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कर्मकाण्ड

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दशमहाविद्या स्तोत्र

दशमहाविद्या स्तोत्र

मुण्डमालातन्त्र में वर्णित इस सर्वसिद्धिप्रद दशमहाविद्या स्तोत्र का पाठ करने से सभी मन्त्रसिद्धि होती और कुण्डलिनी जागृत होता है। अंत में दुर्लभ मोक्ष प्राप्त होता है ।

दशमहाविद्या स्तोत्र

दशमहाविद्यास्तोत्रम्

श्रीपार्वत्युवाच -

नमस्तुभ्यं महादेव! विश्वनाथ ! जगद्गुरो ! ।

श्रुतं ज्ञानं महादेव ! नानातन्त्र तवाननत् ॥१॥  

श्री पार्वती ने कहा - हे महादेव ! हे विश्वनाथ ! हे जगद्गुरो ! आपको नमस्कार । हे महादेव ! आपके मुख से ब्रह्मज्ञान एवं नाना तन्त्रों को मैंने सुना है ।

इदानीं ज्ञानं महादेव ! गुह्यस्तोत्रं वद प्रभो ! ।

कवचं ब्रूहि मे नाथ ! मन्त्रचैतन्यकारणम् ॥२ ॥

हे प्रभो ! सम्प्रति चण्डिका के गोपनीय स्तोत्र को बतावें । हे नाथ ! मन्त्रचैतन्य के कारण-स्वरूप कवच को भी बतावें ।

मन्त्रसिद्धिकरं गुह्याद्गुह्यं मोक्षैधायकम् ।

श्रुत्वा मोक्षमवाप्नोति ज्ञात्वा विद्यां महेश्वर ! ॥३॥  

हे महेश्वर ! गुह्य से गुह्य, मन्त्र-सिद्धिकर, मोक्षजनक स्तोत्र एवं कवच को सुनकर एवं विद्या को जानकर (साधक) मोक्षलाभ करता है ।

श्री शिव उवाच -

दुर्लभं तारिणीमार्गं दुर्लभं तारिणीपदम् ।

मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं दुर्लभं शवसाधनम् ॥ ४ ॥

श्री शिव ने कहा - तारिणी का मार्ग दुर्लभ है । तारिणी का पद-युगल दुर्लभ है। मन्त्रार्थ, मन्त्र चैतन्य एवं शव-साधन दुर्लभ है ।

श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम् ।

क्रियासाधनकं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम् ॥

तव प्रसादाद्देवेशि! सर्वाः सिद्ध्यन्ति सिद्धयः ॥ ५ ॥

श्मशानसिद्धि, योनिसिद्धि, ब्रह्मसिद्धि, क्रियासिद्धि, भक्तिसिद्धि, मुक्तिसिद्धि-हे देवेशि! आपके अनुग्रह से समस्त सिद्धियाँ सिद्ध होती है ।

10 महाविद्या स्तोत्रम्

ॐ नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनि ।

नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनि ॥ १॥

हे चण्डि ! हे चण्डिके ! हे चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि ! आपको नमस्कार । हे कालि ! हे कालिके! हे महाभय-विनाशिनि ! आपको नमस्कार ।

शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम् ॥ २॥

हे शिवे ! हे जगद्धात्रि ! मेरी रक्षा करें । हे हरवल्लभे ! प्रसन्न होवें । मैं जगत्-पालन-कारिणी जगद्धात्री को प्रणाम करता हूँ ।

जगत् क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम् ।

करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम् ॥ ३॥

मैं जगत्-मोक्षकरी, जगत्-सृष्टि-कारिणी, कराला, विकटा, घोरा एवं मुण्डमालाविभूषिता विद्या को प्रणाम करता हूँ ।

हरार्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम् ।

गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालङ्कारभूषिताम् ॥ ४॥

मैं हरार्चिता, हराराध्या, हरवल्लभा को प्रणाम करता हूँ। मैं गुरुप्रिया, गौरवर्णा एवं अलङ्कारभूषिता गौरी को प्रणाम करता हूँ ।

हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम् ।

सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरङ्गणैर्युताम् ॥ ५॥

मैं ब्रह्म-पूजिता हरिप्रिया महामाया को प्रणाम करता हूँ । सिद्ध एवं विद्याधरगणों से परिवृता सिद्धा सिद्धेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।

मन्त्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिङ्गशोभिताम् ।

प्रणमामि महामायां दुर्गां दुर्गतिनाशिनीम् ॥ ६॥

मैं मन्त्र-सिद्धि-प्रदायिनी, योनि-सिद्धिप्रदा, सिद्ध-शोभिता, दुर्गतिनाशिनी महामाया दुर्गा को प्रणाम करता हूँ ।

उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम् ।

नीलां नीलघनश्यामां नमामि नीलसुन्दरीम् ॥ ७॥

मैं उग्रा, उग्रमयी, उग्रगणों से परिवृता, नीला, नीलघन (कृष्णमेघ) श्यामा, नील सुन्दरी उग्रतारा को प्रणाम करता हूँ ।

श्यामाङ्गीं श्यामघटितां श्यामवर्णविभूषिताम् ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्वार्थसाधिनीम् ॥ ८॥

मैं श्यामाङ्गी, श्यामघटिता, श्यामवर्ण-विभूषिता, सर्वार्थ-साधिनी, जगद्धात्री गौरी को प्रणाम करता हूँ ।

विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम् ।

आद्यामाद्यगुरोराद्यामाद्यनाथप्रपूजिताम् ॥ ९॥

मैं आद्यागुरु के आद्या, आद्यानाथ के द्वारा 'प्रपूजिता', महाघोरा, घोरनादिनी, विकटा, विश्वेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।

