही है । १९ ॥

प्रागर्धरात्रात्पूर्वाह्ने पूर्ववद्विष्णुपादयोः ॥

षडशीतिमुखी चैव परतश्चेत्परेऽहनि ॥ २० ॥

कर्क मकर की संक्रांति का यह पुण्यकाल जानना पूर्वोक्त विष्णुपदा नामक संक्रांति षडशीतिमुखी नामवाली संक्रांति आधीरात से पहिले दिन पुण्यकाल और आधी रात पीछे अर्के तो पिछले दिन पुण्यकाल जानना ।। २० ।।

पश्चात्पराहः संक्रांतिः षडशीतिर्विपर्ययात् ॥

यादृशेनेंदुना भानोः संक्रांतिस्तादृशं फलम्॥ २१ ॥

नरः प्राप्नोति तद्राशौ शीतांशोः साध्वसाधु वा ॥

संक्रांतिग्रहणर्क्षे वा पूर्वभाद्गणनाक्रमः ॥२२॥

रवेरयन संक्रांतिस्तदा तद्राशिसंक्रमः॥

संक्रांतिग्रहणर्क्षे वा जन्मभावधि गण्यताम् ॥ २३ ॥

और षडशीति नामवाली संक्रांति का पुण्यकाल इन विष्णुपदा नामवाली संक्रांतियों से विपर्यय जानना जैसा चंद्रमा में संक्रांति अर्के वैसा ही फल होता है संक्रांति अर्क के दिन जिस मनुष्य को अच्छा चंद्रमा हो उसको श्रेष्ठ फल होता है । संक्रांति अर्के उस दिन से पहले दिन के नक्षत्र से गिनने का क्रम होता है । सूर्य के अयन की संक्रांति व अन्य राशि संक्रांति जिस दिन अर्के उसी दिन के नक्षत्र से भी जन्म के नक्षत्र तक गिना जाता है अब इन दोनों का फल कहते हैं ॥ २१- २३ ॥

नेष्टं त्रयं षट् च शुभं पर्यायाच्च पुनः पुनः ।

हानिर्वृद्धिः स्थानहानिस्तत्प्राप्तिर्भानुतः क्रमात् ॥२२॥

पहिले तीन नक्षत्र शुभ नहीं हैं फिर छह नक्षत्र शुभदायक हैं पीछे ३ नक्षत्र हानिकारक, फिर ६ वृद्धि, फिर ३ स्थान हानि, फिर ३ नक्षत्र स्थान प्राप्ति करते हैं ऐसे सूर्य संक्रांति चंद्रनक्षत्र से विचारी जाती है ।। २४ ।।

नक्षत्र

गमन

सुख

पीड़ा

वस्त्र

अर्थहानि

धनागम

फल

तिलोपरि लिखेच्चक्रे त्रिशूलं च त्रिकोणकम् ॥

तत्र हैमं विनिक्षिप्य दद्यात्तद्दोषशांतये ॥ २५॥

जो अशुभदायक संक्रांति हो तो उस दोष की शांति के वास्ते तिलके ऊपर चक्र लिख त्रिकोण त्रिशूल लिखकर उस  पर सुवर्ण रखकर उसका दान करे ॥ २५

ताराबलेन शीतांशुर्बलवांस्तद्वशाद्रविः॥

ससंक्रमणतस्तद्वद्वशाखेटबलाधिकः ॥ २६ ॥

इति श्रीनारदीयसंहि० संक्रातिलक्षणाध्याय एकादशः ११॥

तारा के बल से चंद्रमा बलवान है और चंद्रमा के बल से सूर्य बलवान होता है और वह सूर्य संक्रांति के बल से अन्य ग्रहों का बल पाकर बलवान् है ॥ २६ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां संक्रांतिलक्षणाध्याय एकादशः ॥ ११ ॥

आगे पढ़ें- नारदसंहिता अध्याय १२

पूर्व भाग पढ़ें-    

नारदसंहिता भाग १०     नारदसंहिता भाग ९      नारदसंहिता भाग ८      

नारदसंहिता भाग ७       नारदसंहिता भाग ६       नारदसंहिता भाग ५      

नारदसंहिता भाग ४       नारदसंहिता भाग ३      नारदसंहिता भाग २       

नारदसंहिता भाग १    

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1 Comments

  1. naarat samhita ka itna vistrit varnan maine nahi pada tha is post me mujhe bahut kuch naya sikhne ko mila hain naarad samhita me har prakaar ke shubh muhurat
    ka varnan bahut sundar dhang se kiya hain

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