सीता सहस्रनाम स्तोत्र
अद्भुत रामायण सर्ग २५ में सीता सहस्रनाम
स्तोत्र का वर्णन किया गया है।
श्रीसीतासहस्रनामस्तोत्रम्
अद्भुत रामायण सर्ग २५
Sita sahastra naam stotram
अद्भुत रामायणम् पञ्चविंशति: सर्गः – श्रीसीतासहस्रनामस्तोत्रम्
अद्भुत रामायण पच्चीसवाँ सर्ग
श्रीरामकृतं सीतासहस्रनामस्तोत्रम्
ब्रह्मणो वचनं श्रुत्वा रामः
कमललोचनः ।
प्रोन्मील्य शनकैरक्षी वेपमानो
महाभुजः ॥ १॥
प्रणम्य शिरसा भूमौ तेजसा चापि
विह्वलः ।
भीतः कृताञ्जलिपुटः प्रोवाच
परमेश्वरीम् ॥ २॥
कमललोचन राम ब्रह्माजी के वचन सुनकर
शनैः २ नेत्र खोल कम्पित होते हुए महाभुज । भूमि में शिर झुकाय प्रणाम कर उनके तेज
से विह्वल हो भीत के समान हाथ जोड परमेश्वरी से बोले ।
का त्वं देवि विशालाक्षि
शशाङ्कावयवाङ्किते ।
न जाने त्वां महादेवि यथावद्ब्रूहि
पृच्छते ॥ ३॥
हे चन्द्रखण्ड से अंकित विशाललोचनी
! तुम कौन हो ? हे महादेवि ! हम तुमको नहीं
जानते पूछते हुए अपने को वर्णन करो ।
रामस्य वचनं श्रुत्वा ततः सा
परमेश्वरी ।
व्याजहार रघुव्याघ्रं
योगिनामभयप्रदा ॥ ४॥
तब वह परमेश्वरी राम के वचन सुनकर
योगियों को अभय देनेवाली रघुनाथजी से बोली ।
मां विद्धि परमां शक्तिं
महेश्वरसमाश्रयाम् ।
अनन्यामव्ययामेकां यां पश्यन्ति
मुमुक्षवः ॥ ५॥
मुझे महेश्वर के आश्रितवाली
परमशक्ति जानों, मैं अनन्य अविनाशी एक हूँ,
मुमुक्षुजन मुझको देखते हैं ।
अहं वै सर्वभावानामात्मा सर्वान्तरा
शिवा ।
शाश्वती सर्वविज्ञाना
सर्वमूर्तिप्रवर्तिका ॥ ६॥
मैं सब भावों की आत्मा सबके अन्त में
स्थित शिवा हूँ, मैं ही निरन्तर रहनेवाली सब
विज्ञान और सब मूर्ति प्रवृत्त करनेवाली हूं ।
अनन्तानन्तमहिमा संसारार्णवतारिणी ।
दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे
पदमैश्वरम् ॥ ७॥
मैं अनन्त अनन्त महिमावाली संसार सागर
से तारनेवाली हूँ, तुमको दिव्य- नेत्र
देती हूं मेरा ईश्वर संबन्धी पद देखो ।
इत्युक्त्वा विररामैषा रामोऽपश्यच्च
तत्पदम् ।
कोटिसूर्यप्रतीकाशं
विश्वक्तेजोनिराकुलम् ॥ ८॥
यह कह वह मौन हुई,
और रघुनाथ उनके पद को देखने लगे, जो करोड
सूर्य के समान सब ओर से परिपूर्ण था ।
ज्वालावलीसहस्राढ्यं कालानलशतोपमम्
।
दंष्ट्राकरालं दुर्धर्षं
जटामण्डलमण्डितम् ॥ ९॥
त्रिशूलवरहस्तं च घोररूपं भयावहम् ।
प्रशाम्यत्सौम्यवदनमनन्तैश्वर्यसंयुतम्
॥ १०॥
चन्द्रावयवलक्ष्माढ्यं
चन्द्रकोटिसमप्रभम् ।
किरीटिनं गदाहस्तं नूपुरैरुपशोभितम्
॥ ११॥
दिव्यमाल्याम्बरधरं
दिव्यगन्धानुलेपनम् ।
शङ्खचक्रकरं काम्यं त्रिनेत्रं
कृत्तिवाससम् ॥ १२॥
अन्तःस्थं चाण्डबाह्यस्थं
बाह्याभ्यन्तरतःपरम् ।
सर्वशक्तिमयं शान्तं सर्वाकारं
सनातनम् ॥ १३॥
ब्रह्मेन्द्रोपेन्द्रयोगीन्द्रैरीड्यमानपदाम्बुजम्
।
सर्वतः पाणिपादं तत्सर्वतोऽक्षिशिरोमुखम्
॥ १४॥
सहस्त्रों ज्वाला समूहों से व्याप्त,
कालानल सौ के समान दंष्ट्राकराल से दुर्धर्ष, जटामंडला
से मंडित । त्रिशूल हाथ में लिये घोर रूप भयावह प्रशांत सौम्यवदन अनन्त ऐश्वर्य से
संयुक्त । चन्द्र के खण्ड और लक्ष्मी से युक्त करोड चन्द्रमा के समान कान्तिमान्
किरीट गदा हाथ में लिये, नूपुरों से शोभित । दिव्य माला
वस्त्र धारण किये, दिव्य गंध का अनुलेपन लगाय, शंख चक्र हाथ में लिये, त्रिनेत्र, कृत्तिवास । अन्तर में स्थित तथा अण्डकोश के बाह्य में स्थित, बाहर भीतर से परे सर्वशक्तिमान शान्त सर्वाकार सनातन । ब्रह्मा इन्द्र
उपेंद्र योगीन्द्रों से प्रार्थित चरण कमल, सब ओर से चरण
नेत्र और शिरवाले ।
सर्वमावृत्य तिष्ठन्तं ददर्श
पदमैश्वरम् ।
दृष्ट्वा च तादृशं रूपं दिव्यं
माहेश्वरं पदम् ॥ १५॥
सबको आवृत्त कर स्थित होते हुए उस
ईश्वर सम्बन्धी पद का दर्शन किया, इस प्रकार का
उस दिव्य माहेश्वर के पद को देखकर ।
तथैव च समाविष्टः स रामो हृतमानसः ।
आत्मन्याधाय चात्मानमोङ्कारं
समनुस्मरन् ॥ १६॥
नाम्नामष्टसहस्रेण तुष्टाव
परमेश्वरीम् ।
रामचंद्र मन के हरण हो जाने में
उनसे आविष्ट हो हृतमन होकर आत्मा को आत्मा में ध्यान कर ॐ कार का स्मरण कर । १००८
एक हजार आठ नाम से परमेश्वरी की स्तुति करने लगे-
सीता सहस्रनाम स्तोत्र
ॐ सीतोमा परमा शक्तिरनन्ता
निष्कलामला ॥ १७॥
शान्ता माहेश्वरी चैव शाश्वती १०
परमाक्षरा ।
अचिन्त्या केवलानन्ता शिवात्मा
परमात्मिका ॥ १८॥
ॐ सीता,
उमा परमा, शक्ति, अनन्ता,
निष्कला, अमला, शांता
माहेश्वरी, शाश्वती, परमाक्षरा,
अचित्या, केवला, अनंता,
शिवात्मा, परमात्मिका ।
अनादिरव्यया शुद्धा देवात्मा २०
सर्वगोचरा ।
एकानेकविभागस्था मायातीता सुनिर्मला
॥ १९॥
अनादि,
अव्यया, शुद्धा देवात्मा, सर्वगोचरा, एक अनेक विभाग में स्थित माया से परे
निर्मल ।
महामाहेश्वरी शक्ता महादेवी
