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- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ८
- षोडशी कवच
- मातङ्गी शतनाम स्तोत्र
- शीतला कवच
- मातङ्गी सहस्रनाम स्तोत्र
- मातङ्गीसुमुखीकवच
- मातङ्गी कवच
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ७
- मातङ्गी हृदय स्तोत्र
- वाराही कवच
- शीतलाष्टक
- श्री शीतला चालीसा
- छिन्नमस्ताष्टोत्तरशतनामस्तोत्र
- धूमावती अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र
- छिन्नमस्ता सहस्रनाम स्तोत्र
- धूमावती अष्टक स्तोत्र
- छिन्नमस्ता हृदय स्तोत्र
- धूमावती कवच
- धूमावती हृदय स्तोत्र
- छिन्नमस्ता स्तोत्र
- मन्त्रमहोदधि तरङ्ग ६
- नारदसंहिता अध्याय ११
- छिन्नमस्ता कवच
- श्रीनायिका कवचम्
- मन्त्रमहोदधि पञ्चम तरङ्ग
- नारदसंहिता अध्याय १०
- नारदसंहिता अध्याय ९
- नारदसंहिता अध्याय ८
- नारदसंहिता अध्याय ७
- नारदसंहिता अध्याय ६
- नारदसंहिता अध्याय ५
- मन्त्रमहोदधि चतुर्थ तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि तृतीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि द्वितीय तरङ्ग
- मन्त्रमहोदधि - प्रथम तरड्ग
- द्वादशलिङगतोभद्रमण्डलदेवता
- ग्रहलाघव त्रिप्रश्नाधिकार
- ग्रहलाघव पञ्चतारास्पष्टीकरणाधिकार
- ग्रहलाघव - रविचन्द्रस्पष्टीकरण पञ्चाङ्गानयनाधिकार
- नारदसंहिता अध्याय ४
- नारदसंहिता अध्याय ३
- ग्रहलाघव
- नारद संहिता अध्याय २
- नारद संहिता अध्याय १
- सवितृ सूक्त
- शिवाष्टकम्
- सामनस्य सूक्त
- ब्रह्मा स्तुति श्रीरामकृत
- श्रीरामेश्वरम स्तुति
- ब्रह्माजी के १०८ तीर्थनाम
- ब्रह्मा स्तुति
- शिव स्तुति श्रीरामकृत
- चामुण्डा स्तोत्र
- त्रिप्रकार स्तुति
- महादेव स्तुति तण्डिकृत
- महादेव स्तुति
- महादेव स्तुति उपमन्युकृत
- तण्डिकृत शिवसहस्रनाम
- शिव स्तुति अर्जुनकृत
- दुर्गा स्तवन अर्जुनकृत
- शिवमहापुराण – द्वितीय रुद्रसंहिता [प्रथम-सृष्टिखण्...
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 19
- शिवमहापुराण – रुद्रसंहिता सृष्टिखण्ड – अध्याय 18
- सरस्वती स्तोत्र
- नील सरस्वती स्तोत्र
- मूर्त्यष्टकस्तोत्र
- श्रीराधा स्तुति
- श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र
मन को एकाग्र कर जो साधक इस धूमावती
सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है उसका शत्रु विनाश को प्राप्त हो जाता है। यह
संसार के बन्धनों से मुक्ति दिलाने वाला पुण्य तथा धूमावती का परम प्रिय स्तोत्र
है।
श्रीधूमावतीसहस्रनामस्तोत्रम्
श्रीभैरव्युवाच
धूमावत्या धर्मरात्र्याः कथयस्व
महेश्वर ।
सहस्रनामस्तोत्रम्मे
सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ १॥
भैरवी बोली : हे महेश्वर !
