श्रीरामरहस्योपनिषद् अध्याय २

श्रीरामरहस्योपनिषद् अध्याय २  

अथर्ववेदीय राम रहस्य उपनिषद के प्रथम अध्याय में हनुमानजी ने सनकादि ऋषियों से श्रीराम का स्वरूप, उनके अङ्ग, राम-मन्त्र का का वर्णन किया गया, अब श्रीरामरहस्योपनिषद् के अध्याय २ में हनुमानजी ने ऋषियों से श्रीराम मन्त्रों का उपदेश दिया है।

श्रीरामरहस्योपनिषद् अध्याय २

श्रीरामरहस्योपनिषत्

श्रीरामरहस्योपनिषद् द्वितीय अध्याय

सनकाद्या मुनयो हनूमन्तं पप्रच्छुः ।

आञ्जनेय महाबल तारकब्रह्मणो रामचन्द्रस्य

मन्त्रग्रामं नो ब्रूहीति ।

सनकादि ऋषियों ने श्रीहनुमान जी से पूछा- महाबली अञ्जनीनन्दन् । भगवान राम ही तारक हैं, परब्रह्म हैं। इनके मन्त्रों का उपदेश आप हम सभी के लिए करें।

हनूमान्होवाच ।

वह्निस्थं शयनं विष्णोरर्धचन्द्रविभूषितम् ।

एकाक्षरो मनुः प्रोक्तो मन्त्रराजः सुरद्रुमः।। १ ।।

हनुमान जी ने कहा- र वर्ण पर आ की मात्रा और अनुस्वार लगाने पर 'रां' यह एकाक्षर मन्त्र कल्पवृक्ष जैसा है। 

ब्रह्मा मुनिः स्याद्गायत्रं छन्दो रामोऽस्य देवता ।

दीर्घार्धेन्दुयुजाङ्गानि कुर्याद्वयात्मनो मनोः।। २ ।।

इस के ऋषि ब्रह्मा, गायत्री छन्द और राम देवता हैं। दीर्घ आ अनुस्वार और अग्नि बीज '' मिलाकर बने। इस मन्त्र का विनियोग अभीष्ट सिद्धि के लिए होता है।

बीजशक्त्यादिबीजेन इष्टार्थे विनियोजयेत् ।

सरयूतीरमन्दारवेदिकापकजासने ।। ३ ।।

श्यामं विरासनासीनं ज्ञानमुद्रोपशोभितम् ।

वामोरुन्यस्ततद्धस्तं सीतालक्ष्मणसंयुतम् ।।४।।

अवेक्षमाणमात्मानमात्मन्यमिततेजसम् ।

शुद्धस्फटिकसंकाशं केवलं मोक्षकाङ्क्षया ।। ५ ।।

सरयू तट पर मन्दार वृक्ष के नीचे वेदी पर कमलासन के ऊपर वीरासन से आसीन, ज्ञानमुद्रा से शोभित, बायें घुटने पर हाथ रखे हुए, सीता-लक्ष्मण से युक्त अमित तेजस्वी, शुद्ध स्फटिक जैसे प्रकाशित, भगवान राम हमारी ओर देख रहे हैं, यह ध्यान करते हुए, मोक्ष की ही इच्छा से इस मन्त्र का १२ लाख जप करना चाहिए। 

चिन्तयन्परमात्मानं भानुलक्षं जपेन्मनुम् ।

वह्निर्नारायणो नाड्यो जाठरः केवलोऽपि च ।। ६ ।।

भगवान राम के मन्त्र का ध्यान एवं जप परमात्मा, भानु, अग्नि, नारायण, नाद एवं कैवल्य पद के रूप में करना चाहिए। 

यक्षरो मन्त्रराजोऽयं सर्वाभीष्टप्रदस्ततः ।

एकाक्षरोक्तमृष्यादि स्यादायेन षडङ्गकम् ।। ७।।

तारमायारमानङ्गवाक्स्वबीजैश्च षड्विधः ।

त्र्यक्षरो मन्त्रराजः स्यात्सर्वाभीष्टफलप्रदः।। ८ ।।

'राम' यह दो अक्षर का मन्त्र सभी अभीष्ट को देने वाला है। एकाक्षर मन्त्र 'रां' में कह गये ऋषि आदि इसके भी हैं। षडङ्गन्यास 'रां' से ही करना चाहिए। राम के पूर्व ॐ, ह्रीं, श्री, क्लीं, ऐं, रां इन ६ बीज मन्त्रों से किसी भी एक को लगाने पर तीन अक्षरों का मन्त्र ६ प्रकार का होता है, जो सर्वाभीष्टप्रद है।

द्वयक्षराश्चन्द्र भद्रान्तो द्विविधश्चतुरक्षरः।

ऋष्यादि पूर्ववज्ज्ञेयमेतयोश्च विचक्षणैः।। ९ ।।

राम के बाद 'चन्द्र' या 'भद्र' लगाने पर चार अक्षरों का मन्त्र दो प्रकार का होता है। इन दोनों मन्त्रों (रामचन्द्र, रामभद्र) के भी ऋषि आदि पूर्ववत् हैं।

सप्रतिष्ठौ रमौ वायौ हृत्पञ्चार्णो मनुर्मतः।

विश्वामित्रऋषिः प्रोक्तः पङ्क्तिश्छन्दोऽस्य देवता ।।१०।।

रामभद्रो बीजशक्तिः प्रथमार्णमिति क्रमात् ।

भ्रूमध्ये हृदि नाभ्यूर्वोः पादयोर्विन्यसेन्मनुम् ।। ११ ।।

रा, मा, , नमः यह पञ्चाक्षर मन्त्र (रामाय नमः) हैं। इसके विश्वामित्र ऋषि, पंक्ति छन्द, रामभद्र देवता, 'रा' शक्ति है। भौहों के मध्य भाग, हृदय, नाभि, दोनों अरु, पैर में इसका षडङ्ग न्यास होता है।

