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अग्निपुराण अध्याय ९९

अग्निपुराण अध्याय ९९

अग्निपुराण अध्याय ९९ में सूर्यदेव की स्थापना की विधि का वर्णन है।

अग्निपुराण अध्याय ९९

अग्निपुराणम् एकोनशततमोऽध्यायः

Agni puran chapter 99

अग्निपुराण निन्यानबेवाँ अध्याय- सूर्य स्थापना विधि

अग्नि पुराण अध्याय ९९          

अग्निपुराणम् अध्यायः ९९ – सूर्यप्रतिष्ठाकथनं

अथ एकोनशततमोऽध्यायः

ईश्वर उवाच

वक्ष्ये सूर्यप्रतिष्ठाञ्च पूर्ववन्मण्डपादिकं ।

स्नानादिकञ्च सम्याद्य पूर्वोक्तविधिना ततः ॥१॥

विद्यामासनशय्यायां साङ्गं विन्यस्य भास्करं ।

त्रितत्त्वं विन्यसेत्तत्र सस्वरं खादिपञ्चकं ॥२॥

भगवान् शिव बोले- स्कन्द ! अब मैं सूर्यदेव की प्रतिष्ठा का वर्णन करूंगा। पूर्ववत् मण्डप - निर्माण और स्नान आदि कार्य का सम्पादन करके, पूर्वोक्त विधि से विद्या तथा साङ्ग सूर्यदेव का आसन – शय्या में न्यास करके त्रितत्त्व का, ईश्वर का तथा आकाशादि पाँच भूतों का न्यास करे ॥ १-२ ॥

शुद्ध्यादि पूर्ववत्कृत्वा पिण्डीं संशोध्य पूर्ववत् ।

सदेशपदपर्यन्तं विन्यस्य तत्त्वपञ्चकं ॥३॥

शक्त्या च सर्वतोमुख्या संस्थाप्य विधिवततः ।

स्वाणुना विधिवत्सूर्यं शक्त्यन्तं स्थापयेद्गुरुः ॥४॥

पूर्ववत् शुद्धि आदि करके पिण्डी का शोधन करे। फिर सदेशपद-पर्यन्त तत्त्व-पञ्चक का न्यास करे। तदनन्तर सर्वतोमुखी शक्ति के साथ विधिवत् स्थापना करके, गुरु सूर्य-सम्बन्धी मन्त्र बोलते हुए शक्त्यन्त सूर्य का विधिवत् स्थापन करे ॥ ३-४ ॥

स्वाम्यन्तमथवादित्यं पादान्तन्नाम धारयेत् ।

सूर्यमन्त्रास्तु पूर्वोक्ता द्रष्टव्याः स्थापनेपि च ॥५॥

श्रीसूर्यदेव का स्वाम्यन्त अथवा पादान्त नाम रखे। (यथा विक्रमादित्य - स्वामी अथवा रामादित्यपाद इत्यादि) सूर्य के मन्त्र पहले बताये गये हैं, उन्हीं का स्थापनकाल में भी साक्षात्कार (प्रयोग) करना चाहिये ॥ ५ ॥

इत्याग्नेये महापुराणे सूर्यप्रतिष्ठा नामैकोनशततमोऽध्यायः ॥९९॥

इस प्रकार आदि आग्नेय महापुराण में 'सूर्य-प्रतिष्ठा विधि का वर्णन' नामक निन्यानवेवां अध्याय पूरा हुआ ॥९९॥

आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 100 

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