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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
शाबरी कवच
शाबरी विद्या बहुत ही प्रभावी और
अनुभव सिद्ध है तथा इस ग्रन्थ को लिखने में श्रीमच्छिंद्र,
गोरक्ष और भी नवनाथों द्वारा योगदान दिया गया है । श्रीमच्छिंद्र,
गोरखनाथ, जालंधर आदि नवनाथ शाबरी देवी की कृपा
और शाबरी विद्या के प्रभाव से ही प्रसिद्ध हुए। श्रीनवनाथ द्वारा इस देवी की पूजा
की और सफलता प्राप्त की। शाबरी कवच से शीघ्र ही सारे मनोकामना पूर्ण हो जाता है और
तत्काल सफलता प्राप्त होता है।
श्रीमद् आद्य शंकराचार्य ने शाबरीमाता
की तपस्या कर लोगों का मार्गदर्शन किया। यह विद्या आज भी यहां-वहां गुप्त रूप में
पाई जाती है। नाथ विद्या का अर्थ है शाबरी विद्या। जब इस कवच का अनुष्ठान किया
जाता है,
तो भूतबाधा, दैवीय प्रकोप, बीमारी, संतानहीनता और विफलता,
दैवीय आपदा, दरिद्रता आदि सभी विपदाएं तुरंत दूर हो जाती हैं
और व्यक्ति यश (सफलता) और आरोग्यता प्राप्त करता है।
श्रीशाबरी कवच अनुष्ठान करने वालों
के लिए आवश्यक निर्देश
·
अनुष्ठान शुरू
करने से पहले शेर (बाघ) पर विराजमान देवी(माँ दुर्गा) की पूजा करना चाहिए।
·
अनुष्ठान शुभ
मुहूर्त में शुरू करना चाहिए।
·
अनुष्ठानों के
दौरान मृगासन या व्याघ्रासन का प्रयोग करना चाहिए।
·
संस्कार सही ढंग
से करना चाहिए।
·
अनुष्ठान काल में सात्विक
भोजन ग्रहण करें।
·
काले कपड़े न
पहनें।
·
त्वरित फल
अनुष्ठान के लिए स्थानीय गांव की सीमा पार नहीं करनी चाहिए।
·
दैनिक पाठ करने
वाले के लिए कोई बाध्यता नहीं है।
·
धूप,
दीप, नैवेद्य, प्रार्थना
पूरी श्रद्धा के साथ करना चाहिए, तभी कार्यसिद्ध होगा अन्यथा नहीं।
·
किसी महत्वपूर्ण
कार्य सिद्धि के लिए 3,5,7,9,11 बार नित्य
पढ़ें और त्वरित फल के लिए नित्य 15, 19, 21 बार पढ़ें। अनुष्ठान
की अवधि अधिकतम 21 दिन और न्यूनतम 11
दिन होनी चाहिए। जो व्यक्ति दिन में एक बार इसका पाठ करता है, उसे यात्रा के दौरान भी लगातार इसका पाठ करना चाहिए। श्री गुरु ने ऊपर
जैसा उपदेश दिया है।
श्रीशाबरी कवच पूजन प्रारम्भ
इस पोस्ट में दिए तस्वीरों का दर्शन और नमस्कार करें व कहें-
ॐ महाशाबरी शक्ति परमात्मने नमः।
ॐ श्रीगुरु परमात्मने नमः।
ॐ श्रीनवनाथ परमात्मने नमः।
अपनी राशि यंत्र (अपनी राशि यंत्र
को नीचे फोटो में देखें) को एकाग्रचित्त होकर ध्यान करें और प्रणाम करना चाहिए।
जन्म राशि या नाम राशि के अनुसार
यहां पंचदशी यंत्र दिया गया है। यदि आप किसी अन्य व्यक्ति के लिए अनुष्ठान कर रहे
