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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
एकादशी व्रत उद्यापन विधि अग्रहण
कृष्णपक्ष की एकादशी को करना चाहिए। माघ में अथवा भीमतिथि को भी उद्यापन किया जा
सकता है।
दशमी के दिन एक समय भोजन करे,
एकादशी को पवित्र होकर उद्यापन करे।
कुछ लोग केवल शुक्ल पक्ष की ही
एकादशी का व्रत करते हैं, कुछ लोग केवल कृष्ण
पक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं। और उसका ही उद्यापन करते हैं। अतः उद्यापन
प्रतिज्ञा संकल्प में शुक्लपक्ष की अथवा कृष्णपक्ष की एकादशी व्रत का उद्यापन करने
का संकल्प करना चाहिए। इस पद्धति में दोनों पक्ष की एकादशी व्रत के उद्यापन का
संकल्प लिखा गया है।
कुछ शास्त्रों में १२ घड़ा और वायन
देने तथा १२ ब्राह्मण को भोजन कराने को लिखा है-यह एकपक्षीय एकादशी के उद्यापन में
जानना चाहिए । दोनों पक्ष की एकादशी के उद्यापन में २६ वायन दिया जाता है।
एकादशी व्रतोद्यापन विधि के अवसर पर यदि सम्भव हो, तो पीठपूजन के बाद हवन के पहले एकादशी माहत्म्य को सुन लेना चाहिए।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि पूजन-प्रारम्भ
पूजन करने वाला व्यक्ति नित्यकर्म
से निवृत्त होकर, शुद्ध पवित्र पीले
रंग को धोती दुपट्टा-यज्ञोपवीत धारण कर पूर्व मुख बैठे। पत्नी को दाहिनी ओर बिठाकर
गाँठ जुड़वा कर पूजन-प्रारम्भ करे।
कुशा या आम्रपल्लव से अपने ऊपर तथा
पूजन-सामग्री पर 'अपवित्रः पवित्रो वा'
मन्त्र से जल छिड़के।
'ॐ पवित्रेस्थोः ' मन्त्र से पवित्री (पैंती) पहने।
हाथ में अक्षत पुष्प लेकर ॐआनोभद्रा इत्यादि स्वस्तिवचन मन्त्र पढ़ कर अपने सामने पृथिवी पर छोड़ दे। फिर
यजमान दूसरा अक्षत-पुष्प लेकर ॐ सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो व
अनन्याश्चिन्त यन्तो मां ये जनाः पर्युपासते। तेषां नित्याभि युक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
स्मृतेः सकलकल्याणं भाजनं यत्रजायते। पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं मम।।
सर्वेष्वारम्भ कार्येषु त्रयस्त्रि भुनेश्वराः।देवा दिशन्तु नः सिद्धिम् ब्रह्मेशान जनार्दनाः।।
मन्त्र से
प्रार्थना करे।
हाथ का अक्षत-पुष्प पृथिवी पर छोड़
दें।
पुनः कुश-जल-अक्षत-पुष्प-द्रव्य
लेकर संकल्प करें-
हरिः ओम् तत् सत्
विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः अद्य ओम् नमः परमात्मने श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य श्री ब्रह्मणोिऽह्न द्वितीय परार्धे श्री
श्वेतवाराहकल्पे-वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे युगे कलियुगे कलिप्रथमचरणे
जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्तेक देशे पुण्यक्षेत्रे
विक्रमशके बौद्धावतारे वर्तमाने यथानाम संवत्सरे यथायनेसूर्ये यथाऋतौ च
महामांगल्यप्रदे अमुक मासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुक वासरे यथानक्षत्रे
यथाराशिस्थिते सूर्ये यथा यथा राशिस्थितेषु शेषेषु ग्रहेषु सत्सु यथालग्न मुहर्त
योग करणान्वितायां तथा चैवं ग्रहगुण विशेषण विशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ श्रुति
स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्ति कामः (अमुक) गोत्रः (अमुक) नामाऽहम् स्वकीय
जन्मलग्नतो वा दुस् स्थानगत ग्रह जन्य सकलारिष्ट निवृत्त्यर्थम-ममाखिल पापक्षय
पूर्वकं धर्मार्थ काम मोक्ष चतुर्विध पुरुषार्थ सिद्धि पूर्वकं धन-धान्यादि-सत्संगति
लाभार्थम्-एकैक विंशति पुरुषोद्धार सिद्धि द्वारा श्रीकृष्ण
प्रीत्यर्थम्मयाचरितस्य-आचरणीयस्य च शुक्ल-कृष्ण-एकादशीव्रतस्य सांगता
सिध्यर्थम्तत् सम्पूर्ण-फल प्राप्त्यर्थञ्च यथाशक्ति तन्त्रेण एकादशी व्रतोद्यापनं
करिष्ये। तत्रादौ निर्विघ्नता सिध्यर्थम्-गणेशादीन् पूजनं च करिष्ये।।
संकल्प पढ़कर हाथ का जल-अक्षत-कुश
सामने भूमि पर छोड़ दे।
पृथ्वी पूजन करे-
।।ओम् पृथिव्यैनमः।।
यह कहते हुए-तीन बार पृथ्वी पर जल
छोड़ें।
रोली-अक्षत-पुष्प छोड़कर पृथ्वी का
पूजन करें।
गौरी-गणपति-कलश पूजन करें,
