रामरहस्योपनिषद् अध्याय ३

रामरहस्योपनिषद् अध्याय ३   

अथर्ववेदीय राम रहस्य उपनिषद के अध्याय २ में हनुमानजी ने ऋषियों से श्रीराम की प्राप्ति के साधन और श्रीराम मन्त्रों का उपदेश दिया है। अब रामरहस्योपनिषद् अध्याय ३ में हनुमानजी ने श्रीराम के पीठ पूजा का वर्णन किया है।

रामरहस्योपनिषद् अध्याय ३

श्रीरामरहस्योपनिषत्

श्रीरामरहस्योपनिषद् तृतीयोऽध्याय:  

सनकाद्या मुनयो हनूमन्तं पप्रच्छुः ।

आञ्जनेय महाबल पूर्वोक्तमन्त्राणां

पूजापीठमनुब्रूहीति ।

सनकादि ऋषियों ने हनुमान जी से पूछा- महाबली आञ्जनेय! पूर्वोक्त मन्त्रों का पूजापीठ कैसे होता है, यह बताइये।

हनुमान् होवाच ।

आदौ षट्कोणम् । तन्मध्ये रामबीजं सश्रीकम् ।

तदधोभागे द्वितीयान्तं साध्यम् । बीजोर्ध्वभागे

षष्ठ्यन्तं साधकम् । पार्श्वे दृष्टिबीजे तत्परितो

जीवप्राणशक्तिवश्यबीजानि । तत्सर्वं सन्मुखोन्मुखाभ्यां

प्रणवाभ्यां वेष्टनम् । अग्नीशासुरवायव्यपुरःपृष्ठेषु

षट्कोणेषु दीर्घभाञ्जि । हृदयादिमन्त्राः क्रमेण ।

रां रीं रूं रैं रौं रः इति दीर्घभाजि तद्युक्तहृदयाद्यस्त्रान्तम् ।

षट्कोणपार्श्वे रमामायाबीजे । कोणाग्रे वाराहं हुमिति ।

तद्बीजान्तराले कामबीजम् । परितो वाग्भवम् ।

हनुमान जी बोले- पहले षट्कोण बनायें। उसके मध्य 'श्रीं रां' लिखें। इन बीज मन्त्रों के नीचे साध्य (कार्य जो अभीष्ट है) को द्वितीय विभक्ति में लिखें। बीजमन्त्र के ऊपर साधक (जापक) का नाम षष्ठी विभक्ति में लिखें। बीज मंत्र के चारों ओर जीव-प्राण-शक्तिवश्य बीज लिखें। ऊपर नीचे ॐ लिखें। हृदय न्यास से अस्त्र न्यास के ६ बीजों रां रीं रुं रौं र: (सभी दीर्घ) को क्रम से लिखें। षट्कोण के पास श्रीं ह्रीं लिखें। कोण के आगे हुम् यह वाराहबीज लिखें। उसके मध्य (कोण और हुं के मध्य) काम बीज क्लीं लिखें। उसके चारों ओर सरस्वतीबीज ऐं लिखे।

ततो वृत्तत्रयं साष्टपत्रम् ।

तेषु दलेषु स्वरानष्टवर्गान्प्रतिदलं

मालामनुवर्णषट्कम् । अन्ते पञ्चाक्षरम् ।

तद्दलकपोलेष्वष्टवर्णान् । पुनरष्टदलपद्मम् ।

तेषु दलेषु नारायणाष्टाक्षरो मन्त्रः ।

तद्दलकपोलेषु श्रीबीजम् ।

फिर अष्टदलों का तीन वृत्ताकार यन्त्र बनायें। उनके दलों पर सभी स्वर, अष्टवर्ग (क च ट त प य श हृ वर्ग) के सभी वर्गों को, (य वर्ग = य र ल व । श वर्ग = श ष स) लिखें। प्रत्येक दल पर मालाकार षडाक्षर तारक मन्त्र लिखें (रां रामाय नमः)। अन्त में पञ्चाक्षर (रामाय नम:) लिखें। फिर अगले अष्टदल कमल पर बाहर ॐ नमो नारायणाय, एवं ऊपर सर्वत्र श्रीं बीज लिखें।

ततो वृत्तम् । ततो द्वादशदलम् ।

तेषु दलेषु वासुदेवद्वादशाक्षरो मन्त्रः ।

तद्दलकपोलेष्वादिक्षान्तान् । (आदित्यान्)।

फिर वृत्त के चारों ओर १२ दलों का कमल, उन पर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय लिखें। फिर ऊपर अ से क्ष तक १२ वर्ण (अ इ उ क च र त प य श ह क्ष) लिखें।

