Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2021
(800)
-
▼
February
(54)
- परमा एकादशी
- पद्मिनी एकादशी
- देव प्रबोधिनी एकादशी
- रमा एकादशी
- पापांकुशा एकादशी
- इंदिरा एकादशी
- परिवर्तिनी एकादशी
- अजा एकादशी
- पुत्रदा एकादशी
- कामिका एकादशी
- देवशयनी एकादशी
- योगिनी एकादशी
- निर्जला एकादशी
- अपरा एकादशी व्रत
- मोहिनी एकादशी व्रत
- वरूथिनी एकादशी व्रत
- कामदा एकादशी
- पापमोचिनी एकादशी
- आमलकी एकादशी
- विजया एकादशी
- जया एकादशी व्रत कथा
- षटतिला एकादशी
- पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
- सफला एकादशी व्रत कथा
- मोक्षदा एकादशी
- उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
- एकादशी व्रत
- श्री अरविन्दोपनिषद्
- सरस्वतीतन्त्र षष्ठ पटल
- सरस्वतीतन्त्र पञ्चम पटल
- सरस्वतीतन्त्र चतुर्थ पटल
- सरस्वतीतन्त्र तृतीय पटल
- सरस्वतीतन्त्र द्वितीय पटल
- सरस्वतीतन्त्रम् प्रथमः पटलः
- नारायण सहस्रनाम स्तोत्रम्
- श्रीरामसहस्रनाम
- विष्णु सहस्त्रनाम
- श्रीकृष्णसहस्रनाम स्तोत्र
- तुलसी-शालिग्राम पौराणिक कथा, श्री तुलसी चालीसा व आरती
- तुलसी स्तोत्र
- तुलसी नामाष्टक व श्री तुलसी अष्टोत्तर शतनामावली
- विष्णु पूजन विधि
- नारायण सूक्त
- नारायण उपनिषद्
- विष्णु सूक्त
- रघुवंशम् तृतीय सर्ग
- गायत्री रहस्योपनिषद्
- अथर्वशिर उपनिषद्
- श्रीरामरक्षास्तोत्रम्
- सप्तश्लोकी व अष्टादश श्लोकी गीता
- ईशोपनिषद्
- द्वयोपनिषद्
- चाक्षुषोपनिषद्
- बह्वृचोपनिषत्
-
▼
February
(54)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
निर्जला एकादशी
इससे पूर्व आपने एकादशी व्रत कथा
में ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में अपरा एकादशी व्रत कथा पढ़ा। अब पढेंगे की-
ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी व्रत कहते हैं।
इस व्रत मे पानी का पीना वर्जित है इसिलिये इस निर्जला एकादशी कहते है।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को
चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प कराया तो महाबली भीम ने
निवेदन किया- पितामह! आपने तो प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो
एक दिन क्या एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे
शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या
अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा?
पितामह ने भीम की समस्या का निदान
करते और उनका मनोबल बढ़ाते हुए कहा- नहीं कुंतीनंदन, धर्म की यही तो विशेषता है कि वह सबको धारण ही नहीं करता, सबके योग्य साधन व्रत-नियमों की बड़ी सहज और लचीली व्यवस्था भी उपलब्ध
करवाता है। अतः आप ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का
व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। निःसंदेह तुम इस
लोक में सुख, यश और प्राप्तव्य प्राप्त कर मोक्ष लाभ प्राप्त
करोगे।
इतने आश्वासन पर तो वृकोदर भीमसेन
भी इस एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का
पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को लोक में पांडव एकादशी या
भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन स्वयं निर्जल रहकर ब्राह्मण या जरूरतमंद
व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत दूसरी कथा
एक बार महर्षि व्यास पांडवो के यहाँ
पधारे। भीम ने महर्षि व्यास से कहा, भगवान!
युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, माता कुन्ती और द्रौपदी सभी एकादशी का व्रत
करते है और मुझसे भी व्रत रखने को कहते है परन्तु मैं बिना खाए रह नही सकता है
इसलिए चौबीस एकादशियो पर निरहार रहने का कष्ट साधना से बचाकर मुझे कोई ऐसा व्रत
बताईये जिसे करने में मुझे विशेष असुविधा न हो और सबका फल भी मुझे मिल जाये।
महर्षि व्यास जानते थे कि भीम के उदर में बृक नामक अग्नि है इसलिए अधिक मात्रा में
भोजन करने पर भी उसकी भूख शान्त नही होती है महर्षि ने भीम से कहा तुम ज्येष्ठ
शुक्ल एकादशी का व्रत रखा करो। इस व्रत मे स्नान आचमन मे पानी पीने से दोष नही
होता है इस व्रत से अन्य तेईस एकादशियो के पुण्य का लाभ भी मिलेगा तुम जीवन
पर्यन्त इस व्रत का पालन करो भीम ने बडे साहस के साथ निर्जला एकादशी व्रत किया,
जिसके परिणाम स्वरूप प्रातः होते होते वह सज्ञाहीन हो गया तब पांडवो
ने गगाजल, तुलसी चरणामृत प्रसाद, देकर
उनकी मुर्छा दुर की। इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत कथा की महिमा
यह व्रत नर नारी दोनो को करना
चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप मे भगवान विष्णु की अराधना का
विशेष महत्व है। इस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करके गोदान,
वस्त्र दान, छत्र, फल
आदि का दान करना चाहिये। निर्जला एकादशी को साल भर की सभी चौबीस एकादशियों में
सर्वोत्तम माना जाता है। मान्यता है कि यदि आपने साल भर में मात्र इस एकादशी का
व्रत भी रख लिया तो साल भर की सभी एकादशियों का फल सहज ही प्राप्त हो जाता है।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन प्रातःकाल स्नान
करके सूर्य भगवान को जल अर्पित करके पीले वस्त्र धारण कर भगवान श्रीविष्णु का पूजन
करें और उन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें।
इस दिन श्री हरि और माँ लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करना चाहिए और जरूरतमंदों को
अन्न और वस्त्र, जूते या छाते का दान तो करें ही प्यासे
लोगों को जल भी पिलाना चाहिए।
इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव
एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि भोजन पर संयम न रखने
वाले पांच पाण्डवों में एक भीमसेन ने इस व्रत का पालन कर सुफल पाए थे। इसलिए इसका
नाम भीमसेनी एकादशी भी पड़ा। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है। यह
व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। कुछ व्रती इस दिन एक
भुक्त व्रत भी रखते हैं यानि सायं को दान-दर्शन के बाद फलाहार और दूध का सेवन करते
हैं।
एकादशी तिथि के सूर्योदय से अगले
दिन द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक जल और भोजन का त्याग किया जाता है। इसके बाद दान,
पुण्य आदि कर इस व्रत का विधान पूर्ण होता है। इस दिन सर्वप्रथम
भगवान विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करें। ओम नमो भगवते वासुदेवायः मंत्र का जाप
करें। इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि वह जल से कलश भरें व सफेद वस्त्र को उस
पर रखें और उस पर चीनी तथा दक्षिणा रखकर ब्राह्मण को दान दें। इस दिन कलश और गौ
दान का विशेष महत्व है।
इस दिन पानी नहीं पिया जाता इसलिए
यह व्रत अत्यधिक श्रम साध्य होने के साथ−साथ कष्ट एवं संयम साध्य भी है। इस दिन
निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है।
इस एकादशी का व्रत करके यथासंभव अन्न, वस्त्र,
छतरी, जूता, पंखी तथा फल
आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों
का फल लाभ प्राप्त हो जाता है।
शेष जारी....आगे पढ़े- योगिनी एकादशी व्रत कथा
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: