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मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
महाविद्या कवच
भगवान् शङ्कर ने पार्वती से महाविद्यास्तोत्र
के पश्चात् दस महाविद्या कवच का उपदेश कर रहे हैं जो कि मुण्डमाला तन्त्र में
वर्णित है । जो साधक इस कवच का नित्य पाठ करता है उसे भक्ति,
मुक्ति, सुख, एवं सर्व
सम्पत्ति और सिद्धि प्राप्त होता है ।
दसमहाविद्या कवचम्
सदाशिव ऋषिर्देवि उष्णिक्छन्दः
उदीरितम् ।
विनियोगश्च देवेशि सततं
मन्त्रसिद्धये ॥ १॥
हे देवि ! इस कवच के ऋषि (द्रष्टा)
हैं सदाशिव एवं छन्द है उष्णिक् - ऐसा कहा गया है । हे देवेशि ! मन्त्रसिद्धि में
उसका विनियोग (प्रयोग) किया जाता है ।
मस्तकं पार्वतीपातु पातु
पञ्चाननप्रिया ।
केशं मुखं पातु चण्डी भारती
रुधिरप्रिया ॥ २॥
कण्ठं पातु स्तनं पातु कपालं पातु
चैव हि ।
काली करालवदना विचित्राचित्रघण्टिनी
॥ ३॥
पार्वती मस्तक
की रक्षा करें। पञ्चानन-प्रिया केशों की रक्षा करें । चण्डी मुख की रक्षा करें।
रुधिर-प्रिया भारती कण्ठ की रक्षा करें। करालवदना विचित्र घण्टाधारिणी काली स्तन,
कपाल एवं गण्ड की रक्षा करें ।
वक्षःस्थलं नाभिमूलं दुर्गा
त्रिपुरसुन्दरी ।
दक्षहस्तं पातु तारा सर्वाङ्गी
सव्यमेव च ॥ ४॥
दुर्गा वक्ष स्थल की रक्षा करें।
त्रिपुरसुन्दरी नाभिमूल की रक्षा करें । तारा दक्षिण हस्त की रक्षा करें । सर्वाणी
वामहस्त की रक्षा करें ।
विश्वेश्वरी पृष्ठदेशं नेत्रं पातु
महेश्वरी ।
हृत्पद्मं कालिका पातु उग्रतारा
नभोगतम् ॥ ५॥
विश्वेश्वरी पृष्ठदेश की रक्षा करें
। महेश्वरी नेत्र की रक्षा करें। कालिका हृत्पद्म की रक्षा करें । त्रिपुरेशी नाभीदेश
की रक्षा करें ।
नारायणी गुह्यदेशं मेढ्रं
मेढ्रेश्वरी तथा ।
पादयुग्मं जया पातु सुन्दरी
चाङ्गुलीषु च ॥ ६॥
नारायणी गुह्यदेश की रक्षा करें । मेढ्रेश्वरी
मेढ्रदेश की रक्षा करें । जया पादयुगल की रक्षा करें । सुन्दरी अङ्गुलियों की
रक्षा करें ।
षट्पद्मवासिनी पातु सर्वपद्मं
निरन्तरम् ।
इडा च प्ङ्गला पातु सुषुम्ना पातु
सर्वदा ॥ ७॥
षट्पद्म-वासिनी समस्त पद्म एवं
देहमध्यस्थ इड़ा, पिङ्गला एवं
सुषुम्ना नाड़ी की सर्वदा रक्षा करें ।
धनं धनेश्वरी पातु अन्नपूर्णा
सदावतु ।
राज्यं राज्येश्वरी पातु नित्यं मां
चण्डिकाऽवतु ॥ ८॥
घनेश्वरी अन्नपूर्णा सर्वदा धन की
रक्षा करें । राज्येश्वरी राज्य की रक्षा करें। चण्डिका मेरी नित्य रक्षा करें ।
जीवं मां पार्वती सम्पातु मातङ्गी
पातु सर्वदा ।
छिन्ना धूमा च भीमा च भये पातु जले
वने ॥ ९॥
पार्वती जीव की रक्षा करें। मातङ्गी