षडङ्ग पूर्ववद्विद्यान्मन्त्राणैर्मनुनास्त्रकम् ।

मध्ये वनं कल्पतरोर्मूले पुष्पलतासने ।। १२।।

लक्ष्मणेन प्रगुणितमक्ष्णः कोणेन सायकम् ।

अवेक्षमाणं जानक्या कृतव्यजनमीश्वरम् ।। १३ ।।

जटाभारलसच्छीर्ष श्याम मुनिगणावृतम् ।

लक्ष्मणेन धृतच्छत्रमथवा पुष्पकोपरि ।। १४ ।।

दशास्यमथनं शान्तं ससुग्रीवविभीषणम् ।

एवं लब्ध्वा जयार्थी तु वर्णलक्षं जपेन्मनुम् ।। १५ ।।

पूर्ववत् मन्त्राक्षरों से न्यास करें। नन्दन वन के मध्य कल्प वृक्ष है। उसके नीचे पुष्पलता का आसन है। लक्ष्मण जी कनखियों से भगवान का धनुष देख रहे हैं। जानकी जी पंखा कर रही हैं। शिर पर जटा भार सुशोभित है, लक्ष्मण जी छत्र लिये हैं, मुनि मण्डली चारों ओर विराजमान है, रावणहन्ता श्यामवर्ण प्रभु, सुग्रीव और विभीषण को साथ लिये पुष्पासन पर अथवा पुष्प के विमान पर शान्तिभाव से आसीन है। विजय की कामना करने वाले को यह ध्यान करते हुए ५ लाख मन्त्र जप करना चाहिए। 

स्वकामशक्तिवाग्लक्ष्मीस्तवाद्याः पञ्चवर्णकाः ।

षडक्षरः षड्विधः स्याच्चतुर्वर्गफलप्रदः।। १६ ।।

'रामाय नमः' इससे पहले 'रां' 'क्लीं' ह्रीं' 'ऐं' 'श्री' इन बीज मन्त्रों में किसी एक को लगाने पर ६ अक्षर का मन्त्र ६ प्रकार का हो जाता है। यह धर्म अर्थ काम मोक्ष प्रदायक है।

पञ्चाशन्मातृकामन्त्रवर्णप्रत्येकपूर्वकम् ।

लक्ष्मीवाङ्मन्मथादिश्च तारादिः स्यादनेकधा ।। १७ ।।

५० मातृकाओं के वर्ण, श्रीं, ऐं, क्लीं, ॐ इनमें से किसी भी एक को रामाय नम: के पहले लगाने पर यह षडाक्षर मन्त्र अनेक प्रकार से बनता है।

श्रीमायामन्मथैकैकं बीजाद्यन्तर्गतो मनुः ।

चतुर्वर्णः स एव स्यात्षड्वर्णो वाञ्छितप्रदः।। १८ ।।

श्री, माया बीज ह्रीं, कामबीज क्लीं आदि में कोई भी बीज आदि अन्त में तथा बीच में राम चन्द्र या रामभद्र रखने पर यह चार अक्षरो वाला (रामचन्द्र रामभद्र) मन्त्र ६ अक्षरों का बनता है। (श्रीरामचन्द्र श्री आदि) यह मन्त्र अभीष्ट सिद्ध करता है। 

स्वाहान्तो हुंफडन्तो वा नत्यन्तो वा भवेदयम् ।

अष्टाविंशत्युत्तरशतभेदः षड्वर्ण ईरितः।। १९ ।।

किसी भी बीज मन्त्र के बाद 'रामाय' तथा अन्त में 'स्वाहा', या 'नमः' या 'हुं फट्' लगाकर इस षडाक्षर मन्त्र के एक सौ अट्ठाइस भेद बन जाते हैं।

ब्रह्मा संमोहन शक्तिर्दक्षिणामूर्तिरेव च ।

अगस्त्यश्च शिवः प्रोक्ता मुनयोऽनुक्रमादिमे ।। २० ।।

ब्रह्मा, सम्मोहन शक्ति, दक्षिणामूर्ति अगस्त्य, शिव इन मन्त्रों के क्रमश: मुनि हैं। ।।२०।।

छन्दो गायत्रसंज्ञं च श्रीरामश्चैव देवता ।

अथवा कामबीजादेर्विश्वामित्रो मुनिर्मनोः।। २१ ।।

छन्द गायत्री, श्रीराम देवता है। अथवा 'क्लीं' जिसके आदि में है।। उन मन्त्रों के (क्लीं रामाय नम: आदि के) विश्वामित्र ऋषि हैं।

छन्दो देव्यादिगायत्री रामभद्रोऽस्य देवता ।

बीजशक्ती यथापूर्वं षड्वर्णान्विन्यसेत्क्रमात् ।। २२ ।।

आदि गायत्री छन्द है, रामभद्र देवता हैं, बीज और शक्ति पूर्ववत् हैं। इस प्रकार षडाक्षर मन्त्रों का एक एक अक्षर से षडङ्गन्यास होता है। 

ब्रह्मरन्ध्रे भ्रुवोर्मध्ये हन्नाभ्यूरुषु पादयोः।

बीजैः षड्दीर्घयुक्तैर्वा मन्त्राणवा षडङ्गकम् ।। २३ ।।

ब्रह्मरन्ध्र, भ्रूमध्य, हृदय, नाभि, घुटने, पैर इन ६ अंगो में मन्त्र के प्रत्येक वर्ण में दीर्घ आं लगाकर 'रां+रां+ मां+यां+नां+ मां' या प्रथम के बीजाक्षर (रां ह्रीं आदि) से षडङ्गन्यास होता है।

