एकादशी महात्म्य

एकादशी महात्म्य

एकादशी महात्म्य- उद्यापन के दिन यजमान नित्यक्रिया से निवृत होकर शुभ्र या रेशमी वस्त्र धारण करे। अपनी पत्नी को उसी प्रकार पवित्र करके सपन्नीक शुद्ध मन होकर आसन पर बैठे । शुद्ध मन्त्र से यजमान पवित्री धारण करे, और भगवान का ध्यान करे । पुन: 'अपवित्रः पवित्रो वा' इस मंत्र से पवित्र करे। यजमान के हाथ में अक्षत, पुष्प, सुपारी देकर ॐ आनोभद्रा इत्यादि मन्त्र पढ़ना चाहिए। फिर यजमान को दक्षिणा हाथ में द्रव्य, अक्षत, सुपारी, जल लेकर संकल्प करना चाहिए। संकल्प करके पृथ्वी, गौरी और गणेश का पूजन, कलश स्थापना, आचार्य वरणादि करके संकल्पित सब क्रियाओं का सम्पादन करना चाहिए। अतः पूर्वनिर्मित सर्वतोभद्र पर ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन करना चाहिए। उसके ऊपर ताम्र का कलश स्थापित करना चाहिए। कलश में चावल भरा हो, उसके ऊपर चाँदी का पात्र हो। अष्टदल कमल बनाकर प्रधानदेवता का आवाहन करना चाहिए।  'सहस्त्र शीर्षापुरुषः' इत्यादि मंत्रों से लक्ष्मी सहित विष्णु का आवाहन करना चाहिए। अष्टदल के आठों पत्रों पर पूर्वादि क्रम से अग्नि, इन्द्र, प्रजापति, विश्वेदेवा, ब्रह्मा, वासुदेव, श्रीराम का नाम लेकर आवाहन करना चाहिए, फिर चारों दिशाओं में क्रमशः रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बन्ती और कालिन्दी का आवाहन करना चाहिए। चारों कोणों में आग्नेयादि क्रम से शंख, चक्र, गदा का आवाहन करना चाहिए। कलश के आगे गरुड़ का आवाहन होना चाहिए। अतः पूर्वादि क्रम से इन्द्रादि लोकपालों का आवाहन नाम-मंत्रों से करना चाहिए। इन सबका आवाहन करके षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। फिर भगवान के सर्वांग शरीर का पूजन और नमस्कार करना चाहिए । स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल से पञ्चोपचार पूजन करना चाहिए। पात्र में जलदार नारियल, अक्षत, फूल, चन्दन और सोना रखकर घुटने के बल बैठकर इस श्लोक (नारायणं हृषीकेश लक्ष्मीकान्त दयानिधे। गृहाण अर्ध्य मया दत्तं व्रतं सम्पूर्ण हेतवे ) से अर्घ्य देना चाहिए। इस के पश्चात इस दिन का कृत्य समाप्त करके गाने-बजाने से रात्रि व्यतीत करे।

एकादशी महात्म्य

एकादशी महात्म्य 

दूसरे दिन यजमान तथा आचार्य नित्य कृत्य करके पुनः आचार्य 'अपवित्रः पवित्रो वा', पवित्रेस्थो व आनो भद्रा, आदि मंत्रों का पाठ करके हवन का संकल्प करे और आवाहित देवताओं का पञ्चोपचार से पूजन करे।

ततः सहस्त्रशीर्ष पुरुष', इत्यादि १६ मन्त्रों से प्रधान के लिए हवन करना चाहिए। आवश्यकता वश केवल घी या पायस घी या पायसान्नयुक्त घी का हवन करना चाहिए।

हवन के पश्चात तीन बार अग्नि की प्रदक्षिणा करे। फिर जानु के बल बैठकर पुरुषसूक्त का पाठ करना चाहिए। ततः शेष हव्य तथा आज्य का हवन करना चाहिए। ततः आचार्य शुल्व प्रहरण करके प्रायश्चित संकल्प करावे और हवन समाप्त करे। ब्राह्मण को तूर्ण पात्र का दान दे। आचार्यादि हवन-कर्ताओं को दक्षिणा तथा वस्त्र दे। आचार्य को दक्षिणा के साथ सवत्सा सलंकार श्वेत गाय दे।

