नारदसंहिता अध्याय १०

नारदसंहिता अध्याय १०   

नारदसंहिता अध्याय १० में क्रकचयोग,संवर्तकयोग, सिद्धियोग और दग्धयोग का वर्णन किया गया है। 

नारदसंहिता अध्याय १०

नारदसंहिता अध्याय- १०   

भृकपां सूर्यभात्सप्तमर्क्षे विद्युच्च पंचमे ॥

शूलोष्टमेऽब्धिदिग्भे तु शनिरष्टादशे तथा ॥ १॥

केतुः पंचदशे दंड उल्का एकोनविंशतिः ।

मोहनिर्घातकंपाश्च कुलिशे परिवेषणम् ॥ २ ॥

विज्ञेयमेकविंशर्क्षादारभ्य च यथाक्रमम् ।

चंद्रयुक्तेषु भेष्वेषु शुभकर्म न कारयेत् ॥ ३ ॥

सूर्य के नक्षत्र से ( वर्त्तमान नक्षत्र ) सातवां होय तो भूकंप योग होता है, पांचवां विद्युत्, आठवां शलभ, चौदहवां शनि, अठारहवां नक्षत्र होय तो केतु संज्ञक योग, पंद्रहवां नक्षत्र होय तो दंड, १९ हो तो उल्का २१-२२-२३-२४-२५-ये होवें तो यथाक्रम से मोह, निर्घात, कंप, वज्र, परिवेषण, ये योग होते हैं ये नक्षत्र चंद्रमा के देखे जाते हैं अर्थात् सूर्य के नक्षत्र से चंद्रमा का नक्षत्र गिन लेना चाहिये ॥ १ - ३ ॥

अथ क्रकचयोगः।

क्रकचं हि प्रवक्ष्यामि योगं शास्त्रानुसम्मतम् ।

निंदितं सर्वकार्येषु तस्मिनैवाचरेच्छुभम् ॥ ४ ॥

अब सब कामों में निंदित शास्त्रोक्त क्रकचनामक योग को कहते हैं तिसमें कुछ भी शुभकर्म नहीं करना चाहिये ॥ ४ ॥

त्रयोदशस्युर्मिलने संख्यया तिथिवारयोः ॥

क्रकचो नाम योगोयं मंगलेष्वतिगर्हितः ॥ ५॥

तिथि और बार के मिलने से तेरह १३ संख्या हो जाय तब क्रकच योग होता है जैसे रविवार १ को १२। सोमवार २ को ११, मंगल को दशमी, बुध को नवमी, गुरु को ८,शुक्र को ७, शनि को छठ इनके योग में क्रकच योग होता है यह शुभकर्मों में अति निंदित है ॥ ५ ॥

अथ संवर्तक योग

सप्तम्यामर्कवारश्चेत्प्रतिपत्सौम्यवासरे ॥

संवर्तयोगो विज्ञेयः शुभकर्मविनाशकृत् ॥ ६॥

इति श्रीनारदीयसंहितायांसंवर्त्तकयोगः ॥

सप्तमी तिथि को रविवार हो और प्रतिपदा को बुधवार होय तब संवर्द्धक योग होता है यह योग शुभ कर्म को नष्ट करता है । ६ ।।

२८ योगों के नाम

आनंदः कालदंडधधूम्रधातृसुधाकराः ॥

ध्वांक्षध्वजाख्यश्रीवत्सवज्रमुद्गरछत्रकाः ॥ ७ ॥

मित्रमानसपद्माख्यलुंबकोत्पातमृत्यवः ॥

काणःसिद्धिः शुभाभृतमुसलांतककुंजराः ॥८॥

राक्षसाख्यः चरस्थैर्यवर्धमानाः क्रमादमी ।

योगाः स्वसंज्ञफलदा अष्टाविंशतिसंख्यकाः ॥ ९ ॥

आनंद ३ कालदंड २ धूम्र ३ धाता ४ चंद्र ५ ध्वांक्ष ६ ध्वज ७ श्रीवत्स ८ वज्र ९ मुद्र १० छत्र ११ मित्र १२ मानस १३ पद्म १४ लुंबक १५ उत्पात १६ मृत्यु १७ काण १८ सिद्धि १९ शुभ्र २० अमृत २१ मुसल २२ रोग २३ मातंग २४ राक्षस २५ चर २६ स्थिर २७ वर्धमान २८ ऐसे क्रम से ये अठाईस योग कहैं ये योग अपने नाम के अनुसार शुभ अशुभ फल देते हैं । ७ - ९ ॥