कालाम्भोधरकान्तिकान्तमनिशं वीरासनाध्यासितं

मुद्रां ज्ञानमयीं दधानमपरं हस्तांबुजं जानुनि ।

सीतां पार्श्वगतां सरोरुहकरां विद्युन्निभां राघवं

पश्यन्तं मुकुटाङ्गदादिविविधाकल्पोज्ज्वलाङ्गं भजे ।। २४ ।।

श्याम वर्ण मेघ की कान्ति वाले, नित्य सुन्दर, वीरासन से आसीन, ज्ञानमुद्रा धारी, घुटने पर कर कमल रखे, मुकुट-बाजूबन्द आदि विविध अलङ्करण युक्त श्रीरामचन्द्र जी प्रकाशित होते हुए अङ्गों वाले हैं, श्री सीता जी इनके पास हाथ में कमल लिये, विद्युत छटा सम्पन्न तथा प्रभु से देखी जाती हुयी विराज रही है । मैं इन प्रभु का भजन करता हूँ।

श्रीरामश्चन्द्रभद्रान्तो उन्तो नतियुतो द्विधा ।

सप्ताक्षरो मन्त्रराजः सर्वकामफलप्रदः।। २५ ।।

रामचन्द्राय तथा रामभद्राय के बाद नम: लगाने से सात अक्षरों का मन्त्र दो प्रकार का होता है जो सभी कामनाओं का पूरक है।

तारादिसहितः सोऽपि द्विविधोऽष्टाक्षरो मतः।

तारं रामश्चतुर्थ्यतः क्रोडास्त्रं वह्नितल्पगा ।। २६ ।।

यदि इसी से पूर्व '' लगाया जाय तो यह दोनों अष्टाक्षर मन्त्र हो जाते हैं। ॐ रामाय हुं फट् स्वाहा यह भी अष्टाक्षर मन्त्र है। (ट् अर्धमात्रिक है अतः गणना में नहीं आता)।

अष्टार्णोऽयं परो मन्त्री ऋष्यादिः स्यात्षडणवत् ।

पुनरष्टाक्षरस्याथ राम एव ऋषिः स्मृतः।। २७ ।।

गायत्री छन्द इत्यस्य देवता राम एव च ।

तारं श्रीबीजयुग्मं च बीजशक्त्यादयो मताः।। २८ ।।

षडाक्षर के समान इसके भी ऋषि आदि हैं। दूसरे अष्टाक्षर के राम ऋषि, गायत्री छन्द, राम ही देवता, ॐ बीज तथा श्रीं श्रीं शक्ति है।

षडङ्ग च ततः कुर्यान्मन्त्राणैरेव बुद्धिमान् ।

तारं श्रीबीजयुग्मं च रामाय नम उच्चरेत् ।। २९ ।।

बुद्धिमान् को मन्त्राक्षरों से षडङ्गन्यास करना चाहिए (ॐ हृदयाय नमः, श्रीं शिरसे स्वाहा, रामाय शिवाये वषट्, नमः कवचाय हुम्, श्री नेत्राभ्यां वौषट्, ॐ अस्याय फट् कहना चाहिए)।

ग्लौंमों बीजं वदेन्मायां हृद्रामाय पुनश्च ताम् ।

शिवोमाराममन्त्रोऽयं वस्वर्णस्तु वसुप्रदः।। ३० ।।

ग्लौं ॐ ह्रीं नम: रामाय ग्लौं यह नवाक्षर मन्त्र शिव उमा राम बीजों से युक्त है, यह धन प्रदायक मन्त्र है।

ऋषिः सदाशिवः प्रोक्तो गायत्रं छन्द उच्यते ।

शिवोमारामचन्द्रोऽत्र देवता परिकीर्तितः।। ३१ ।।

इसके ऋषि सदाशिव, गायत्री छन्द, शिव उमा रामचन्द्र देवता हैं ।

दीर्घया माययाङ्गानि तारपञ्चाणयुक्तया ।

रामं त्रिनेत्रं सोमार्धधारिणं शूलिनं परम् ।

भस्मोद्धूलितसर्वाङ्ग कपर्दिनमुपास्महे ।। ३२ ।।

इसमें ॐ से शिव, ह्रीं से उमा तथा नमः रामाय से राम की उपासना है। मैं श्रीराम, त्रिनेत्र, अर्घचन्द्रधारी, त्रिशूलधारी, सर्वाङ्ग में भस्म रमाये भगवान् शिव की उपासना करता हूँ।

रामाभिरामां सौन्दर्यसीमां सोमावतंसिकाम् ।

पाशाङ्कुशधनुर्बाणधरां ध्यायेत्रिलोचनाम् ।। ३३ ।।

सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी, सौन्दर्य सीमा, चन्द्र धारिणी, पाश अङ्कुशधनुष-बाण धारिणी, त्रिनयना भगवती का मैं ध्यान करता हूँ।

ध्यायन्नेवं वर्णलक्षं जपतर्पणतत्परः।

बिल्वपत्रैः फलैः पुष्पैस्तिलाज्यैः पङ्कजैर्खनेत् ।। ३४ ।।

इस प्रकार ध्यान करते हुए मन्त्र के वर्गों की संख्या के लाख गुना जप कर, (दशांश) तर्पण कर, बिल्वपत्र, फल, कमल, पुष्प, तिल, घी से हवन (संख्यानुसार) करना चाहिए।

स्वयमायान्ति निधयः सिद्धयश्च सुरेप्सिताः।

पुनरष्टाक्षरस्याथ ब्रह्मगायत्रराघवाः।। ३५ ।।

ऋष्यादयस्तु विज्ञेयाः श्रीबीजं मम शक्तिकम् ।

तत्प्रीत्यै विनियोगश्च मन्त्राणैरङ्गकल्पना ।। ३६ ।।

इस से सारी निधि और सिद्धि प्राप्त होती है जिन्हें देवगण चाहते हैं। श्रीरामः शरणं मम इस अष्टाक्षर मन्त्र के ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छन्द और राघव देवता है। श्री बीज है, 'मम' शक्ति है। श्रीराम प्रीत्यर्थ मन्त्र का विनियोग होता है। मन्त्र के अक्षरों से न्यास करना चाहिए।

