नारदसंहिता अध्याय ७

नारदसंहिता अध्याय ७  

नारदसंहिता अध्याय ७  में योग प्रकरण और योगों के स्वामी का वर्णन किया गया है। 

नारदसंहिता अध्याय ७

नारदसंहिता अध्याय- ७  

योगेशा यमविष्ण्विंदुधातृजीवनिशाकराः ॥

इंद्रतोयाहिवह्नयर्कमरुद्रुद्रतोयपाः ॥ १ ॥

अब योगों के स्वामी कहते हैं धर्मराज १ विष्णु २ चंद्रमा ३ ब्रह्मा ४ बृहस्पति ५ चंद्रमा ६ इंद्र ७ जल ८ सर्प ९ अग्नि १० सूर्य ११ भूमि १२ वायु १३ शिव १४ वरुण १५ ॥ १ ॥

गणेशरुद्धनदास्त्वष्टृमित्रषडाननाः ।

सावित्री कमला गौरी नासत्यौ पितरोऽदितिः ॥ २ ॥

गणेश१६ रुद्र १७ कुबेर १८ त्वष्टा १९ मित्र २० स्वामिकार्तिक २१ सावित्री २२ लक्ष्मी २३ गौरी २४ अश्विनीकुमार २५ पितर २६अदिति २७ ऐसे ये २७ देवता विष्कुंभ आदि योगों के स्वामी कहे हैं ॥ २ ॥

                                               २७ योग और योगों के स्वामी

योग

स्वामी

विष्कुंभ धर्मराज

प्रीति

विष्णु

आयुष्मान् चंद्रमा

सौभाग्य ब्रह्मा

शोभन बृहस्पति

अतिगंड चंद्रमा

सुकर्मा

इंद्र

योग

स्वामी

धृति

जल

शूल

सर्प

गंड

अग्नि

वृद्धि

सूर्य

ध्रुव

भूमि

व्याघात वायु

हर्षण

शिव

योग

स्वामी

वज्र

वरुण

सिद्धि गणेश

व्यातिपात रुद्र

वरियान् कुबेर

परिघ त्वष्टा

शिव

मित्र

सिद्धि स्वामिकार्तिक

योग

स्वामी

साध्य सावित्री

शुभ लक्ष्मी

शुक्ल

गौरी

ब्रह्मा अश्विनीकुमार

ऐंद्र

पितर

वैधृति अदिति

 

सवैधृतौ व्यतीपातो महापातावुभौ सदा ॥

परिघस्य तु पूर्वार्धे सर्वकार्येषु गर्हितम् ॥३॥

विष्कंभवज्रयोस्तिस्रः षट्कं, गंडातिगंडयोः ॥

व्याघाते नव शूले तु पंचनाड्यस्तु गर्हिताः ॥४॥

और वैधृत व्यतीपात ये दोनों महापात हैं संपूर्ण त्याज्य हैं। परिघ योग का पूर्वाद्ध त्याज्य हैं सबकामों में निंदित है विष्कुंभ, वज्र, इनके आदि की तीन २ घडी वर्जित हैं और गंड, अतिगंड की छह २ घड़ी वर्जित हैं व्याघात की नव, शूल की पांच घडी वर्जित हैं ।३- ४ ।।

अदितीन्दुमघाश्लेषामूलमैत्रेज्यभानि च ॥

ज्ञेयानि सहचित्राणि मूर्ध्निभानि यथाक्रमात् ॥ ५ ॥

और पुनर्वसु, मृगशिरा, मघा, आश्लेषा, मूल, अनुराधा, पुष्य; चित्रा ये नक्षत्र यथाक्रम से मस्तक के क्रम में कहे हैं ॥ ५॥

लिखेदूर्ध्वगतामेकां तिर्यग्रेखास्त्रयोदश ।

तत्र खार्जुरिके चक्रे कथितं मूर्धिं भं न्यसेत् ॥ ६ ॥

भान्येकरेखागतयोः सूर्याचंद्रमसोर्मिथः ।

एकार्गलो दृष्टिपातश्चाभिजिद्वर्जितानि वै ॥ ७ ॥

तहां एक रेखा खडी खींचे और तेरह रेखा तिरछी खींचनी चाहियें ऐसा तहां खार्जुरिक यंत्र अर्थात् खजूर वृक्ष सरीखे आकार वाला चक्र बना लेवे तहां सब नक्षत्र लिखकर विचारै जो सूर्य चंद्रमा के नक्षत्र एक रेखा पर आ जावे तो एकार्गल दृष्टिपात योग होता है यहां अभिजित् नक्षत्र की गिनती नहीं करनी ॥ ६ - ७ ॥

लांगले कमठे चक्रे फणिचक्रे त्रिनाडिके ॥

अभिजिद्भणना नास्ति चक्रपाते विशेषतः ॥८॥

इति श्रीनारदीयसंहितायां योगाध्यायः सप्तमः ७॥

हलचक्र, कूर्मचक, सर्पकारचक्र, त्रिनाडीचक्र इनमें अभिजित् नक्षत्र की गिनती नहीं करनी और विशेषकर के चक्रपातमें गिनती नहीं करनी ॥ ८॥

ति श्रीनारदसंहिताभाषाटीकायां योगप्रकरणाध्यायः सप्तमः ॥७ ।।

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