हैं,
तो आपको उस व्यक्ति की राशि का ध्यान करना चाहिए और उस राशि का
यंत्र चुनना चाहिए।
श्रीशाबरी कवचम्
अब ध्यान करें-
अथ ध्यानम्
ॐ नमो भगवते श्रीवीरभद्राय ।
विरुपाक्षी लं निकुंभिनी षोडशी अपचारिणी
।
वरुथिनी मांसचर्विणी ।
चें चें चें चामलवरायै ।
धनं धनं कंप कंप आवेशय ।
त्रिलोकवर्ति लोकदायै ।
सहस्त्रकोटिदेवान् आकर्षय आकर्षय ।
नवकोटि गंधर्वान् आकर्षय आकर्षय ।
हंसः हंसः सोहं सोहं सर्वं रक्ष मां
रक्ष
भूतेभ्यो रक्ष । ग्रहेभ्यो रक्ष ।
पिशाचेभ्यो रक्ष ।
शाकिनीतो रक्ष डाकिनीतो रक्ष ।
अप्रत्यक्ष प्रत्यक्षारिष्टेभ्यो
रक्ष रक्ष ।
महाशक्तिं रक्ष कवचशक्तिं रक्ष ।
रक्ष ओजवाल । गुरुवाल ।
ॐ प्रसह हनुमंत रक्ष ।
श्रीमन्नाथगुरुत्रयं गणपतिं
पीठत्रयं भैरवम् ॥
सिद्धाढ्यं बटुकत्रयं पदयुगं द्युतिक्रमं
मंडलम् ॥
वैराटाष्ट चतुष्टयं च नवकं वैरावली
पंचकम् ।
श्रीमन्मालिनीमंत्रराजसहितं वंदे
गुरोर्मंडलम् ।
इति ध्यानम् ॥
विभिन्न राशियों के लिए शाबरी कवच
मंत्र
जप करें:-
इसे 108 बार या जितना हो सके उतना जप करें। नीचे बारह राशियों के मंत्र दिए गए
हैं। उनमें से केवल अपनी राशि के मंत्र का जाप करना चाहिए। किसी और के लिए पाठ हो
तो उसका राशि मंत्र लें।
यदि यह किसी और के लिए है,
तो पुरुष के लिए उसका नाम भक्तस्य रखना चाहिए, और यदि वह महिला है, तो उसका नाम देव्या रखना चाहिए ।
मेष और वृश्चिक
ॐ ऐं क्लीं सौः।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
वृषभ व तुला
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
मिथुन व कन्या
ॐ श्रीं ऐं सौः।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
कर्क
ॐ ऐं क्लीं श्रीं ।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
सिंह
ॐह्रीं श्रीं सौः।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
धनु व मीन
ॐ ह्रीं क्लीं सौः।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
मकर
ॐ ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं सौः।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
कुंभ
ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं।
ॐ नमो महाशाबरी शक्ति मम अरिष्टं
निवारय निवारय ।
मम कार्यं सिध्दं सिध्दं कुरु कुरु
स्वाहा ॥
ऊपर जाप करने के बाद ही नमस्कार
करना चाहिए।
श्रीशाबरी कवचम्
प्रार्थना:- निम्नलिखित प्रार्थना
हाथ जोड़कर करनी चाहिए।
अथ प्रार्थना ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं क्षां क्षीं क्षुं