यजमान १२ ब्राह्मणों को केशवादि १२ देवताओं का स्वरूप मानकर उनका पूजन करे, २ कलश, दक्षिणा धन, मिठाई और वस्त्र से युक्त करके दे। ततः प्रधान पीठ पर कल्पित केशवादि देवताओं का उत्थापन करके आचार्य को दान दे। आचार्य वैदिक तथा तन्त्रोक्त मन्त्रों से यजमान पर अभिषिक्त जल छिड़के। अग्नि की पूजा करे। प्रार्थना करके विसर्जन करे। ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा सहित ताम्बूल दे स्वयं भी सपरिवार इष्ट मित्रों सहित भोजन करे। इस प्रकार विधिपूर्वक योग्य आचार्य के निर्देशन में उद्यापन करने से एकादशी-व्रत की सिद्धि होती है प्राचीन महाभारत काल में इस एकादशी उद्यापन की विधि के बारे में पूछते हुए अर्जुन बोले, “हे कृपानिधि। एकादशी व्रत का उद्यापन कैसा होना चाहिये और उसकी क्या विधि है? उसको आप कृपा करके मुझे उपदेश दें।" तब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं- "हे पांडवश्रेष्ठ! उद्यापन के बिना, कष्ट से किये हए व्रत भी निष्फल हैं। सो तुम्हें उसकी विधि बताता हूँ। देवताओं के प्रबोध समय में ही एकादशी का उद्यापन करे। विशेष कर मार्गशीर्ष के महीने, माघ माह में या भीम तिथि(माघ शुक्ल एकादशी) के दिन उद्यापन करना चाहिये।।( चौमासे में एकादशी उद्यापन नहीं करना है)।

एकादशी महात्म्य

श्री एकादशी व्रत उद्यापन सामग्री

रोली, मौली, धूपबत्ती, केसर, कपूर, सिन्दूर, चन्दन, होरसा, पेड़ा, बतासा, ऋतुफल, केला, पान,सुपारी, रुई, पुष्पमाला, पुष्प, दुर्वा,कुशा, गंगाजल, तुलसी, अग्निहोत्र, भस्म, गोमूत्र, घृत, शहद, चीनी, दूध, यज्ञापवीत, अबीर (गुलाल), अभ्रक, गुलाब जल, धान का लावा, इत्र, शीशा, इलायची, जावित्री, जायफल, पञ्चमेवा, हल्दी, पीली सरसों, मेंहदी की बुकनी, नारियल, गिरि का गोला, पंचपल्लव, बंदनवार, कच्चा सूत, मूंग की दाल, उड़द काला, सूप, विल्व पत्र, पंचरत्न, सर्वोषधि सप्तमृत्तिका, सप्तधान्य, पंचरंग, नवग्रह समिधा, चौकी, पीढ़ा,घंटा,शंख, कटिया, कलश, गंगा सागर, कटोरी,कटोरा, चरुस्थाली, आज्यस्थाली, बाल्टी, कलछी, संडासी, चिमटा, प्रधान प्रतिमा सुवर्ण की, प्रधान प्रतिमा चांदी की, चांदी की कटोरी, पंचपात्र, आचमनी, अर्धा, तष्टा, सुवर्ण जिव्हा, सुवर्ण शलाका, सिंहासन, छत्र, चमर, तिल, चावल, यव, धृत, चीनी, पंचमेवा, भोजपत्र, बाल ईट, हवनार्थ लकड़ी आम की, गोयंठा, दियासलाई और यज्ञपात।

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२४  नैवेदय : १.मोदक, .गुड़, .चूर्ण-आटे या सूजी-चीनी को घी में भून कर बना प्रसाद, .घृतगुड़ मिले आटे की पूरी बनाए, .मण्डक : रोटी(चाहे तो घी दूध चीनी में आटा गूंथकर मीठी रोटियाँ बनाए), .सोहालिका/सोहालकः खॉडयुक्त अशोकवर्तिकाः फेनी बनाएं या दूध की सेवई बना लें, ७. मक्खन ८.बेर या बेल फल या फिर सेब, .सत्तू - भुना वाला चना चीनी के साथ पीसकर रखें, १०.बड़े-भीगे हुए उड़द पीसकर हल्दी,धनिया,आजवायन,नमक डालकर तलकर गोल पकौड़े जैसे बना लें, ११.खीर, १२. दूध, १३.शालि (उबला चावल, बासमती हो तो उत्तम) १४.दहीचावल, १५.इंडरीक = इडली = सूजी,दही,चुटकी भर सोडा, एक चम्मच तेल और नमक डालकर घोल तैयार कर लें इस इडली घोल को २० मिनट तक ढककर रख दें। इडली स्टैण्ड हो ठीक है वर्ना एक बडा बर्तन गैस पर रख लें, उसमें थोड़ा पानी लें उसमें दो कटोरी रखें, उसके उपर छोटी प्लेट रखें और उसके उपर छोटी कटोरियों में इडली का घोल भरकर रख दें। बर्तन को अच्छी से ढककर ८-१० मिनट भाप में पकने दें फिर ये इडलियाँ भगवान को भोग लगाए।, १६.बिना घी की आटे की पूरियां तल लें , १७.अपूप(पुए)= सूजी, आटे में चीनी, गुड, घी, दही अच्छी से मिलाकर तलकर छोटी-छोटी गोल मीठी पकौड़ियां सी बना लें, १८.गुड़ के लड्डू, १९.शर्करा सहित तिलपिष्ट = साफ तिल चीनी के साथ पीसकर थोड़ा भूनकर कटोरी में रख दें, २०.कर्णवेष्ट = आटा चीनी दूध घी मिलाकर गूंथ लें इसकी लोई बनाकर रोटी की तरह बेल लें फिर चाकू से पतली सी पट्टियां काट लें, हर एक पट्टी को अंगुली की सहायता से कान के कुंडल जैसी गोल बना लें इन गोल आकृतियों को तलकर नैवेद्य के लिए रख लें, २१.शालिपिष्ट= चावल(बासमती हो तो उत्तम) के आटे को घी में भूनकर चीनी मिलाकर प्रसाद बना ले, २२. केला, २३.घृतयुक्त मुद्गपिष्ट : मिक्सी में मूंग दाल का आटा बना ले या फिर मूंग भिगोकर पीसकर, उसमें घी और चीनी डालकर पका ले, २४.गुड मिला उबला चावल(भात)

