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अपरा एकादशी व्रत
इससे पूर्व आपने एकादशी व्रत कथा
में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ा। अब पढेंगे की-
ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को अपरा एकादशी व्रत कहते हैं।
अपरा एकादशी व्रत कथा
महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था।
राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई से द्वेष रखता था। एक दिन अवसर पाकर इसने राजा
की हत्या कर दी और जंगल में एक पीपल के नीचे गाड़ दिया। अकाल मृत्यु होने के कारण
राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी। मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को
आत्मा परेशान करती। एक दिन एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे। इन्होंने प्रेत को
देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना।
ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की
प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया। राजा को प्रेत योनी से
मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा और द्वादशी के दिन
व्रत पूरा होने पर व्रत का पुण्य प्रेत को दे दिया। एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त
करके राजा प्रेतयोनी से मुक्त हो गया और स्वर्ग चला गया।
अपरा एकादशी व्रत कथा की महिमा
श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि
अपरा एकादशी पुण्य प्रदाता और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है। ब्रह्मा
हत्या से दबा हुआ, गोत्र की हत्या
करने वाला, गर्भस्थ शिशु को मारने वाला, परनिंदक, परस्त्रीगामी भी अपरा एकादशी का व्रत रखने
से पापमुक्त होकर श्री विष्णु लोक में प्रतिष्ठित हो जाता है।
माघ में सूर्य के मकर राशि में होने
पर प्रयाग में स्नान, शिवरात्रि में काशी
में रहकर व्रत, गया में पिंडदान, वृष
राशि में गोदावरी में स्नान, बद्रिकाश्रम में भगवान केदार के
दर्शन या सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र में स्नान और दान के बराबर जो फल मिलता है,
वह अपरा एकादशी के मात्र एक व्रत से मिल जाता है। अपरा एकादशी को
उपवास करके भगवान वामन की पूजा से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। इसकी कथा
सुनने और पढ़ने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।
शेष जारी....आगे पढ़े- निर्जला एकादशी व्रत कथा
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