धर्मरात्रि धूमावती का सर्वसिद्धिदायक सहस्रनामस्तोत्र आप मुझे बतायें।
श्रीभैरव उवाच
श्रृणु देवि महामाये प्रिये
प्राणस्वरूपिणि ।
सहस्रनामस्तोत्रम्मे भवशत्रुविनाशम्
॥ २॥
भैरव बोले : हे देवि,
महामाये, प्राणस्वरूपिणी, प्रिये ! संसार के शत्रुओं का विनाश करने वाला यह सहस्रनाम स्तोत्र सुनो-
अथ धूमावतीसहस्रनामस्तोत्रम्
ॐ अस्य
श्रीधूमावतीसहस्रनामस्तोत्रस्य पिप्पलाद ऋषिः
पङ्क्तिश्छन्दो धूमावती देवता
शत्रुविनिग्रहे पाठे विनियोगः ॥
धुमा धूमवती धूमा धूमपानपरायणा ।
धौता धौतगिरा धाम्नी
धूमेश्वरनिवासिनी ॥ ३॥
अनन्ताऽनन्तरूपा च अकाराकाररूपिणी ।
आद्या आनन्ददानन्दा इकारा
इन्द्ररूपिणी ॥ ४॥
धनधान्यार्त्थवाणीदा
यशोधर्मप्रियेष्टदा ।
भाग्यसौभाग्यभक्तिस्था
गृहपर्वतवासिनी ॥ ५॥
रामरावणसुग्रीवमोहदा हनुमत्प्रिया ।
वेदशास्त्रपुराणज्ञा
ज्योतिश्छन्दःस्वरूपिणी ॥ ६॥
चातुर्यचारुरुचिरा रञ्जनप्रेमतोषदा
।
कमलासनसुधावक्त्रा चन्द्रहासा
स्मितानना ॥ ७॥
चतुरा चारुकेशी च चतुर्वर्गप्रदा
मुदा ।
कला कालधरा धीरा धारिणी वसुनीरदा ॥
८॥
हीरा हीरकवर्णाभा हरिणायतलोचना ।
दम्भमोहक्रोधलोभस्नेहद्वेषहरा परा ॥
९॥
नारदेवकरी रामा रामानन्दमनोहरा ।
योगभोगक्रोधलोभहरा हरनमस्कृता ॥ १०॥
दानमानज्ञानमान-पानगानसुखप्रदा ।
गजगोश्वपदागञ्जा भूतिदा भूतनाशिनी ॥
११॥
भवभावा तथा बाला वरदा हरवल्लभा ।
भगभङ्गभया माला मालती तालनाहृदा ॥
१२॥
जालवालहालकालकपालप्रियवादिनी ।
करञ्जशीलगुञ्जाढ्या
चूताङ्कुरनिवासिनी ॥ १३॥
पनसस्था पानसक्ता पनसेशकुटुम्बिनी ।
पावनी पावनाधारा पूर्णा पूर्णमनोरथा
॥ १४॥
पूता पूतकला पौरा पुराणसुरसुन्दरी ।
परेशी परदा पारा परात्मा परमोहिनी ॥
१५॥
जगन्माया जगत्कर्त्त्री
जगत्कीर्त्तिर्जगन्मयी ।
जननी जयिनी जाया जिता जिनजयप्रदा ॥
१६॥
कीर्त्तिर्ज्ञानध्यानमानदायिनी
दानवेश्वरी ।
काव्यव्याकरणज्ञाना
प्रज्ञाप्रज्ञानदायिनी ॥ १७॥
विज्ञाज्ञा विज्ञजयदा विज्ञा
विज्ञप्रपूजिता ।
परावरेज्या वरदा पारदा शारदा दरा ॥
१८॥
दारिणी देवदूती च मदना मदनामदा ।
परमज्ञानगम्या च षरेशी परगा परा ॥
१९॥
यज्ञा यज्ञप्रदा यज्ञज्ञानकार्यकरी
शुभा ।
शोभिनी शुभ्रमथिनी
निशुम्भासुरमर्द्दिनी ॥ २०॥
शाम्भवी शम्भुपत्नी च शम्भुजाया
शुभानना ।
शाङ्करी शङ्कराराध्या सन्ध्या
सन्ध्यासुधर्मिणी ॥ २१॥
शत्रुघ्नी शत्रुहा शत्रुप्रदा
शात्रवनाशिनी ।
शैवी शिवलया शैला शैलराजप्रिया सदा
॥ २२॥
शर्वरी शवरी शम्भुः सुधाढ्या
सौधवासिनी ।
सगुणा गुणरूपा च गौरवी भैरवीरवा ॥
२३॥
गौराङ्गी गौरदेहा च गौरी गुरुमती
गुरुः ।
गौर्ग्गौर्गव्यस्वरूपा च
गुणानन्दस्वरूपिणी ॥ २४॥
गणेशगणदा गुण्या गुणा गौरववाञ्छिता
।
गणमाता गणाराध्या गणकोटिविनाशिनी ॥