निरञ्जना ।
काष्ठा ३० सर्वान्तरस्था च
चिच्छक्तिरतिलालसा ॥ २०॥
महामाहेश्वरी,
शक्त, महादेवी, निरंजना,
काष्ठा, सर्वातरस्था, चिच्छक्ति,
अति लालसा ।
जानकी मिथिलानन्दा
राक्षसान्तविधायिनी ।
रावणान्तरकरी रम्या
रामवक्षःस्थलालया ॥ २१॥
जानकी,
मिथिला के जनों को आनंद की देनेवाली, राक्षसों
का अंत करनेवाली, रावण का अंत करनेवाली, मनोहर राम के वक्षस्थल में विहार करनेवाली ।
उमा सर्वात्मिका ४० विद्या
ज्योतिरूपायुताक्षरा ।
शान्तिः प्रतिष्ठा सर्वेषां
निवृत्तिरमृतप्रदा ॥ २२॥
उमा, सर्वात्मिका, विद्या, ज्योतिरूपा,
अयुताक्षरी, शांति, सबकी
प्रतिष्ठा, निवृत्ति, अमृत देनेवाली ।
व्योममूर्तिर्व्योममयी
व्योमधाराऽच्युता ५१ लता ।
अनादिनिधना योषा कारणात्मा कलाकुला
॥ २३॥
व्योममूर्ति, व्योममयी, व्योमाधारा, अच्युता,लता, आदिअन्तरहिता, योषा, कारणात्मा, कलाकुला ।
नन्दप्रथमजा नाभिरमृतस्यान्तसंश्रया
।
प्राणेश्वरप्रिया ६० मातामही
महिषवाहना ॥ २४॥
नन्द के यहां प्रथम उत्पन्न
होनेवाली नाभि में अमृत के आश्रयवाली, प्राणेश्वरप्रिया,
मातामही महिषवाहन- वाली ।
प्राणेश्वरी प्राणरूपा प्रधानपुरुषेश्वरी
।
सर्वशक्तिः कला काष्ठा
ज्योत्स्नेन्दोर्महिमाऽऽस्पदा ॥ २५॥ ७२
प्रोणेश्वरी,
प्राणरूपा, प्रधानपुरुषेश्वरी, सर्वशक्ति, कला काष्ठा, चन्द्रमा
की ज्योत्स्ना, महिमा के स्थानवाली ।
सर्वकार्यनियन्त्री च
सर्वभूतेश्वरेश्वरी ।
अनादिरव्यक्तगुणा महानन्दा सनातनी ॥
२६॥
सब कार्य की नियंत्री,
सर्वभूतेश्वरों की ईश्वरी, अनादि, अव्यक्तगुण, महानंदा, सनातनी ।
आकाशयोनिर्योगस्था
सर्वयोगेश्वरेश्वरी ८० ।
शवासना चितान्तःस्था महेशी वृषवाहना
॥ २७॥
आकाश से उत्पन्न होनेवाली,
योग में स्थित सर्व योगेश्वरों की ईश्वरी,
शवासना, चिता के अंत में स्थित, महेशी,
वृपवाहनवाली ।
बालिका तरुणी वृद्धा वृद्धमाता
जरातुरा ।
महामाया ९० सुदुष्पूरा
मूलप्रकृतिरीश्वरी ॥ २८॥
बालिका,
तरुणी, वृद्धा, वृद्धमाता,
जरा से आतुर महामाया, सुदुष्पूर, मूलप्रकृति, ईश्वरी ।
संसारयोनिः सकला सर्वशक्तिसमुद्भवा
।
संसारसारा दुर्वारा दुर्निरीक्ष्या
दुरासदा १०० ॥ २९॥
संसारयोनि,
सर्वस्वरूपा, सब शक्तिसे उत्पन्न होनेवाली,
संसारसारा, दुर्वारा, कठिनता
से नेत्रगोचर होनेवाली, दुरासद ।
प्राणशक्तिः प्राणविद्या योगिनी
परमा कला ।
महाविभूतिर्दुर्धर्षा मूलप्रकृतिसम्भवा
॥ ३०॥
प्राणशक्ति,
प्राणविद्या, योगिनी, परमा,
कला, महाविभूति, दुर्धर्षा
मूलप्रकृति से उत्पन्न होनेवाली ।
अनाद्यनन्तविभवा परात्मा पुरुषो बली
११० ।
सर्गस्थित्यन्तकरणी सुदुर्वाच्या
दुरत्यया ॥ ३१॥
अनादिअनंत ऐश्वर्यवाली,
परमात्मा, पुरुष, बली, सृष्टि की स्थिति और अंत करनेवाली, कहने में न
आनेवाली, दुरात्यय।
शब्दयोनिश्शब्दमयी नादाख्या
नादविग्रहा ।
प्रधानपुरुषातीता
प्रधानपुरुषात्मिका ॥ ३२॥
शब्द से उत्पन्न होनेवाली,
शब्दमयी, नाद नामवाली, तथा
नादविग्रहवाली, प्रधानपुरुष से परे, प्रधानपुरुषात्मिका
।
पुराणी १२० चिन्मयी पुंसामादिः
पुरुषरूपिणी ।
भूतान्तरात्मा कूटस्था
महापुरुषसंज्ञिता ॥ ३३॥
पुराणी, चिन्मयी, पुरुषों में आदि पुरुष के रूपवाली,
भूतांतरात्मा, महापुरुष नामवाली ।
जन्ममृत्युजरातीता
सर्वशक्तिसमन्विता ।
व्यापिनी चानवच्छिन्ना १३० प्रधाना सुप्रवेशिनी
॥ ३४॥
जन्म मृत्यु जरा से परे,
सव शक्ति से संयुक्त, व्यापिनी, अनवच्छन्ना, प्रधान में प्रवेश करनेवाली ।
क्षेत्रज्ञा शक्तिरव्यक्तलक्षणा
मलवर्जिता ।
अनादिमायासम्भिन्ना त्रितत्त्वा
प्रकृतिर्गुणः १४० ॥ ३५॥
क्षेत्र की जाननेवाली,
शक्ति अव्यक्तलक्षणा, पल से वर्जित्, अनादिमाया से संभिन्न, त्रितत्त्वा प्रकृति
गुणस्वरूप ।
महामाया समुत्पन्ना तामसी पौरुषं
ध्रुवा ।
व्यक्ताव्यक्तात्मिका कृष्णा
रक्तशुक्लाप्रसूतिका ॥ ३६॥
महामाया से समुत्पन्न तामसी ध्रुव
पुरुषषार्थवाली, व्यक्त अव्यक्तात्मिका, कृष्णाशुक्लप्रसूतिका ।
स्वकार्या १५० कार्यजननी
ब्रह्मास्या ब्रह्मसंश्रया ।
व्यक्ता प्रथमजा ब्राह्मी महती
ज्ञानरूपिणी ॥ ३७॥
स्वकार्या, कार्य की जननी, ब्रह्म के आश्रयभूत (
ब्रह्मसंश्रयवाली) प्रगट, प्रथम उत्पन्न होनेवाली, ब्राह्मी, महती, ज्ञानरूपिणी ।
वैराग्यैश्वर्यधर्मात्मा
ब्रह्ममूर्तिर्हृदिस्थिता । १६१
जयदा जित्वरी जैत्री
जयश्रीर्जयशालिनी ॥ ३८॥
वैराग्य,ऐश्वर्यं धर्मात्मा, ब्रह्ममूर्ति, हृदय में स्थित, जयदाता, शीघ्र
जीतनेवाली, जंत्री, जयलक्ष्मी, जययुक्त ।
सुखदा शुभदा सत्या शुभा १७०
सङ्क्षोभकारिणी ।
अपां योनिः स्वयम्भूतिर्मानसी
तत्त्वसम्भवा ॥ ३९॥
सुखदायक,
शुभदायक, शुभा, संक्षोभ
करनेवाली, जलों की योनि, स्वयंभूति,
मानसी, तत्त्वसंभवा ।
ईश्वराणी च सर्वाणी
शङ्करार्द्धशरीरिणी ।