श्रीं दुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम् ॥ १०॥

मैं श्री दुर्गा, धनदा, अन्नपूर्णा पद्मा एवं सुरेश्वरी को तथा चन्द्रशेखर-वल्लभा जगद्धात्री को प्रणाम करता हूँ ।

त्रिपुरां सुन्दरीं बालामबलागणभूषिताम् ।

शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम् ॥ ११॥

मैं शिवदूती, शिवाराध्या, शिवध्येया, सनातनी, त्रिपुरासुन्दरी को एवं अबलागणों से परिवृता बाला को प्रणाम करता हूँ।

सुन्दरीं तारिणीं सर्वशिवागणविभूषिताम् ।

नारायणीं विष्णुपूज्यां ब्रह्मविष्णुहरप्रियाम् ॥ १२॥

मैं विष्णुपूज्या ब्रह्मा, विष्णु एवं हर की प्रिया, समस्त शिवागणों से विभूषित, सुन्दरी, नारायणी, तारिणी को प्रणाम करता हूँ ।

सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यां गुणवर्जिताम् ।

सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्वसिद्धिदाम् ॥ १३॥

मैं सर्वसिद्धिप्रदा, अनित्यगुणवर्जिता, सगुणा एवं निर्गुणा, ध्येया एवं अर्चिता, सर्वसिद्धिदा, नित्या को प्रणाम करता हूँ ।

विद्यां सिद्धिप्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम् ।

महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम् ॥ १४॥

मैं विद्यासिद्धिप्रदा, महाकाल-प्रपूजिता, महेशभक्ता, माहेशी विद्या एवं महाविद्या महेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।

प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम् ।

रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम् ॥ १५॥

मैं रक्तप्रिया, रक्तवर्णा, रक्तबीज-विमर्दिनी, शुम्भासुर-विनाशिनी, जगद्धात्री को प्रणाम करता हूँ।

भैरवीं भुवनां देवीं लोलजिह्वां सुरेश्वरीम् ।

चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम् ॥ १६॥

मैं चतुर्भुजा, अष्टादशभुजा, शुभा, लोलजिह्वा, भैरवी, सुरेश्वरी, भुवना, भुवनेश्वरी देवी को प्रणाम करता हूँ ।

त्रिपुरेशीं विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।

अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशिनीम् ॥ १७॥

मैं अट्टहासा, अट्टहासप्रिया, धूम्रलोचन-विनाशिनी, विश्वनाथप्रिया, शिवा, विश्वेश्वरी, त्रिपुरेश्वरी को प्रणाम करता हूँ ।

कमलां छिन्नभालाञ्च मातङ्गीं सुरसुन्दरीम् ।

षोडशीं विजयां भीमां धूमाञ्च वगलामुखीम् ॥ १८॥

मैं कमला, छिन्नमस्ता, मातङ्गी, सुरसुन्दरी, षोडशी, त्रिपुरा, भीमा धूमावती एवं बगलामुखी को मन्त्रसिद्धि के लिए प्रणाम करता हूँ ।

सर्वसिद्धिप्रदां सर्वविद्यामन्त्रविशोधिनीम् ।

प्रणमामि जगत्तारां साराञ्च मन्त्रसिद्धये ॥ १९॥

मैं समस्त विद्या एवं मन्त्रों के लिए शुद्धि-कारिणी, सभी के सारभूता, सर्वसिद्धिप्रदा, जगत् तारा को मन्त्रसिद्धि के लिए प्रणाम करता हूँ ।

दशमहाविद्यास्तोत्रम् अथवा महाविद्यास्तोत्रम् फलश्रुति

इत्येवञ्च वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम् ।

पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनि ॥ २०॥

हे वरारोहे ! हे गिरिनन्दिनि ! सिद्धिकार श्रेष्ठ - एवं विध स्तोत्र को पढ़कर (साधक) मोक्षलाभ करता है। यह सत्य है ।

कुजवारे चतुर्दश्याममायां जीववासरे ।

शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ॥२१॥  

मंगलवार, बृहस्पतिवार या शुक्रवार को, निशा के आगत होने पर, चतुर्दशी या अमावस्या तिथि में, इस स्तोत्र का पाठ कर (साधक) मोक्षलाभ करता है ।

त्रिपक्षे मन्त्रसिद्धि स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि ।

चतुर्दश्यां निशाभागे निशि भौमेऽष्टमीदिने ॥२२ ॥

निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मन्त्र सिद्धिमवाप्नुयात् ।

केवलं स्तोत्रपाठाद्धि तन्त्रसिद्धिरनुत्तमा ।

जागर्ति सततं चण्डी स्तवपाठाद्भुजङ्गिनी ॥ २३

हे शङ्करि ! तीन पक्ष पर्यन्त स्तोत्र का पाठ करने पर निश्चय ही मन्त्रसिद्धि होती है। शनिवार या मंगलवार को, चतुर्दशी की रात्रि में या निशा-मुख में स्तोत्र का पाठ करें। वैसा करने पर, मन्त्रसिद्धि का लाभ करते हैं। केवल स्तोत्रपाठ से अति उत्तम मन्त्रसिद्धि हो सकती है । हे चण्डि ! स्तव-पाठ के द्वारा सर्वदा भुजङ्गिनी (कुलकुण्डलिनी) जागरिता हो जाती हैं ।

इति मुण्डमालातन्त्रोक्त दशमः पटलान्तर्गतं दशमहाविद्यास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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