पुण्याह वाचन-रक्षाभिधान-पंचगव्यकरण करें। षोडशमातृका-सप्तमातृका-स्थलमातृका
पूजन करें। घृतमातृका-वसोर्धारा-आयुष्यमंत्र का जप करें। नान्दीमुख श्राद्ध करें,
६४ योगिनी पूजन करें। नवग्रह पूजन करें। अधि-प्रत्यधि-लोकपाल-दिकपालपूजन करें, आचार्य वरणादि करें। इन सभी पूजन विधि के लिए
डी.पी.कर्मकांड का अवलोकन करें।
अब क्षेत्रपाल पूजन करें-
क्षेत्रपाल पूजन : किसी पात्र पर चंदन से त्रिशूल की आकृति बनाकर
“ॐक्षं क्षेत्रपालाय नमः, क्षेत्रपाल भैरवम् आवाहयामि पूजयामि नमः शुभम् कुरू" बोलकर अक्षत-पुष्प चढ़ा दें।
ॐक्षं क्षेत्रपालाय नमः, नैवेद्यम् निवेदयामि बोलकर गुड/उड़द-लौंग चढ़ा दे(पूजा के बाद इसे किसी पेड़ की जड़ में डाले)। अब हाथ जोड़कर पूजा की आज्ञा मांगते हुए बोलें-
“तीक्ष्ण दंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहनोपम। भैरवाय नमस्तुभ्यम् अनुज्ञां दातु मर्हसि॥"
अब ॐ क्षं क्षेत्रपालाय नमः बोलकर फूल चढ़ा दें।
अब सर्वतोभद्र पूजन करें।
सर्वतोभद्र पर ताम्रकलश स्थापित
करें।
लक्ष्मी नारायण की सुवर्णमयी
प्रतिमा की प्राणप्रतिष्ठा करें, अग्नि उत्तारण
विधान करें।
पंचगव्य से शुद्ध करें,
मूर्ति ताम्र कलश पर स्थापित करें।
टिप्पणीः लघु दर्पण के अनुसार सर्वतोभद्र
पीठ पर २६ कलश स्थापित करना चाहिए बीचोबीच अष्टदल कमल पर ताम्रकलश स्थापित किया
जाता है। कमल की इन आठ पंखुड़ियों पर ८ देवताओं का आवाहन पूजन होता है,
ये ८ देवता नीचे छपे क्रम में १ अग्नि से ८ श्री तक वाले हैं। इसी
तरह ताम्रकलश के चारों ओर ९ से १२ तक तथा १३से १६ तक एवं कमल के भीतर १७ से २० तक
वाले देवी-देवताओं का आवाहन होता है।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि षोडशोपचार पूजन
फूल लेकर आवाहन करें-
ओम् नमो विष्णवे तुभ्यं भगवन्
परमात्मने। कृष्णोऽसि देवकी पुत्र परमेश्वर उत्तम।
अजोऽनादिश्च विश्वात्मा सर्व लोक
पितामहः । क्षेत्रज्ञः शाश्वतो विष्णुः श्रीमन् नारायणः परम्।।
त्वमेव पुरुषः सत्योऽतीन्द्रियोऽसि
जगत्पते। यत्तेजः परमं सूक्ष्म तेनेमां वेदिकां विश।।
ओम् भूः पुरुषमावाहयामि। ओम् भुवः पुरुषमावाहयामि। ओम् स्वः पुरुषमावाहयामि।
ओम् भूर्भुवः स्वः पुरुष मावाहयामि।।
ओम् विष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ पूजां
गृहाण सुप्रसन्नोवरदो भव।।
फूल मूर्ति पर चढ़ा दें।
बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाहिने हाथ
में २-२ दाना चावल लक्ष्मी नारायण मूर्ति के पास छोड़ता रहे।
ब्राह्मण निम्न मंत्रों को पढ़ें-
१. ओम् अग्नये नमः। अग्निम् -
आवाहयामि।
२. ओम इन्द्राय नमः। इन्द्रम् -
आवाहयामि।
३. ओम् प्रजापतये नमः। प्रजापतिम् -
आवाहयामि।
४. ओम् विश्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
विश्वान् देवान् - आवाहयामि।
५. ओम् ब्रह्मणे नमः। ब्रह्माणम् -
आवाहयामि।
६. ओम् वासुदेवाय नमः।
वासुदेवम् - आवाहयामि।
७. ओम् बलरामाय नमः। बलरामम् -
आवाहयामि।
८. ओम् श्रियै नमः। श्रियम् -
आवाहयामि।
६. ओम् विष्णवे नमः। विष्णुम् -
आवाहयामि।
१०. ओम् प्रद्युम्नाय नमः।
प्रद्युम्नम् - आवाहयमि।
११. ओम् त्र्यम्बकाय नमः। त्र्यम्बकम्
- आवाहयामि।
१२. ओम् अनिरुद्धाय नमः। अनिरुद्धम्
- आवाहयामि।
१३. ओम् गणपतये नमः। गणपतिम् -
आवाहयामि।
१४. ओम् दुर्गायै नमः। दुर्गाम् -
आवाहयामि।
१५. ओम् क्षेत्राधिपतये नमः।
क्षेत्राधिपतिम् - आवाहयामि।
१६. ओम् वास्तोष्पतये नमः।
वास्तोष्पतिम् - आवाहयामि।
१७. ओम् चतुःसहस्र स्त्री सहित
रुक्मिण्यै नमः।
चतुः सहस्र स्त्री सहित रुक्मिणीम्
आवाहयामि।
१८. ओम् चतुःसहस्र स्त्री सहित
सत्यभामायै नमः।
चतुःसहस्र स्त्री सहित सत्यभामाम्
आवाहयामि।
१६. ओम् चतुःसहस्र स्त्री सहित
जाम्बवत्यै नमः।
चतुःसहस्र स्त्री सहित जाम्बवतीम्
आवाहयामि।
२०. ओम् चतुःसहस्र स्त्री सहित कालिन्द्यै
नमः।
चतुःसहस्र स्त्री सहित कालिन्दीम्
आवाहयामि।
टिप्पणीः . अग्नि कोण आदि में तथा
उसके बाहर २१ से ३२ तक की पूजा होती है, साधारणतया
चौकी पर सब का आवाहन करें।
२१. ओम् शंखायै नमः। शंखम् -