भवानी चैव रुद्राणी १८०
महालक्ष्मीरथाम्बिका ॥ ४०॥
ईश्वराणी,
शर्वाणी, शंकर के अर्द्धशरीरवाली भवानी,
रुद्राणी, महालक्ष्मी, अम्बिका
।
माहेश्वरी समुत्पन्ना
भुक्तिमुक्तिफलप्रदा ।
सर्वेश्वरी सर्ववर्णा नित्या
मुदितमानसा ॥ ४१॥
माहेश्वरी,
प्रगट होनेवाली, भुक्ति मुक्ति का फल देनेवाली,
सर्वेश्वरी, सुवर्णयुक्ता, नित्या, मुदित मनवाली ।
ब्रह्मेन्द्रोपेन्द्रनमिता
शङ्करेच्छानुवर्तिनी १९० ।
ईश्वरार्द्धासनगता रघूत्तमपतिव्रता
॥ ४२॥
ब्रह्मा इन्द्र उपेन्द्र से निमित,
शंक रकी इच्छा से वर्तनेवाली, ईश्वर के
अर्धआसन में प्राप्त, रघुश्रेष्ठ की पतिव्रता ।
सकृद्विभाविता सर्वा
समुद्रपरिशोषिणी ।
पार्वती हिमवत्पुत्री
परमानन्ददायिनी ॥ ४३॥
एक ही बार सबकी भावना करनेवाली, समुद्र की शोषनेवाली, पार्वती, हिमालय की पुत्री, परमानन्द की देनेवाली ।
गुणाढ्या योगदा २०० योग्या
ज्ञानमूर्तिर्विकासिनी ।
सावित्री कमला लक्ष्मी
श्रीरनन्तोरसि स्थिता ॥ ४४॥
गुणों में श्रेष्ठ,
योगदायक, योग्या, ज्ञानमूर्ति
का विकास करनेवाली, सावित्री, कमला,
लक्ष्मी, श्री, अनन्त के
हृदय में स्थित ।
सरोजनिलया शुभ्रा योगनिद्रा २१०
सुदर्शना ।
सरस्वती सर्वविद्या जगज्ज्येष्ठा
सुमङ्गला ॥ ४५॥
कमल के स्थानवाली,
शुभ्र, योगनिद्रा, सुदर्शना,
सरस्वती, सर्वविद्या, जगज्ज्येष्ठा,
सुमंगला ।
वासवी वरदा वाच्या कीर्तिः
सर्वार्थसाधिका २२० ।
वागीश्वरी सर्वविद्या महाविद्या
सुशोभना ॥ ४६॥
वासवी,
वरदाता, वाच्या, सब अर्थ
साधनेवाली, बागीश्वरी, सर्वविद्या,
महाविद्या, सुशोभना ।
गुह्यविद्याऽऽत्मविद्या च सर्वविद्याऽऽत्मभाविता
।
स्वाहा विश्वम्भरी २३० सिद्धिः
स्वधा मेधा धृतिः श्रुतिः ॥ ४७॥
गुह्यविद्या,
आत्मविद्या, सर्वभाविता स्वाहा विश्वम्भरी,
सिद्धि, स्वधा, मेधा,
धृति श्रुति ।
नाभिः सुनाभिः सुकृतिर्माधवी
नरवाहिनी २४० ।
पूजा विभावरी सौम्या भगिनी
भोगदायिनी ॥ ४८॥
नाभि, सुनाभि, सुकृति, माधवी,
नरवाहिनी, पूज्या, विभावरी,
सौम्या, भगिनी, भोग
देनेवाली ।
शोभा वंशकरी लीला मानिनी परमेष्ठिनी
२५० ।
त्रैलोक्यसुन्दरी रम्या सुन्दरी
कामचारिणी ॥ ४९॥
शोभा, वंशकरी, लीला, मानिनी, परमेष्ठिनी, त्रैलोकसुन्दरी, कामचारिणी
।
महानुभावमध्यस्था महामहिषमर्दिनी ।
पद्ममाला पापहरा विचित्रमुकुटानना ॥
५०॥
महानुभाव के मध्य में स्थित
होनेवाली,
महामहिष की मारनेवाली, पद्ममाला, पाप की हरनेवाली, विचित्र मुकुट मुखवाली ।
कान्ता २६० चित्राम्बरधरा
दिव्याभरणभूषिता ।
हंसाख्या व्योमनिलया जगत्सृष्टिविवर्द्धिनी
॥ ५१॥
कान्ता, चित्र अम्बर धारण करनेवाली, हंस नामक आकाश में
स्थानवली, जगत्की सृष्टि बढानेवाली ।
निर्यन्त्रा मन्त्रवाहस्था नन्दिनी
भद्रकालिका ।
आदित्यवर्णा २७० कौमारी
मयूरवरवाहिनी ॥ ५२॥
नियंत्रा,
मंत्र के बाहर स्थित, नंदिनी, भद्रकालिका, आदित्यवर्णा, कौमारी
श्रेष्ठ मोर पर चढनेवाली ।
वृषासनगता गौरी महाकाली सुरार्चिता
।
अदितिर्नियता रौद्री पद्मगर्भा २८०
विवाहना ॥ ५३॥
वृष के आसन पर स्थित,
गौरी, महाकाली देवताओं से अर्चित, अदिति नियता, रौद्री, पद्मगर्भा,
विवाह्ना ।
विरूपाक्षी लेलिहाना महासुरविनाशिनी
।
महाफलानवद्याङ्गी कामपूरा विभावरी ॥
५४॥
विरूपाक्षी,
जिह्वा से होठ चाटनेवाली, महाअसुरों की नाश
करनेवाली, कामफला, निन्दारहित अंगवाली,
कामपूरा विभावरी ।
विचित्ररनमुकुटा
प्रणतद्धविर्वाद्धनी २९० ॥
कौशिकी कर्षिणी
रात्रिस्त्रिदशार्त्तिविनाशनी ॥ ५५॥
विचित्र मुकुटवाली,
भक्तों की ऋद्धि बढानेवाली, कौशिकी कापणी
रात्रि, देवताओं के दुःख नाश करनेवाली ।
विरूपा च सरूपा च भीमा
मोक्षप्रदायिनी ।
भक्तार्त्तिनाशिनी भव्या ३००
भवभावविनाशिनी ॥ ५६॥
विरूपा,
सुरूपा, भीमा, मोक्षदाता,
भक्तों के दुःखनाशक, भव्या, भवभावविनाशिनी ।
निर्गुणा नित्यविभवा निःसारा
निरपत्रपा ।
यशस्विनी सामगीतिर्भावाङ्गनिलयालया
॥ ५७॥
निर्गुणा,
नित्यविभागवाली, निःसारा, निरपत्रपा (लज्जारहित), यशस्विनी, सामगीति, भवांगनिलयालया ।
दीक्षा ३१० विद्याधरी दीप्ता
महेन्द्रविनिपातिनी ।
सर्वातिशायिनी विद्या
सर्वशक्तिप्रदायिनी ॥ ५८॥
दीक्षा, विद्यावरी, दीप्ता, महेन्द्रनिपातिनी,
सबसे अधिक विद्या, सब शक्ति की देनेवाली ।
सर्वेश्वरप्रिया तार्क्षी
समुद्रान्तरवासिनी ।
अकलङ्का निराधारा ३२० नित्यसिद्धा
निरामया ॥ ५९॥
सर्वेश्वर की प्रिया,
तार्क्षी, समुद्र के अन्तर में निवास करनेवाली,
कलंकरहित, निराधारा, नित्यसिद्धा,
निरामया ।
कामधेनुर्वेदगर्भा धीमती मोहनाशिनी
।
निःसङ्कल्पा निरातङ्का विनया
विनयप्रदा ३२० ॥ ६०॥
कामधेनु,
वेदगर्भा, धीमती, कोहनाशिनी,
निःसंकल्पा, निरातंका, विनयप्रदा
।
ज्वालामालासहस्राढ्या देवदेवी
मनोन्मनी ।