२५॥
दुर्गा दुर्ज्जनहन्त्री च
दुर्ज्जनप्रीतिदायिनी ।
स्वर्गापवर्गदा दात्री दीना
दीनदयावती ॥ २६॥
दुर्न्निरीक्ष्या दुरादुःस्था
दौःस्थभञ्जनकारिणी ।
श्वेतपाण्डुरकृष्णाभा कालदा
कालनाशिनी ॥ २७॥
कर्मनर्मकरी नर्मा
धर्माधर्मविनाशिनी ।
गौरी गौरवदा गोदा गणदा गायनप्रिया ॥
२८॥
गङ्गा भागीरथी भङ्गा भगा
भाग्यविवर्द्धिनी ।
भवानी भवहन्त्री च भैरवी भैरवीसमा ॥
२९॥
भीमा भीमरवा भैमी भीमानन्दप्रदायिनी
।
शरण्या शरणा शम्या शशिनी शङ्खनाशिनी
॥ ३०॥
गुणा गुणकरी गौणी प्रियाप्रीतिप्रदायिनी
।
जनमोहनकर्त्त्री च जगदानन्ददायिनी ॥
३१॥
जिता जाया च विजया विजया जयदायिनी ।
कामा काली करालास्या खर्वा खञ्जा
खरा गदा ॥ ३२॥
गर्वा गरुत्मती धर्मा घर्ग्घरा
घोरनादिनी ।
चराचरी चराराध्या छिना छिन्नमनोरथा
॥ ३३॥
छिन्नमस्ता जया जाप्या जगज्जाया च
झर्ज्झरी ।
झकारा
झीष्कृतिष्टीका टङ्का टङ्कारनादिनी ॥ ३४॥
ठीका ठक्कुरठक्काङ्गी
ठठठाङ्कारढुण्ढुरा ।
ढुण्ढीताराजतीर्णा च
तालस्थाभ्रमनाशिनी ॥ ३५॥
थकारा थकरा दात्री दीपा दीपविनाशिनी
।
धन्या धना धनवती नर्मदा नर्ममोदिनी
॥ ३६॥
पद्मा पद्मावती पीता स्फान्ता
फूत्कारकारिणी ।
फुल्ला ब्रह्ममयी ब्राह्मी
ब्रह्मानन्दप्रदायिनी ॥ ३७॥
भवाराध्या भवाध्यक्षा भगाली
मन्दगामिनी ।
मदिरा मदिरेक्षा च यशोदा यमपूजिता ॥
३८॥
याम्या राम्या रामरूपा रमणी ललिता
लता ।
लङ्केश्वरी वाक्प्रदा वाच्या
सदाश्रमवासिनी ॥ ३९॥
श्रान्ता शकाररूपा च षकारखरवाहना ।
सह्याद्रिरूपा सानन्दा हरिणी
हरिरूपिणी ॥ ४०॥
हराराध्या वालवाचलवङ्गप्रेमतोषिता ।
क्षपा क्षयप्रदा क्षीरा
अकारादिस्वरूपिणी ॥ ४१॥
कालिका कालमूर्त्तिश्च कलहा
कलहप्रिया ।
शिवा शन्दायिनी सौम्या
शत्रुनिग्रहकारिणी ॥ ४२॥
भवानी भवमूर्त्तिश्च शर्वाणी
सर्वमङ्गला ।
शत्रुविद्द्राविणी शैवी
शुम्भासुरविनाशिनी ॥ ४३॥
धकारमन्त्ररूपा च धूम्बीजपरितोषिता
।
धनाध्यक्षस्तुता धीरा धरारूपा
धरावती ॥ ४४॥
चर्विणी चन्द्रपूज्या च च्छन्दोरूपा
छटावती ।
छाया छायावती स्वच्छा छेदिनी मेदिनी
क्षमा ॥ ४५॥
वल्गिनी वर्द्धिनी वन्द्या वेदमाता
बुधस्तुता ।
धारा धारावती धन्या धर्मदानपरायणा ॥
४६॥
गर्विणी गुरुपूज्या च ज्ञानदात्री
गुणान्विता ।
धर्मिणी धर्मरूपा च घण्टानादपरायणा
॥। ४७॥
घण्टानिनादिनी घूर्णा घूर्णिता
घोररूपिणी ।
कलिघ्नी कलिदूती च कलिपूज्या
कलिप्रिया ॥ ४८॥
कालनिर्णाशिनी काल्या काव्यदा
कालरूपिणी ।
वर्षिणी वृष्टिदा
वृष्टिर्महावृष्टिनिवारिणी ॥ ४९॥
घातिनी घाटिनी घोण्टा घातकी
घनरूपिणी ।
धूम्बीजा धूञ्जपानन्दा
धूम्बीजजपतोषिता ॥ ५०॥
धून्धूम्बीजजपासक्ता
धून्धूम्बीजपरायणा ।
धूङ्कारहर्षिणी धूमा धनदा धनगर्विता
॥ ५१॥
पद्मावती पद्ममाला
