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- अग्निपुराण अध्याय १०२
- अग्निपुराण अध्याय १०१
- श्रीदेवीरहस्य पटल ४
- श्रीदेवीरहस्य पटल ३
- पंचांग भाग ५
- श्रीदेवीरहस्य पटल २
- देवीरहस्य पटल १
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- जानकी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
- जानकी सहस्रनामस्तोत्र
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- यक्षिणी साधना भाग २
- शैवरामायण
- शैव रामायण अध्याय १२
- शैव रामायण अध्याय ११
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- अग्निपुराण अध्याय ९६
- शैव रामायण अध्याय १०
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- शैव रामायण अध्याय ८
- शैव रामायण अध्याय ७
- राम स्तुति
- अद्भुतरामायण
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- अद्भुत रामायण सर्ग २६
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
राम स्तुति
ब्रह्मादि देवों द्वारा की गई इस राम स्तुति का नित्य पाठ करने से शत्रु बाधा से मुक्ति मिलती है।
श्रीराम स्तुति
Ram stuti
राम स्तुतिः
ब्रह्माकृता रामस्तुतिः
ब्रह्मोवाच -
त्वमेव परमं ब्रह्म त्वयि सर्वं
प्रतिष्ठितम् ।
दृश्यसे ग सर्वभूतेषु ब्राह्मणेषु विशेषतः
॥ २॥
दिक्षु सर्वासु गगने पर्वतेषु वनेषु
च ।
अन्ते पृथिव्याः सलिले वायौ वह्नौ
महोदधौ ॥ ३॥
ब्रह्मा ने कहा-हे राम ! आप ही
परब्रह्म हो, आप में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है
। आप सभी प्राणियों में दिखायी पड़ते हो, विशेषकर ब्राह्मणों
में (तुम्हारी प्रतिष्ठा है)। सम्पूर्ण दिशाओं में, आकाश में,
पर्वत में, वनों में, पृथ्वी
के प्रत्येक छोर में, जल, वायु,
अग्नि और समुद्र में (आप सभी जगह विद्यमान हैं ।) ॥ २-३॥
अहं ते हृदयं राम जिह्वा देवी सरस्वती ।
देवा गात्रेषु रोमाणि महोदेवोप्यऽहङ्कृतिः
॥ ४॥
सप्तर्षयो वसिष्ठाद्याः देवाः
साग्निपुरोगमाः ।
पशुपक्षिमृगाः कीटाः समुद्राः कुलपर्वताः ॥
५॥
स्थावराः जङ्गमाः ये ये भुवनानि चतुर्दश ।
वृक्षौषधिलताः देव गात्रेषु तव निर्मिताः ॥
६॥
हे राम ! मैं (ब्रह्मा) तुम्हारा
हृदय हूँ, देवी सरस्वती जिह्वा, आपके शरीर की रोमावलियाँ ही
सम्पूर्ण देव हैं और महादेव आपके अभिमान हैं । वशिष्ठ आदि सप्त ऋषि, आगे चलने वाले अग्नि सदृश देवता, पशु, पक्षी, हिरण, कीट, समुद्र, सम्पूर्ण पर्वत, स्थावर,
जङ्गम और जो जो चौदह भुवनों में अवस्थित वृष, औषधिलता
और देवता हैं, आपके शरीर से ही निर्मित हैं ॥ ४-६॥
कुक्षौ त्वदीये तिष्ठन्ति परमाणव एव ते ।
सर्वेषां जन्मनिधनं प्रापकोऽसि न संशयः ॥
७॥
मायाश्रयत्वाज्जीवानां पिता भवसि सुव्रत ।
सर्वव्यापी सर्वसाक्षी चिन्मयस्तमसः परः ॥
८॥
तुम्हारी काँख में परमाणुओं के समान
जीव निवास करते हैं । आप ही सभी के जन्म एवं मृत्यु के कारण हैं, इसमें कोई संशय नहीं है । हे व्रतधारी ! माया के आश्रयीभूत उत्पन्न होने
वाले आप सभी जीवों के पिता हैं । आप अन्धकार से परे, चिन्मयस्वरूप,
सर्वसाक्षी और सर्वव्यापी हैं ॥ ७-८॥
निर्विकल्पो निराभासो निश्शङ्को
निरुपद्रवः ।
निर्लेपः सकलाध्यक्षो महापुरुष ईश्वरः ॥ ९॥
अहं विष्णुश्च रुद्रश्च शङ्करश्च निरञ्जनः
।
त्वत्तो नान्यः परो देवस्त्रिषु लोकेषु
विद्यते ॥ १०॥
(हे राम ! आप ही) निर्विकल्प,
निराभास, निशंक, निरुपद्रव,
निर्लेप, सकलाध्यक्ष, महापुरुष
और ईश्वर हैं । मैं विष्णु हूँ, रुद्र हूँ, शंकर हूँ, निरञ्जन हूँ । आप से बड़ा कोई अन्य देवता
तीनों लोकों में विराजमान नहीं हैं ॥ ९-१०॥
इति श्रीशैवरामायणे पार्वतीश्वरसंवादे एकादशोऽध्याये ब्रह्मप्रोक्ता रामस्तुतिः समाप्ता ।
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