आवाहयामि।
२२. ओम् चक्राय नमः। चक्रम् -
आवाहयामि।
२३. ओम् गदायै नमः। गदाम् -
आवाहयामि।
२४.ओम् पद्मायै नमः। पद्माम् -
आवाहयामि।
२५.ओम् इन्द्राय नमः। इन्द्रम् -
आवाहयामि।
२६.ओम् अग्नये नमः। अग्निम् -
आवाहयामि।
२७.ओम् यमाय नमः। यमम् - आवाहयामि।
२८. ओम् निर्ऋतये नमः। निर्ऋतिम् -
आवाहयामि।
२९. ओम् वरुणाय नमः। वरुणम् -
आवाहयामि।
३०. ओम् वायवे नमः। वायुम् -
आवाहयामि।
३१. ओम सोमाय नमः। सोमम् -
आवाहयामि।
३२. ओम् ईशानाय नमः। ईशानम् -
आवाहयामि।
ओम् मनूजूतिर्जुषतामाज्यस्य
वृहस्पतिर्यज्ञ मिमन् तनो त्वरिष्टं यज्ञ ৶ समिमन् दधातु
विश्वे देवा स इह मादयन्ता मोम् प्रतिष्ठ।।
आवाहित देवेभ्यो नमः।
स्थापयामि-पूजयामि।।
(यदि चाँदी का गरुड़ है तो उसे
मूर्ति के पास चौकी पर रख दें, अन्यथा १ सुपाड़ी
रख दें)
अक्षत-फूल लेकर गरुड़ का आवाहन करें-
१. ओम् सुपर्णोऽसि गरुत्मान् पृष्ठे
पृथिव्याः सीद।
भासाऽन्त रिक्षमा पृण ज्योतिषा दिव
मुत्तभान तेजसा दिश उपदृ৶ह
।
अक्षत-फूल गरुड़ या सुपाड़ी पर चढ़ा
दें।
टिप्पणीः व्रतराज के अनुसार
ताम्रकलश के पास पीठ पर स्थापित २६ कलशों पर पूर्वादिक्रम से इन देवताओं का भी
आवाहन-पूजन होता है। जिसका क्रम है: १ से ८ तक गरुड़ के पास कमलदल की पंखुड़ियों
पर १० से १५ तक पूर्व के ६ कलशों पर, १६
से २१ तक दक्षिण के कलशों पर, २२ से २७ तक पश्चिम के कलशों
पर, २८ से ३५ तक के नामों से उत्तर के कलशों पर आवाहन किया
जाता है।
सामान्यतया चौकी पर ताम्रकलश के पास
ही अक्षत छोड़कर इन सब देवताओं का आवाहन किया जाता है,
वही विधि इसमें लिखी है।
फिर बाएँ हाथ में अक्षत लेकर २-२
दाना अक्षत ताम्र कलश के पास छोड़ता रहे।
निम्न मंत्र पढ़ें-
१. ओम् विमलायै नमः। विमलाम्- आवाहयामि।
२. ओम् उत्कर्षिण्यै नमः। उत्कर्षिणीम्
- आवाहयामि।
३. ओम् ज्ञानायै नमः। ज्ञानाम्-
आवाहयामि।
४. ओम् क्रियायै नमः। क्रियाम् - आवाहयामि।
५. ओम् योगायै नमः। योगाम्-
आवाहयामि।
६. ओम् प्रह्वायै नमः। प्रह्वाम्
- आवाहयामि।
७. ओम् सत्यायै नमः। सत्याम्-
आवाहयामि।
८. ओम् अज्ञानायै नमः। अज्ञानाम् -
आवाहयामि।
९. ओम् अनुग्रहायै नमः। अनुग्रहाम्
- आवाहयामि।
१०. ओम् केशवाय नमः। केशवम् -
आवाहयामि।
११. ओम् नारायणाय नमः । नारायणम् -
आवाहयामि।
१२. ओम् माधवाय नमः। माधवम् -
आवाहयामि।
१३. ओम् गोविन्दाय नमः। गोविन्दम् -
आवाहयामि।
१४. ओम् विष्णवे नमः। विष्णुम् -
आवाहयामि।
१५. ओम् मधुसूदनाय नमः । मधुसूदनम्
- आवाहयामि।
१६. ओम् त्रिविक्रमाय नमः । त्रिविक्रमम्
- आवाहयामि।
१७. ओम् वामनाय नमः । वामनम् -
आवाहयामि।
१८. ओम् श्रीधराय नमः । श्रीधरम् -
आवाहयामि।
१९. ओम् हृषीकेशाय नमः। हृषीकेशम् -
आवाहयामि।
२०. ओम् पद्मनाभाय नमः । पद्मनाभम्
- आवाहयामि।
२१. ओम् दामोदराय नमः । दामोदरम् -
आवाहयामि।
२२. ओम् संकर्षणाय नमः । संकर्षणम्
-आवाहयामि।
२३.ओम् वासुदेवाय नमः । वासुदेवम् -
आवाहयामि।
२४. ओम् प्रद्युम्नाय नमः । प्रद्युम्नम्-
आवाहयामि।
२५. ओम् अनिरुद्धाय नमः । अनिरुद्धम्
- आवाहयामि।
२६. ओम् पुरुषोत्तमाय नमः । पुरुषोत्तमम्
- आवाहयामि।
२७. ओम् अधोक्षजाय नमः । अधोक्षजम्
- आवाहयामि।
२८. ओम् नारसिंहाय नमः । नारसिंहम्
- आवाहयामि।
२९. ओम् अच्युताय नमः । अच्युतम् -
आवाहयामि।
३०. ओम् जनार्दनाय नमः । जनार्दनम्
- आवाहयामि।
३१. ओम् उपेन्द्राय नमः। उपेन्द्रम्
- आवाहयामि।
३२. ओम् हरये नमः। हरिम् -
आवाहयामि।
३३. ओम् श्रीकृष्णाय नमः। श्रीकृष्णम्
- आवाहयामि।
३४. ओम् पुरुषोत्तमाय नमः। पुरुषोत्तमम्
- आवाहयामि।
३५. ओम् सर्वोत्तमाय नमः। सर्वोत्तमम्
- आवाहयामि।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
।अंग पूजा।
फूल लेकर भगवान के अंगों का
ध्यान-पूजन करें।
१. ओम् दामोदराय नमः। पादौ -
पूजयामि।
२. ओम् माधवाय नमः । जानुनी -
पूजयामि।
३. ओम् कामपतये नमः । गुह्यम्-
पूजयामि।
४. ओम् वामनाय नमः। कटिं- पूजयामि।
५. ओम पद्मनाभाय नमः। नाभिं -
पूजयामि।
६. ओम् विश्वमूर्तये नमः। उदरं -
पूजयामि।
७. ओम् ज्ञानगम्याय नमः। हृदयं-
पूजयामि।
८. ओम् श्रीकण्ठाय नमः। कण्ठं -