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द्वादशी के लिए- हवन के लिए: घी(अधिक घी न हो तो घी के समाप्त होने के बाद तिल के तेल से भी हवन पूर्ण किया जा सकता है), खीर(आहुति में इसका प्रचुर मात्रा में प्रयोग होना है, आहुतियाँ गिनकर हिसाब से बना ले अन्यथा तिल-जौं आदि हवन सामग्री से ही हवन कर ले,

लेकिन स्विष्टकृत हवन में खीर ही प्रयोग होगा), कुल कितना आहुति देना है हिसाब लगा ले, अगर घी/खीर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है तो- तिल(काले व सफेद)+जौं(तिल से कम मात्रा में)+चावल (जौं से कम)+ "हवन-सामग्री का पैकेट। गोबर व गोमूत्र, पानी, कपूर, रुई की बत्तियां, माचिस, फूल, कुश(या दूब), ४ पवित्र (२ कुश/दूर्वा को साथ बांधकर १ पवित्र बनता है), समिधा के लिए छोटी सूखी पतली लकड़ियाँ(आम/पीपल आदि वृक्ष की लेकिन काँटेदार पेड़ की न हो), हवन कुंड (या ईंट लगाकर मिट्टी/रेत से वेदी बनाए)। प्रणीता पात्र और प्रापण पात्र(न हों तो २कटोरे ले)। सुर्वा(न हों तो खीर होम करने के लिए चम्मच ले, घृत होम के लिए आम/पीपल की पत्ती ले)। तिलक के लिए रोली-अक्षत। ब्रह्माजी के लिए दक्षिणा।

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भगवान ने कहा - "हे अर्जुन। अब उद्यापन की विधि को मैं कहता हूं। यदि सामर्थ्यवान मनुष्य श्रद्धा से हजार 'स्वर्ण मुद्रा दान दे और असमर्थ व्यक्ति एक 'कौड़ी भी यदि श्रद्धा से दान दे दे तो उन दोनों का फल एक समान ही है।"

आचार्य व ब्राहमण को दान के लिए: अन्न, वस्त्र (धोती,अंगोछा,टोपी का कपड़ा), कंघी, अंगूठी(छल्ले), जूते/चप्पल, दक्षिणा, आचार्य-पत्नी भी बुलाई हैं तो साड़ी-बिंदी आदि इच्छानुसार

दें। आचार्य को या सबको फल, अन्न(साबुत दाल, चावल), मिठाई दे सकते हैं। पीतल/तांबे/ मिट्टी से बने कलश व विष्णु मूर्ति के दान का भी महत्व है। इसके अलावा सबके लिए समय से भोजन तैयार करवा ले।

एकादशी महात्म्य

वरण सामिग्री- धोती, दुपट्टा, अंगोछा, यज्ञापवीत, पंचपात्र, आचमनी, अर्घा तष्टा, लोटा, गिलास, छाता, छड़ी, कुशासन, कंबलासन, कटोरी (मधुपकार्थ), गोमुखी, रुद्राक्षमाला, पुष्पमाला, खड़ाऊं, अंगूठी, देवताओं को वस्त्रादि।

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शय्या सामग्री- प्रतिमा विष्णु भगवान की, पलंग, तकिया, चादर दरी, रजाई, पहनने के वस्त्र, छाता, जूता, खड़ाऊं, पुस्तक, आसन, शीशा, घंटी, पानदान, छत्रदान, भोजन के बर्तन, चूल्हा, लालटेन, पंखा, अन्न, धृत, आभूषण।

॥ इति एकादशी महात्म्य समाप्त ।।

शेष जारी ....आगे पढ़े- एकादशी व्रत उद्यापन विधि

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