पद्मयोनिप्रपूजिता ।
अपारा पूरणी पूर्णा
पूर्णिमापरिवन्दिता ॥ ५२॥
फलदा फलभोक्त्री च फलिनी फलदायिनी ।
फूत्कारिणी फलावाप्त्री फलभोक्त्री
फलान्विता ॥ ५३॥
वारिणी वरणप्रीता वारिपाथोधिपारगा ।
विवर्णा धूम्रनयना धूम्राक्षी
धूम्ररूपिणी ॥ ५४॥
नीतिर्नीतिस्वरूपा च नीतिज्ञा
नयकोविदा ।
तारिणी ताररूपा च तत्त्वज्ञानपरायणा
॥ ५५॥
स्थूला स्थूलाधरा स्थात्री
उत्तमस्थानवासिनी ।
स्थूला पद्मपदस्थाना स्थानभ्रष्टा
स्थलस्थिता ॥ ५६॥
शोषिणी शोभिनी शीता शीतपानीयपायिनी
।
शारिणी शाङ्खिनी शुद्धा
शङ्खासुरविनाशिनी ॥ ५७॥
शर्वरी शर्वरीपूज्या
शर्वरीशप्रपूजिता ।
शर्वरीजाग्रिता योग्या योगिनी
योगिवन्दिता ॥ ५८॥
योगिनीगणसंसेव्या योगिनी योगभाविता
।
योगमार्गरतायुक्ता
योगमार्गानुसारिणी ॥ ५९॥
योगभावा योगयुक्ता यामिनीपतिवन्दिता
।
अयोग्या योघिनी योद्ध्री
युद्धकर्मविशारदा ॥ ६०॥
युद्धमार्गरतानान्ता
युद्धस्थाननिवासिनी ।
सिद्धा सिद्धेश्वरी सिद्धिः
सिद्धिगेहनिवासिनी ॥ ६१॥
सिद्धरीतिस्सिद्धप्रीतिः सिद्धा
सिद्धान्तकारिणी ।
सिद्धगम्या सिद्धपूज्या
सिद्धबन्द्या सुसिद्धिदा ॥ ६२॥
साधिनी साधनप्रीता साध्या
साधनकारिणी ।
साधनीया साध्यसाध्या
साध्यसङ्घसुशोभिनी ॥ ६३॥
साध्वी साधुस्वभावा सा साधुसन्ततिदायिनी
।
साधुपूज्या साधुवन्द्या
साधुसन्दर्शनोद्यता ॥ ६४॥
साधुदृष्टा साधुपृष्ठा
साधुपोषणतत्परा ।
सात्त्विकी सत्त्वसंसिद्धा
सत्त्वसेव्या सुखोदया ॥ ६५॥
सत्त्ववृद्धिकरी शान्ता
सत्त्वसंहर्षमानसा ।
सत्त्वज्ञाना सत्त्वविद्या
सत्त्वसिद्धान्तकारिणी ॥ ६६॥
सत्त्ववृद्धिस्सत्त्वसिद्धिस्सत्त्वसम्पन्नमानसा
।
चारुरूपा चारुदेहा चारुचञ्चललोचना ॥
६७॥
छद्मिनी छद्मसङ्कल्पा छद्मवार्त्ता
क्षमाप्रिया ।
हठिनी हठसम्प्रीतिर्हठवार्त्ता
हठोद्यमा ॥ ६८॥
हठकार्या हठधर्मा हठकर्मपरायणा ।
हठसम्भोगनिरता हठात्काररतिप्रिया ॥
६९॥
हठसम्भेदिनी हृद्या हृद्यवार्त्ता
हरिप्रिया ।
हरिणी हरिणीदृष्टिर्हरिणीमांसभक्षणा
॥ ७०॥
हरिणाक्षी हरिणपा हरिणीगणहर्षदा ।
हरिणीगणसंहर्त्री हरिणीपरिपोषिका ॥
७१॥
हरिणीमृगयासक्ता हरिणीमानपुरस्सरा ।
दीना दीनाकृतिर्दूना द्राविणी
द्रविणप्रदा ॥ ७२॥
द्रविणाचलसंव्वासा द्रविता
द्रव्यसंय्युता ।
दीर्ग्घा दीर्ग्घपदा दृश्या
दर्शनीया दृढाकृतिः ॥ ७३॥
दृढा द्विष्टमतिर्द्दुष्टा द्वेषिणी
द्वेषिभञ्जिनी ।
दोषिणी दोषसंय्युक्ता
दुष्टशत्रुविनाशिनी ॥ ७४॥
देवतार्त्तिहरा
दुष्टदैत्यसङ्घविदारिणी ।
दुष्टदानवहन्त्री च
दुष्टदैत्यनिषूदिनी ॥ ७५॥
देवताप्राणदा देवी देवदुर्गतिनाशिनी
।
नटनायकसंसेव्या नर्त्तकी
नर्त्तकप्रिया ॥ ७६॥
नाट्यविद्या नाट्यकर्त्री नादिनी
नादकारिणी ।
नवीननूतना नव्या नवीनवस्त्रधारिणी ॥
७७॥