।
कृष्णक्षेत्रपालाय नमः आगच्छ आगच्छ
।
बली सर्वग्रहशमनं मम कार्यं कुरु
कुरु स्वाहा ।
ॐ नमो ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं चक्रेश्वरी
शंख चक्र गदा पद्मधारिणी ।
मम वांछित सिद्धिं कुरु कुरु स्वाहा
।
ॐ नमो कमलवदनमोहिनी सर्वजनवशकारिणी
साक्षात्
सूक्ष्मस्वरुपिणी यन्मम वशगा ॐ सुरासुरा
भवेयुः स्वाहा ।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु
गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरु: साक्षात् परब्रह्म तस्मै
श्रीगुरुवे नमः ॥
अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया
।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै
श्रीगुरुवे नमः ॥
अरुणकिरण जालै रंजिता शावकाशा ।
विधृतजपमाला वीटिका पुस्तहस्ता ।
इतरकरवराढ्या फुल्लकल्हार हस्ता ।
निवसतु हृदि बाला नित्यकल्याणशीला ॥
(इस प्रकार प्रार्थना कर नमस्कार
करें।)
अब हाथ में जल लेकर –
अथ शाबरीकवचजपे विनियोगः ॥
हाथ का जल वहीं छोड़ दें।
यहां तक शाबरी कवच पाठ से पहले
अनुष्ठान करना है। जो लोग श्रीशाबरी कवच का अधिक बार पाठ करना चाहते हैं,
उन्हें उपरोक्त अनुष्ठान केवल एक बार करने की आवश्यकता है। जो रोज
एक बार पढ़ते हैं उन्हें एक बार जरूर पढ़ना चाहिए।
शाबरी कवचम्
॥ अथ
शाबरी कवच पाठ प्रारंभः ॥
ॐ सर्वविघ्ननाशाय । सर्वारिष्ट
निवारणाय ।
सर्व सौख्यप्रदाय । बालानां
बुद्धिप्रदाय ।
नानाप्रकारक धन वाहन भूमि प्रदाय ।
मनोवांछित फल प्रदाय । रक्षां कुरु
कुरु स्वाहा ।
ॐ गुरुवे नमः । ॐ श्रीकृष्णाय नमः ।
ॐ बल भद्राय नमः । ॐ श्रीरामाय नमः
।
ॐ हनुमते नमः । ॐ शिवाय नमः ।
ॐ जगन्नाथाय नमः । ॐ बद्रिनारायणाय
नमः ।
ॐ दुर्गादेव्यै नमः । ॐ सूर्याय नमः
।
ॐ चंद्राय नमः । ॐ भौमाय नमः ।
ॐ बुधाय नमः । ॐ गुरुवे नमः ।
ॐ भृगवे नमः । ॐ शनैश्चराय नमः ।
ॐ राहवे नमः । ॐ पुच्छनायकाय नमः ।
ॐ नवग्रह रक्षां कुरु कुरु नमः ।
ॐ मन्ये वरं हरि हरादय एवं
दृष्ट्वा
दृष्टेषु हृदयं त्वयि तोषमेति ।
किं वीक्षितेन भवता भुवि येन नान्यः
कश्चित् मनो हरति नाथ भवानत एहि ।
ॐ नमः श्रीमन्बलभद्र जयविजय अपराजित
भद्रं भद्रं कुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
सर्वविघ्नशांतिं कुरु कुरु स्वाहा ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री बटुकभैरवाय ।
आपदुद्धरणाय । महानमस्याय स्वरुपाय
।
दीर्घारिष्टं विनाशय विनाशय ।
नानाप्रकारभोगप्रदाय ।
मम (यदि यह किसी और के लिए किया जाता है, तो उसके नाम का उच्चारण करें और यजमानस्य कहें)
