recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

परमा एकादशी

परमा एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिक मास या मल मास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती है। अधिक मास में दो एकादशी होती है जो कृष्ण पक्ष में परमा और शुक्ल पक्ष में पद्मिनी के नाम से जानी जाती है। अधिक मास में कृष्ण पक्ष में जो एकादशी आती है वह हरिवल्लभा अथवा परमा एकदशी के नाम से जानी जाती है ऐसा श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा व विधि भी बताई थी।

परमा एकादशी

परमा एकादशी व्रत कथा

काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ निवास करता था। ब्रह्मण धर्मात्मा था और उसकी पत्नी पतिव्रता। यह परिवार स्वयं भूखा रह जाता परंतु अतिथियों की सेवा हृदय से करता। धनाभाव के कारण एक दिन ब्रह्मण ने ब्रह्मणी से कहा कि धनोपार्जन के लिए मुझे परदेश जाना चाहिए क्योंकि अर्थाभाव में परिवार चलाना अति कठिन है।

ब्रह्मण की पत्नी ने कहा कि मनुष्य जो कुछ पाता है वह अपने भाग्य से पाता है। हमें पूर्व जन्म के फल के कारण यह ग़रीबी मिली है अत: यहीं रहकर कर्म कीजिए जो प्रभु की इच्छा होगी वही होगा। ब्रह्मण को पत्नी की बात ठीक लगी और वह परदेश नहीं गया। एक दिन संयोग से कौण्डिल्य ऋषि उधर से गुजर रहे थे तो उस ब्रह्मण के घर पधारे। ऋषि को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी अति प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषिवर की खूब आवभगत की।

ऋषि उनकी सेवा भावना को देखकर काफी खुश हुए और ब्राह्मण एवं ब्राह्मणी द्वारा यह पूछे जाने पर की उनकी गरीबी और दीनता कैसे दूर हो सकती है, उन्होंने कहा मल मास में जो शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है वह परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है, इस एकादशी का व्रत आप दोनों रखें। ऋषि ने कहा यह एकादशी धन वैभव देती है तथा पाप का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली है। किसी समय में धनाधिपति कुबेर ने इस व्रत का पालन किया था जिससे प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें धनाध्यक्ष का पद प्रदान किया।

समय आने पर सुमेधा नामक उस ब्राह्मण ने विधि पूर्वक इस एकादशी का व्रत रखा जिससे उनकी गरीबी का अंत हुआ और पृथ्वी पर काफी समय तक सुख भोगकर वे पति पत्नी श्री विष्णु के उत्तम लोक को प्रस्थान कर गये।

परमा एकादशी व्रत कथा की महिमा

इस एकादशी व्रत की विधि बड़ी ही कठिन है। इस व्रत में पांच दिनों तक निराहार रहने का व्रत लिया जाता है। व्रती को एकादशी के दिन स्नान करके भगवान विष्णु के समक्ष बैठकर हाथ में जल एवं फूल लेकर संकल्प करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पांच दिनों तक श्री हरि में मन लगाकर व्रत का पालन करना चाहिए। पांचवें दिन ब्रह्मण को भोजन करवाकर दान दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात व्रती को स्वयं भोजन करना चाहिए।

एकादशी व्रत के महत्वपूर्ण भूमिका स्वास्थ्य और मन पर है। एकादशी खासकर स्वास्थ्य संतुलन का आधार है। न की एकादशी किसी देवी देवताओं को खुश करने के लिए किया जाता है। एकादशी व्रत करने के तरीकों और खोलने के तरीके से स्वास्थ्य संतुलित होता है। एकादशी व्रत नियमित रूप से करने से जीन्दगी मे कभी कोइ बीमारी प्रभावित नहीं होता है। एकादशी व्रत करने से शरीर और मन को शक्ति मिलता है एकादशी व्रत निर्जला और सजला किया जा सकता है। इसमेँ निर्जला एकादशी ही उत्तम होता है। न की फलाहार से। फलाहार एकादशी व्रत करने से नाम मात्र के सीवा कुछ नहीं होता।

परमा एकादशी व्रत कथा समाप्त ||

इति:एकादशी व्रत कथा समाप्त ||

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]