recent

Slide show

[people][slideshow]

Ad Code

Responsive Advertisement

JSON Variables

Total Pageviews

Blog Archive

Search This Blog

Fashion

3/Fashion/grid-small

Text Widget

Bonjour & Welcome

Tags

Contact Form






Contact Form

Name

Email *

Message *

Followers

Ticker

6/recent/ticker-posts

Slider

5/random/slider

Labels Cloud

Translate

Lorem Ipsum is simply dummy text of the printing and typesetting industry. Lorem Ipsum has been the industry's.

Pages

कर्मकाण्ड

Popular Posts

अद्भुत रामायण सर्ग २६

अद्भुत रामायण सर्ग २६  

अद्भुत रामायण सर्ग २६ में श्रीराम विजय का वर्णन किया गया है।

अद्भुत रामायण सर्ग २६

अद्भुत रामायणम् षडविंशति: सर्गः

Adbhut Ramayan sarga 26 

अद्भुत रामायण छब्बीसवाँ सर्ग

अद्भुतरामायण षडविंशति सर्ग

अद्भुत रामायण सर्ग २६– श्रीराम विजय

अथ अद्भुत रामायण सर्ग २६          

एवं नामसहस्रेण स्तुत्वाऽसौ रघुनंदनः ॥

भूयः प्रणम्य प्रीतात्मा प्रोवाचेदं कृतांजलिः ॥ १ ॥

इस प्रकार रघुनन्दन सहस्त्रनाम से स्तुति करे फिर हाथ जोड प्रणाम कर जानकी से कहने लगे ।। १ ।।

यदेतदैश्वरं रूपं घोरं ते परमेश्वरि ॥

भीतोऽस्मि सांप्रतं दृष्ट्वा रूपमन्यत्प्रदर्शय ॥ २ ॥

हे परमेश्वरी ! जो यह तेरा घोर परमेश्वर सम्बन्धी रूप है इससे मैं भयभीत हो रहा हूं इस कारण इसे शान्त कर सौम्यरूप दिखाओ ।। २ ।।

एवमुक्ताथ सा देवी तेन रामेण मैथिली ।।

संहृत्य दर्शयामास स्वं रूपं परमं पुनः ।। ३ ।।

जब राम ने मैथिली जानकी से ऐसा कहा तब जानकी ने अपना रूप शान्त कर सौम्यरूप दिखलाया ।। ३ ।।

अद्भुत रामायण सर्ग २६- जानकी स्वरूप वर्णन

कांचनांबुरुहप्रल्यं पद्मोत्पलतुगंधिकम् ॥

सुनेत्रं द्विभुजं सौम्यं नीलालकविभूषितम् ॥ ४ ॥

रक्तपादांबुजतलं सुरक्तकर पल्लवम् ॥

श्रीमद्विशालसद्वृत्तल- लाटतिलकोज्ज्वलम् ।।५ ॥

भूषितं चारुसर्वांगं भूषणैरभिशोभितम् ॥

दधानं सुरसां मालां विशालां हेमनिर्मिताम् ॥ ६ ॥

ईषस्मितं सुबिबोष्ठं नूपुरांबरसंयुतम् ।।

प्रसन्नवदनं दिव्यमनन्तमहिमास्पदम ।। ७ ।।

जो कञ्चन के कमल के समान पद्मदल के समान, सुगंधिवाला सुन्दर नेत्र दो भुजा, नीली अलकों से विभूषित, लाल चरण लाल करपल्लव श्रीमान् विशाल सद्वृत्त ललाट के ऊपर उज्ज्वल तिलक लगाये, सम्पूर्ण सुन्दर अंग भूषणों से शोभित विशाल सुवर्ण निर्मित सुरमाला धारण किये, कुछेक हास्ययुक्त विम्बाफल के ओष्ठ, नुपुर और अम्बर से संयुक्त प्रसन्न मुख दिव्य और अनन्त महिमा का स्थान ।।४- ७ ।।

तदीदृशं समालोक्य रूपं रघुकुलोत्तमः ॥

भीति संत्यज्य हृष्टात्मा बभाषे परमेश्वरीम् ॥ ८ ॥

रघुनाथजी जानकी का इस प्रकार का रूप देखकर भय को त्याग प्रसन्न हो परमेश्वरी से कहने लगे ।। ८ ।।

अद्भुत रामायण सर्ग २६   

इससे आगे श्लोक ९ से ३७ तक रघुनाथजी द्वारा सीताजी की स्तुति दिया गया है इसे पढ़ने के लिए क्लिक करें-