ततो वृत्तम् । ततः षोडशदलम् ।

तेषु दलेषु हुं फट् नतिसहितरामद्वादशाक्षरम् ।

तद्दलकपोलेषु मायाबीजम् ।

सर्वत्र प्रतिकपोलं द्विरावृत्त्या ह्रं स्रं भ्रं ब्रं भ्रमं श्रुं ज्रम् ।

फिर वृत्त बनाकर चारों ओर १६ दल कमल बनायें। सभी पत्तों पर ॐ नमो भगवते रामचन्द्राय नम: हुं फट् इस १६ अक्षर वाले मन्त्र के एक-एक अक्षरों को क्रमश: लिखें। सभी के ऊपर माया बीज (ह्रीं) लिखें। दो आवृत्ति में क्रम से ह्रं स्रं भ्रं ब्रं भ्रमं श्रुं ज्रम् लिखे। (इस से सभी पत्तें पर एक एक अक्षर हो जाते हैं।)

ततो वृत्तम् । ततो द्वात्रिंशद्दलपद्मम् ।

तेषु दलेषु नृसिंहमन्त्रराजानुष्टुभमनः।

तद्दलकपोलेश्वष्टवस्वेकादशरुद्रद्वादशादित्यमन्त्राः

प्रणवादिनमोन्ताश्चतुर्थ्यन्ताः क्रमेण । तद्बहिर्वषट्कारं परितः।

फिर वृत्त बनाकर बत्तीस दलों का कमल बनायें। उस पर नृसिंह मन्त्र (क्षरौं) उग्र बीरं आदि के ३२ वर्गों को एक एक कर सभी दलों पर लिखें। ऊपर अष्ट वसु, एकादश रुद्र, द्वादश आदित्य में प्रत्येक मन्त्र ॐ नमः लगाकर (ॐ पहले, नमः बाद में, बीच में देवता का नाम) देव का चतुर्थी विभक्ति युक्त नाम लिखें। फिर यन्त्र से बाहर चारों ओर 'वषट्' लिखें।

ततो रेखात्रययुक्तं भूपुरम् । द्वादशदिक्षु राश्यादिभूषितम् ।

अष्टनागैरधिष्ठितम् । चतुर्दिक्षु नारसिंहबीजम् ।

विदिक्षु वाराहबीजम् ।

एतत्सर्वात्मकं यन्त्रं सर्वकामप्रदं मोक्षप्रदं च ।

तीन रेखा वाला भूपुर (यन्त्र) बनायें। बारहों राशि, अष्ट नाग, चारों ओर नृसिंह बीज (श्रौं, नौं) लिखें। कोनों पर वाराह बीज (हूं) लिखें। यह मन्त्र सभी कामनाओं को देने वाला तथा मोक्षप्रद है।

एकाक्षरादिनवाक्षरान्तानामेतद्यन्त्रं भवति ।

तद्दशावरणात्मकं भवति । षट्कोणमध्ये साङ्ग राघवं यजेत् ।

षट्कोणेष्वङ्गः प्रथमा वृतिः। अष्टदलमूले आत्माद्यावरणम् ।

तदग्रे वासुदेवाद्यावरणम् । द्वितीयाष्टदलमूले घृष्ट्याद्यावरणम् ।

तदने हनूमदाद्यावरणम् । द्वादशदलेषु वसिष्ठाद्यावरणम् ।

षोडशदलेशु नीलाद्यावरणम् । द्वात्रिंशद्दलेषु ध्रुवाद्यावरणम् ।

भूपुरान्तरिन्द्राद्यावरणम् । तद्बहिर्वज्राद्यावरणम् ।

एवमभ्यर्च्य मनुं जपेत् ।।

एकाक्षर 'रां' से नवाक्षर मन्त्र तक यन्त्र हो सकते हैं। मन्त्र के अनुसार आवरण पूजा होती है। षट्कोण के मध्य अङ्ग देवों सहित राघव भगवान की पूजा करें। यह प्रथमावरण है अष्टदल के मूल में आत्मा आदि आवरण है। फिर वासुदेव आदि आवरण है। दूसरे अष्टदल के मूल में घृष्टि आदि आवरण, आगे हनुमान आदि आवरण, १२ पत्रों पर वसिष्ठ आदि आवरण, षोडश दल पर नील आदि आवरण, ३२ दलों पर ध्रुव आदि आवरण, भूपुर के मध्य इन्द्र आदि आवरण, उससे बाहर वज्र आदि आयुध आवरण, यह आवरण पूजा है। आवरण पूजा करने के बाद मन्त्र जाप करना चाहिए। एकाक्षर से नवाक्षर मन्त्रों की यह विधि है।