नव्यभूषा नव्यमाल्या
नव्यालङ्कारशोभिता ।
नकारवादिनी नम्या नवभूषणभूषिता ॥
७८॥
नीचमार्गा नीचभूमिर्नीचमार्गगतिर्गतिः
।
नाथसेव्या नाथभक्ता
नाथानन्दप्रदायिनी ॥ ७९॥
नम्रा नम्रगतिर्न्नेत्री
निदानवाक्यवादिनी ।
नारीमध्यस्थिता नारी
नारीमध्यगताऽनघा ॥ ८०॥
नारीप्रीति नराराध्या
नरनामप्रकाशिनी ।
रती रतिप्रिया रम्या रतिप्रेमा
रतिप्रदा ॥ ८१॥
रतिस्थानस्थिताराध्या रतिहर्षप्रदायिनी
।
रतिरूपा रतिध्याना रतिरीतिसुधारिणी
॥ ८२॥
रतिरासमहोल्लासा रतिरासविहारिणी ।
रतिकान्तस्तुता राशी
राशिरक्षणकारिणी ॥ ८३॥
अरूपा शुद्धरूपा च सुरूपा
रूपगर्विता ।
रूपयौवनसम्पन्ना रूपराशी रमावती ॥
८४॥
रोधिनी रोषिणी रुष्टा रोषिरुद्धा
रसप्रदा ।
मादिनी मदनप्रीता मधुमत्ता मधुप्रदा
॥ ८५॥
मद्यपा मद्यपध्येया
मद्यपप्राणरक्षिणी ।
मद्यपानन्दसन्दात्री
मद्यपप्रेमतोषिता ॥ ८६॥
मद्यपानरता मत्ता मद्यपानविहारिणी ।
मदिरा मदिरारक्ता मदिरापानहर्षिणी ॥
८७॥
मदिरापानसन्तुष्टा मदिरापानमोहिनी ।
मदिरामानसामुग्धा माध्वीपा मदिराप्रदा
॥ ८८॥
माध्वीदानसदानन्दा माध्वीपानरता मदा
।
मोदिनी मोदसन्दात्री मुदिता
मोदमानसा ॥ ८९॥
मोदकर्त्री मोददात्री
मोदमङ्गलकारिणी ।
मोदकादानसन्तुष्टा मोदकग्रहणक्षमा ॥
९०॥
मोदकालब्धिसङ्क्रुद्धा
मोदकप्राप्तितोषिणी ।
मांसादा मांससम्भक्षा
मांसभक्षणहर्षिणी ॥ ९१॥
मांसपाकपरप्रेमा मांसपाकालयस्थिता ।
मत्स्यमांसकृतास्वादा
मकारपञ्चकान्विता ॥ ९२॥
मुद्रा मुद्रान्विता माता महामोहा
मनस्विनी ।
मुद्रिका मुद्रिकायुक्ता
मुद्रिकाकृतलक्षणा ॥ ९३॥
मुद्रिकालङ्कृता माद्री
मन्दराचलवासिनी ।
मन्दराचलसंसेव्या मन्दराचलवासिनी ॥
९४॥
मन्दरध्येयपादाब्जा
मन्दरारण्यवासिनी ।
मन्दुरावासिनी मन्दा मारिणी
मारिकामिता ॥ ९५॥
महामारी महामारीशमिनी शवसंस्थिता ।
शवमांसकृताहारा श्मशानालयवासिनी ॥
९६॥
श्मशानसिद्धिसंहृष्टा
श्मशानभवनस्थिता ।
श्मशानशयनागारा श्मशानभस्मलेपिता ॥
९७॥
श्मशानभस्मभीमाङ्गी श्मशानावासकारिणी
।
शामिनी शमनाराध्या शमनस्तुतिवन्दिता
॥ ९८॥
शमनाचारसन्तुष्टा शमनागारवासिनी ।
शमनस्वामिनी शान्तिः
शान्तसज्जनपूजिता ॥ ९९॥
शान्तपूजापरा शान्ता
शान्तागारप्रभोजिनी ।
शान्तपूज्या शान्तवन्द्या
शान्तग्रहसुधारिणी ॥ १००॥
शान्तरूपा शान्तियुक्ता शान्तचन्द्रप्रभाऽमला
।
अमला विमला म्लाना मालती
कुञ्जवासिनी ॥ १०१॥
मालतीपुष्पसम्प्रीता
मालतीपुष्पपूजिता ।
महोग्रा महती मध्या मध्यदेशनिवासिनी
॥ १०२॥
मध्यमध्वनिसम्प्रीता
मध्यमध्वनिकारिणी ।
मध्यमा
मध्यमप्रीतिर्मध्यमप्रेमपूरिता ॥ १०३॥
मध्याङ्गचित्रवसना मध्यखिन्ना
महोद्धता ।
महेन्द्रकृतसम्पूजा
महेन्द्रपरिवन्दिता ॥ १०४॥
महेन्द्रजालसंय्युक्ता
महेन्द्रजालकारिणी ।