केयूराङ्गदकङ्कणैर्मणिगतैर्विद्योतमानं सदा रामं

पार्वणचन्द्रकोटिसदृशच्छत्रेण वै राजितम् ।

हेमस्तम्भसहस्रषोडशयुते मध्ये महामण्डपे देवेशं

भरतादिभिः परिवृतं रामं भजे श्यामलम् ।। ३७ ।।

कपूर, अङ्गद, कङ्कण के मणियुक्त आभूषणों से प्रकाशित करोड़ों पूर्ण चन्द्र तुल्य छत्र से शोभित, सोलह सहस्र स्वर्ण खम्मयुक्त महामण्डप में भरत आदि से घिरे, श्यामवर्ण श्रीराम का मैं भजन करता हूँ।

किं मन्त्रैर्बहुभिर्विनश्वरफलैरायाससाध्यैर्वृथा

किंचिल्लोभवितानमात्रविफलैः संसारदुःखावहैः।

एक: सन्नपि सर्वमन्त्रफलदो लोभादिदोषोज्झितः

श्रीरामः शरणं ममेति सततं मन्त्रोऽयमष्टाक्षरः।। ३८ ।।

विनाशीफल देने वाले, परिश्रम साध्य, अर्थ लोभ रूप फल देने वाले, संसार के दुःखों से पूर्ण, बहुत मन्त्रों से क्या लाभ? समस्त मन्त्रों का फल देने वाला, लोभ आदि दोष का निवारक एक अष्टाक्षर मन्त्र श्रीराम शरणं मम ही पर्याप्त है।

एवमष्टाक्षरः सम्यक् सप्तधा परिकीर्तितः।

रामसप्ताक्षरो मन्त्र आद्यन्ते तारसंयुतः।। ३९ ।।

यह अष्टाक्षर भी बीज भेद से सात प्रकार का है। रामः शरणं मम के आदि अन्त में ॐ लगाने पर नवाक्षर मन्त्र बन जाता है। षडाक्षर जैसा ही इसका भी न्यास है।

नवार्णो मन्त्रराजः स्याच्छेषं षड्वर्णवन्यसेत् ।

जानकीवल्लभं ङन्तं वह्नेर्जायाहुमादिकम् ।। ४० ।।

यह नवाक्षर मन्त्रराज सर्वाभीष्टफलप्रद है। षडाक्षर जैसा ही इसका भी न्यास है। 'जानकी वल्लभाय स्वाहा हुम्' यह दस अक्षरों का मन्त्र सर्वाभीष्टफलप्रद है।

दशाक्षरोऽयं मन्त्र: स्यात्सर्वाभीष्टफलप्रदः।

दशाक्षरस्य मन्त्रस्य वसिष्ठोऽस्य ऋषिविराट् ।। ४१ ।।

छन्दोऽस्य देवता रामः सीतापाणिपरिग्रहः।

आद्यो बीजं द्विठः शक्तिः कामेनाङ्गक्रिया मता।। ४२ ।।

इस दशाक्षर मन्त्र के वशिष्ठ ऋषि, विराट् छन्द, राम देवता, जानकी वल्लभाय बीज, स्वाहा शक्ति है, कामबीज क्लीं से इसका न्यास किया जाता है।

शिरोललाटभ्रूमध्ये तालुकर्णेषु हृद्यपि ।

नाम्भूरुजानुपादेषु दशार्णान्विन्यसेन्मनोः।। ४३ ।।

मन्त्र के दस अक्षरों का क्रमश: शिर-ललाट-भ्रूमध्य-तालु-दोनों कान-हृदय-नाभि-दोनों घुटनों (दोनों पैर) में न्यास होता है।

अयोध्यानगरे रत्नचित्रे सौवर्णमण्डपे ।

मन्दारपुष्पैराबद्धविताने तोरणाञ्चिते ।। ४४ ।।

अयोध्यापुरी में अनेक रत्नों से युक्त सुवर्णमण्डप है, वहां मन्दार पुष्पों से मण्डप सजाया गया है, तोरण द्वार सजा है।

सिंहासने समासीनं पुष्पकोपरि राघवम् ।

रक्षोभिर्हरिभिर्देवैर्दिव्ययानगतैः शुभैः।। ४५ ।।

पुष्प के सिंहासन पर भगवान राम आसीन हैं। दिव्य विमानों पर राक्षस-श्रीविष्णु-देवगण बैठे हुये स्तुतिगान कर रहे हैं।

संस्तूयमानं मुनिभिः प्रह्वश्च परिसेवितम् ।

सीतालङ्कृतवामाझं लक्ष्मणेनोपसेवितम् ।। ४६ ।।

मुनिजन, शरणागत जनों के साथ सेवा में तत्पर हैं, वाम भाग सीता जी से अलङ्कृत है, लक्ष्मण जी सेवा कर रहे हैं।

श्यामं प्रसन्नवदनं सर्वाभरणभूषितम् ।

ध्यायन्नेवं जपेन्मन्त्रं वर्णलक्षमनन्यधीः।। ४७ ।।

श्याम वर्ण, प्रसन्नमुख प्रभु सभी अलङ्करणों से विभूषित हैं। इस प्रकार अन्य चिन्तन से विरत ध्यान करते हुए मन्त्र वर्ण संख्यानुसार १० लाख मन्त्र जप करना चाहिए।

