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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
प्रदोष व्रत
त्रयोदशी को सौभाग्यदायक तिथि माना
गया है। तमाम कार्यों के लिए शुभ मानी जाने वाली इस तिथि पर भगवान शंकर और मातापार्वती की पूजा के लिए विशेष व्रत रखा जाता है, जिसे करने से सभी दोष समाप्त हो जाते हैं। इस व्रत को प्रदोष व्रत कहते
हैं। प्रत्येक माह में जिस तरह दो एकादशी होती है उसी तरह दो प्रदोष भी होते हैं।
त्रयोदशी (तेरस) को प्रदोष कहते हैं। हिन्दू धर्म में एकादशी को विष्णु से तो
प्रदोष को शिव से जोड़ा गया है। दरअसल, इन दोनों ही व्रतों
से चंद्र का दोष दूर होता है।
प्रदोष व्रत कथा
प्रदोष को प्रदोष
कहने के पीछे एक कथा जुड़ी हुई है।
पद्म पुराण की पौराणिक कथानुसार
चंद्र का विवाह दक्ष प्रजापति की 27
नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ। चंद्र एवं रोहिणी बहुत खूबसूरत थीं एवं चंद्र
का रोहिणी पर अधिक स्नेह देख शेष कन्याओं ने अपने पिता दक्ष से अपना दु:ख प्रकट
किया।
दक्ष स्वभाव से ही क्रोधी प्रवृत्ति
के थे और उन्होंने क्रोध में आकर चंद्र को श्राप दिया कि तुम क्षय रोग से ग्रस्त
हो जाओगे। शनै:-शनै: चंद्र क्षय रोग से ग्रसित होने लगे और उनकी कलाएं क्षीण होना
प्रारंभ हो गईं। नारदजी व अन्य देवताओं ने उन्हें मृत्युंजय भगवान आशुतोष की
आराधना करने को कहा, तत्पश्चात दोनों ने
भगवान आशुतोष की आराधना की और जहां आराधना की वहीं पर एक शिवलिंग स्थापित किया।
शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें न केवल दर्शन दिए बल्कि उनका कुष्ठ रोग भी ठीक कर
दिया। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी
मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इस स्थान का नाम 'सोमनाथ'
हो गया।
चंद्र अंतिम सांसें गिन रहे थे कि
भगवान शंकर ने प्रदोषकाल में चंद्र को पुनर्जीवन का वरदान देकर उसे अपने मस्तक पर
धारण कर लिया अर्थात चंद्र मृत्युतुल्य होते हुए भी मृत्यु को प्राप्त नहीं हुए।
पुन: धीरे-धीरे चंद्र स्वस्थ होने लगे और पूर्णमासी पर पूर्ण चंद्र के रूप में
प्रकट हुए।
'प्रदोष में दोष' यही था कि चंद्र क्षय रोग से पीड़ित होकर मृत्युतुल्य कष्टों को भोग रहे
थे। 'प्रदोष व्रत' इसलिए भी किया जाता
है कि भगवान शिव ने उस दोष का निवारण कर उन्हें पुन:जीवन प्रदान किया अत: हमें उस
शिव की आराधना करनी चाहिए जिन्होंने मृत्यु को पहुंचे हुए चंद्र को मस्तक पर धारण
किया था।
प्रदोष व्रत में क्या खाएं और क्या नहीं
1. प्रदोष काल में उपवास में सिर्फ
हरे मूंग का सेवन करना चाहिए, क्योंकि हरा
मूंग पृथ्वी तत्व है और मंदाग्नि को शांत रखता है।
2. प्रदोष व्रत में लाल मिर्च,
अन्न, चावल और सादा नमक नहीं खाना चाहिए। आप
पूर्ण उपवास या फलाहार भी कर सकते हैं।
प्रदोष व्रत की विधि
व्रत वाले दिन
सूर्योदय से पहले उठें। नित्यकर्म से निपटने के बाद सफेद रंग के कपड़े पहने।
पूजाघर को साफ और शुद्ध करें। गाय के गोबर से लीप कर मंडप तैयार करें। इस मंडप के
नीचे 5 अलग अलग रंगों का प्रयोग कर के रंगोली बनाएं। फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख
करके बैठे और शिव जी की पूजा करें। पूजा के दौरान कच्चा दूध,
सफेद फूल, बेल पत्र, दही,
चंदन, गंगाजल अर्पित करने से शिव जी खुश होते
हैं। पूरे दिन किसी भी प्रकार का अन्य ग्रहण ना करें। प्रदोष व्रत की कथा का पाठ
या श्रवण करें और प्रदोषस्तोत्रम् तथा प्रदोषस्तोत्राष्टकम् का पाठ करें ।
प्रदोष व्रत फल
हर महीने की दोनों
पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। अलग-अलग दिन पड़ने वाले
प्रदोष की महिमा अलग-अलग होती है। सोमवार का प्रदोष, मंगलवार को आने वाला प्रदोष और अन्य वार को आने वाला प्रदोष सभी का महत्व
और लाभ अलग अलग है।
रविवार- रविवार के दिन किया जाने
वाला प्रदोष व्रत लंबी आयु और आरोग्य की कामना से किया जाता है।
सोमवार- सोमवार को त्रयोदशी तिथि
आने पर इसे सोम प्रदोष कहते हैं। यह व्रत रखने से इच्छा अनुसार फल प्राप्ति होती
है। जिसका चंद्र खराब असर दे रहा है उनको तो यह प्रदोष जरूर नियम पूर्वक रखना
चाहिए जिससे जीवन में शांति बनी रहेगी। अक्सर लोग संतान प्राप्ति के लिए यह व्रत
रखते हैं।
मंगलवार- मंगलवार को आने वाले इस
प्रदोष को भौम प्रदोष कहते हैं। इस दिन स्वास्थ्य सबंधी तरह की समस्याओं से मुक्ति
पाई जा सकती है। इस दिन प्रदोष व्रत विधिपूर्वक रखने से कर्ज से छुटकारा मिल जाता
है।
बुधवार- इस दिन पड़ने वाले प्रदोष
व्रत को बुध प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन किया जाने वाला प्रदोष व्रत सभी प्रकार
की कामनाओं को पूरा करने वाला होता है।
गुरुवार- इस दिन किया जाने वाला
व्रत गुरु प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन शत्रुओं पर विजय पाने और उनके नाश के लिए
इस पावन व्रत को किया जाता है।
शुक्रवार- इस दिन पड़ने वाले व्रत
को शुक्र प्रदोष व्रत कहते हैं। इस दिन किए जाने वाले प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि
और सौभाग्य का वरदान मिलता है।
शनिवार- शनि प्रदोष से पुत्र की
प्राप्ति होती है। अक्सर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पदोन्नति
की प्राप्ति के लिए करते हैं।
शेष जारी.........आगे पढ़ें- रविवार प्रदोष व्रत कथा
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