पूजयामि।
९. ओम् सहस्रवाहवे नमः । बाहूं -
पूजयामि।
१०. ओम् योगिने नमः । चक्षुषी -
पूजयामि।
११. ओम् उरगाय नमः। ललाटं -
पूजयामि।
१२.ओम् नाक सुरेश्वराय नमः। नासा -
पूजयामि।
१३. ओम् श्रवणेशाय नमः। श्रवणौ- पूजयामि।
१४. ओम् सर्वकामदाय नमः। शिखां -
पूजयामि।
१५. ओम् सहस्रशीर्षाय नमः। शिरः -
पूजयामि।
१६. ओम् सर्वरुपिणे नमः। सर्वाङ्गम्
- पूजयामि।
फूल भगावन की मूर्ति पर चढ़ा दें।
टिप्पणी : •
लघुदर्पण में गन्धाक्षत-फूल चढ़ाने के बाद अंग पूजा फिर धूप-दीप आदि
से लक्ष्मीनारायण की पूजा लिखी है।
व्रतराज ग्रन्थ के अनुसार एकादशी
व्रत उद्यापन में नैवेद्य के लिए निम्न वस्तुएँ लिखी है-
मोदकान् गुड़काँश्चूर्णान् घृत पूरक मण्डकान्। सोहालिकादिकं सारसेवाः सक्तव एव च।
वटकान् पायस दुग्धं शीलदध्योदनं तथा। इण्डरीकान् पुरिकाश्चापूपान् गुड़क मोदकान्।
तिलपिष्टं कर्णवेष्टं शालिपिष्टं सशर्करम्। रम्भाफलं च सघृत्ं मुद्ग चूर्ण गुड़ौदनम्।
एवं क्रमेण नैवेद्यं पृथग्वा
चरमेऽवधि।
इसके बाद,
लक्ष्मीनारायण पूजन श्रीविष्णु पूजन विधि अनुसार से करें-
टिप्पणी : . शास्त्र के अनुसार
लक्ष्मीनारायण की पूजा के बाद गीत-वाद्य करके रात्रि जागरण करें। पुराणों का पाठ
करें। प्रभातकाल में नित्य कर्म से निवृत्त होकर हवन आदि आगे की प्रक्रिया पूरी
करनी चाहिए। लघुदर्पण में प्रधान होम वाले क्रमांक १ से ३२ तक वाले प्रत्येक मंत्र
से ४-४ आहुति देने को लिखा है। व्रतराज अन्य पद्धतियों में १-१ आहुति ही लिखी है।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
कुशकण्डिका करे,
• हवन करें-
नवग्रह-अधि-प्रत्यधि-पंचलोक-दशदिक्पाल-सप्तस्थलमातृका-घृतमातृका-६४
योगिनी,क्षेत्रपाल-सर्वतोभद्र के नामों से आहुति दें,
• पुरुष सूक्त से आहुति दें –
खीर में घी मिलाकर निम्न मंत्रों से
आहुति दें-
१. ओम् केशवाय नमः स्वाहा। २. ओम्
नारायणाय नमः स्वाहा। ३. ओम् माधवाय नमः स्वाहा। ४. ओम् गोविन्दाय नमः स्वाहा। ५.
ओम् विष्णवे नमः स्वाहा। ६. ओम् मधुसूदनाय नमः स्वाहा। ७. ओम् त्रिविक्रमाय नमः
स्वाहा। ८. ओम् वामनाय नमः स्वाहा। ९. ओम् श्रीधराय नमः स्वाहा। १०. ओम् हृषीकेशाय
नमः स्वाहा। ११. ओम् पद्मनाभाय नमः स्वाहा। १२. ओम् दामोदराय नमः स्वाहा। १३. ओम्
संकर्षणाय नमः स्वाहा। १४. ओम् वासुदेवाय नमः स्वाहा। १५. ओम् प्रद्युम्नाय नमः
स्वाहा। १६. ओम् अनिरुद्धाय नमः स्वाहा। १७. ओम् पुरुषोत्तमाय नमः स्वाहा।१८. ओम्
अधोक्षजाय नमः स्वाहा। १९. ओम् नरसिंहाय नमः स्वाहा। २०. ओम् अच्युताय नमः स्वाहा।
२१. ओम् जनार्दनाय नमः स्वाहा। २२. ओम् उपेन्द्राय नमः स्वाहा। २३. ओम् हरये नमः
स्वाहा। २४. ओम् कृष्णाय नमः स्वाहा। २५. ओम् पुरुषोत्तमाय नमः स्वाहा। २६. ओम्
सर्वोत्तमाय नमः स्वाहा। २७. ओम् विष्णोर्नुकं वीर्याणि प्रवोचं यः पार्थिवानि
विममे रजा ৶
सी। यो अस्कभाय दुत्तर ৶
सधस्थं विचक्र माणस् त्रेधो रुगायो विष्णवे त्वा स्वाहा।। २८. ओम् तदस्य प्रिय मभि
पाथो अस्यां नरो यत्र देवयो मदन्ति। उरुक्रमस्य सहि बन्धु रित्या विष्णोः पदे परमे
मध्व उत्सः स्वाहा।। २९. ओम् प्रतद् विष्णुस् तव ते वीर्येण मृगो न भीमः कुचरो
गिष्ठिाः । यस्यो रुषु त्रिषु विक्रमणे ष्वधि क्षियन्ति भुवनानि विश्वा स्वाहा।।
३०. ओम् परो मात्रया तन्वा वृधान न ते महित्व मन्व श्रवन्ति। उभे ते विघ्न रजसो
पृथिव्या विष्णो देव त्वं परमस्य वित्से स्वाहा।। ३१. ओम् विचक्रमे पृथिवी मेष एता
क्षेत्रा विष्णर् मनुषे देशस्यत्। ध्रुवासो अस्य कीरयो जनास उरु क्षितिं सुजनि मा
चकार स्वाहा।। ३२. ओम् त्रिर्द् देवा पृथिवी मेष एतां विचक्रमे शतर्चर्स महित्वा। प्रविष्णोरस्तु
तव मस्तवीर्या त्वेष ह्यस्य स्थविरस्य नाम स्वाहा।।
निम्न मंत्रों से घी की आहुति दें-
१. ओम् अग्नये स्वाहा। २. ओम्
इन्द्राय स्वाहा। । ३. ओम् प्रजापतये स्वाहा। ४. ओम विश्वेभ्यो देवेभ्यः स्वाहा। ५.
ओम् ब्रह्मणे स्वाहा। ।
घी मिले खीर से आहुति दें-
१. ओम् वायुदेवाय नमः स्वाहा। २.
ओम् बलरामाय नमः स्वाहा। ३. ओम् श्रियै नमः स्वाहा। ४. ओम् विष्णवे नमः स्वाहा। ५.