सर्वारिष्टं हन हन ।
पच पच हर हर कच कच
राजद्वारे जयं कुरु कुरु ।
व्यवहारे लाभं वर्धय वर्धय ।
रणे शत्रुं विनाशय विनाशय ।
अनापत्ययोगं निवारय निवारय ।
संतत्युत्पत्तिं कुरु कुरु । पूर्णं
आयुः कुरु कुरु ।
स्त्रीप्राप्तिं कुरु कुरु हुं फट्
स्वाहा ॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ।
ॐ नमो भगवते विश्वमूर्तये नारायणाय
।
श्रीपुरुषोत्तमाय रक्ष रक्ष ।
युष्मदधीनं प्रत्यक्षं परोक्षं वा ।
अजीर्णं पच पच ।
विश्वमूर्ते अरीन् हन हन ।
एकाहिकं द्व्याहिकं,
त्र्याहिकं, चातुर्थिकं ज्वरं नाशय नाशय ।
चतुरधिकान् वातान् अष्टादश क्षय रोगान्
अष्टादश कुष्ठान् हन हन।
सर्वदोषान् भंजय भंजय । तत्सर्वं
नाशय नाशय ।
शोषय शोषय,
आकर्षय आकर्षय ।
मम शत्रुं मारय मारय । उच्चाटय
उच्चाटय विद्वेषय विद्वेषय ।
स्तंभय स्तंभय निवारय निवारय ।
विघ्नान् हन हन । दह दह पच पच
मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय
विद्रावय ।
चक्रं गृहीत्वा शीघ्रं आगच्छ आगच्छ
चक्रेण हन हन ।
परविद्यां छेदय छेदय
चतुरशीति चेटकान् विस्फोटय नाशय
नाशय ।
वातशूलाभिहत दृष्टीन् ।
सर्प सिंह व्याघ्र द्विपद चतुष्पदान्
।
अपरे बाह्यांतरादि भुव्यंतरिक्षगान्
।
अन्यानपि कश्चित् देशकालस्थान्
सर्वान् हन हन ।
विषममेघनदीपर्वतादीन् ।
अष्टव्याधीन् सर्वस्थानानि
रात्रिदिन
पथगचोरान् वशमानय वशमानय ।
सर्वोपद्रवान् नाशय नाशय ।
परसैन्यं विदारय विदारय । परचक्रं
निवारय निवारय ।
दह दह रक्षां कुरु कुरु ।
ॐ नमो भगवते ॐ नमो नारायण हुं फट्
स्वाहा ।
ठः ठः ॐ ह्रां ह्रीं हृदये स्वदेवता
॥
एषा विद्या महानाम्नी पुरा दत्ता
शतक्रतोः ।
असुरान् हन्तु हत्वा तान् सर्वांश्च
बलिदानवान् ।
यः पुमान् पठते नित्यं वैष्णवीं
नियतात्मवान् ।
तस्य सर्वान् हिंसंती यस्या
दृष्टिगतं विषम् ।
अन्यदृष्टिविषं चैव न देयं संक्रमे
ध्रुवम् ।
संग्रामे धारयत्यंगे उत्पातशमनी
स्वयम् ॥
सौभाग्यं जायते तस्य परमं नात्र
संशयः ।
हुते सद्यो जयस्तस्य विघ्नं तस्य न
जायते ।
किमत्र बहुनोक्तेन सर्वसौभाग्यसंपदः
।
लभते नात्र संदेहो नान्यथा नदिते
भवेत् ॥
गृहीतो यदि वा यत्नं बालानां विविधेरपि
।
शीतं चोष्णतां याति उष्णः शीतमयो
भवेत् ॥
नान्यथा श्रुतये विद्यां यः पठेत्
कथितां मया ।
भूर्जपत्रे लिखेद्यंत्रं गोरोचनमयेन
च ।
इमां विद्यां शिरोबंधात्सर्वरक्षां
करोतु मे ।
पुरुषस्याथवा नार्या हस्ते बध्वा
विचक्षणः ।
विद्रवंति प्रणश्यंति धर्मस्तिष्ठति
नित्यशः ।
सर्वशत्रुभयं याति शीघ्रं ते च