रामं उन्तं धनुष्पाणयेऽन्तः स्याद्वह्निसुन्दरी ।

दशाक्षरोऽयं मन्त्रः स्यान्मुनिर्ब्रह्मा विराट् स्मृतः।। ४८ ।।

छन्दस्तु देवता प्रोक्तो रामो राक्षसमर्दनः।

शेषं तु पूर्ववत्कुर्याच्चापबाणधरं स्मरेत् ।। ४९ ।।

रामाय धनुष्पाणये स्वाहा यह दस अक्षरों का मन्त्र है। इसके ऋषि ब्रह्मा, विराट, छन्द और चापवाणधर राम देवता हैं। धनुर्धर राम का ध्यान इसमें होता है, न्याय आदि पूर्ववत् ही है।

तारमायारमानङ्गवाक्स्वबीजैश्च षड्विधः।

दशार्णो मन्त्रराजः स्यादृद्रवर्णात्मको मनुः।। ५० ।।

यही दशाक्षर मन्त्र ११ वर्णों का हो जाता है जब उसमें प्रारम्भ में ॐ ह्रीं, श्री, क्लीं, ऐं, रां में से कोई भी एक बीज मन्त्र लगाया जाता है। इस एकादशाक्षर मन्त्र का ६ प्रकार का रूप हो जाता है।

शेषं षडणवज्ज्ञेयं न्यासध्यानादिकं बुधैः।

द्वादशाक्षरमन्त्रस्य श्रीराम ऋषिरुच्यते ।। ५१ ।।

जगती छन्द इत्युक्तं श्रीरामो देवता मतः।

प्रणवो बीजमित्युक्त: क्लीं शक्तिहीं च कीलकम् ।। ५२ ।।

मन्त्रेणाङ्गानि विन्यस्य शिष्टं पूर्ववदाचरेत् ।

तारं मायां समुच्चार्य भरताग्रज इत्यपि ।। ५३ ।।

न्यास और ध्यान तो इसका भी षडक्षर जैसा ही है। (1) ॐ ह्रीं भरताग्रज राम क्लीं स्वाहा (2)- ॐ रामाय धनुष्पाणये स्वाहा यह १२ अक्षरों का द्वादशाक्षर मन्त्र है। इसके श्रीराम ऋषि हैं, जगती छन्द है, श्रीराम देवता हैं, प्रणव (ॐ) बीज है, क्लीं शक्ति, और ह्रीं कीलक है। मन्त्र से अङ्गन्यास करे, शेष पूर्ववत् है।

रामं क्लीं वह्निजायान्तं मन्त्रोयं द्वादशाक्षरः।

ॐ हृद्भगवते रामचन्द्रभद्रौ च ङ्युतौ ।। ५४ ।।

अर्कार्णो द्विविधोऽप्यस्य ऋषिध्यानादिपूर्ववत् ।

छन्दस्तु जगती चैव मन्त्राणैरङ्गकल्पना ।। ५५ ।।

'ॐ नमो भगवते राम चन्द्राय' तथा 'ॐ नमो भगवते रामभद्राय' यह दोनों भी द्वादशाक्षर मन्त्र हैं। ऋषि और ध्यान इनके पूर्ववत् हैं। छन्द जगती है। मन्त्र के वर्षों से अङ्गन्यास करना चाहिए। 

श्रीरामेति पदं चोक्त्वा जयराम ततः परम् ।

जयद्वयं वदेत्प्राज्ञो रामेति मनराजकः।। ५६ ।।

त्रयोदशार्ण ऋष्यादि पूर्ववत्सर्वकामदः।

पदद्वयद्विरावृत्तेरङ्ग ध्यानं दशार्णवत् ।। ५७ ।।

'श्रीराम जय राम जय जय राम' यह तेरह वर्ण का सर्वाभीष्टप्रद मन्त्र है। ध्यान आदि पूर्ववत् है। मन्त्र के ६ शब्दों से अङ्गन्यास करन्यास किया जाता है। जो दशाक्षर जैसा ही है।

तारादिसहितः सोऽपि स चतुर्दशवर्णकः।

त्रयोदशार्णमुच्चार्य पश्चाद्रामेति योजयेत् ।। ५८ ।।

इसी में प्रारम्भ में ॐ लगाने पर चौदह अक्षरों का मन्त्र होता है। यदि तेरह अक्षरों वाला मन्त्र कहकर बाद में 'राम' जोड़ा जाय तो १५ अक्षरों का मन्त्र हो जाता है। यह मन्त्र तो साधकों के लिए कल्पवृक्ष ही है। ।।५८॥

स वै पञ्चदशार्णस्तु जपतां कल्पभूरुहः।

नमश्च सीतापतये रामायेति हनद्वयम् ।। ५९ ।।

ततस्तु कवचास्त्रान्तः षोडशाक्षर ईरितः।

तस्यागस्त्यऋषिश्छन्दो बृहती देवता च सः।। ६० ।।

रां बीजं शक्तिरस्त्रं च कीलकं हुमितीरितम् ।

द्विपञ्चत्रिचतुर्वणः सर्वैरङ्गं न्यसेत्क्रमात् ।। ६१ ।।

'नम: सीतापतये रामाय हन हन हुं फट्' यह १६ अक्षरो का मन्त्र कहा गया है। इस के ऋषि अगस्त्य, वृहती छन्द, राम देवता, रां बीज, फट् शक्ति तथा हं कीलक हैं। दो-पांच तीन-चार वर्णों वाले मन्त्र के शब्दों से न्यास करना चाहिए। नमः हृदयाय नमः। सीतापतये शिरसे स्वाहा। रामाय शिखायै वषट्। हन हन कवचायहुं। हन हन नेत्राभ्यांवौषट्। हन हुं फट् अस्त्राय फट् ।