उर्वी गुर्वी गुरुः श्रेष्ठा सगुणा
षड्गुणात्मिका ॥ ६१॥
ज्वालामालासहस्राढ्या,
देवदेवी, मनोन्मनी, उर्वी,
गुर्वी, श्रेष्ठा, षड्गुणात्मिका
।
महाभगवती ३४० भव्या वसुदेवसमुद्भवा
।
महेन्द्रोपेन्द्रभगिनी
भक्तिगम्यपरायणा ॥ ६२॥
महाभगवती, भव्या, वसुदेवसमुद्भवा, महेन्द्रोपेंद्रभगिनी,
भक्तिगम्यपरायणा ।
ज्ञानज्ञेया जरातीता वेदान्तविषया
गतिः ।
दक्षिणा ३५० दहना बाह्या
सर्वभूतनमस्कृता ॥ ६३॥
ज्ञानज्ञेया,
जरातीता, वेदान्तविषया, गति,
दक्षिणा, दहना, बाह्या,
सर्वभूत से नमस्कृत ।
योगमाया विभावज्ञा महामोहा महीयसी ।
सत्या सर्वसमुद्भूतिर्ब्रह्मवृक्षाश्रया
३६० मतिः ॥ ६४॥
योगमाया का विभाव जाननेवाली,
सत्या, सबकी उत्पन्न करनेवाली, ब्रह्मवृक्ष की आश्रय करनेवाली, मति ।
बीजाङ्कुरसमुद्भूतिर्महाशक्तिर्महामतिः
।
ख्यातिः प्रतिज्ञा
चित्संविन्महायोगेन्द्रशायिनी ॥ ६५॥
बीज अंकुर की उत्पत्ति का कारण,
महाशक्ति, ख्याति, प्रतिज्ञा,
चित्संवित्, महायोगेन्द्रशायिनी ।
विकृतिः ३७० शङ्करी शास्त्री
गन्धर्वा यक्षसेविता ।
वैश्वानरी महाशाला देवसेना
गुहप्रिया ॥ ६६॥
विकृति,
शांकरी, शास्त्री, गन्धर्वा,
यक्ष से सेवित, वैश्वानरी, महाशाला, देवसेना, गुहप्रिया ।
महारात्री शिवानन्दा शची ३८०
दुःस्वप्ननाशिनी ।
पूज्यापूज्या जगद्धात्री
दुर्विज्ञेयस्वरूपिणी ॥ ६७॥
महारात्रि,
शिवानन्दा, शची,
दु:स्वप्ननाशिनी, पूज्या, अपूज्या,
जगद्धात्री, दुर्विज्ञेयस्वरूपिणी ।
गुहाम्बिका गुहोत्पत्तिर्महापीठा
मरुत्सुता ।
हव्यवाहान्तरा ३९० गार्गी
हव्यवाहसमुद्भवा ॥ ६८॥
गुहाम्बिका,
गुहोत्पत्ति, महापीठा मरुत्सुता, हव्यावाहान्तरा, मार्गी, हव्यवाहसमुद्रवा
।
जगद्योनिर्जगन्माता
जगन्मृत्युर्जरातिगा ।
बुद्धिर्माता बुद्धिमती
पुरुषान्तरवासिनी ४०० ॥ ६९॥
जगत्की योनी,
जगत्की मृत्यु और जरा का अतिक्रमण करनेवाली, बुद्धि
माता, बुद्धिमती, पुरुषान्तरवासिनी ।
तपस्विनी समाधिस्था त्रिनेत्रा
दिविसंस्थिता ।
सर्वेन्द्रियमनोमाता
सर्वभूतहृदिस्थिता ॥ ७०॥
तपस्विनी,
समाधि में स्थित, त्रिनेत्रा, स्वर्ण में स्थित, संपूर्ण इन्द्रिय और मन की माता,
सब भूतों के हृदय में स्थित ।
संसारतारिणी विद्या
ब्रह्मवादिमनोलया ।
ब्रह्माणी बृहती ४१० ब्राह्मी
ब्रह्मभूता भयावनी ॥ ७१॥
संसार से तारनेवाली,
विद्या, ब्रह्मवादिनी, मनोलया,
ब्रह्माणी, बृहती, ब्राह्मी,
ब्रह्मभूता, भयावनी ।
हिरण्यमयी महारात्रिः
संसारपरिवर्तिका ।
सुमालिनी सुरूपा च तारिणी भाविनी
४२० प्रभा ॥ ७२॥
हिरण्मयी,
महारात्री, संसार का परिवर्तन करनेवाली,
सुमालिनी, सुरूपा, तारिणी,
भाविनी, प्रभा ।
उन्मीलनी सर्वसहा
सर्वप्रत्ययसाक्षिणी ।
तपिनी तापिनी विश्वा भोगदा धारिणी
धरा ४३० ॥ ७३॥
उन्मीलनी,
सर्वसहा, सब प्रत्यय की साक्षिणी, तपिनी, तापिनी, विश्वा,
भोगदा धारिणी, धरा ।
सुसौम्या चन्द्रवदना
ताण्डवासक्तमानसा ।
सत्त्वशुद्धिकरी
शुद्धिर्मलत्रयविनाशिनी ॥ ७४॥
सुसौम्या,
चन्द्रवदना, तांडव में प्रसन्न मनवाली,
सत्वशुद्धिकारी, शुद्धि, तीनों मल का नाश करनेवाली ।
जगत्प्रिया जगन्मूर्तिस्त्रिमूर्तिरमृताश्रया
४४० ।
निराश्रया निराहारा
निरङ्कुशरणोद्भभवा ॥ ७५॥
जगत्प्रिया,
जगत्की मूर्ति, त्रिमूर्ति, अमृताश्रया, निराश्रया, निराहारा,
निरंकुशा रणोद्भवा ।
चक्रहस्ता विचित्राङ्गी स्रग्विणी
पद्मधारिणी ।
परापरविधानज्ञा महापुरुषपूर्वजा ॥
७६॥
चक्रहस्ता,
विचित्रांगी, स्रग्विणी, परा, परविधान की जाननेवाली, महापुरुषों
से भी पूर्व होनेवाली ।
विद्येश्वरप्रियाऽविद्या
विदुज्जिह्वा जितश्रमा । ४५३
विद्यामयी सहस्राक्षी
सहस्रश्रवणात्मजा ॥ ७७॥
विश्वेश्वरप्रिया,
अविद्या विद्युतजिह्वा, श्रमरहिता, विद्यामयी, सहस्राक्षी-सहस्र श्रवण की आत्मजा ।
सहस्ररश्मिपद्मस्था महेश्वरपदाश्रया
।।
ज्वालिनी ४६० सद्मना व्याप्ता तैजसी
पद्मरोधिका ॥ ७८॥
सहस्ररश्मि,
पद्मस्था, महेश्वरपदाश्रया, ज्वालिनी, पद्म करके व्याप्त, तैजसी,
पद्मरोधिका ।
महादेवाश्रया मान्या महादेवमनोरमा ।
व्योमलक्ष्मीश्च सिंहस्था
चेकितान्यमितप्रभा ४७० ॥ ७९॥
महादेव के आश्रयवाली,
मान्या, महादेव के मन को रमानेवाली, व्योमलक्ष्मी, सिंहरथा, चेकितानी,
अमितप्रभा ।
विश्वेश्वरी विमानस्था विशोका
शोकनाशिनी ।
अनाहता कुण्डलिनी नलिनी पद्मवासिनी
॥ ८०॥
विश्व की स्वामिनी,
विमान में स्थित, विशोका, शोकनाशिनी, अनाहता, कुण्डलिनी,
नलिनी, पद्मवासिनी ।
शतानन्दा सतां कीर्तिः ४८०
सर्वभूताशयस्थिता ।
वाग्देवता ब्रह्मकला कलातीता कलावती
॥ ८१॥
शतानन्दा,
सत्पुरुषों की कीर्ति, सब भूतों के आशय में
स्थित, वाग्देवता, ब्रह्मकला, कलातीता, कलावती ।
ब्रह्मर्षिर्ब्रह्महृदया
ब्रहाविष्णुशिवप्रिया ।
व्योमशक्तिः क्रियाशक्तिर्जनशक्तिः