महेन्द्रमानिताऽमाना मानिनीगणमध्यगा
॥ १०५॥
मानिनीमानसम्प्रीता
मानविध्वंसकारिणी ।
मानिन्याकर्षिणी
मुक्तिर्मुक्तिदात्री सुमुक्तिदा ॥ १०६॥
मुक्तिद्वेषकरी मूल्यकारिणी
मूल्यहारिणी ।
निर्मला मूलसंय्युक्ता मूलिनी
मूलमन्त्रिणी ॥ १०७॥
मूलमन्त्रकृतार्हाद्या
मूलमन्त्रार्ग्घ्यहर्षिणी ।
मूलमन्त्रप्रतिष्ठात्री
मूलमन्त्रप्रहर्षिणी ॥ १०८॥
मूलमन्त्रप्रसन्नास्या
मूलमन्त्रप्रपूजिता ।
मूलमन्त्रप्रणेत्री च
मूलमन्त्रकृतार्च्चना ॥ १०९॥
मूलमन्त्रप्रहृष्टात्मा मूलविद्या
मलापहा ।
विद्याऽविद्या वटस्था च
वटवृक्षनिवासिनी ॥ ११०॥
वटवृक्षकृतस्थाना वटपूजापरायणा ।
वटपूजापरिप्रीता वटदर्शनलालसा ॥
१११॥
वटपूजा कृता ह्लादा
वटपूजाविवर्द्धिनी ।
वशिनी विवशाराध्या वशीकरणमन्त्रिणी
॥ ११२॥
वशीकरणसम्प्रीता वशीकारकसिद्धिदा ।
बटुका बटुकाराध्या बटुकाहारदायिनी ॥
११३॥
बटुकार्च्चापरा पूज्या
बटुकार्च्चाविवर्द्धिनी ।
बटुकानन्दकर्त्त्री च
बटुकप्राणरक्षिणी ॥ ११४॥
बटुकेज्याप्रदाऽपारा पारिणी
पार्वतीप्रिया ।
पर्वताग्रकृतावासा
पर्वतेन्द्रप्रपूजिता ॥ ११५॥
पार्वतीपतिपूज्या च
पार्वतीपतिहर्षदा ।
पार्वतीपतिबुद्धिस्था
पार्वतीपतिमोहिनी ॥ ११६॥
पार्वतीयद्द्विजाराध्या पर्वतस्था
प्रतारिणी ।
पद्मला पद्मिनी पद्मा
पद्ममालाविभूषिता ॥ ११७॥
पद्मजेड्यपदा पद्ममालालङ्कृतमस्तका
।
पद्मार्च्चितपदद्वन्द्वा
पद्महस्तपयोधिजा ॥ ११८॥
पयोधिपारगन्त्री च
पाथोधिपरिकीर्त्तिता ।
पाथोधिपारगापूता
पल्वलाम्बुप्रतर्पिता ॥ ११९॥
पल्वलान्तः पयोमग्ना पवमानगतिर्गतिः
।
पयः पाना पयोदात्री
पानीयपरिकाङ्क्षिणी ॥ १२०॥
पयोजमालाभरणा मुण्डमालाविभूषणा ।
मुण्डिनी मुण्डहन्त्री च मुण्डिता
मुण्डशोभिता ॥ १२१॥
मणिभूषा मणिग्रीवा मणिमालाविराजिता
।
महामोहा महामर्षा महामाया महाहवा ॥
१२२॥
मानवी मानवीपूज्या
मनुवंशविवर्द्धिनी ।
मठिनी मठसंहन्त्री मठसम्पत्तिहारिणी
॥ १२३॥
महाक्रोधवती मूढा मूढशत्रुविनाशिनी
।
पाठीनभोजिनी पूर्णा
पूर्णहारविहारिणी ॥ १२४॥
प्रलयानलतुल्याभा प्रलयानलरूपिणी ।
प्रलयार्णवसम्मग्ना
प्रलयाब्धिविहारिणी ॥ १२५॥
महाप्रलयसम्भूता महाप्रलयकारिणी ।
महाप्रलयसम्प्रीता महाप्रलयसाधिनी ॥
१२६॥
महामहाप्रलयेज्या महाप्रलयमोदिनी ।
छेदिनी छिन्नमुण्डोग्रा छिन्ना
छिन्नरुहार्त्थिनी ॥ १२७॥
शत्रुसञ्छेदिनी छन्ना क्षोदिनी
क्षोदकारिणी ।
लक्षिणी लक्षसम्पूज्या लक्षिता
लक्षणान्विता ॥ १२८॥
लक्षशस्त्रसमायुक्ता
लक्षबाणप्रमोचिनी ।
लक्षपूजापराऽलक्ष्या
लक्षकोदण्डखण्डिनी ॥ १२९॥
लक्षकोदण्डसंय्युक्ता
लक्षकोदण्डधारिणी ।
लक्षलीलालयालभ्या लाक्षागारनिवासिनी
॥ १३०॥
लक्षलोभपरा लोला लक्षभक्तप्रपूजिता
।
लोकिनी लोकसम्पूज्या लोकरक्षणकारिणी
॥ १३१॥