तारादिसहित: सोऽपि मन्त्रः सप्तदशाक्षरः।

तारं नमो भगवते रामं ङन्तं महा ततः।। ६२ ।।

पुरुषाय पदं पश्चाद्धृदन्तोऽष्टादशाक्षरः।

विश्वामित्रो मुनिश्छन्दो गायत्रं देवता च सः।। ६३ ।।

पूर्वोक्त मन्त्र ॐ सहित होने पर १७ सत्रह अक्षरों का होता है। ॐ नमो भगवते रामाय महापुरुषाय नमः यह १८ अक्षरों का मन्त्र है। इसके विश्वामित्र ऋषि, गायत्री छन्द, राम देवता हैं।

कामादिसहित: सोऽपि मन्त्र एकोनविंशकः।

तारं नामो भगवते रामायेति पदं वदेत् ।। ६४ ।।

सर्वशब्दं समुच्चार्य सौभाग्यं देहि मे वदेत् ।

वह्निजायां तथोच्चार्य मन्त्री विशार्णको मतः।। ६५ ।।

इसी मन्त्र में क्लीं लगाने पर १९ अक्षरों का मन्त्र बनता है। 'ॐ नमो भगवते रामाय सर्व सौभाग्यं देहि में स्वाहा' यह बीस अक्षरों मन्त्र है।

तारं नमो भगवते रामाय सकलं वदेत् ।

आपन्निवारणायेति वह्निजायां ततो वदेत् ।। ६६ ।।

'ॐ नमो भगवते रामाय सकलापन्निवारणाय स्वाहा' यह (२१) इक्कीस अक्षरों का मन्त्र है, यह सर्वाभीष्ट फल देने वाला है। ॥६६॥

एकविंशार्णको मन्त्रः सर्वाभीष्टफलप्रदः।

तारं रमा स्वबीजं च ततो दाशरथाय च ।। ६७ ।।

ततः सीतावल्लभाय सर्वाभीष्टपदं वदेत् ।

ततो दाय हृदन्तोऽयं मन्त्रो द्वाविंशदक्षरः।। ६८ ।।

'ॐ श्रीं रां दाशरथाय सीतावल्लभाय सर्वाभीष्टदाय नमः' यह बाइस (२२) अक्षरों का मन्त्र है। यह मन्त्र हृदय के सर्व फल देने वाला है ।।६७-६८।।

तारं नमो भगवते वीररामाय संवदेत् ।

कल शत्रून् हन द्वन्द्वं वह्निजायां ततो वदेत् ।। ६९ ।।

'ॐ नमो भगवते वीरंरामाय सकलशत्रून् हन हन स्वाहा' यह २३ तेईस अक्षरों का शत्रुनाशक मन्त्र है। ।।६९॥

त्रयोविंशाक्षरोमन्त्रः सर्वशत्रुनिबर्हणः।

विश्वामित्रो मुनिः प्रोक्तो गायत्रीछन्द उच्यते ।। ७० ।।

देवता वीररामोऽसौ बीजाद्याः पूर्ववन्मताः।

मूलमन्त्रविभागेन न्यासान्कृत्वा विचक्षणः।। ७१ ।।

इस २३ तेईस अक्षरों के शत्रुनाशक मन्त्र के विश्वामित्र ऋषि, गायत्री छन्द, वीरराम देवता हैं, बीज आदि पूर्ववत् है। मूलमन्त्र के शब्दों को विभाजित कर न्यास करना चाहिए।

शरं धनुषि संन्धाय तिष्ठन्तं रावणोन्मुखम् ।

वज्रपाणिं रथारूढं रामं ध्यात्वा जपेन्मनुम् ।। ७२ ।।

धनुष पर बाण सन्धान करते, रावण के सामने स्थित रथारूढ़ राम का ध्यान का मन्त्र जप करें। 

तारं नमो भगवते श्रीरामाय पदं वदेत् ।

तारकब्रह्मणे चोक्त्वा मां तारय पदं वदेत् ।। ७३ ।।

नमस्तारात्मको मन्त्रश्चतुर्विंशतिवर्णकः।

बीजादिकं यथा पूर्वं सर्वं कुर्यात्षडणवत् ।। ७४ ।।

ॐ नमो भगवते श्री रामाय तारकब्रह्मणे मां तारय नमः ॐ यह २४ अक्षरों का मन्त्र है। षडाक्षर जैसा इसका बीज आदि सब है।

कामस्तारो नतिश्चैव ततो भगवतेपदम् ।

रामचन्द्राय चोच्चार्य सकलेति पदं वदेत् ।। ७५ ।।

जनवश्यकरायेति स्वाहा कामात्मको मनुः।

सर्ववश्यकरो मन्त्रः पञ्चविंशतिवर्णकः।। ७६ ।।

'क्लीं ॐ नमो भगवते रामचन्दाय सकलजनवश्यकराय स्वाहा' यह २५ पचीस अक्षरों का मन्त्र है, यह वशीकरण मन्त्र सभी को वश में कर लेता है।

आदौ तारेण संयुक्तो मन्त्रः षड्विंशदक्षरः।

अन्तेऽपि तारसंयुक्तः सप्तविंशतिवर्णकः।। ७७ ।।

इसी में पहले ॐ लगाने पर २६ अक्षर तथा बाद में भी ॐ लगाने पर २७ अक्षर हो जाते हैं।

तारं नमो भगवते रक्षोघ्नविशदाय च ।

सर्वविघ्नान्त्समुच्चार्य निवारय पदद्वयम् ।। ७८ ।।

स्वाहान्तो मन्त्रराजोऽयमष्टाविंशतिवर्णकः।

अन्ते तारेण संयुक्त एकोनत्रिंशदक्षरः।। ७९ ।।

'ॐ नमो भगवते रक्षोघ्नविशदाय सर्वविघ्नान्त्समुच्चार्य निवारय स्वाहा' यह २८ अट्ठाइस अक्षरों का मन्त्र है। इसी में अन्त में '' लगाने पर २९ उन्तीस अक्षरों का मन्त्र हो जाता है।

