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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अद्भुतरामायण
अद्भुतरामायण ग्रंथ के प्रणेता
बाल्मीकि थे। इसमें कुल 27 सर्ग जिसमें कि 1353 श्लोक है। यह कृति वाल्मीकि और भरद्वाज
के संवाद रूप में प्रस्तुत कि गई है।
अद्भुतरामायण
Adbhut Ramayan
अद्भुत रामायण
दोहा - राम अनन्त अनन्तगुण,
अमित कथा विस्तार ।
सुनि आश्चर्य न मानि हैं,
जिनके विमल विचार ॥
रामकथा का संसार में शत करोड़
विस्तार है उसमें बहुत कथा देवलोक में विद्यमान हैं और बहुत सी कथा मर्त्यलोक में
स्थित हैं, जिस प्रकार वाल्मीकिजी ने अपनी 24000
चौबीस सहस्र रामायण में पुरुष की प्रधानता कही है, उसी प्रकार
इसमें प्रकृति (शक्ति) का प्रभाव वर्णन किया है, जिस प्रकार
प्रकृति-पुरुष से जगत् होता है उसी प्रकार राम-सीता से पृथ्वी का भार उतारना इस
ग्रन्थ में वर्णन किया है। राम सीता एक ही हैं इनमें कुछ भेद नहीं है। इस कारण
जानकी का माहात्म्य भी राम ही का माहात्म्य है । यह सम्पूर्ण कथा अध्यात्म पर है
इसमें राम की ब्रह्म और जानकी की शक्ति प्रगटरूप से वर्णन किया है ।
अद्भुतरामायण
अद्भुतरामायण की कथा में
सीतामाहात्म्य का विशेष रूप से वर्णन मिलता है । अन्य किसी रामायण में यह उपलब्ध
नहीं है । इसे 'गुप्तकथा' बताया
गया है ।
आश्चर्यमाश्चर्यमिदं गोपितं
ब्रह्मणो गृहे ।
हिताय प्रियशिष्याय तुभ्यमावेदयामि
तत् ॥
[ मुनिश्रेष्ठ वाल्मीकि से
शिष्यभावापन्न भरद्वाज ने जब प्रश्न किया कि रामायण के सौ करोड़ के विस्तार में
कौन-सी कथा गुप्त है, तब मुनि वाल्मीकि
ने प्रसन्न होकर कहा - "यह परम आश्चर्यरूप ( कथा ) ब्रह्माजी के स्थान में
गुप्त है । तुम मेरे प्रिय एवं हितकारी शिष्य हो, इसलिए वही
गुप्त कथा तुम्हें सुनाता हूँ ।" ]
सर्वप्रथम मुनि वाल्मीकि सीताजी का
परिचय स्तुति के रूप में देकर उनको सृष्टि की प्रकृति-रूप आदिभूत और महागुण संपन्न
बताते हैं । जानकी तप और स्वर्ग की सिद्धि, ऐश्वर्यरूप
मूर्तिमान सती हैं । वे गुणमयी, गुणातीत और गुणात्मिका होने
से सर्वकारण कारण प्रकृति - विकृति- स्वरूप चिन्मयी और चिद्विलासिनी हैं । वे
महाकुण्डलिनी भी हैं और ब्रह्म भी हैं, अतः वे परब्रह्म
परमात्मा राम से अभिन्न हैं। सीताजी और रामचंद्र के तत्त्वस्वरूप के ज्ञान से
मनुष्य के हृदय की अज्ञान-ग्रंथि का छेदन हो जाता है । सृष्टि में व्याप्त यह
परमतत्त्व जब दो रूप धारण करके, राम और सीता नाम से अवतार
लेते हैं तब अधर्म का नाश और सद्धर्म की स्थापना होती है। संक्षेप में, जीव-मात्र के कल्याण के लिए अवतारी परमात्मा साधु- संतों और भक्तों पर
विशेष अनुग्रहपूर्वक अपने दर्शन से उनके जन्म को धन्य- धन्य कर देते हैं । यह सब
भी उनकी परम रहस्यमयी लीलाएं होती हैं ।
श्रीसीता जी के जन्म-विषयक अनेक
कथाएँ मिलती हैं । 'अद्भुत रामायण'
में यह प्रसंग निराले ढंग से वर्णित हुआ है ।
अद्भुतरामायण
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