ओम् भूः स्वाहा। ६. ओम् भुवः स्वाहा। ७. ओम् स्वः स्वाहा। ८. ओम् भूर्भुवः स्वः
स्वाहा। ९. ओम् चतुः सहस्र स्त्री सहित जाम्बवत्यै नमः स्वाहा। १०. ओम् चतुः सहस्र
स्त्री सहित कालिन्द्यै नमः स्वाहा। ११. ओम् चतुः सहस्र स्त्री सहित सत्यभामायै
नमः स्वाहा। १२. ओम् चतुः सहस्र स्त्री सहित रुक्मिण्यै नमः स्वाहा। १३. ओम् शंखाय
नमः स्वाहा। १४. ओम् चक्राय नमः स्वाहा। १५. ओम् गदायै नमः स्वाहा। १६. ओम्
पद्मायै नमः स्वाहा। १७. ओम् ब्रह्मणे नमः स्वाहा। १८. ओम् विष्णवे नमः स्वाहा। १९.
ओम् प्रद्युम्नाय नमः स्वाहा। २०. ओम् त्रयम्बकाय नमः स्वाहा। २१. ओम् अनिरुद्धाय
नमः स्वाहा। २२. ओम् गणेशाय नमः स्वाहा। २३. ओम् क्षेत्राधिपतये नमः स्वाहा। २४.
ओम् वास्तोष्पतये नमः स्वाहा।
टिप्पणीः . लघु दर्पण में क्रमांक :
९ से ४१ तक के लिए २-२ आहुति केवल घी से देने का लिखा है।
२५.ओम् इन्द्राय नमः स्वाहा। २६. ओम्
अग्नये नमः स्वाहा। २७. ओम् यमाय नमः स्वाहा।
२८. ओम् निर्ऋतये नमः स्वाहा। २९.
ओम् वरुणाय नमः स्वाहा।
३०. ओम् वायवे नमः स्वाहा। ३१. ओम्
सोमाय नमः स्वाहा। ३२. ओम ईशानाय नमः स्वाहा। ३३. ओम् गरुड़ाय नमः स्वाहा। ३४. ओम
विमलायै नमः स्वाहा। ३५. ओम् उत्कर्षिण्यै नमः स्वाहा। ३६. ओम् ज्ञानायै नमः
स्वाहा। ३७. ओम् क्रियायै नमः स्वाहा। ३८. ओम् योगिन्यै नमः स्वाहा। ३६. ओम् प्रह्वायै
नमः स्वाहा। ४०. ओम् सत्यायै नमः स्वाहा। ४१. ओम् अज्ञानायै नमः स्वाहा। ४२. ओम्
अनुग्रहायै नमः स्वाहा।
१०८ बार (ओम् नमो भगवते वासुदेवाय
नमः स्वाहा) इस मंत्र से आहुति दें।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
। बलि प्रदान।
पूजन पद्धति के अनुसार-
दशदिक्पाल बलि, नवग्रह बलि, क्षेत्रपाल
बलि दें।
स्विष्टकृत आहुति दें। पूर्णपात्र
संकल्प करें। प्रणीता उलट दें। पूर्णाहुति करें।
वसोर्धार दें (आहुति का शेष घी अग्नि में छोड़ें।) कुशकण्डिका में बिछाए कुशों का होम करें। भस्म लगाए ।
तर्पण
मार्जन - संस्रव प्रशान करें। आचमन करें।
(इसके बाद की प्रक्रिया यहाँ नीचे दी जा रही है।)
आवाहित सभी देवी-देवताओं पर गन्ध-अक्षत-फूल छोड़कर उत्तर पूजन कर
दे फिर प्रापण दें।
टिप्पणीः . व्रतराज में हवन की खीर
में एक चौथायी भाग निकाल कर अलग रख ले, इसी
को प्रापण कहते हैं। इसी प्रापण का नैवेद्य दिया जाता है। लघु दर्पण में खीर की
जगह "सघृत शर्करं नैवेद्य' घी-चीनी या शक्कर का नैवेद्य
लिखा है।
एक पात्र में घी-चीनी मिलाकर
लक्ष्मीनारायण की मूर्ति के सामने रख कर नैवेद्य दें।
प्रार्थना करें-
ओम् त्वमेकमाद्यं पुरुषं पुराणं
नारायणं विश्वसृजं यजामः।
त्वयैषभागो विहितो विधेयो गृहाण
हव्यं जगता मधीश।।
यजमान-सपत्नीक-सपरिवार हाथ में फूल लेकर चारों वेदी तथा प्रधान पीठ की तीन बार परिक्रमा करें।
ब्राह्मण निम्न मंत्रों
का पाठ करें-
(१) ओम् भिन्धि विश्वा आपद् विषः
परिवार्धो जहीमृधः।
वसुस्थार्हम् तदा भर।
(२) ॐ आत्वाऽ हार्ष मन्तरभूर् ध्रुवस्तिष्ठा
विचाचलिः।
विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मात्वा द्राष्ट्रमधिभ्रशत्। इहैवैधि माप च्योष्ठाः पर्वत इवा विचा चलिः।
इन्द्र इवेह ध्रुवस्तिष्ठा इह राष्ट्र मुधारय। इयमिन्द्रो अदीधरत् ध्रुवं ध्रुवेणेह हविषां।
तस्मै सोमो अधि ब्रूवत्तस्मा उ ब्रह्मणस्पतिः। ध्रुवाद्यौ ध्रुवा पृथिवी ध्रुवासः पर्वता इमे।
ध्रुवं विश्वमिदं जगद् ध्रुवोराजा विशामयम्। ध्रुवं ते राजा वरुणो ध्रुवं देवो वृहस्पतिः ।
ध्रुवं त इन्द्रश्चाग्निश्च राष्ट्रं धारयतां ध्रुवम्। ध्रुवं ध्रुवेण हविषाऽ भि सोमं मृशामसि।
अथोत इन्द्रः केवलीविंशो वलिहृतस्करत्।
परिक्रमा के बाद अपने स्थान पर खड़ा
होकर प्रार्थना करे-
ओम् कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। शरण्याया प्रमेयाय गोविन्दाय नमो नमः।
नमः स्थूलाय सूक्ष्माय व्यापकाया व्ययाय च। अनन्ताय जगद् धात्रे ब्रह्मणे ऽनन्तमूर्तये।
अव्यक्ताया खिलेशाय चिद्रूपाय गुणात्मने। नमोमूमुर्त्ताय सिद्धाय पराय परमात्मने।
देवदेवाय शान्ताय
पराय परमेष्ठिने। कर्त्रेविश्वस्य गोप्त्रे च तत् संहत्रे नमो नमः।।
फूल भगवान की मूर्ति पर चढ़ा दे।
साष्टांग प्रणाम कर ले। कपूर की
आरती करें।
(कुछ लोग यहाँ पर तुलसी दल लेते
हैं। प्रसाद बाद मे लेते हैं। इसे देशाचार जानना चाहिए।)
कपूर आरती-१ थाली में चावल रखकर उस
पर कपूर जलाकर रखे, जल छोड़ दे-खड़े
होकर आरती करें।
