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मुण्डमालातन्त्र पटल १७

मुण्डमालातन्त्र पटल १७           

मुण्डमालातन्त्र (रसिक मोहन विरचित एकादश पटल) पटल १७ में ताम्बूल सिद्धि का वर्णन है।

मुण्डमालातन्त्र पटल १७

मुण्डमालातन्त्रम् सप्तदश: पटलः

मुंडमाला तंत्र पटल १७                

रसिक मोहन विरचितम् मुण्डमालातन्त्रम् एकादश: पटलः

रसिक मोहन विरचित मुण्डमालातन्त्र पटल ११      

श्रीशिव उवाच -

॥ श्रुतं वै कवचं स्तोत्रं श्रुतं तन्त्रं मनोहरम् ।

किं वक्ष्यामि महेशानि! वद शीघ्रं शिवप्रिये ! ॥1

श्री शिव ने कहा - आपने स्तोत्र एवं कवच का श्रवण किया है, मनोहर तन्त्र का भी श्रवण किया है । हे शिवप्रिये! हे महेशानि ! सम्प्रति मैं क्या बताऊँ, शीघ्र बतावें ।।1।।

श्री पार्वत्युवाच -

प्राणनाथ ! दयासिन्धो ! तव वक्त्रात् श्रुतं मया ।

नानातन्त्रं श्रुतं नाथ! विज्ञानं ज्ञानमेव च ॥2

श्री पार्वती ने कहा हे प्राणनाथ ! हे दयासिन्धो ! हे नाथ ! आपके श्रीमुख से मैंने नाना तन्त्र, ज्ञान एवं विज्ञान का श्रवण किया है ।।2।।

कुलार्णवं कुलाचारं कुलोड्डीशं कुलाख्यकम् ।

विधानमकुलीनानां कुलीनानां श्रुतं प्रभो ! ॥3

हे प्रभो ! कुलार्णव, कुलाचार, कुलोड्डीश, कुलतन्त्र, कुलीन एवं अकुलीन के विधान को मैंने आप ही के श्रीमुख से सुना है।

डामरं यामलं काली-तन्त्रं काली-विलासकम् ।

श्रीकाली कल्पलतिका श्रुता परम-सादरात् ॥4

डामर, यामल, कालीतन्त्र, कालीविलास, श्रीकाली-कल्पलतिका का परम आदर के साथ मैंने श्रवण किया है ।।4।।

भैरवं समयातन्त्रं निर्वाणं मोहनं भयम् ।

लिङ्गर्चनं लिङ्गमालातन्त्रं नाना-प्रभेदकम् ।।5।।

भैरवतन्त्र, समयातन्त्र, निर्वाणतन्त्र, मोहनतन्त्र, लिङ्गार्चनतन्त्र, नाना भेदभिन्न लिङ्गमालातन्त्र का मैंने श्रवण किया है ।।5।।

ऊर्ध्वाम्नायं तोड़लञ्च योगिनी-हृदयात्मकम् ।

एवं नानाविधं तन्त्रं श्रुतं श्रीमुख-पङ्कजात् ॥6

ऊर्ध्वाम्नायतन्त्र, तोड़लतन्त्र, योगिनीहृदय, इसी प्रकार नाना तन्त्रों को आपके श्रीमुख-पङ्कज से मैंने सुना है ।।6।।

न श्रुता ताम्बूलात् सिद्धिः शङ्का से खलु विद्यते ।

वद शीघ्रं महादेव ! किं मां वञ्चयसि प्रभो!।

मा विलम्बं कुरु विभो ! यदि स्नेहोऽस्ति मां प्रति ॥7

ताम्बूल से प्राप्त होने वाली सिद्धि का श्रवण मैंने नहीं किया है। इसमें मुझे संशय है । हे महादेव ! शीघ्र मुझे बतावें । हे प्रभो ! आप क्या मुझे वञ्चित कर रहे हैं? हे विभो ! यदि मेरे प्रति आपको स्नेह है, तब (इसे बताने में) विलम्ब न करें ।।

श्रीशङ्कर उवाच -

अलसानाञ्च मूर्खानामज्ञान-हतचेतसाम् ।

मार पुरश्चरणमेवास्याः संक्षेपाद् वच्मि पार्वति! ॥8

श्रीशङ्कर ने कहा - हे पार्वति ! अज्ञान-कलुषित चित्त, अलस एवं मूर्खों के लिए इन देवी के पुरश्चरण को मैं संक्षेप में बता रहा हूँ ।।8।।

कुजेऽष्टम्यां चतुर्दश्यां पक्षयोरुभयोरपि ।

उपवासं दिवा चण्डि ! निशायां चण्डिकां जपेत् ।।9।।

हे चण्डि ! शुक्ल एवं कृष्ण - उभय पक्षों के मंगलवार को, अष्टमी या चतुर्दशी तिथि में, दिवा में उपवास करके, निशा में चण्डिका मन्त्र का जप करें ।।9।।

वामे स्ववामां संस्थाप्य सर्वालङ्कारभूषिताम् ।

स्वयं सा प्रजपेन्मन्त्रमयुतं वा सहस्रकम् ।।10।।

वामभाग में सर्वालङ्कार-भूषिता अपनी स्त्री को बैठावें । वे स्वयं अयुत संख्यक या सहस्त्र संख्यक मन्त्र का जप करें ।।

ततस्ताम्बूल पुञ्जञ्च नानागन्ध-समन्वितम् ।

जपान्ते च महादेव्यै साधकः सन्निवेदयेत् ।।11।।

उसके बाद साधक, जप के अन्त में, नाना गन्ध-समन्वित ताम्बूल-पुञ्च महादेवी को निवेदन करें । उसके बाद स्तुति-पाठ कर, 'क्षमस्व' कहकर विसर्जन करें ।।11।।

स्तुति-पाठं ततः कृत्वा क्षमस्वेति विसर्जयेत् ।

साधकेन्द्रो महेशानि! पुरतो वामलोचनाम् ।

दिगम्बरामुक्तकेशी संपश्यन् काममन्दिरम् ।।12।।

हे महेशानि ! साधकेन्द्र सम्मुख में दिगम्बरा मुक्तकेशी वामलोचना को देखते हुए काम-मन्दिर में गमन करें ।।12।।

एतावत्येव मातृका एकादशः पटलः ।।11।।

रसिक मोहन विरचित मुण्डमालातन्त्र एकादश पटल में मातृका और मुण्डमालातन्त्र का पटल १७ का अनुवाद समाप्त ।।

इति: श्रीमुण्डमालातन्त्रम् सम्पूर्ण:॥

इस प्रकार मुण्डमालातन्त्र समाप्त हुआ ।।

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