गुरु प्रदोष व्रत कथा
इससे पूर्व आपने पढ़ा कि बुधवार के
दिन को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को बुध प्रदोष व्रत कथा कहते हैं। अब पढेंगे कि- गुरुवार
को आने वाले प्रदोष को गुरु प्रदोष या गुरुवारा प्रदोष भी कहा जाता है और इस व्रत
कथा को गुरु प्रदोष व्रत कथा कहा जाता है। इस दिन बृहस्पति और शिव की पूजा एक साथ
की जाती है। भगवान बृहस्पति शिव के अनुकूल हैं और इस प्रकार,
दोनों की एक साथ पूजा करने से आपकी आयु लंबी होने की संभावना बढ़
जाएगी। बृहस्पति का प्रिय रंग पिला है अतः इस व्रत के दिन व्रती को पीले कपड़े
पहनना चाहिए व पीले रंग की मिठाई का भोग लगाना चाहिए। इससे आपके बृहस्पति ग्रह शुभ
प्रभाव तो देता ही है साथ ही इसे करने से पितरों का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।
अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश के लिए किया जाता है। यह हर तर की सफलता
के लिए भी रखा जाता है। गुरु प्रदोष व्रत के दिन जल में थोड़ा केसर या केवड़े का
इत्र मिलाकर स्नान करना चाहिए।
गुरु प्रदोष व्रत कथा
इस व्रत कथा के अनुसार एक बार इंद्र
और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर
नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत
हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव
बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का
वास्तविक परिचय दे दूं।
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ
है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह
चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया।
वहां शिवजी के वाम अंग में माता
पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते
हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में
बैठे।'
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी
शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा
व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है,
फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!'
माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से
संबोधित हुईं- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी
महेश्व़र के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर
तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान
से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।'
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना।
गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति
प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।'
देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन
कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही
वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर
शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।
गुरु प्रदोष व्रत कथा समाप्त ।
शेष जारी....आगे पढ़ें- शुक्र प्रदोष व्रत कथा ।
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