ओम् चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्योअजायत। श्रोत्राद्वायुश्च प्राणश्च मुखा दग्नि रजायत।
ओम् कर्पूरगौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयार विन्दं भवं भवानी सहितं नमामि।
ओम् भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने। त्राहि मां निरयाद् घोराद्
दीप ज्योति नमोऽस्तुते।
पुष्पाञ्जलि-हाथ में फूल लेकर
प्रार्थना करें-
टिप्पणीः . लघु दर्पण के अनुसार इस
अवसर पर प्रापण (घी-चीनी का नैवेद्य अथवा खीर का नैवेद्य) दोनों हाथों से उठाकर माथे
से लगाएँ। सभी लोग (वयं वैष्णवाः) हम लोग भगवान् आपके शरण में है कहे और इस प्रापण
का प्रसाद ले।
ओम् यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवस्तानि
धर्माणि प्रथमान्यासन्।
तेहनाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे
साध्याः सन्ति देवाः।।
(१) ओम् राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने
नमो वयं वै श्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् काम कामाय मह्यं कामेश्वरो
वै श्रवणो दधातु। कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ओम् स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वै राज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं महाराज माधिपत्त्य मयं
समन्त पर्यायी स्यात्सार्वभौमः सार्वायुष आन्ता द परार्धात्।
पृथिव्यै समुद्र पर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽ भिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्या वसन् गृहे।
आविक्षितस्य काम प्रेर
विश्वे देवाः सभासद इति।।
ओम् विश्व तश्चक्षुरुत विश्वतो मुखो
बाहु रुत विश्व तस्पात्।
सम्बाहुभ्यां धमति सम्पत्रैर् द्यावा
भूमो जनयन्देव एकः।।
प्रदक्षिणा-हाथ में फूल लेकर वेदी
के चारो ओर ३ बार परिक्रमा करे-फूल पीठ पर चढ़ा दे।
ओम् यानि कानि च पापानि जन्मान्तर
कृतानि च।
तानि-तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिण पदे-
पदे।
अभिषेक
यजमान की पत्नी यजमान के बायीं ओर बैठ
जाय।
ब्राह्मण पाँचों कलश से थोड़ा-थोड़ा
जल एक पात्र में निकालकर कुशा से यजमान पर छिड़के। (यजमान अपने पुत्र-पौत्रों को
भी साथ बिठा ले-देशाचार है।) मंत्र-
(१) ओम् देवस्य त्वा सवितुः
प्रसवेऽश्विनोर् बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर् यन् त्रिये
दधामि वृहस्पते ष्ट्वा साम्राज्ये नाभि षिंचाम्यसो।।
(२) ओम् देवस्य त्वा सवितुः
प्रसवेऽश्विनोर् बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
सरस्वत्यै वाचो यन्तुर् यन्त्रे
णाग्नेः साम्राज्ये नाभि षिंञ्चामि।।
(३) ओम् देवस्य त्वा सवितुः प्रसवे
ऽश्विनोर् बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्।
अश्विनोर् भैषज्येन तेजसे ब्रह्म
वर्चसा याभि षिंचामि।।
सरस्वत्यै भैषज्येन वीर्या यान्
नाद्या याभि षिंचामीन्द्रस्येन्द्रियेण बलाय श्रियै यशसे ऽभिषिंचामि।।
(४) ओम् आपो हिष्ठा मयोभुवस्तान
ऊर्जे दधातन। महेरणाय चक्षसे।
(५) ओम् योवः शिवतमो रसस्तस्य
भाजयते हनः। उशती रिव मातरः।
(६) ओम् तस्माऽअरङ्ग माम वो यस्य
क्षयाय जिन्वथ। आपो जन यथा च नः।
तिलक-आशीर्वाद-ब्राह्मण यजमान के
माथे में तिलक-अक्षत लगावे।
तिलक मंत्र-
ओम् आदित्यादि ग्रहाः सर्वे
नक्षत्राणि सराशयः।
तिलक तु प्रयच्छन्तु धर्मकामार्थ
सिद्धये।।
रक्षा सूत्र बाँधे-यजमान के दाहिने
हाथ में तथा यजमान की पत्नी के बाएं हाथ में कलाई बाँधे- मंत्र-
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो
महाबलः।
तेन त्वां प्रति बध्नामि रक्षे माचल माचल।।
यजमान पत्नी फिर यजमान के दाहिने
बैठ जाय।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
। शय्यादान विधि।
शय्या का सिरहाना पूर्व में पाँव
वाला भाग पश्चिम में रखें। शय्या के ऊपर बिस्तर आदि बिछा दे। ब्राह्मण को देने
वाले वस्त्र-पात्र, अलंकार-श्रृंगार सामग्री,
पूजन-सामग्री, फल-मिठाई-मेवा आदि रख दे। शय्या
के नीचे घी-कुंकुम गोधूम-जलपूर्ण पात्र-जूता-छाता-छड़ी आदि रख दे। शय्या के
सिरहाने दीपक जलाकर रख दें। शय्या के ऊपर लक्ष्मीनारायण की मूर्ति रखे।
। शय्या पूजन। ।
तीन बार आचमन करें।
• हाथ धो ले। ब्राह्मण का तीन बार
पाँव धो ले। • मंत्र पढ़े-
ॐ आपद् घनध्वान्त सहस्रभानवः समीहितार्थार्पण कामधेनवः ।
समस्त तीर्थाम्बु पवित्र मूर्तयो रक्षन्तु मां ब्राहाण
पादपांसवः ।।
ब्राहाण के माथे में चंदन अक्षत लगा