परागतिः ॥ ८२॥ ४९२
ब्रह्मर्षि,
ब्रह्महृदया, ब्रह्मा, विष्णु
शिव की प्यारी, व्योमशक्ति क्रियाशक्ति, जनशक्ति, परमगति ।
क्षोभिका रौद्रिका भेद्या
भेदाभेदविवर्जिता ।
अभिन्ना भिन्नसंस्थाना वंशिनी
वंशहारिणी ५०० ॥ ८३॥
क्षोभिका,
रौद्रिका, भेद्या, भेद
अभेद से वर्जित, अभिन्न भिन्न संस्थावाली, वंशिनी, वंशहारिणी ।
गुह्यशक्तिर्गुणातीता सर्वदा
सर्वतोमुखी ।
भगिनी भगवत्पत्नीं सकला कालकारिणी ॥
८४॥
गुह्यशक्ति,
गुणातीता, सर्वदा, सर्वतोमुखी,
भगिनी, भगवत्पत्नी सकला, कालकारिणी ।
सर्ववित्सर्वतोभद्रा ५१० गुह्यातीता
गुहाबलिः ।
प्रक्रिया योगमाता च गन्धा
विश्वेश्वरेश्वरी ॥ ८५॥
सबकी जाननेवाली,
सब ओर से मंगल दायक, गुह्य से अतीत, गुहावलि, प्रक्रिया, योगमाता,
गन्धा, विश्वेश्वरेश्वरी ।
कपिला कपिलाकान्ता कनकाभा कलान्तरा
५२० ।
पुण्या पुष्करिणी भोक्त्री
पुरन्दरपुरःसरा ॥ ८६॥
कपिला,
कपिलाकान्ता, कनकाभा, कलान्तरा, पुण्या, पुष्करिणी, भोक्त्री,
पुरन्दर पुरस्सरा ।
पोषणी परमैश्वर्यभूतिदा भूतिभूषणा ।
पञ्चब्रह्मसमुत्पत्तिः
परमात्मात्ऽऽमविग्रहा ॥ ८७॥
पोषणी,
परमेश्वरर्यं विभूति की देनेवाली, भूषणा,
पञ्च ब्रह्म से उत्पन्न होनेवाली, परमात्मा,
आत्मविग्रहा ।
नर्मोदया ५३० भानुमती योगिज्ञेया
मनोजवा ।
बीजरूपा रजोरूपा वशिनी योगरूपिणी ॥
८८॥
नर्मोदया, भानुमती योगिज्ञेया, मनोजवा, बीजरूपा, रजोरूपा, वशिनी,
योगरूपिणी ।
सुमन्त्रा मन्त्रिणी पूर्णा ५४०
ह्लादिनी क्लेशनाशिनी ।
मनोहरिर्मनोरक्षी तापसी वेदरूपिणी ॥
८९॥
सुमन्त्रा,
मत्रिणी, पूर्णा,
ह्लादिनी, क्लेशनाशिनी, मनोहरि,
मनोरक्षी, तापसी वेदरूपिणी ।
वेदशक्तिर्वेदमाता
वेदविद्याप्रकाशिनी ।
योगेश्वरेश्वरी ५५० माला महाशक्तिर्मनोमयी
॥ ९०॥
वेदशक्ति,
वेदमाता, वेदविद्या की प्रकाश करनेवाली,
योगेश्वरों की ईश्वरी, माला, महाशक्ति, मनोमयी ।
विश्वावस्था
वीरमुक्तिर्विद्युन्माला विहायसी ।
पीवरी सुरभी वन्द्या ५६० नन्दिनी
नन्दवल्लभा ॥ ९१॥
विश्वावस्था,
वीरमुक्ति, विद्युन्माला, विहायसी, पीवरी, सुरभीवन्द्या, मन्दिनी, नन्दवल्लभा ।
भारती परमानन्दा परापरविभेदिका ।
सर्वप्रहरणोपेता काम्या
कामेश्वरेश्वरी ॥ ९२॥
भारती,
परमानन्दा, पर अपर के भेदवाली, सब प्रहरणों से युक्त काम्या, कामश्वरवरी ।
अचिन्त्याचिन्त्यमहिमा ५७० दुर्लेखा
कनकप्रभा ।
कूष्माण्डी धनरत्नाढ्या सुगन्धा
गन्धदायिनी ॥ ९३॥
अचिन्त्या,
अचित्यमहिमा, दुलेखा, कनकप्रभा,
कूष्माण्डी, धनरत्नों से युक्त, सुगन्धा, गन्धदायिनी ।
त्रिविक्रमपदोद्भूता धनुष्पाणिः
शिरोहया ।
सुदुर्लभा ५८० धनाध्यक्षा धन्या
पिङ्गललोचना ॥ ९४॥
त्रिविक्रम के पट में उद्भूत धनुष्पाणि
शिरोहया,
सुदुर्लभा, धनाध्यक्षा, धन्या,
पिंगलोचना ।
भ्रान्तिः प्रभावती दीप्तिः
पङ्कजायतलोचना ।
आद्या हृत्कमलोद्भूता परामाता ५९०
रणप्रिया ॥ ९५॥
भ्रान्ति,
प्रभावती, दीप्ति, पंकजायतलोचना,
आद्या, हृदयकमल से उत्पन्न, परामाता, रणप्रिया ।
सत्क्रिया गिरिजा नित्यशुद्धा
पुष्पनिरन्तरा ।
दुर्गा कात्यायनी चण्डी चर्चिका
शान्तविग्रहा ६०० ॥ ९६॥
सत्क्रिया,
गिरिजा, नित्यशुद्धा, पुष्पनिरन्तरा,
दुर्गा, कात्यायनी, चण्डी
चर्चिका, शांतिविग्रहा ।
हिरण्यवर्णा रजनी
जगन्मन्त्रप्रवर्तिका ।
मन्दराद्रिनिवासा च शारदा
स्वर्णमालिनी ॥ ९७॥
हिरण्यवर्णवाली,
रजनी, जगत्के मन्त्र करनेवाली, मंदर पर्वत पर निवास करनेवाली, शारदा, स्वर्णमालिनी ।
रत्नमाला रत्नगर्भा पृथ्वी
विश्वप्रमाथिनी ६१० ।
पद्मासना पद्मनिभा नित्यतुष्टाऽमृतोद्भवा
॥ ९८॥
रत्नमाला,
रत्नगर्भा, पृथ्वी, विश्वप्रमाथिनी, पद्मासना, मद्मनिभा; नित्यतुष्टा
अमृतोद्भवा ।
धुन्वती दुष्प्रकम्पा च सूर्यमाता
दृषद्वती ।
महेन्द्रभगिनी माया ६२० वरेण्या
वरदर्पिता ॥ ९९॥
धुन्वती,
दुष्प्रकंपा, सूर्यमाता, दृषद्वती, महेन्द्रभगिनी, माया, वरेण्या, वर से दर्पित ।
कल्याणी कमला रामा पञ्चभूतवरप्रदा ।
वाच्या वरेश्वरी नन्द्या दुर्जया
६३० दुरतिक्रमा ॥ १००॥
कल्याणी,
कमला, रामा, पञ्चभूतों को
वरण की देनेवाली बाच्या, वरेश्वरी, नन्द्या,
दुर्जया, दुरतिक्रमा ।
कालरात्रिर्महावेगा
वीरभद्रहितप्रिया ।
भद्रकाली जगन्माता भक्तानां
भद्रदायिनी ॥ १०१॥
कालरात्रि,
महावेगा, वीरभद्र हितप्रिया, भद्रकाली, जगत्की माता, भक्तों
को आनन्द देनेवाली ।
कराला पिङ्गलाकारा नामवेदा ६४०
महानदा ।
तपस्विनी यशोदा च यथाध्वपरिवर्तिनी
॥ १०२॥
कराला,
पिंगलाकारवाली, नामवेदा,
महनदा, तपस्विनी, यशोदा, यथाध्वपरिवर्तिनी ।
शङ्खिनी पद्मिनी साङ्ख्या
साङ्ख्ययोगप्रवर्तिका ।
चैत्री संवत्सरा ६५० रुद्रा
जगत्सम्पूरणीन्द्रजा ॥ १०३॥
शंखिनी,
पद्मिनी, सांख्ययोग की प्रवृत्त करनेवाली,
चैत्री, संवत्सरा,
रुद्रा जगसंपूरणी-इन्द्रजा ।