लोकवन्दितपादाब्जा लोकमोहनकारिणी ।
ललिता लालितालीना लोकसंहारकारिणी ॥
१३२॥
लोकलीलाकरी लोक्यालोकसम्भवकारिणी ।
भूतशुद्धिकरी भूतरक्षिणी भूततोषिणी
॥ १३३॥
भूतवेतालसंय्युक्ता भूतसेनासमावृता
।
भूतप्रेतपिशाचादिस्वामिनी भूतपूजिता
॥ १३४॥
डाकिनी शाकिनी डेया
डिण्डिमारावकारिणी ।
डमरूवाद्यसन्तुष्टा डमरूवाद्यकारिणी
॥ १३५॥
हुङ्कारकारिणी होत्री हाविनी
हावनार्त्थिनी ।
हासिनी ह्वासिनी हास्यहर्षिणी
हठवादिनी ॥ १३६॥
अट्टाट्टहासिनी टीका
टीकानिर्माणकारिणी ।
टङ्किनी टङ्किता टङ्का
टङ्कमात्रसुवर्णदा ॥ १३७॥
टङ्कारिणी टकाराढ्या
शत्रुत्रोटनकारिणी ।
त्रुटिता त्रुटिरूपा च
त्रुटिसन्देहकारिणी ॥ १३८॥
तर्षिण तृट्परिक्लान्ता
क्षुत्क्षामा क्षुत्परिप्लुता ।
अक्षिणी तक्षिणी भिक्षाप्रार्त्थिनी
शत्रुभक्षिणी ॥ १३९॥
काङ्क्षिणी कुट्टनी क्रूरा
कुट्टनीवेश्मवासिनी ।
कुट्टनीकोटिसम्पूज्या
कुट्टनीकुलमार्गिणी ॥ १४०॥
कुट्टनीकुलसंरक्षा
कुट्टनीकुलरक्षिणी ।
कालपाशावृता कन्या कुमारीपूजनप्रिया
॥ १४१॥
कौमुदी कौमुदीहृष्टा
करुणादृष्टिसंय्युता ।
कौतुकाचारनिपुणा कौतुकागारवासिनी ॥
१४२॥
काकपक्षधरा काकरक्षिणी काकसंव्वृता
।
काकाङ्करथसंस्थाना
काकाङ्कस्यन्दनास्थिता ॥ १४३॥
काकिनी काकदृष्टिश्च काकभक्षणदायिनी
।
काकमाता काकयोनिः काकमण्डलमण्डिता ॥
१४४॥
काकदर्शनसंशीला काकसङ्कीर्णमन्दिरा
।
काकध्यानस्थदेहादिध्यानगम्या
धमावृता ॥ १४५॥
धनिनी धनिसंसेव्या धनच्छेदनकारिणी ।
धुन्धुरा धुन्धुराकारा
धूम्रलोचनघातिनी ॥ १४६॥
धूङ्कारिणी च धूम्मन्त्रपूजिता
धर्मनाशिनी ।
धूम्रवर्णिनी धूम्राक्षी
धूम्राक्षासुरघातिनी ॥ १४७॥
धूम्बीजजपसन्तुष्टा धूम्बीजजपमानसा
।
धूम्बीजजपपूजार्हा धूम्बीजजपकारिणी
॥ १४८॥
धूम्बीजाकर्षिता धृष्या धर्षिणी
धृष्टमानसा ।
धूलीप्रक्षेपिणी
धूलीव्याप्तधम्मिल्लधारिणी ॥ १४९॥
धूम्बीजजपमालाढ्या
धूम्बीजनिन्दकान्तका ।
धर्मविद्वेषिणी धर्मरक्षिणी
धर्मतोषिता ॥ १५०॥
धारास्तम्भकरी धूर्ता
धारावारिविलासिनी ।
धांधींधूंधैम्मन्त्रवर्णा
धौंधःस्वाहास्वरूपिणी ॥ १५१॥
धरित्रीपूजिता धूर्वा
धान्यच्छेदनकारिणी ।
धिक्कारिणी सुधीपूज्या
धामोद्याननिवासिनी ॥ १५२॥
धामोद्यानपयोदात्री
धामधूलीप्रधूलिता ।
महाध्वनिमती धूप्या
धूपामोदप्रहर्षिणी ॥ १५३॥
धूपादानमतिप्रीता धूपदानविनोदिनी ।
धीवरीगणसम्पूज्या धीवरीवरदायिनी ॥
१५४॥
धीवरीगणमध्यस्था धीवरीधामवासिनी ।
धीवरीगणगोप्त्री च धीवरीगणतोषिता ॥
१५५॥
धीवरीधनदात्री च धीवरीप्राणरक्षिणी
।
धात्रीशा
धातृसम्पूज्या धात्रीवृक्षसमाश्रया ॥ १५६॥
धात्रीपूजनकर्त्री च
धात्रीरोपणकारिणी ।
धूम्रपानरतासक्ता धूम्रपानरतेष्टदा
॥ १५७॥
धूम्रपानकरानन्दा धूम्रवर्षणकारिणी
।