दें।
ओम् गन्ध द्वारां दुराधर्षाम् नित्य
पुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरी सर्वभूतानां तामिहो पह्वये
श्रियम्।
ब्राहाण को फूलमाला पहना दे।
कुश-अक्षत-जल द्रव्य लेकर वरण करे।
"अद्य विशेषण विशिष्टायां शुभ
पुण्यतिथौ अस्मिन् एकादशी व्रतोद्यापन कर्मणि एमिः वरण द्रव्यैः अमुक गोत्रं
ब्राह्मणं शय्या प्रतिग्रही तृत्वेन त्वामहं वृणे।"
ब्राह्मण को कुश-अक्षत-द्रव्य दे
दे।
ब्राह्मण लेकर कहे। ।। वृतोऽस्मि।।
शय्या की पूजा करे।
।।।ओम् प्रमाण्यै देव्यै नमः।।
यह कहते हुए शय्या पर जल-गन्ध-अक्षत-फूल
चढ़ा दें।
शय्या पर लक्ष्मीनारायण की पूजा
करे। . फूल लेकर प्रार्थना करे-
ओम् शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं
सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्णम्
शुभांगम्
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं
योगिभिर्ध्यान गम्यम्
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैक
नाथम्।
फूल मूर्ति पर चढ़ा दे।
।।ओम् लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।।
यह कहते हुए जल-गन्ध-अक्षत-फूल-धूप-दीप-नैवेद्य-पान-सुपारी-फल-दक्षिणा आदि चढ़ाकर
यथाविधि पूजा कर दे।
ब्राह्मण सहित शय्या की १ परिक्रमा
करे-
ओम् यानि कानि च पापानि जन्मान्तर
कृतानि च।
तानि-तानि विनश्यन्तु प्रदक्षिणि
पदे-पदे।।
कुश-अक्षत-जल लेकर शय्या संकल्प
करें।
अद्य शुभ पुण्यतिथौ,
अमुक गोत्र: अमुक नामाऽहं श्रुति स्मृति पुराणागम प्रतिपादित सुकृत
फलोप पत्ति पूर्वक श्री लक्ष्मीनारायण प्रसाद पुरस्सर यावज्जीवाऽखण्ड सुख
पुत्र-पौत्र धन-धान्य विवृद्धि धर्मार्थ काम प्राप्त्युत्तर नाना रत्नद्रव्य
समाकीर्ण कनकोज्ज्वल दिव्याप्सरोगण गन्धर्व सेव्यमान विमानाधिकरणक षष्ठिवर्ष
सहस्रावच्छिन्न स्वर्गवास प्राप्त्युतरै तच्छय्यास्थ वस्त्रतन्तु सूक्ष्मावयव
संख्यावच्छिन्न सार्धत्रिकोटि समाधिकरण-बह्मलोक भोगान्तराक्षय विष्णु लोक
प्राप्तये कृतस्य एकादशी व्रतोद्यापन कर्मणः सांगतासिध्यर्थम् इमां शय्यां
सोपस्करा मुत्तानांगिरो दैवतां श्री लक्ष्मीनारायण प्रतिमा सहितां गोत्राय शर्मणे
ब्राह्मणाय सपत्नीकाय तुभ्यमहं संप्रददे।
ब्राह्मण के हाथ में कुश-अक्षत देकर
ब्राह्मण को शय्या पकड़ा दे।
ब्राह्मण लेकर कहे- ।स्वस्ति।
फिर कुश-अक्षत-जल-द्रव्य लेकर
सांगता दे।
अद्य कृतैतत् शय्यादान प्रतिष्ठा
सिद्ध्यर्थं इदं द्रव्यं गोत्राय शर्मणे
ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे।।
ब्राह्मण को सांगता दे दें। ब्राह्मण
लेकर कहे- ।स्वस्ति।
फूल लेकर शय्या की प्रार्थना करें-
ओम् इमां शय्यां मयादत्तां
हेमालंकरणैर्युताम्।
परलोक हितार्थाय श्रीपतिः प्रीयतां
मम।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
गोदान करें।
प्रत्यक्ष गौ के अभाव में द्रव्य
लें (यदि प्रत्यक्ष गौ हो तो उसकी पूजा करें।)
कुश-अक्षत-जल-द्रव्य लेकर संकल्प
करें-
।।अद्य शुभ पुण्य
तिथौ....गोत्र.....नामाऽहम् सकल पापक्षय पूर्वक गोलोम संख्या वर्षा वच्छिन्न
श्रीलक्ष्मीनारायण लोक निवासार्थम् च कृतस्य एकादशी व्रतोद्यापन कर्मण: सांगता
सिध्यर्थम् चेदं गोनिष्क्रयीभूतं द्रव्यम् गोत्राय शर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं
सम्प्रददे।।
ब्राह्मण को दे दे।
ब्राह्मण लेकर कहे- । ओम् स्वस्ति।
कुश-अक्षत-जल-द्रव्य लेकर गोदान सांगता संकल्प करें
।। अद्य कृतैतत् गोदान प्रतिष्ठा सिद्धयर्थम् इदं द्रव्यं
गोत्राय शर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे।।
ब्राह्मण को संगता दे दें।
ब्राह्मण लेकर कहे- ।। स्वस्ति ।।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
। वायन-दान।
२६ ब्राह्मणों की पूजा करे। •
पाँव धो लें। • चंदन-चावल लगा दे।
माला पहना दें। .पद दान करे।
२६
घड़ा-पात्र-वस्त्र-उपवस्त्र-आसन-माला-पक्वान्न आदि अपने शक्ति के अनुसार संकल्प कर
२६ ब्राह्मणों को दे। २६ घड़ो में रक्षासूत्र (कलावा) बाँध दें,
रोड़ी से स्वस्तिक बना दें, घड़ो के ऊपर
पियाले मे पैसा-पेड़ा-तुलसी पत्र रख दें। कुश-अक्षत-जल लेकर संकल्प करें।
अद्य शुभ पुण्य तिथौ......गोत्रः
......नामाऽहम कृतस्य एकादशी व्रतोद्यापन कर्म पारपूर्णता वाप्तये इमान् षड्
विंशति संख्यकान् कलशान् पक्वान्न पूरितान् सोपस्करान् दक्षिणा सहितान् नाना नाम