अथ दशाक्षरादिद्वात्रिंशदक्षरान्तानां

मन्त्राणां पूजापीठमुच्यते । आदौ षट्कोणम् ।

तन्मध्ये स्वबीजम् । तन्मध्ये साध्यनामानि ।

एवं कामबीजवेष्टनम् । ततः शिष्टेन नवार्णेन वेष्टनम् ।

षट्कोणेषु षडङ्गान्यग्नीशासुरवायव्यपूर्वपृष्ठेषु ।

तत्कपोलेषु श्रीमाये। कोणाग्रे क्रोधम् ।

अब दशाक्षर से ३२ अक्षरों के मन्त्रों का पूजापीठ बताते हैं। पहले षट्कोण, फिर मन्त्र का बीज, मध्य में साध्य (इच्छित वस्तु) का नाम, उसके चारों ओर कामबीज (क्लीं), फिर नौ अक्षरों के शेष मन्त्र के अक्षर चारों ओर, फिर ६ कोने पर न्यास के ६ अक्षर एक एक कर अग्निकोण, उत्तर, दक्षिण, वायव्य और पूर्व की ओर लिखें। ऊपर श्रीं ह्रीं, फिर क्रोध बीज (क्रं) को कोने पर से आगे लिखें।

ततो वृत्तम् । ततोऽष्टदलम् ।

तेषु दलेषु षट्संख्यया मालामनुवर्णान् ।

तद्दलकपोलेषु षोडश स्वराः। ततो वृत्तम् ।

तत्परित आदिक्षान्तम् । तद्बहिर्भूपुरं साष्टशूलाग्रम् ।

दिक्षु विदिक्षु नारसिंहवाराहे। एतन्महायन्त्रम् ।

फिर वृत्त बनायें। तब अष्टदल बनायें। पत्ते पर क्रम से ६ की संख्या में मन्त्र के अक्षर (एक पर ६ अक्षर), दल के ऊपर १६ स्वर (स्वरा: षोडश विख्याता: शारदतिलक। इसके अनुसार अ इ उ ए ओ, आ ई ऊ ऋ, ऋॄ, लृ, लॄ, अनुस्वर विसर्ग : आदि १६ स्वर हैं) लिखना चाहिए। फिर वृत्त के चारों ओर अ से क्ष तक वर्ण लिखें। बाहर भूपुर के घेरा में आठ मूर्ति सहित शिव, दिशाओं में तथा कोनों पर नौं हूं लिखने पर महायन्त्र बन जाता है।

आधारशक्त्यादिवैष्णवपीठम् ।

अङ्गैः प्रथमा वृतिः। मध्ये रामम् ।

वामभागे सीताम् । तत्पुरतः शार्ङ्ग शरं च ।

अष्टदलमूले हनुमदादिद्वितीयावरणम् ।

घृष्ट्यादितृतीयावरणम् ।  इन्द्रादिभिश्चतुर्थी ।

वज्रादिभिः पञ्चमी ।

एतद्यन्त्राराधनपूर्वकं दशाक्षरादिमन्त्र जपेत् ।।

आधार शक्ति, वैष्णव पीठ की देवियां अङ्गों सहित प्रथम आवरण में, मध्य में राम, बायें सीता, सामने शार्ङ्ग धनुष और बाण होते हैं। द्वितीयावरण में हनुमान् आदि, तृतीयावरण में घृष्टि आदि, चतुर्थ में इन्द्र आदि दिक्पाल, पांचवें में वज़ आदि आयुध की पूजा करने पर यन्त्र पीठ पूजा सम्पन्न होती है। फिर दक्षाक्षर से बत्तीस अक्षरों के मन्त्रों में से अभीष्ट मन्त्र का जप किया जाना चाहिए।

इति श्रीरामरहस्योपनिषदि तृतीयोऽध्यायः।। 3 ।।

श्रीरामरहस्योपनिषद् तृतीय अध्याय अनुवाद पूर्ण हुआ।

शेष जारी...आगे पढ़ें- श्रीराम रहस्य उपनिषद चतुर्थऽध्याय

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