महाविद्या कवच

महाविद्या कवच

महाविद्या कवच का  पाठ शीघ्र ही फल देने वाला तथा मनोवांछित कामना पूर्ण करनेवाला और नकारात्मक ऊर्जा दूर करनेवाला है। इस कवच को पाठ कर ही दस महाविद्या सिद्धि होती है। कवच पाठ से पूर्व इसका ध्यान अवश्य करें।

महाविद्या कवच

महाविद्या कवचम्

Mahavidya kavacham

महाविद्या- ध्यान

चतुर्भुजां महादेवीं नागयज्ञोपवीतिनीम् ।

महाभीमां करालास्य सिद्धविद्याधरैर्युताम् ॥

मुण्डभालावलकर्णी मुक्तकेशीं स्मिताननाम् ।

एवं ध्यायेन्महादेवीं सर्वकामार्थ सिद्धये ॥

देवी चतुर्भुजा, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करनेवाली, महाभीमा करालवदना, सिद्ध और विद्याधरों से वेष्टिन, मुण्डमाला से अलंकृत, केश खोले हुए और हास्यमुखी हैं । सर्वकामार्थ सिद्धि के लिये देवी का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये ।

दस महाविद्या कवच

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वसिद्धिदम् ।

आद्याया महाविद्यायाः सर्व्वाभीष्टफलप्रदम् ॥१॥

हे देवि ! महाविद्या का कवच कहता हूं-सुनो, यह सब अभीष्ट फल का देनेवाला है ।

अथ महाविद्या कवच

कवचस्य ऋषिर्देवि सदाशिव इतीरितः ।

छन्दोऽनुष्टुब् देवता च महाविद्या प्रकीर्तिता ।।

धर्मार्थकाममोक्षाणां विनियोगश्च साधने ॥२॥

इस कवच के ऋषि सदाशिव, छंद अनुष्टुप्, देवता महाविद्या और धर्म, अर्थ, काम मोक्षरूप फल के साधन में इसका विनियोग है ।

ऐंकार: पातु शीर्षे मां कामबीजं तथा हृदि ।

रमाबीजं सदा पातु नाभौ गुह्ये च पादयोः ॥३॥

ऐं बीज मेरे मस्तक, क्लीं बीज हृदय, एवं श्रीं बीज मेरी नाभि, गुह्य और चरण की रक्षा करें।

ललाटे सुंदरी पातु उग्रा मां कण्ठदेशतः ।

भगमाला सर्व्वगात्रे लिंगे चैतन्यरूपिणी ॥४॥

सुदरी मेरे मस्तक की, उग्रा कंठ की, भगमाला सब शरीर की और चैतन्यरूपिणी देवी लिंगस्थान की रक्षा करें।

पूर्वे मां पातु वाराही ब्रह्माणी दक्षिणे तथा ।

उत्तरे वैष्णवी पातु चेन्द्राणी पश्चिमेऽवतु ॥५॥

वाराही पूर्वदिशा में, ब्रह्माणी दक्षिण में, वैष्णवी उत्तर में और इन्द्राणी पश्चिम में रक्षा करें।

माहेश्वरी च आग्नेय्यां नैर्ऋते कमला तथा ।

वायव्यां पातु कौमारी चामुण्डा ईशकेऽवतु ॥६॥

माहेश्वरी अग्निकोण में, कमला नैर्ऋत में कौमारी वायुकोण में और चामुण्डा ईशान दिशा में रक्षा करें।

महाविद्या कवच फलश्रुति

इदं कवचमज्ञात्वा महाविद्याञ्च यो जपेत् ।

न फलं जायते तस्य कल्पकोटिशतैरपि ॥७॥

इस कवच को विना जाने जो मनुष्य महाविद्या का मंत्र जपता है, वह करोड़ोंकल्प में भी उसको फल प्राप्त नहीं होता ।

इति श्रीरुद्रयामले महाविद्याकवचम् ॥

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