गोत्रेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो विभज्य यथा काले दातु मुत्सृजे।।
अक्षत-जल कलशों पर चढ़ा दें-कुशा
भूमि पर रख दें।
फूल लेकर प्रार्थना करे-
ओम् पक्वान्न पूरितान् कुम्भान्
दक्षिणा वस्त्र संयुतान्।
ददामि द्विजवर्येभ्यः श्रीकृष्ण प्रीयतामिति।
गहाणेदं द्विज श्रेष्ठ वायनं दक्षिणा युतम्।
त्वत्प्रसादा दहं देव मुच्येयं
कर्मबन्धनात्।
फूल भूमि पर छोड़ दे।
आचार्य तथा आचार्य-पत्नी की पूजा कर
दे। (ब्राह्मण दम्पती-जिसे शय्या आदि देना है, देशाचार
मे जोड़ा खिलाना कहते हैं)। पाँव धोकर चंदन-अक्षत-माला फूल पहना दे। कुश-अक्षत-जल
लेकर संकल्प करें-
अद्य शुभ पुण्य तिथौ कृतस्य एकादशी
व्रतोद्यापन कर्मणः परिपूर्णता वाप्तये अद्य ब्राह्मण दम्पती भोजयिष्ये तथा च
सांगता सिदध्यर्थम् वस्त्रोप वस्त्रादीनि दास्ये।।
कुश-अक्षत-जल सामने भूमि पर छोड़
दें। कुश-अक्षत-जल लेकर ब्राह्मण भोजन संकल्प करें-
अद्य शुभ पुण्य तिथौ कृतस्य एकादशी
व्रतोद्यापन कर्मणः परिपूर्णता वाप्तये यथा संख्यकान् ब्राहाणान् भोजयिष्ये।
कुश-अक्षत-जेल लेकर आचार्य दक्षिणा
दे-
अद्य शुभ पुण्य तिथौ कृतस्य एकादशी
व्रतोद्यापन कर्मण: सांगता सिध्यर्थम् दक्षिणाद्रव्यं अमुक गोत्राय शर्मणे
ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे।
ब्राह्मण को दक्षिणा दे
दें-ब्राह्मण लेकर कहे- स्वस्ति।
भूयसी दक्षिणा का संकल्प करें-
अद्य शुभ पुण्यतिथौ कृतस्य एकादशी
व्रतोद्यापन कर्मणि न्यूनातिरिक्त दोष परिहारार्थम् भूयसी दक्षिणां नानानाम
गोत्रेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो दीनानाथेभ्यश्च विभज्य यथाकाले दातुमह मुत्सृजे।
अग्नि विसर्जन-हवन वेदी के बाहर
गन्ध-अक्षत-पुष्प छोड़ कर प्रार्थना करे-
ओम् गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठ स्वस्थाने परमेश्वर।
यत्र ब्रह्मादयो देवास्तत्र गच्छ हुताशन।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
। देव विसर्जन।
अक्षत-फूल लेकर हाथ जोड़ें। देव
विसर्जन करें-
यान्तु देव गणाः सर्वे पूजामादाय
मामकीम्।
इष्ट कामाय सिध्यर्थम् पुनरा गमनाय
च।।
सभी वेदी पीठों पर अक्षत-फूल छोड़
दें।
एकादशी व्रत उद्यापन विधि
पीठ दान।
कुश-अक्षत-जल-द्रव्य लेकर चारों
वेदी-प्रधान पीठ आदि का संकल्प करें-
अद्य शुभ पुण्य तिथौ कृतस्य एकादशी
व्रतोद्यापन कर्मणः सिध्यर्थम् इमानि सोपस्करादि सहितानि पीठादीनि सक्षिणानि
आचार्याय गोत्राय शर्मणे ब्राह्मणाय तुभ्यमहं सम्प्रददे।
फूल लेकर प्रार्थना करे-
ओम् प्रमादात् कुर्वतां कर्म
प्रच्यवेता ध्वरेषु यत्।
प्रधान पीठ आदि का संकल्प करें|
पुण्य तिथा कृतस्य एकादशी व्रतोद्यापन कर्मण: सिध्यर्थम् इमानि
सोपस्करादि सहितानि पीठादीनि सर्दाक्षणानि आचार्याय गोत्राय शर्मणे ब्राह्मणाय
तुभ्यमह सम्प्रददे। फूल लेकर प्रार्थना करे
ओम् प्रमादात् कुर्वतां कर्म
प्रच्यवेता ध्वरेषु यत्।
स्मरणादेव तद् विष्णोः सम्पूर्णम् स्यादिति श्रुतिः यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञ क्रियादिषु।
न्यूनं संर्पूतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम्। मयाद्यास्मिन् व्रते देव यदपूर्ण कृतं विभो।
सर्वम् भवतु सम्पूर्णम् त्वत् प्रसादाज्जनार्दन। त्वयि भक्ति सदैवास्तु मम दामोदर प्रभो।
पुण्य बुद्धिः सतां सेवा सर्वधर्मफलं च मे। जपच्छिद्रं तपश्छिद्रं यच्छिद्रं व्रत कर्मणि।
सर्वम् सम्पूर्णतां यातु त्वत् प्रसादात् रमापते।
ओम् लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः।
विष्णवे नमः।। विष्णवे नमः।।
विष्णवे नमः।।
हाथ जोड़कर आचार्य से कहें-
। व्रतं ममास्तु सम्पूर्णम् भवन्तो
ब्रुवन्तु ।
आचार्य कहे- । अस्तु सम्पूर्णम् ।
यजमान अपने सामने के नीचे जल छोडकर उस जल को माथे से लगा ले।
ब्राह्मण-आचार्य फल-फूल-अक्षत लेकर यजमान को मंत्राक्षत
दे-
ओम् पुनस्त्वाऽदित्या रुदा वसवः
समिन्धताम् पुनर्ब्रह्माणो वसुनीथ यज्ञेः।
घृतेन त्वं तन्वं वर्धयस्व सत्याः सन्तु यजमानस्य कामाः।
मंत्रार्थाः सफलाः सन्तु पूर्णाःसन्तु मनोरथाः।
शत्रूणां बुद्धिनाशोऽस्तु मित्राणा
मुदयस्तव।
यजमान मंत्राक्षत को माथे से लगाएं।
यजमान और उसकी पत्नी की बँधी गाँठ खोल दे। दोनों उठ कर ब्राह्मणों का पॉव छुएँ।
।। इति एकादशी व्रत उद्यापन विधि।।
टिप्पणी: . देशाचार में मंत्राक्षत
के पूर्व यजमान-पत्नी गौर को सिन्दूर चढ़ाकर सोहाग लेती है।
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