धन्यशब्दश्रुतिप्रीता धुन्धुकारीजनच्छिदा
॥ १५८॥
धुन्धुकारीष्टसन्दात्री
थुन्धुकारिसुमुक्तिदा ।
धुन्धुकार्याराध्यरूपा
धुन्धुकारिमनस्स्थिता ॥ १५९॥
धुन्धुकारिहिताकाङ्क्षा
धुन्धुकारिहितैषिणी ।
धिन्धिमाराविणी ध्यात्री ध्यानगम्या
धनार्थिनी ॥ १६०॥
धोरिणी धोरणप्रीता धारिणी घोररूपिणी
।
धरित्रीरक्षिणी देवी धराप्रलयकारिणी
॥ १६१॥
धराधरसुताऽशेषधाराधरसमद्युतिः ।
धनाध्यक्षा
धनप्राप्तिर्द्धनधान्यविवर्द्धिनी ॥ १६२॥
धनाकर्षणकर्त्त्री च धनाहरणकारिणी ।
धनच्छेदनकर्त्री च धनहीना धनप्रिया
॥ १६३॥
धनसँव्वृद्धिसम्पन्ना धनदानपरायणा ॥
१६४॥
धनहृष्टा धनपुष्टा दानाध्ययनकारिणी
।
धनरक्षा धनप्राणा धनानन्दकरी सदा ॥
१६५॥
शत्रुहन्त्री शवारूढा
शत्रुसंहारकारिणी ।
शत्रुपक्षक्षतिप्रीता
शत्रुपक्षनिषूदिनी ॥ १६६॥
शत्रुग्रीवाच्छिदाछाया
शत्रुपद्धतिखण्डिनी ।
शत्रुप्राणहराहार्या
शत्रून्मूलनकारिणी ॥ १६७॥
शत्रुकार्यविहन्त्री च साङ्गशत्रुविनाशिनी
।
साङ्गशत्रुकुलच्छेत्री
शत्रुसद्मप्रदायिनी ॥ १६८॥
साङ्गसायुधसर्वारि-सर्वसम्पत्तिनाशिनी
।
साङ्गसायुधसर्वारि-देहगेहप्रदाहिनी
॥ १६९॥
इतीदन्धूमरूपिण्यास्स्तोत्रन्नाम
सहस्रकम् ।
धूमावतीसहस्रनामस्तोत्र फलश्रुति
यः पठेच्छून्यभवने सध्वान्ते यतमानसः
॥ १७०॥
मदिरामोदयुक्तो वै देवीध्यानपरायणः
।
तस्य शत्रुः क्षयं याति यदि
शक्रसमोऽपि वै ॥ १७१॥
सायंकाल के बाद मदिरा के गन्ध से
युक्त देवी में ध्यान लगाये हुए, मन को एकाग्र
कर जो साधक इस धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ करता है उसका शत्रु विनाश को
प्राप्त हो जाता है चाहे वह इन्द्र के समान भी क्यों न हो।
भवपाशहरम्पुण्यन्धूमावत्याः
प्रियम्महत् ।
स्तोत्रं सहस्रनामाख्यम्मम
वक्त्राद्विनिर्गतम् ॥ १७२॥
यह धूमावती सहस्रनाम स्तोत्र मेरे
मुख से निकला हुआ है। यह संसार के बन्धनों से मुक्ति दिलाने वाला,
पुण्य तथा धूमावती का परम प्रिय स्तोत्र है।
पठेद्वा श्रृणुयाद्वापि शत्रुघातकरो
भवेत् ।
न देयम्परशिष्यायाऽभक्ताय
प्राणवल्लभे ॥ १७३॥
जो इसे पढ़े या सुने वह शत्रु का
नाश करने वाला होता है। हे प्राणवल्लभे, अन्य
के शिष्य को तथा जो भक्त न हो उसे नहीं देना चाहिए।
देयं शिष्याय भक्ताय देवीभक्तिपराय
च ।
इदं
रहस्यम्परमन्दुर्ल्लभन्दुष्टचेतसाम् ॥ १७४॥
जो भक्त हो और विशेष रूप से
देवीभक्त शिष्य हो उसे इस स्तोत्र को देना चाहिये। दुष्ट स्वभाव वालों के लिए यह
स्तोत्र अत्यन्त दुर्लभ तथा रहस्यमय है।
इति श्रीभैरवीतन्त्रे भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीसहस्रनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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