शुम्भारिः खेचरी खस्था कम्बुग्रीवा
कलिप्रिया ।
खरध्वजा खरारूढा ६६० परार्ध्या
परमालिनी ॥ १०४॥
शंभारि खेचरी,
अकाश में स्थित रहनेवाली, कम्बुग्रीवा,
कलिप्रिया, खरध्वजा, खरारूढा,
परार्ध्या, परमालिनी ।
ऐश्वर्यरत्ननिलया विरक्ता गरुडासना
।
जयन्ती हृद्गुहा रम्या सत्त्ववेगा
गणाग्रणीः ॥ १०५॥
ऐश्वर्य रत्न के स्थानवाली,
विरक्त, गरुड के आसनवाली जयन्ती, हृद्गुहा, रम्यासत्त्व के वेगवाली, गणों में अग्रणी।
सङ्कल्पसिद्धा ६७० साम्यस्था
सर्वविज्ञानदायिनी ।
कलिकल्मषहन्त्री च
गुह्योपनिषदुत्तमा ॥ १०६॥
संकल्पसिद्धा, साम्य में स्थित, सब विज्ञान की देनेवाली, कलिकल्मष की नाश करनेवाली गुह्योपनिषद रूप, उत्तमा ।
नित्यदृष्टिः स्मृतिर्व्याप्तिः
पुष्टिस्तुष्टिः ६८० क्रियावती ।
विश्वामरेश्वरेशाना भुक्तिर्मुक्तिः
शिवामृता ॥ १०७॥
नित्यदृष्टि,
स्मृति, व्याप्ति, पुष्टि,
तुष्टि, क्रियावती, विश्वा,
अमरपतियों की ईश्वरी, भुक्ति, मुक्ति, शिवा, अमृता ।
लोहिता सर्वमाता च भीषणा वनमालिनी
६९० ।
अनन्तशयनानाद्या नरनारायणोद्भवा ॥
१०८॥
लोहिता,
सर्वभाता भीषणा, वनमालिनी, अनन्तशयना, अनाद्या, नरनारायणोद्भवा
।
नृसिंही दैत्यमथिनी शङ्खचक्रगदाधरा
।
सङ्कर्षणसमुत्पत्तिरम्बिकोपात्तसंश्रया
॥ १०९॥
नृसिंही,
दैत्यमंथनी, शंख चक्र गदा धारिणी, संकर्षण समुत्पत्ति, अम्बिका समीप में निवास
करनेवाली ।
महाज्वाला महामूर्तिः ७०० सुमूर्तिः
सर्वकामधुक् ।
सुप्रभा सुतरां गौरी
धर्मकामार्थमोक्षदा ॥ ११०॥
महाज्वलाला,
महामूर्ति, सुमूर्ति सब काम देनेवाली, सुप्रभा, अत्यंत गौरी, धर्म
काम अर्थ मोक्ष की देनेवाली ।
भ्रूमध्यनिलयाऽपूर्वा प्रधानपुरुषा
बली ।
महाविभूतिदा ७१० मध्या सरोजनयनासना
॥ १११॥
भौं के मध्य में स्थानवाली,
अपूर्वा, प्रधान पुरुषा, बली महाविभूति की देने वाली, मध्या, कमलनेत्रासना ।
अष्टादशभुजा नाट्या नीलोत्पलदलप्रभा
।
सर्वशक्ता समारूढा धर्माधर्मानुवर्जिता
॥ ११२॥
अठारह भुजावाली,
नाट्या, नीले कमल के समान कांतिवाली, सब शक्ति द्वारा समारुढ, धर्म अधर्म से वर्जित ।
वैराग्यज्ञाननिरता निरालोका ७२०
निरिन्द्रिया ।
विचित्रगहना धीरा शाश्वतस्थानवासिनी
॥ ११३॥
वैराग्य ज्ञान में निरत,
निरालोका, निरिन्द्रिया, विचित्रगहना, धीरजवाली, शाश्वत
स्थान में निवास करनेवाली।
स्थानेश्वरी निरानन्दा
त्रिशूलवरधारिणी ।
अशेषदेवतामूर्तिदेवता परदेवता ७३० ॥
११४॥
स्थानेश्वरी,
निरानन्दा, त्रिशूल श्रेष्ठ धारण करनेवाली,
संपूर्ण देवताओं की मूर्ति, देवता, परदेवता स्वरूप ।
गणात्मिका गिरेः पुत्री
निशुम्भविनिपातिनि ।
अवर्णा वर्णरहिता निर्वर्णा
बीजसम्भवा ॥ ११५॥
गणात्मिक पर्वतराजपुत्री निशुम्भ की
नाश करनेवाली, अवर्णा, वर्ण
से रहित, निर्वाणा, बीजसम्भवा ।
अनन्तवर्णानन्यस्था शङ्करी ७४०
शान्तमानसा ।
अगोत्रा गोमती गोप्त्री गुह्यरूपा
गुणान्तरा ॥ ११६॥
अनन्तवर्णा,
अनन्य में स्थितिवाली, शंकरी, शांत मनवाली अगोत्रा, गोमती, रक्षा
करनेवाली, गुह्यरूपा, गुणान्तरा ।
गोश्रीर्गव्यप्रिया गौरी
गणेश्वरनमस्कृता ।
सत्यमात्रा ७५० सत्यसन्धा
त्रिसन्ध्या सन्धिवर्जिता ॥ ११७॥
गोश्री,
गौ के पदार्थ घृत दुग्ध की प्यार करनेवाली गौरी, गणेश्वर से नमस्कृत सत्यमात्रावाली, सत्यसन्धा,
तीनों सन्ध्या और संधि से रहित ।
सर्ववादाश्रया साङ्ख्या
साङ्ख्ययोगसमुद्भवा ।
असङ्ख्येयाप्रमेयाख्या शून्या
शुद्धकुलोद्भवा ७६० ॥ ११८॥
सर्ववाद के आश्रयवाली,
सांख्ययुक्त, सांख्य, योग
द्वारा प्रगट होनेवाली, अनन्ता, प्रमा के
अयोग्य, शून्या, शुद्धकुल में प्रगट
होनेवाली ।
बिन्दुनादसमुत्पत्तिः शम्भुवामा
शशिप्रभा ।
विसङ्गा भेदरहिता मनोज्ञा मधुसूदनी
॥ ११९॥
विन्दुनाद से प्रगट होनेवाली,
शम्भु की वामा, चन्द्रमा के समान कांतिवाली,
संगर्वाजित, भेदरहित, मनोहरा,
मधुसूदनी।
महाश्रीः श्रीसमुत्पत्ति ७७०
स्तमःपारे प्रतिष्ठिता ।
त्रितत्त्वमाता त्रिविधा
सुसूक्ष्मपदसंश्रया ॥ १२०॥
महाश्री,
लक्ष्मी की प्रगट करनेवाली, तम के परपार में
स्थिति करनेवाली, तीन तत्वों की माता, त्रिविधा,
सूक्ष्मपद में स्थिति करनेवाली ।
शान्त्यातीता मलातीता निर्विकारा
निराश्रया ।
शिवाख्या चित्रनिलया ७८०
शिवज्ञानस्वरूपिणी ॥ १२१॥
शांत्यतीता,
मल से परे, निर्विकारा, निराश्रया,
शिवा, चित्रनिलया, शिव के
ज्ञान की स्वरूपवाली ।
दैत्यदानवनिर्मात्री काश्यपी
कालकर्णिका ।
शास्त्रयोनिः क्रियामूर्तिश्चतुर्वर्गप्रदर्शिका
॥ १२२॥
दैत्यदानव की निर्माण करनेवाली,
काश्यपी, कालकर्णिका, शास्त्रयोनि,
क्रिया की मूर्ति, चार वर्ग (धर्म अर्थं काम मोक्ष)
की दिखानेवाली ।
नारायणी नवोद्भूता कौमुदी ७९०
लिङ्गधारिणी ।
कामुकी ललिता तारा परापरविभूतिदा ॥
१२३॥