सर्वदा मेरी रक्षा करें। छिन्नमस्ता एवं भीमा धूमावती जल में,
वन में एवं भय होने पर रक्षा करें ।
कौमारी चैव वाराही नारसिंही यशो मम
।
पातु नित्यं भद्रकाली
श्मशानालयवासिनी ॥ १०॥
कौमारी,
बाराही, एवं नारसिंही मेरे यश की रक्षा करें।
श्मशान-गृहवासिनी भ्रदकाली सर्वदा मेरी रक्षा करें ।
उदरे सर्वदा पातु सर्वाणी
सर्वमङ्गला ।
जगन्माता जयं पातु नित्यं
कैलासवासिनी ॥ ११॥
सर्वमङ्गला सर्वाणी सर्वदा उदर की
रक्षा करें । कैलास-वासिनी जगन्माता सर्वदा जय की रक्षा करें ।
शिवप्रिया सुतं पातु सुतां
पर्वतनन्दिनी ।
त्रैलोक्यं पातु बगला भुवनं
भुवनेश्वरी ॥ १२॥
शिवप्रिया पुत्र की रक्षा करें ।
पर्वतनन्दिनी पुत्री की रक्षा करें । बगलामुखी त्रैलोक्य की रक्षा करें ।
भुवनेश्वरी भुवन की रक्षा करें ।
सर्वाङ्गं पातु विजया पातु नित्यञ्च
पार्वती ।
चामुण्डा पातु मे रोमकूपं
सर्वार्थसाधिनी ॥ १३॥
विजया सर्वाङ्ग की रक्षा करें।
पार्वती नित्य रक्षा करें। सर्वार्थसाधिनी चामुण्डा मेरे रोमकूपों की रक्षा करें ।
ब्रह्माण्डं मे महाविद्या पातु
नित्यं मनोहरा ।
लिङ्गं लिङ्गेश्वरी पातु महापीठे
महेश्वरी ॥ १४॥
मनोहरा महाविद्या मेरे ब्रह्माण्ड
की नित्य रक्षा करें। सिद्धेश्वरी लिङ्ग की रक्षा करें। महेश्वरी महापीठ की रक्षा
करें ।
सदाशिवप्रिया पातु नित्यं पातु
सुरेश्वरी ।
गौरी मे सन्धिदेशञ्च पातु वै
त्रिपुरेश्वरी ॥ १५॥
सदाशिवप्रिया सर्वदा मेरी रक्षा
करें। सुरेश्वरी सर्वदा रक्षा करें । गौरी एवं त्रिपुरेश्वरी मेरे सन्धिदेश की
रक्षा करें।
सुरेश्वरी सदा पातु श्मशाने च
शवेऽवतु ।
कुम्भके रेचके चैव पूरके काममन्दिरे
॥ १६॥
सुरेश्वरी सर्वदा रक्षा करें ।
श्मशान में शव की रक्षा करें। कुम्भक, रेचक,पूरक में एवं काममन्दिर में रक्षा करें ।
कामाख्या कामनिलयं पातु दुर्गा
महेश्वरी ।
डाकिनी काकिनी पातु नित्यं च शाकिनी
तथा ॥ १७॥
सुरेश्वरी दुर्गा कामाख्या कामगृह
की रक्षा करें। डाकिनी, काकिनी एवं शाकिनी
सर्वदा रक्षा करें ।
हाकिनी लाकिनी पातु राकिनी पातु
सर्वदा ।
ज्वालामुखी सदा पातु मुख्यमध्ये
शिवाऽवतु ॥ १८॥
हाकिनी,
लाकिनी एवं राकिनी सर्वदा रक्षा करें । ज्वालामुखी सर्वदा रक्षा
करें। शिवा मुख के मध्य में रक्षा करें।
तारिणी विभवे पातु भवानी च भवेऽवतु
।
त्रैलोक्यमोहिनी पातु सर्वाङ्गं
विजयाऽवतु ॥ १९॥
तारिणी विभव में रक्षा करें । भवानी
भव में (संसार में) रक्षा करें । त्रैलोक्यमोहिनी रक्षा करें। विजया सर्वाङ्ग की
रक्षा करें ।
राजकुले महाद्युते सङ्ग्रामे
शत्रुसङ्कटे ।
प्रचण्डा साधकं माञ्च पातु