पलायिताः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं भुवनेश्वर्यै
।
श्री ॐ भैरवाय नमो नमः ।
अथ श्रीमातंगीभेदा,
द्वाविंशाक्षरो मंत्रः ।
समुख्यायां स्वाहातो वा ॥
हरिः ॐ उच्चिष्टदेव्यै नमः ।
डाकिनी सुमुखिदेव्यै महापिशाचिनी ।
ॐ ऐं ह्रीं ठाः ठः द्वाविंशत् ॐ
चक्रीधरायाः ।
अहं रक्षां कुरु कुरु ।
सर्वबाधाहरिणी देव्यै नमो नमः ।
सर्वप्रकार बाधाशमनं अरिष्टनिवारणं
कुरु कुरु । फट् ।
श्री ॐ कुब्जिकादेव्यै ह्रीं ठः
स्वः ।
शीघ्रं अरिष्टनिवारणं कुरु कुरु ।
देवी शाबरी क्रीं ठः स्वः ।
शारीरिकं भेदाहं मायां भेदय पूर्णं
आयुः कुरु ।
हेमवती मूलरक्षां कुरु ।
चामुंडायै देव्यै नमः ।
शीघ्रं विघ्ननिवारणं सर्व वायु कफ पित्त
रक्षां कुरु ।
भूत प्रेत पिशाचान् घातय ।
जादूटोणाशमनं कुरु ।
सती सरस्वत्यै चंडिकादेव्यै गलं
विस्फोटकान्
वीक्षित्य शमनं कुरु ।
महाज्वरक्षयं कुरु स्वाहा ।
सर्वसामग्रीं भोगं सत्यं दिवसे
दिवसे
देहि देहि रक्षां कुरु कुरु ।
क्षणे क्षणे अरिष्टं निवारय ।
दिवसे दिवसे दुःखहरणं मंगलकरणं
कार्यासिद्धिं कुरु कुरु ।
हरि: ॐ श्रीरामचंद्राय नमः ।
हरिः ॐ भूर्भुवः स्वः
चंद्र तारा नवग्रह शेष नाग पृथ्वीदेव्यै
आकाशनिवासिनी सर्वारिष्टशमनं कुरु
स्वाहा ॥
आयुरारोग्यमैश्वर्यं वित्तं ज्ञानं
यशोबलम् ॥
नाभिमात्रजले स्थित्वा
सहस्त्रपरिसंख्यया ॥
जपेत्कवचमिदं नित्यं वाचां
सिद्धिर्भवेत्ततः ॥
अनेन विधिना भक्त्याकवचसिद्धिश्च जायते
॥
शतमावर्तयेद्यस्तु मुच्यते नात्र
संशयः ॥
सर्वव्याधिभयस्थाने मनसाऽस्य तु
चिंतनम् ॥
राजानो वश्यतां यांति
सर्वकामार्थसिद्धये ॥
उपरोक्त सभी पाठ/पाठों को पूरा करने
के बाद,
अपने हाथ में जल लें और कहें कि 'अनेन
यथाशक्तिपाठेन शाबरी देवी प्रियतां न मम्'। जल को पृथ्वी में ऐसे ही छोड़ दें।
॥ इति शाबरीकवचं ॥
शाबरी कवच
॥
श्रीदेवीजी(दुर्गाजी) की आरती ॥
दुर्गे दुर्घट भारी तुजविण संसारी ।
अनाथनाथे अंबे करुणा विस्तारी ।
वारी वारी जन्ममरणाते वारी ।
हारी पडलो आता संकट निवारी ॥१॥
जय देवी जय देवी महिषासुरमथिनी ।
सुरवरईश्वरवरदे तारक संजिवनी ॥धृ॥
त्रिभुवनी पाहता तुज ऐसी नाही ।
चारी श्रमले परंतु नबोलवे काही ।
साही विवाद करिता पडले प्रवाही ।
ते तू भक्तांलागी पावसि लवलाही॥ जय
देवी.॥२॥
प्रसन्न वदने प्रसन्न होसी निजदासां
।
क्लेशापासूनि सोडवि तोडी भवपाशा ।
अंबे तुजवाचून कोण पुरविल आशा ।
नरहरी तल्लीन झाला पदपंकजलेशा ॥ जय
देवी.॥३॥
शुभं भवतु ॥ इति श्रीदेवी(दुर्गाजी) आरती च शाबरीकवचम् सम्पूर्ण: ॥
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