नारायणी,
नवीन उद्भववाली, कौमुदी,
लिंगधारिणी, कामुकी, ललिता, तारा, परापर के ऐश्वर्य की देनेवाली ।
परान्तजातमहिमा वाडवा वामलोचना ।
सुभद्रा देवकी ८०० सीता
वेदवेदाङ्गपारगा ॥ १२४॥
महामहिमावाली,
वडवा, वामलोचना, सुभद्रा,
देवकी, सीता वेदवेदांग की पार जानेवाली ।
मनस्विनी मन्युमाता
महामन्युसमुद्भवा ।
अमृत्युरमृतास्वादा पुरुहूता
पुरुप्लुता ॥ १२५॥
मनस्विनी,
मन्युमाता, महाक्रोध में होनेवाली, मृत्यु रहित, अमृत के अस्वाद वाली, पुरुहूता, पुरुलुप्ता ।
अशोच्या ८१० भिन्नविषया
हिरण्यरजतप्रिया ।
हिरण्या राजती हैमी हेमाभरणभूषिता ॥
१२६॥
शोचरहिता, भिन्न विषयवाली सोने चांदी को प्यार करनेवाली, सुवर्ण
चांदी हेमरूपवाली, सुवर्ण के गहनों से युक्त ।
विभ्राजमाना दुर्ज्ञेया
ज्योतिष्टोमफलप्रदा ।
महानिद्रा ८२० समुद्भूतिर्बलीन्द्रा
सत्यदेवता ॥ १२७॥
विशेषकर शोभायमान,
जानने में न आने, ज्योतिष्टोम यज्ञ का फल
देनेवाली, महानिद्रा, समुद्भववाली,
बलियों में श्रेष्ठ सत्यदेवतायुक्त ।
दीर्घा ककुद्मिनी विद्या शान्तिदा
शान्तिवर्द्धिनी ।
लक्ष्म्यादिशक्तिजननी
शक्तिचक्रप्रवर्तिका ॥ १२८॥
दीर्घिका ककुद्मिनी विद्या शांति
देनेवाली, शांतिकी बढानेवाली, लक्ष्मी आदि शक्ति की उत्पन्न
करनेवाली, शक्तिचक्र को प्रवृत्त करनेवाली ।
त्रिशक्तिजननी ८३० जन्या
षडूर्मिपरिवर्जिता ।
स्वाहा च कर्मकरणी
युगान्तदलनात्मिका ॥ १२९॥
तीनों शक्ति उत्पन्न कर्त्री, जन्या, कामक्रोधादि छः ऊर्मियों से वर्जित, स्वाहा, कर्म की करनेवाली, युगान्तदलन
करनेवाली ।
सङ्कर्षणा जगद्धात्री कामयोनिः
किरीटिनी ।
ऐन्द्री ८४० त्रैलोक्यनमिता वैष्णवी
परमेश्वरी ॥ १३०॥
संकर्षण करनेवाली,
जगत की माता, कामयोनि, किरीट
धारण किये, ऐन्द्रीशक्ति, त्रिलोकी से
नमस्कृत, वैष्णवी, परमेश्वरी ।
प्रद्युम्नदयिता दान्ता युग्मदृष्टिस्त्रिलोचना
।
महोत्कटा हंसगतिः प्रचण्डा ८५०
चण्डविक्रमा ॥ १३१॥
प्रद्युम्नप्रिया,
दान्ता, युग्मदृष्टिवाली त्रिलोचना, महाउत्कटा, हंसगामिनी, प्रचण्डा, तीक्ष्ण पराक्रमवाली ।
वृषावेशा वियन्मात्रा
विन्ध्यपर्वतवासिनी ।
हिमवन्मेरुनिलया कैलासगिरिवासिनी ॥
१३२॥
वृष में आवेशवाली,
आकाश की मात्रा, विन्ध्यपर्वत में निवास
करनेवाली हिमालय और मेरु में निवास करनेवाली, तथा कैलास में
रहनेवाली ।
चाणूरहन्त्री तनया नीतिज्ञा
कामरूपिणी ८६० ।
वेदविद्या व्रतरता धर्मशीलानिलाशना
॥ १३३॥
चाणूर की मारनेवाली,
तनया नीति की जाननेवाली कामरूपिणी,
वेदविद्याव्रत में रत, धर्मशीला, अनिल का
भोजन करनेवाली ।
अयोध्यानिलया वीरा महाकालसमुद्भवा ।
विद्याधरक्रिया सिद्धा
विद्याधरनिराकृतिः ॥ १३४॥
अयोध्या में निवास करनेवाली,
वीरा महाकाल की प्रकट करनेवाली, विद्याधरप्रिया, विद्याधर की निराकृत करनेवाली ।
आप्यायन्ती ८७० वहन्ती च पावनी
पोषणी खिला ।
मातृका मन्मथोद्भूता वारिजा
वाहनप्रिया ॥ १३५॥
तृप्ति करनेवाली, वहन करनेवाली, पावना, पोषणी,
खिला, मातृका, मन्मथ से
उद्भुत, जल से प्रगट होनेवाली, वाहन
प्रिया ।
करीषिणी स्वधा ८८० वाणी
वीणावादनतत्परा ।
सेविता सेविका सेवा सिनीवाली
गरुत्मती ॥ १३६॥
करीषिणी,
स्वधा, वाणी, वीणा बजाने
में तत्पर, सेविता, सेविका, सेवा, सिनीवली ( अमारूप), गरुत्मती
।
अरुन्धती हिरण्याक्षी मणिदा
श्रीवसुप्रदा ८९० ।
वसुमती वसोर्धारा वसुन्धरासमुद्भवा
॥ १३७॥
अरुन्धती,
हिरण्याक्षी, मणिदाता, श्रीहरि
की वसु, (धन) की देनेवाली, वसुमती,
वसोधरा, वसुन्धरा से प्रगट होनेवाली ।
वरारोहा वरार्हा च वपुःसङ्गसमुद्भवा
।
श्रीफली श्रीमती श्रीशा श्रीनिवासा
९०० हरिप्रिया ॥ १३८॥
सुमुखी श्रेष्ठ योग्यतायुक्त,
शरीर के संगम से होनेवाली, श्रीफली, श्रीमती, श्रीशा, श्रीनिवासा
प्रिया ।
श्रीधरी श्रीकरी कम्पा श्रीधरा
ईशवीरणी ।
अनन्तदृष्टिरक्षुद्रा धात्रीशा
धनदप्रिया ९१० ॥ १३९॥
श्रीधरी,
श्री करनेवाली, कम्पा, श्रीधारणकरनेवाली,
ईशवीरणी, अनन्त दृष्टि, क्षुद्रतारहित,
धात्रीशा, धनद की प्रिया ।
निहन्त्री दैत्यसिंहानां सिंहिका
सिंहवाहिनी ।
सुसेना चन्द्रनिलया
सुकीर्तिश्छिन्नसंशया ॥ १४०॥
महादैत्यों की मारनेवाली,
सिंहिका रूप, सिंह पर चढनेवाली, सुन्दर सेनावाली, चन्द्र में स्थानवाली, सुंदर कीर्तिवाली, सन्देहरहित ।
बलज्ञा बलदा वामा ९२०
लेलिहानामृताश्रवा ।
नित्योदिता स्वयञ्ज्योतिरुत्सुकामृतजीविनी
॥ १४१॥
बल की जाननेवाली,
बल की देनेवाली, वामा,
जिह्वा चाटनेवाली, अमृत प्रकट करनेवाली, नित्य सदयरूप, स्वयंज्योति, उत्सुका,
अमृतजीवनी ।
वज्रदंष्ट्रा वज्रजिह्वा वैदेही
वज्रविग्रहा ९३० ।
मङ्गल्या मङ्गला माला मलिना
मलहारिणी ॥ १४२॥
वज्र के समान डाढोंवाली,
वज्रजिह्वावाली वैदेही, वज्र के समान शरीरवाली,