आदौ स्वबीजसंयुक्तस्त्रिंशद्वर्णात्मको मनुः ।

अन्तेऽपि तेन संयुक्त एकत्रिंशात्मकः स्मृतः।। ८० ।।

पहले इसी मन्त्र में 'रां' लगा देने से तीस अक्षरों का मन्त्र बनता है। और यदि अन्त में भी 'रां' लगाया जाय तो ३१ इकतीस अक्षरों वाला मन्त्र हो जाता है।

रामभद्र महेश्वास रघुवीर नृपोत्तम ।

भो दशास्यान्तकास्माकं श्रियं दापय देहि मे ।। ८१ ।।

आनुष्टुभ ऋषी रामश्छन्दोऽनुष्टुप्स देवता ।

रां बीजमस्य यं शक्तिरिष्टार्थे विनियोजयेत् ।। ८२ ।।

'रामभद्र महेष्वास रघुवीर नृपोत्तम भो दशस्यान्तकास्माकं श्रियं दापय देहि मे ' यह ३२ बत्तीस अक्षरों का मन्त्र है। इसके आनुष्टभ ऋषि, अनुष्टुप छन्द और राम देवता हैं। 'रां' बीज, 'यं' शक्ति है, इष्ट प्राप्ति में इसका विनियोग होता है। 

पादं हृदि च विन्यस्य पादं शिरसि विन्यसेत् ।

शिखायां पञ्चभिय॑स्य त्रिवर्णैः कवचं न्यसेत् ।। ८३ ।।

नेत्रयोः पञ्चवर्णैश्च दापयेत्यस्त्रमुच्यते ।

चापबाणधरं श्यामं ससुग्रीवबिभीषणम् ।। ८४ ।।

हत्वा रावणमायान्तं कृतत्रैलोक्यरक्षणम् ।

रामभद्रं हृदि ध्यात्वा दशलक्षं जपेन्मनुम् ।। ८५ ।।

मन्त्र के प्रथम चरण से हृदय, दूसरे से शिर, और फिर आगे के पांच वर्णों (भोदशास्यान्त) से शिखा, आगे के तीन वर्णों के कवच (कवचामहुम्), फिर पांच वर्णों (क्रियं दापय) से अस्त्र न्यास करना चाहिए। धनुष बाणधारी, सुग्रीव विभीषण सहित, त्रैलोक्यरक्षक श्रीरामभद्र का ध्यान करें जिन्होंने सम्मुख आये रावण का संहार किया। ध्यान कर उक्त मन्त्र का दस लाख जप करना चाहिए।

वदेद्दाशरथायेति विद्महेति पदं ततः।

सीतापदं समुद्धत्य वल्लभाय ततो वदेत् ।। ८६ ।।

धीमहीति वदेत्तन्नो रामश्चापि प्रचोदयात् ।

तारादिरेषा गायत्री मुक्तिमेव प्रयच्छति ।। ८७ ।।

इस मन्त्र से परम पद, समृद्धि एवं श्रीसीताराम पद प्राप्त होता है । 'ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्भाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात्' यही राम गायत्री है, यह मुक्ति प्रदान करने वाला मन्त्र है।

मायादिरपि वैदुष्टयं रामादिश्च श्रिय:पदम् ।

मदनेनापि संयुक्तः स मोहयति मेदिनीम् ।। ८८ ।।

इसी मन्त्र में ह्रीं क्लीं पहले लगाया जाय तथा राम: से पहले 'श्री' लगाया जाय तो यह सम्मोहन मन्त्र हो जाता है, सारी पृथिवी के लोगों को मोहित कर देता है।

पञ्च त्रीणि षडणैश्च त्रीणि चत्वारि वर्णकैः।

चत्वारि च चतुर्वर्णैरङ्गन्यासं प्रकल्पयेत् ।। ८९ ।।

क्रमश: मन्त्र के पांच (दाशरथाय), तीन (विद्महे), छ: (सीतावल्लभाय), तीन (धीमहि), चार (तन्नो राम:), चार (प्रचोदयात्) अक्षरों से अङ्गन्यास कर न्यास करना चाहिए। 

बीजध्यानादिकं सर्वं कुर्यात्षड्वर्णवत्क्रमात् ।

तारं नमो भगवते चतुर्थ्या रघुनन्दनम् ।। ९० ।।

रक्षोघ्नविशदं तद्वन्मधुरेति वदेत्ततः।

प्रसन्नवदनं उन्तं वदेदमिततेजसे ।। ९१ ।।

बलरामौ चतुर्थ्यन्तौ विष्णुं ङन्तं नतिस्ततः।

प्रोक्तो मालामनुः सप्तचत्वारिंशद्भिरक्षरैः।। ९२ ।।

बीज-ध्यान आदि इसका भी षडाक्षर जैसा ही है। ४७ सैंतालीस अक्षरों का राममन्त्र इस प्रकार है 'ॐ नमो भगवते रघुनन्दनाय रक्षोघ्नविशदाय मधुराय प्रसन्नवदनाय अमिततेजसे बलरामाय विष्णवे नम:'

ऋषिश्छन्दो देवतादि ब्रह्मानुष्टुभराघवाः।

सप्तर्तुसप्तदश षड्द्रसंख्यैः षडङ्गकम् ।। ९३ ।।

इसके ब्रह्मा ऋषि, अनष्टप छन्द, राघव देवता हैं। मन्त्र के क्रमश: सात-छ:-सात-दस-छः तथा ग्यारह अक्षरो से अङ्गन्यासकरन्यास होता है। 

ध्यानं दशाक्षरं प्रोक्तं लक्षमेकं जपेन्मनुम् ।

श्रियं सीतां चतुर्थ्यन्तां स्वाहान्तोऽयं षडक्षरः।। ९४ ।।

दशाक्षर मन्त्र में कहा गया ध्यान 'श्लोक ४४ से ४६/2' इसका भी किया जाता है। 'श्री सीतायै स्वाहा' यह षडाक्षर मन्त्र है। मन्त्र भी की जप संख्या एक लाख है।

