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- अग्निपुराण अध्याय ९२
- अग्निपुराण अध्याय ९१
- अद्भुत रामायण सर्ग १०
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- दशपदी स्तुति
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- यक्षिणी साधना
- भैरवी
- अग्निपुराण अध्याय ९०
- अग्निपुराण अध्याय ८९
- अग्निपुराण अध्याय ८८
- भैरवी स्तोत्र
- अग्निपुराण अध्याय ८७
- अग्निपुराण अध्याय ८६
- अग्निपुराण अध्याय ८५
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
छिन्नमस्ता कवच
छिन्नमस्ता मंत्र जप अनुष्ठान से पूर्व इस कवच का पाठ अवश्य करें।
छिन्नमस्ता कवच
छिन्नमस्ता-मंत्र
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्रवैरोचनीये
हुं हुं फट् स्वाहा ।
छिन्नमस्ता कवच
छिन्नमस्ता-ध्यान
प्रत्यालीढपदां सदैव दधतीं छिन्नं
शिरः कर्तृकां
दिग्वस्त्रां
स्वकबन्धशोणितसुधाधारां पिवन्तीं मुदा ।
नगाबद्धशिरोमणिं,
त्रियनयनां हृद्युत्पलालंकृतां
रत्यांसक्तमनोभवोपरि दृढां
ध्यायेज्जपासन्निभाम् ॥
दक्षे चातिसिता विमुक्त चिकुरा
कर्तृस्तथा खर्परं
हस्ताभ्यां दधती रजोगुणभवो
नाम्नापिसा वर्णिनी ।
यां दधती रजोगुणभवो नाम्नापिसा
वर्णिनी ।
देव्याश्छिन्नकबन्धतः पतदसृग्धारां
पिबन्तीं मुदा
नागाबद्धशिरोमणिर्म्मनुविदा ध्येय
सदा सा सुरैः ॥
वामे कृष्णतनुस्तथैव दधती खङ्गं तथा
खर्परं
प्रत्यालीढपदाकबन्धविगलद्रक्त
पिबन्ती मुदा ।
सैषा या प्रलये समस्तभुवनं भोक्तुं
क्षमा तामसी
शक्तिः सापि परात् परा भगवती नाम्ना
परा डाकिनी ।
देवी प्रत्यालीढपदा हैं,
अर्थात् युद्ध के लिये सन्नद्ध चरण किये एक आगे एक पीछे वीरवेष से
खड़ी हैं। इन्होंने छिन्नशिर और खड्ग धारण किया है । देवी नग्न और अपने छिन्नगले से
निकली हुई शोणित- धारा पान करतीं हैं। मस्तक में सर्पाबद्ध मणि, तीन नेत्र, और वक्ष:- स्थल कमलों की माला से अलंकृत
है, यह रति में आसक्त काम पर दंडायमान है, इनके देह की कांति जपापुष्प के समान रक्तवर्ण है। देवी के दहिने भाग में
श्वेत वर्णवाली, खुले केश, कैंची और
खर्पर धारिणी एक देवी है, उनका नाम "वर्णिनी" है ।
यह वर्णिनी देवी के छिन्न गले से गिरती हुई रक्तधारा पान करती है । इनके मस्तक में
नागाबद्ध मणि है । वाम भाग में खड्ग खर्पर धारिणी कृष्णवर्णा दूसरी देवी है,
यह देवी के छिन्नगले से निकली हुई रुधिरधारा पान करती है । इनका
दाहिना पाद आगे और वाम पाद पीछे के भाग में स्थित है । यह प्रलयकाल के समय संपूर्ण
जगत् को भक्षण करने में समर्थ हैं इनका नाम 'डाकिनी'
है ।
उक्तमंत्र का जप होम
लक्ष जपने से छिन्नमस्ता मन्त्र का
पुरश्चरण होता है और उसका दशांश होम करना चाहिये ।
छिन्नमस्ता कवचम्
हुं बीजात्मिका देवी मुण्डकर्त
धरापरा ।
हृदयं पातु सा देवी वर्णिनी
डाकिनीयुता ॥
वर्णिनी डाकिनी से युक्त मुण्डक को
धारण करनेवाली, हूँ बीजयुक्त महादेवी मेरे हृदय
की रक्षा करे ।
श्रीं ह्रीं हुं ऐं चैव देवी
पूर्व्वस्यां पातु सर्वदा ।
सर्वाङ्गं मे सदा पातु छिन्नमस्ता
महाबला ॥
श्रीं ह्रीं हुं ऐं बीजात्मिका देवी
मेरी पूर्व दिशा और महाबला छिन्नमस्ता सदा मेरे सर्वांग की रक्षा करे ।
वज्रवैरोचनीये हुं फट् बीजसमन्विता
।
उत्तरस्यां तथाग्नौ च वारुणे
नैर्ऋतेऽवतु ॥
'वज्रवैरोचनीये हुं फट्' इस बीजयुक्त देवी उत्तर, अग्नि, वारुण और नैऋत्य दिशा में रक्षा करे ।
इन्द्राक्षी भैरवी चैवासितांगी च
संहारिणी ।
सर्व्वदा पातु मां देवी
चान्यान्यासु हि दिक्षु वै ॥
इन्द्राक्षी,
भैरवी, असितांगी और संहारिणी देवी सर्वदा मेरी
अन्यान्य सब दिशाओं में रक्षा करे ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो
जपेच्छिन्नमस्तकाम् ।
न तस्य फलसिद्धिः
स्यात्कल्पकोटिशतैरपि ॥
इस कवच को बिना जाने जो पुरुष
छिन्नमस्ता का मंत्र जपता है करोड़ कल्प में भी उसको फल प्राप्त नहीं होता।
।। इति छिन्नमस्ताकवचम् ॥
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