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पद्मिनी एकादशी
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। मल मास जिसे अधिक मास या पुरूषोत्तम मास कहा गया है। इस मास में दो एकादशी आती है जिसमें अत्यंत पुण्य दायिनी पद्मिनी एकादशी भी एक है। इससे पूर्व आपने एकादशी व्रत कथा में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में देव प्रबोधिनी एकादशी व्रत कथा पढ़ा। अब पढेंगे की- मल मास या अधिक मास या पुरूषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पद्मिनी है।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा
पद्मिनी एकादशी भगवान को अति प्रिय
है। इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है। इस व्रत के
पालन से व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों
एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस व्रत की कथा के अनुसार:
श्री कृष्ण कहते हैं त्रेता युग में
एक परम पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परतु किसी भी रानी
से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी
रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से
तब राजा अपनी रानियो के साथ तपस्या करने चल पड़े। हजारों वर्ष तक तपस्या करते हुए
राजा की सिर्फ हडि्यां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न रही। रानी ने तब
देवी अनुसूया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का
व्रत करने के लिए कहा।
अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान
भी बताया। रानी ने तब देवी अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का
व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी
ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान
दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना
की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में
आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो
गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम
से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी
बंदी बना लिया था।
पद्मिनी एकादशी व्रत कथा की महिमा
भगवान श्री कृष्ण ने एकादशी का जो
व्रत विधान बताया है वह इस प्रकार है। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान
विष्णु की विधि पूर्वक पूजन करें। निर्जल व्रत रखकर पुराण का श्रवण अथवा पाठ करें।
रात्रि में भी निर्जल व्रत रखें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। रात्रि में
प्रति पहर विष्णु और शिव की पूजा करें। प्रत्येक प्रहर में भगवान को अलग अलग भेंट
प्रस्तुत करें जैसे प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे
प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में
नारंगी और सुपारी निवेदित करें।
द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की
पूजा करें फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें इसके पश्चात स्वयं
भोजन करें।
इस प्रकार इस एकादशी का व्रत करने
से मनुष्य जीवन सफल होता है, व्यक्ति जीवन
का सुख भोगकर श्री हरि के लोक में स्थान प्राप्त करता है
शेष जारी....आगे पढ़े- परमा एकादशी व्रत कथा
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