जनकोऽस्य ऋषिश्छन्दो गायत्री देवता मनोः।

सीता भगवती प्रोक्ता श्रीं बीजं नतिशक्तिकम ।। ९५ ।।

कीलं सीता चतुर्थ्यन्तमिष्टार्थे विनियोजयेत् ।

दीर्घस्वरयुताद्येन षडङ्गानि प्रकल्पयेत् ।। ९६ ।।

'श्रीं सीतायै नमः' यह षडाक्षर मन्त्र है। इस मन्त्र के जनक ऋषि, गायत्री छन्द तथा सीता भगवती देवता हैं। श्रीं बीज है, नमः शक्ति है, 'सीतायै' कीलक है, इष्ट सिद्धि में विनियोग होता है। 'श्रीं' इस बीज मन्त्र से षडङ्गन्यास होता है। 

स्वर्णाभामम्बुजकरां रामालोकनतत्पराम् ।

ध्यायेत्षट्कोणमध्यस्थरामाङ्कोपरि शोभिताम् ।। ९७ ।।

सुवर्ण की आभावाली, हाथ में कमल लिये, श्रीराम के दर्शन में तत्पर, षट्कोण के मध्य स्थित श्रीराम के अङ्क में विराजमान सीताजी का ध्यान करता हूँ (यह मन्त्र का ध्यान है) ।

लकारं तु समुद्धत्य लक्ष्मणाय नमोन्तकः।

अगस्त्यऋषिरस्याथ गायत्रं छन्द उच्यते ।। ९८ ।।

लक्ष्मणो देवता प्रोक्तो लं बीजं शक्तिरस्य हि ।

नमस्तु विनियोगो हि पुरुषार्थ चतुष्टये ।। ९९ ।।

लक्ष्मण जी का मन्त्र है 'लं लक्ष्मणाय नम:'। इसके अगस्त्य ऋषि, गायत्री छन्द, लक्ष्मण देवता, लं बीज और 'नम:' शक्ति है। पुरुषार्थ चतुष्टय में इस मन्त्र का विनियोग होता है।

दीर्घभाजा स्वबीजेन षडङ्गानि प्रकल्पयेत् ।

द्विभुजं स्वर्णरुचिरतर्नु पद्मनिभेक्षणम् ।। १०० ।।

धनुर्बाणधरं देवं रामाराधनतत्परम् ।

भकारं तु समुद्धृत्य भरताय नमोन्तकः।। १०१ ।।

'लां' इस बीजमन्त्र से लं बीज में आ लगाकर इसका षडङ्गन्यास सम्पन्न होता है। (लां हृदयाय नमः, लां शिरसे स्वाहा आदि)। ध्यान मन्त्र यह है- दो भुजा वाले, स्वर्ण की कान्ति युक्त सुन्दर शरीर वाले, कमलवत् नेत्रों से सुशोभित, श्रीराम की सेवा में तत्पर लक्ष्मण जी का ध्यान करता हूँ।

भरत जी का मन्त्र है-'भं भरताय नमः'

अगस्त्यऋषिरस्याथ शेषं पूर्ववदाचरेत् ।

भरतं श्यामलं शान्तं रामसेवापरायणम् ।। १०२ ।।

इसके अगस्त्य ऋषि आदि पूर्ववत् हैं। श्यामल वर्ण, सुन्दर, शान्त, श्रीराम की सेवा में तत्पर, धनुष बाणधारी, कैकेयीपुत्र वीर भरत जी को मैं प्रणाम करता हूँ (यह ध्यान है।) ।

धनर्बाणधरं वीरं कैकेयीतनयं भजे ।

शं बीजं तु समुद्धत्य शत्रुघ्नाय नमोन्तकः।

ऋष्यादयो यथापूर्वं विनियोगोऽरिनिग्रहे ।। १०३ ।।

'शं शत्रुघ्नाय नम:' यह शत्रुघ्नजी का मन्त्र है। वे कैकेयी पुत्र हैं, एवं शत्रु विजय में इसका विनियोग होता है । ऋषि आदि पूर्ववत् है।

द्विभुजं स्वर्णवर्णाभं रामसेवापरायणम् ।

लवणासुरहन्तारं सुमित्रातनयं भजे ।। १०४ ।।

द्विभुज, स्वर्ण के वर्ण वाले (गौर वर्ण), राम सेवा परायण, लवणासुर हन्ता, सुमित्रानन्दन लक्ष्मण जी का मैं भजन करता हूँ। 

हं हनुमांश्चतुर्थ्यन्तं हृदन्तो मन्त्रराजकः।

रामचन्द्र ऋषिः प्रोक्तो योजयेत्पूर्ववत्क्रमात् ।। १०५ ।।

द्विभुजं स्वर्णवर्णाभं रामसेवापरायणम् ।

मौञ्जीकौपीनसहितं मां ध्यायेद्रामसेवकम् ।। १०६ ।।

'' हनुमते नम:' यह मन्त्रराज हनुमान जी का है। रामचन्द्र ऋषि हैं। शेष पूर्ववत् है। (ध्यान) द्विभुज, स्वर्ण की कान्ति युक्त वर्ण वाले, राम सेवा परायण, मौञ्जी और कौपीन धारी मैं हनुमान का ध्यान राम जी के सेवक रूप में करता हूँ।

इति श्रीरामरहस्योपनिषदि द्वितीयोऽध्यायः।। 2 ।।

श्रीरामरहस्योपनिषद् द्वितीय अध्याय पूर्ण हुआ।

शेष जारी...आगे पढ़ें- श्रीराम रहस्य उपनिषद तृतीयोऽध्याय:

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