सिद्धियोगः।

रविवारे क्रमादेते दस्रभान्भृगभाद्विधौ ॥

सार्पाद्भौमे बुधे हस्तान्मैत्रभात्सुरमंत्रिणः ॥ १० ॥

वैश्वदेवे भृगुसुते वारुणाद्भास्करात्मजे ।

हस्तर्क्षे रविवारेऽजे चेदुभं दस्रभं कुजे ॥ ११ ॥

सौम्ये मित्रं सुराचार्य तिष्यं पौष्णं भृगोः सुते ॥

रोहिणी मंदवारे तु सिद्धियोगाह्वया अमी ॥ १२ ॥

यत्र स्यादिन्दुनक्षत्रं मानन्दादिगणस्ततः ॥

अष्टाविंशतियोगानां क्रमोयं प्रोच्यते बुधैः ॥ १३ ॥

इनके देखने का यह क्रम है कि सूर्यवार के अश्विनी नक्षत्र हो तो आनंद योग होता है, भरणी हो तो कालदंड ऐसा क्रम जानलेना और सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र से मंगल को आश्लेषा से बुध को हस्त से बृहस्पति को अनुराधा से शुक्र को उत्तराषाढा से शनि को शतभिषा से आनंदादिक योग जानने और हस्त नक्षत्र सूर्य वार में हो चंद्रवार में मृगशिर, मंगल को अश्विनी और बुध को अनुराधा, बृहस्पति को पुष्य नक्षत्र होय शुक्र को रेवती शनि को रोहिणी नक्षत्र होय तब ये सिद्धयोग हो जाते हैं ऐसे यह आनंद आदि योगों का क्रम पंडितजनों ने कहा है चंद्रमा का (वर्तमान) नक्षत्र जो हो वही आनंदादि योग जानलेना ॥ १०-१३॥

आदित्यभौमयोर्नन्दा भद्रा शुक्रशशांकयोः ॥

जया सौम्ये गुरौ रिक्ता शनौ पूर्णा तु नो शुभा ॥१४ ॥

रवि, मंगलवार को नंदासंज्ञक तिथि होवें शुक्र व चंद्रवार को भद्रा तिथि होवें बुध को जया और बृहस्पति को रिक्ता शनि को पूर्णा तिथि होवें तो शुभ नहीं है अर्थात् अशुभ योग जानना ।। १४ ।।

नंदा तिथिः शुक्रवारे सौम्ये भद्रा जया कुजे ॥

रिक्ता मन्दे गुरोर्वारे पूर्ण सिद्धह्वया अमी ॥ १८

शुक्रवार को नंदातिथि बुध को भद्रा मंगल को जया शनि को रिक्ता बृहस्पतिवार को पूर्णा तिथि हो तो ये सिद्धियोग कहे हैं । १५ ।।

अथ दग्धयोग:

एकादश्यामिंदुवारो द्वादश्यामार्किवासरः ॥

षष्ठी बृहस्पतेर्वारे तृतीया बुधवासरे ॥ १६॥

एकादशी में सोमवार हो द्वादशी को शनिवार हो बृहस्पतिवार में छठ, बुधवार में तृतीया हो ॥ १६ ॥ 

अष्टमी शुक्रवारे तु नवम्यामर्कवासरः ॥

पंचमी भौमवारे तु दग्धयोगाः प्रकीर्तिताः ॥ । १७ ॥

शुक्रवार को अष्टमी रवि को नवमी पंचमी को मंगलवार हो तो ये दग्धयोग कहे हैं ॥ १७ ॥

दग्धयोगाश्च विज्ञेया पंगुयोगाभिधा अमी ।

यमर्क्षमर्कवारेब्जे चित्रा भौमे तु विश्वभम् ॥ १८॥

बुधे धानिष्ठार्यमभं गुरौ ज्येष्ठा भृगोर्दिने ॥

रेवती मंदवारे तु दग्धयोगा भवंत्यमी॥ १९॥

ये दग्धयोग हैं इनको पंगुयोग भी कहते हैं रविवार को भरणी सोम को चित्रा मंगल को उत्तराषाढ बुध को धनिष्ठा बृहस्पति को उत्तराफाल्गुनी शुक्र को ज्येष्ठा शनि को रेवती हो तो ये दग्धयोग कहे हैं ॥ १८- १९ ॥

विशाखादिचतुर्वर्गमर्कवारादिषु क्रमात् ॥

उत्पातमृत्युकाणाख्याः सिद्धियोगाः प्रकीर्तिताः ॥२०॥

और विशाखा आदि चार नक्षत्र का वर्ग सूर्य आदि ७ वारों में यथाक्रम से उत्पात १ मृत्यु २ काण ३ सिद्धि ४ ये चार योग होते हैं, जैसे कि रविवार को विशाखा हो तो उत्पात अनुराधा मृत्यु ज्येष्ठा काण मूल हो तो सिद्धि योग होता है फिर सोम को पूर्वाषाढा में उत्पात उत्तराषाढा में मृत्यु ऐसा क्रम जानना ऐसे यही क्रम सब चारों में करना २८ नक्षत्र में ७ वार में ये चारों योग ठीक २ होवेंगे । २० ॥

तिथिवारोद्भवा नेष्टा योगा वारर्क्षसंभवाः ।

हूणवंगखशेभ्योन्यदेशेष्वतिशुभप्रदः ॥ २१ ॥

इति नारदीयसंहितायामुपग्रहाध्यायो दशमः ॥ १० ॥

तिथि और वारों सें उत्पन्न हुए योग अशुभ हैं और वार तथा नक्षत्र से उत्पन हुए योग हूण बंग (बंगाल) खश (नैपाल) इन देशों के बिना अन्य सब देशो में शुभ हैं ॥ २१ ॥

इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायामुपग्रहाध्यायो दशमः१० ॥

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