रविवार व्रत कथा

रविवार व्रत कथा

मनुष्य जब तक वेदांत का गूढ़ ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक किसी-न-किसी रूप में व्रत कथाओं की आवश्यकता बनी रहेगी। यह भी अटल सत्य है कि समस्त मानव जाति किसी भी काल में वेदांत के गूढ़ ज्ञान के योग्य न हो सकेगी, क्योंकि मानव ज्ञान के द्वारा विकास करता हुआ उच्च होता जाएगा और पशु-योनि की आत्माएं मनुष्य योनि में आती जाएंगी। यह संसार, यह शरीर, सुख-दुख सब परिवर्तनशील हैं। इस कारण मानव को व्रत और वेदांत दोनों की आवश्यकता होती है और होती रहेगी। व्रत और वेदांत हर परिस्थिति में मानव का संबल बनते हैं। व्रत-कथा की श्रृंखला में पूर्व आपने पढ़ा कि-वर्ष में  २४ एकादशी व्रत होता है और २४ प्रदोष व्रत होता है। जिनमे की अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष को वार के उस नाम से जाना जाता है,जैसे रविवार को पड़ने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष कहा जाता है। इन व्रतों में एकादशी व्रत भगवान विष्णु को तो प्रदोष व्रत शिवजी को समर्पित है। इसी प्रकार सप्ताह के सात दिन में सात व्रत होती है जो नवग्रहों को समर्पित है,जो की नाम अनुसार सोमवार-चन्द्र ग्रह को, मंगलवार-मंगल ग्रह को, बुधवार- बुध ग्रह को, बृहस्पतिवार-गुरु ग्रह को, शुक्रवार-शुक्र ग्रह को और शनिवार-शनि ग्रह को।राहू, मंगल ग्रह अनुसार जिद्दी होने से मंगलवार को इसका व्रत तथा केतू का स्वभाव शनि ग्रह अनुसार होने से शनिवार को इसका व्रत रखा जाता है। वैसे राहू व केतू दोनों ही के लिए शनिवार को व्रत रखा जाता हैऔर बुधवार को इन दोनों ग्रहों के लिए शान्ति पूजन किया जाता है। अब इसी क्रम में आप यहाँ रविवार या इतवार को सूर्य ग्रह को समर्पित रविवार व्रत कथा पढेंगे।

यह व्रत सप्ताह के प्रथम दिवस रविवार को रखा जाता है, रविवार सूर्य देवता की पूजा का वार है। जीवन में सुख-समृद्धि, धन-संपत्ति और शत्रुओं से सुरक्षा के लिए रविवार का व्रत सर्वश्रेष्ठ है। रविवार का व्रत करने व कथा सुनने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। मान-सम्मान, धन-यश तथा उत्तम स्वास्थ्य मिलता है। आँखों के समस्त दोष व सभी पीड़ा दूर होती है। आँखों के सभी दोष दूर करने के लिए इनका चाक्षुसी विद्या सर्वत्र प्रसिद्ध है। कुष्ठ रोग से मुक्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है। इस व्रत के करने से स्त्रियों का बाँझपन दूर होता है। इस व्रत के करने से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है।

रविवार व्रत कथा

रविवार व्रत कथा विधि

रविवार को सूर्योदय से पूर्व बिस्तर से उठकर शौच व स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें। तत्पश्चात घर के ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान सूर्य की स्वर्ण निर्मित मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विधि-विधान से गंध-पुष्पादि से भगवान सूर्य का पूजन करें। पूजन के बाद व्रतकथा सुनें। व्रतकथा सुनने के बाद आरती करें। तत्पश्चात सूर्य भगवान का स्मरण करते हुए सूर्य को जल देकर सात्विक भोजन व फलाहार करें। इस दिन उपासक को तेल से निर्मित नमकीन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि किसी कारणवश सूर्य अस्त हो जाए और व्रत करने वाला भोजन न कर पाए तो अगले दिन सूर्योदय तक वह निराहार रहे तथा फिर स्नानादि से निवृत्त होकर, सूर्य भगवान को जल देकर, उनका स्मरण करने के बाद ही भोजन ग्रहण करे।

अथ रविवार व्रत कथा

एक बुढ़िया का नियम था प्रति रविवार को प्रातः स्नान कर, घर को गोबर से लीप कर, भोजन तैयार कर, भगवान को भोग लगा कर, स्वयं भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर सभी धन धान्य से परिपूर्ण था। इस प्रकार कुछ दिन उपरांत, उसकी एक पड़ोसन, जिसकी गाय का गोबर यह बुढ़िया लाया करती थी, विचार करने लगी कि यह वृद्धा, सर्वदा मेरी गाय का ही गोबर ले जाती है। इसलिये वह अपनी गाय को घर के भीतर बांधने लगी। बुढ़िया, गोबर ना मिलने से रविवार के दिन अपने घर को गोबर से ना लीप सकी, इसलिये उसने ना तो भोजन बनाया, ना भोग लगाया, ना भोजन ही किया। इस प्रकार निराहार व्रत किया। रात्रि होने पर वह भूखी ही सो गयी। रात्रि में भगवान ने उसे स्वप्न में भोजन ना बनाने और भोग ना लगाने का कारण पूछा। वृद्धा ने गोबर ना मिलने का कारण बताया तब भगवान ने कहा, कि माता, हम तुम्हें सर्व कामना पूरक गाय देते हैं। भगवान ने उसे वरदान में गाय दी। साथ ही निर्धनों को धन, और बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखों को दूर किया। साथ ही उसे अंत समय में मोक्ष दिया, और अंतर्धान हो गये। आंख खुलने पर आंगन में अति सुंदर गाय और बछड़ा पाया। वृद्धा अति प्रसन्न हो गयी। जब उसकी पड़ोसन ने घर के बाहर गाय बछडे़ को बंधे देखा, तो द्वेष से जल उठी। साथ ही देखा, कि गाय ने सोने का गोबर किया है। उसने वह गोबर अपनी गाय के गोबर से बदल दिया। रोज ही ऐसा करने से बुढ़िया को इसकी खबर भी ना लगी। भगवान ने देखा, कि चालाक पड़ोसन बुढ़िया को ठग रही है, तो उन्होंने जोर की आंधी चला दी। इससे बुढ़िया ने गाय को घर के अंदर बांध लिया। सुबह होने पर उसने गाय के सोने के गोबर को देखा, तो उसके आश्चर्य की सीमा ना रही। अब वह गाय को भीतर ही बांधने लगी। उधर पड़ोसन ने ईर्ष्या से राजा को शिकायत कर दी, कि बुढ़िया के पास राजाओं के योग्य गाय है, जो सोना देती है। राजा ने यह सुन अपने दूतों से गाय मंगवा ली। बुढ़िया ने वियोग में, अखंड व्रत रखे रखा। उधर राजा का सारा महल गाय के गोबर से भर गया। सूर्य भगवान ने रात को उसे सपने में गाय लौटाने को कहा। प्रातः होते ही राजा ने ऐसा ही किया। साथ ही पड़ोसन को उचित दण्ड दिया। राजा ने सभी नगर वासियों को व्रत रखने का निर्देश दिया। तब से सभी नगरवासी यह व्रत रखने लगे और वे खुशियों को प्राप्त हुए।

रविवार व्रत कथा समाप्त।।

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