मंगलरूपिणी मंगला, माला, मलिना, मल की हरनेवाली ।
गान्धर्वी गारुडी चान्द्री
कम्बलाश्वतरप्रिया ।
सौदामिनी ९४० जनानन्दा
भ्रुकुटीकुटिलानना ॥ १४३॥
गान्धर्वी,
गारुडी, चांन्द्री, कम्बल,
अश्वतर नामक नागों की प्रिया, जनों को आनन्द
देनेवाली, भ्रकुटी से कुटिलमुखवाली।
कर्णिकारकरा कक्षा कंसप्राणापहारिणी
।
युगन्धरा युगावर्त्ता
त्रिसन्ध्याहर्षवर्धिनी ॥ १४४॥
कर्णिकार से करवाली,
कक्षा, कंस के प्राण हरनेवाली, युगन्धरा, युग का आवर्तन करनेवाली, त्रिसन्ध्यारूप, हर्ष की बढानेवाली ।
प्रत्यक्षदेवता ९५० दिव्या
दिव्यगन्धा दिवापरा ।
शक्रासनगता शाक्री साध्वी नारी
शवासना ॥ १४५॥
प्रत्यक्ष देवता, दिव्या, दिव्यगंधवाली, दिवापरा,
इन्द्र के आसन पर प्राप्त होनेवाली, शक्र की
शक्ति, साध्वी, नारी, शव की भक्षण करनेवाली ।
इष्टा विशिष्टा ९६० शिष्टेष्टा
शिष्टाशिष्टप्रपूजिता ।
शतरूपा शतावर्त्ता विनीता सुरभिः
सुरा ॥ १४६॥
इष्टा,
विशिष्टा, शिष्टों को इष्टरूप, शिष्ट अशिष्टों से पूजित, शतरूपा, शतावर्ता, विनीता, मनोहरा,
सुगन्धियुक्ता, सुरा ।
सुरेन्द्रमाता सुद्युम्ना ९७०
सुषुम्ना सूर्यसंस्थिता ।
समीक्षा सत्प्रतिष्ठा च
निर्वृत्तिर्ज्ञानपारगा ॥ १४७॥
सुरेन्द्र की माता,
सुद्युम्ना, सुषुम्नानाडीरूप, सूर्य में स्थित, समीक्षा; सत्
में प्रतिष्ठित, निर्वत्तिस्वरूप, ज्ञान
की पारगामिनी।
धर्मशास्त्रार्थकुशला धर्मज्ञा
धर्मवाहना ।
धर्माधर्मविनिर्मात्री ९८०
धार्मिकाणां शिवप्रदा ॥ १४८॥
धर्मशास्त्र के अर्थ में कुशल,
धर्म की जानने वाली, धर्मवाहना, धर्म अधर्म की निर्माण करनेवाली, धर्मात्माओं को
मंगल देनेवाली ।
धर्मशक्तिर्धर्ममयी विधर्मा
विश्वधर्मिणी ।
धर्मान्तरा धर्ममध्या धर्मपूर्वी धनप्रिया
॥ १४९॥
धर्मशक्ति,
धर्ममयी, विधर्मा, संसार
के धर्मवाली, धर्म में अन्तरवाली, धर्ममध्यावाली,
धर्म से पूर्व स्थित, धनप्रिया ।
धर्मोपदेशा ९९० धर्मात्मा धर्मलभ्या
धराधरा ।
कपाली शाकलामूर्तिः कलाकलितविग्रहा
॥ १५०॥
धर्म के उपदेशवाली,
धर्मात्मा, धर्म से प्राप्त होनेवाली, पृथ्वी की धारण करनेवाली, कपाली, शाकलामूर्ति, कलाकलितशरीरवाली, ।
सर्वशक्तिविनिर्मुक्ता
सर्वशक्त्याश्रया तथा ।
सर्वा सर्वेश्वरी १००० सूक्ष्मा
सुसूक्ष्मज्ञानरूपिणी ॥ १५१॥
सब शक्तियों से पृथक् सब शक्तियों के
आश्रयवाली सर्वरूप सर्वेश्वरी, सूक्ष्मा,
अत्यन्त सूक्ष्म ज्ञान के रूपवाली ।
प्रधानपुरुषेशाना महापुरुषसाक्षिणी
।
सदाशिवा
वियन्मूर्तिर्देवमूर्तिरमूर्तिका १००८ ॥ १५२॥
प्रधान पुरुष,
ईशाना, महापुरुष की साक्षिणी सदाकल्याणरूपा,
आकाश मूर्ति, देवमूर्ति, मूर्तिरहित।
श्रीसीतासहस्रनामस्तोत्रम् फलश्रुति
एवं नाम्नां सहस्रेण तुष्टाव
रघुनन्दनः ।
कृताञ्जलिपुटो भूत्वा सीतां
हृष्टतनूरुहाम् ॥ १५३॥
इस प्रकार १००८ नाम से हाथ जोडे
प्रसन्न मन रोमांच शरीर हो रघुनन्द ने जानकी को प्रसन्न किया ।
भारद्वाज महाभाग
यश्चैतस्तोत्रमद्भुतम् ।
शृणुयाद्वा पठेद्वापि स याति परमं
पदम् ॥ १५४॥
हे भारद्वाज महाभाग ! जो कोई इस
अद्भुत स्तोत्र को सुनता है पढता है वा पढाता है वह परमपद को जाता है।
ब्रह्मक्षत्रियविड्योनिर्ब्रह्म
प्राप्नोति शाश्वतम् ।
शूद्रः सद्गतिमाप्नोति
धनधान्यविभूतयः ॥ १५५॥
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शाश्वत
ब्रह्म को प्राप्त होते हैं और शूद्र को सद्गति तथा धन धान्य की प्राप्ति होती है
।
भवन्ति
स्तोत्रमहात्म्यादेतत्स्वस्त्ययनं महत् ।
मारीभये राजभये तथा चोराग्निजे भये
॥ १५६॥
इस स्तोत्र के माहात्म्य से परम
मंगल होता है महामारी भय राजभय चोर अग्नि का भय ।
व्याधीनां प्रभवे घोरे शत्रूत्थाने
च सङ्कटे ।
अनावृष्टिभये विप्र सर्वशान्तिकरं
परम् ॥ १५७॥
महाघोर व्याधि शत्रुओं के संकट में
अनावृष्टि के भय में सब प्रकार की शान्ति होती है ।
यद्यदिष्टतमं यस्य तत्सर्वं
स्तोत्रतो भवेत् ।
यत्रैतत्पठ्यते सम्यक्
सीतानामसहस्रकम् ॥ १५८॥
जहां यह सीतासहस्रनाम पढा जाता है, जो जो इसको इष्ट हो वह सब इस स्तोत्र के पाठ से हो जाता है ।
रामेण सहिता देवी तत्र
तिष्ठत्यसंशयम् ।
महापापातिपापानि विलयं यान्ति
सुव्रत ॥ १५९॥
वहां राम के सहित देवी स्थित होती
है इसमें संदेह नहीं। हे द्विज ! महापाप औय घोरपाप भी इससे छूट जाते हैं।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे
वाल्मीकीये आदिकाव्ये अद्भुतोत्तरकाण्डे सीतासहस्रनामस्तोत्रकथनं नाम
पञ्चविंशतितमः सर्गः ॥ २५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिविरचित
आदिकाव्य रामायण के अद्भुतोत्तरकाण्ड में सीतासहस्रनाम स्तोत्र नामक पच्चीसवाँ सर्ग
समाप्त हुआ ॥
आगे जारी...........अद्भुत रामायण सर्ग 26
0 Comments