योगिनी एकादशी
इससे पूर्व आपने एकादशी व्रत कथा
में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में निर्जला एकादशी व्रत कथा पढ़ा। अब पढेंगे की- आषाढ़
मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी व्रत कहते हैं।
योगिनी एकादशी एकादशी व्रत कथा
योगिनी एकादशी व्रतकथा पद्मपुराण के
उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को "योगनी"
अथवा "शयनी" एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं
मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं। जब युधिष्ठिर आषाढ़ कृष्ण
एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब
वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं।
मेघदूत में महाकवि कालिदास जी ने
किसी शापित यक्ष के विषय में उल्लेख किया है। मेघदूत में वह यक्ष मेघ को हि दूत
स्वीकार कर उसके माध्यम से अपनी पत्नी के लिए सन्देश भेजता है,
यह कथानक वहाँ प्राप्त होता है। कालिदास जी की वह मेघदूत की कथा इस
कथा से प्रभावित है ऐसा माना जाता है।
एक बार की बात है धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि भगवन, मैंने ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी के व्रत का माहात्म्य सुना। अब कृपया आषाढ़ कृष्ण एकादशी की कथा सुनाइए। इसका नाम क्या है? माहात्म्य क्या है? यह भी बताइए।
श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन!
आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी है। इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह
इस लोक में भोग और परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध
है। मैं तुमसे पुराणों में वर्णन की हुई कथा कहता हूँ। ध्यानपूर्वक सुनो।
स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी
में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया
करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहाँ फूल लाया करता था। हेम की
विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन
कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता
रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का
कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर
नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी
स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा। यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर
उसे बुलाया।
हेम माली राजा के भय से काँपता हुआ उपस्थित
हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- ‘अरे
पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का
अनादर किया है, इसलि्ए मैं तुझे शाप देता हूँ कि तू स्त्री
का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।’
कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग
से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में
श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर
माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में
जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा। रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान
अवश्य रहा। घूमते-घ़ूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुँच गया,
जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के
समान लगता था। हेम माली वहाँ जाकर उनके पैरों में पड़ गया।
उसे देखकर मारर्कंडेय ऋषि बोले
तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव
से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले-
निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे
उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूँ। यदि तू ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी
नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएँगे।
यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत
प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम
माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के
प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा।
योगिनी एकादशी व्रत कथा की महिमा
आषाढ़ कृष्ण एकादशी का नाम योगिनी
है। योगिनी एकादशी व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह इस लोक में भोग और
परलोक में मुक्ति देने वाली है। यह तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। भगवान कृष्ण ने
कहा- हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत 88
हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत से समस्त पाप दूर
हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है।
शेष जारी....आगे पढ़े- देवशयनी एकादशी व्रत कथा
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