भैरवमोहिनी ॥ २०॥
भैरवमोहिनी प्रचण्डा राजकुल में,
महाद्युत में, संग्राम में, शत्रुसंकट में मुझ साधक की रक्षा करें ।
श्रीराजमोहिनी पातु राजद्वारे
विपत्तिषु ।
सम्पद्प्रदा भैरवी च पातु बाल बलं
मम ॥ २१॥
श्रीराजमोहिनी राजद्वार में,
विपत्-समूह में रक्षा करें । सम्प्रत्-प्रदा भैरवी बाला मेरे बल की
रक्षा करें ।
नित्यं मां शम्भुवनिता पातु मां त्रिपुरान्तका
।
इत्येवं कथितं रहस्यं सर्वकालिकम् ॥
२२॥
शम्भुवनिता मेरी नित्य रक्षा करें ।
त्रिपुरहन्त्री मेरी रक्षा करें । हे देवि ! सर्वकाल में पाठयोग्य रहस्य को इस
प्रकार कहा गया ।
दसमहाविद्या कवचम् फलश्रुति
भक्तिदं मुक्तिदं सौख्यं सर्व सम्पत्प्रदायकम्
।
यः पठेत् प्रातरुत्थाय साधकेन्द्रो
भवेद्भुवि ॥ २३॥
जो साधक प्रातःकाल उठकर,
भक्ति, मुक्ति, सुखकर,
एवं सर्व सम्पत् प्रदायक इस कवच का पाठ करता है, वह इस पृथिवी पर साधकेन्द्र बन जाता है ।
कुजवारे चतुर्दश्याममायां मन्दवासरे
।
यः पठेत् मानवो भक्त्या स याति शिव
मन्दिरम् ॥ २४॥
मंगल एवं शनिवार को,
चतुर्दशी एवं अमावस्या तिथि में जो मानव भक्ति के साथ इसका पाठ करता
है, वह शिवमन्दिर में गमन करता है ।
गुरौ गुरुं समभ्यर्च्य यः
पठेत्साधकोत्तमः ।
स याति भवनं देव्याः सत्यं सत्यं न
संशयः ॥ २५॥
जो साधकोत्तम,
गुरुवार को गुरु की सम्यक् प्रकार से अर्चना करके इसका पाठ करता है,
वह देवी के भवन में सत्य, सत्य गमन करता है।
इसमें कोई संशय नहीं है ।
एवं यदि वरारोहे पठेद्भक्ति परायणः
।
मन्त्रसिद्धिर्भवेत्तस्य
चाचिरान्नात्र संशयः ॥ २६॥
हे वरारोहे ! भक्तिपरायण होकर साधक
यदि इस प्रकार पाठ करता है, शीघ्र ही उसे
मन्त्रसिद्धि प्राप्त होती है। इसमें संशय नहीं है ।
सत्यं लक्षपुरश्चर्याफलं प्राप्य
शिवां यजेत् ।
राजमार्गं शिवमार्गं प्राप्य जीवः
शिवो भवेत् ॥ २७॥
लक्ष पुरश्चरणों का फल प्राप्त करके
भी शिवा की पूजा करें। राजमार्ग शिवमार्ग का लाभ करने पर ही जीव शिव बन जाता है ।
पठित्वा कवचं स्तोत्रं
मुक्तिमाप्नोति निश्चितम् ।
पठित्वा कवचं स्तोत्रं दशविद्यां
यजेद्यदि ।
विद्यासिद्धिर्मन्त्रसिद्धिर्भवत्येव
न संशयः ॥ २८॥
स्तोत्र एवं कवच का पाठ कर (साधक)
निश्चय ही मुक्ति लाभ करता है। स्तोत्र एवं कवच का पाठ कर यदि (साधक) दशविद्या की
पूजा करता है, तब उन्हें विद्यासिद्धि एवं
मन्त्रसिद्धि अवश्य होती है। इसमें कोई संशय नहीं है ।
इति श्रीमुण्डमालातन्त्रे दशमपटले पार्वतीश्वरसंवादे मन्त्रसिद्धिस्तोत्रं कवचं अथवा महाविद्याकवचं सम्पूर्णम् ॥
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