श्रीरामकृत जानकी स्तवन

अब आगे

अद्भुत रामायण सर्ग २६   

एतावदुक्त्वा वचनं रघुराजकुलोद्वहः ।।

संप्रेक्षमाणो वैदेहीं प्रांजलिः पार्श्वतोऽभवत् ।। ३८ ।।

राजा रघुकुलनंदन राम हाथ जोडे यह वचन कहते देवी के पार्श्वभाग में स्थित हुए ।। ३८ ।।

अथ सा तस्य वचनं निशम्य जगतीपतेः ।

सस्मितं प्राह भर्तारं शृणुष्वैकं वचो मम ।। ३९ ॥

तब जानकी जगत्पति के वचन श्रवण करके हँसती हुई स्वामी से बोली हमारा आप एक वचन सुनिये ।। ३९ ।।

गृहीतं यन्मया रूपं रावणस्य वधाय हि ।।

तेन रूपेण राजेंद्र वसामि मानसोत्तरे ॥ ४० ॥

जो मैंने रावण के वध के निमित्त यह रूप धारण किया है इस रूप से मैं मानस के उत्तरभाग में निवास करूँगी ॥ ४० ॥

प्रकृत्या नीलरूपस्त्वं लोहितो रावणादितः ।।

नीललोहितरूपेण त्वया सहवसाम्यहम् ॥। ४१ ।।

हे राम तुम प्रकृति से नीलरूप हो रावण से अदित होने से लोहितवर्णं हुए सो नीललोहित रूप से तुम्हारे साथ में निवास करूंगी ।। ४१ ।।

गृहाण च वरं राम भखो यदभिकांक्षितम् ।

तच्छ्रुत्वा राघवो वीरः प्रतिश्रुत्य गिरौ स्थितिम् ।। ४२ ।।

हे राम ! जिस वर की इच्छा हो सो आप मुझसे मांगिये, यह वचन सुन रामचन्द्र उस पर्वत की स्थिति को अङ्गीकार कर ।। ४२ ।।

भारद्वाजांशभागेन ययाचे परमेश्वरीम् ।।

देवि सीते महाभागे दशतं रूपमैश्वरम् ।। ४३ ।।

हे भारद्वाज ! अंश भाग द्वारा परमेश्वरी से मांगने लगे, हे महाभागे देवि सीते ! यह जो तुमने ईश्वर सम्बन्धी रूप दिखाया है ।। ४३ ।।

हृदयान्नापगच्छेत्तदिति मे दीयतां वरः ॥

भ्रातरो मम कल्याणि वानरोः सविभिषणाः ॥ ४४ ॥

यह कभी मेरे हृदय से न जाय यही वर मुझे दीजिये। हे कल्याणी ! मेरे भ्राता वानर और विभीषणादि सुहृद् ।। ४४ ।।

सेनान्यो मम वैदेहि अयोध्यायोधमुख्यकाः ॥

सुपुनस्ते संगताः संतु मया रावणतजिताः ।। ४५ ।।

हमारे सब सेना के लोग अयोध्या के मुख्य जो रावण से जर्जित हो गये हैं वे सब मुझसे फिर मिल जायँ ।। ४५ ।।

एतस्मिन्नंतरे चाभूदाकाशे बुंदुभिस्वनः ।

पपात पुष्पवृष्टिश्च रामसीतोपरि द्विज ॥ ४६ ॥

उसी समय आकाश से दुन्दुभी का शब्द होने लगा, राम सीता के ऊपर फूलों की वर्षा होने लगी ।। ४६ ।।

प्रहस्य सीता पुनराह रामं तथेति रामोऽपि विरंचिमुख्यान् ॥

स तान्विसृज्य प्रतिगृह्य सीतां गंतुं स्वकं देशमसावियेष ।। ४७ ।।

तब हँसकर जानकी रघुनाथजी से कहने लगीं कि, ऐसा ही होगा तब रघुनाथजी ब्रह्मादिक देवताओं को बिदा कर सीता ले अपने देश जाने की इच्छा करने लगे ।। ४७ ।।

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये अद्भुतोत्तरकाण्डे श्रीरामविजयो नाम षविंशतितमः सर्गः ।।२६।।

इस प्रकार श्रीवाल्मीकिविरचित आदिकाव्य रामायण के अद्भुतोत्तरकाण्ड में श्रीरामविजय नामक छब्बीसवाँ सर्ग समाप्त हुआ ॥

आगे जारी...........अद्भुत रामायण अंतिम सर्ग 27

No comments:

vehicles

[cars][stack]

business

[business][grids]

health

[health][btop]