Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2024
(491)
-
▼
January
(31)
- अग्निपुराण अध्याय ८३
- अग्निपुराण अध्याय ८२
- अद्भुत रामायण सर्ग ६
- अद्भुत रामायण सर्ग ५
- अग्निपुराण अध्याय ८१
- पञ्चाङ्ग भाग १
- अद्भुत रामायण सर्ग ४
- अग्निपुराण अध्याय ८०
- अग्निपुराण अध्याय ७९
- अग्निपुराण अध्याय ७८
- अद्भुत रामायण सर्ग ३
- अग्निपुराण अध्याय ७७
- अग्निपुराण अध्याय ७६
- अग्निपुराण अध्याय ७५
- अद्भुत रामायण सर्ग २
- भुवनेश्वरी त्रैलोक्य मोहन कवच
- अद्भुत रामायण सर्ग १
- मनुस्मृति अध्याय ३
- अग्निपुराण अध्याय ७४
- गीतगोविन्द सर्ग १ सामोद दामोदर
- अष्टपदी २४
- गीतगोविन्द सर्ग १२ सुप्रीत पीताम्बर
- अष्टपदी २२
- अष्टपदी २१
- गीतगोविन्द सर्ग ११ सामोद दामोदर
- अग्निपुराण अध्याय ७३
- अग्निपुराण अध्याय ७२
- गीतगोविन्द सर्ग १० चतुर चतुर्भुज
- मनुस्मृति अध्याय २
- गीतगोविन्द सर्ग ९ मुग्ध मुकुन्द
- मनुस्मृति अध्याय १
-
▼
January
(31)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
मूल शांति पूजन विधि
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
अद्भुत रामायण सर्ग ३
अद्भुत रामायण सर्ग ३ में राजा
अम्बरीष के राजसभा में नारद और पर्वतऋषि का आने का वर्णन किया गया है।
अद्भुत रामायणम् तृतीय: सर्गः
Adbhut Ramayan sarga 3
अद्भुत रामायण तीसरा सर्ग
अद्भुतरामायण तृतीय सर्ग
अथ अद्भुत रामायण सर्ग ३
तस्यैवं वर्तमानस्य कन्या कमललोचना
।
श्रीमतीनामविख्याता सर्वलक्षणशोभिता
॥ १ ॥
इस प्रकार उनके वर्तमान होने
कमललोचनी कन्या लक्षणों से शोभित श्रीमतीनाम उत्पन्न हुई ।
तस्मिन्काले
मुनिःश्रीमान्नारदोऽभ्यागतो गृहम् ।
अम्बरीषस्य राज्ञो वै पर्वतश्च
महाद्युतिः ॥ २॥
उसी समय नारदजी उसके घर आये और पर्वत
ऋषि भी आये ।
तावुभावागतौ दृष्ट्वा प्रणिपत्य
यथाविधि ।
अम्बरीषो महातेजाः पूजयामास तौ नृपः
॥ ३ ॥
उन दोनों को आया देख विधिपूर्वक
महातेजस्वी अम्बरीष ने उनका पूजन किया ।
कन्यां तु प्रेक्ष्य भगवान्नारदः
प्राह विस्मितः ।
केयं राजन्महाभागा कन्या सुरसुतोपमा
॥ ४ ॥
उस कन्या को देख भगवान् नारद विस्मय
को प्राप्त हो बोले- हे राजन् यह महाभागा कन्या किसकी है ?
।
ब्रूहि धर्मभृतां श्रेष्ठ
सर्वलक्षणशोभिता ।
निशम्य वचनं तस्य राजा प्राह
कृतांजलिः ॥ ५ ॥
यह सर्वलक्षणलक्षित है,
यह ऋषि के वचन सुन हाथ जोड राजा बोला ।
दुहितेयं मम विभो श्रीमती नाम नामतः
।
प्रदानसमयं प्राप्ता वरमन्वेषती
शुभा ॥ ६ ॥
हे विभो ! यह श्रीमती नाम मेरी
कन्या है;
अब यह प्रदान समय को प्राप्त हुई वर की खोज में है ।
इत्युक्तो मुनि
शार्दूलस्तामैच्छन्नारदो द्विजः ।
पर्वतोऽपि मुनिस्तां वै चकमे
सर्पिसत्तमः ॥ ७ ॥
यह कहने पर नारदजी ने उसकी इच्छा की
और पर्वत मुनि ने भी उसकी इच्छा की ।
अनुज्ञाप्य च राजानं नारदो
वाक्यम-ब्रवीत् ।
रहस्याहूय धर्मात्मा मम देहि
सुतामिमाम् ॥ ८ ॥
राजा को अनुज्ञा करके नारदजी बोले
अर्थात् उन धर्मात्मा ने एकान्त में बुलाकर यह कन्या मुझे दीजिये ।
पर्वतोऽपि तथा प्राह राजानं रहसि
प्रभुम् ।
तावुभौ प्राह धर्मात्मा प्रणिपत्य
भयादितः ॥ ९ ॥
तब पर्वत ने भी एकान्त में राजा से
कहा,
तब राजा भयव्याकुल हो दोनों से बोले ।
उभौ भवंतौ कन्यां मे प्रार्थयानौ
कथं त्यहम् ।
करिष्यामि महाप्राज्ञौ शृणु नारद मे
वचः ॥ १० ॥
त्वं च पर्वत मे वाक्यं शृणु
वक्ष्यामि यत्प्रभो ।
कन्येयं युवयोरेकं वरयिष्यति
चेच्छुभा । । ११ ॥
तस्मै कन्यां प्रयच्छामि नान्यथा
शक्ति रस्ति मे ।
तथेत्युक्त्वा तु तौ विप्रौ श्व
आयास्याव एहि ॥१२॥
इत्युक्त्वा मुनिशार्दूलो जग्मतुः
प्रीतमानसौ ।
वासुदेवपरो नित्यमुभौ ज्ञानवतां वरौ
॥ १३ ॥
तुम दोनों कन्या की प्रार्थना करते
हो तो मैं आपके वचन किस प्रकार से पूर्ण कर सकता हूँ?
हे नारद ! हे पर्वतजी ! आप मेरे वचन श्रवण कीजिये मैं कहता हूँ तुम
दोनों में यह कन्या जिसका वरण करे । उसी को मैं दे दूंगा अन्यथा देने की मुझे शक्ति
नहीं है ! बहुत अच्छा यह कह दोनों ब्राह्मण दूसरे दिन आने को कहकर प्रसन्नता से
चले गये यह दोनों ज्ञानी नित्य वासुदेवपरायण थे ॥ १०-१३ ॥
विष्णुलोकं ततो गत्वा नारदो
मुनिसत्तमः ।
प्रणिपत्य हृषीकेशं वाक्यमेतदुवाच ह
॥ १४ ॥
तब मुनिश्रेष्ठ नारदजी विष्णुलोक में
जाकर नारायण को प्रणाम कर इस प्रकार के वचन बोले ।
वृत्तान्तं सर्वमाख्याय नाथ
नारायणाव्यय ।
रहसि त्वां प्रवक्ष्यामि नमस्ते
भुवनेश्वर ।। १५ ।।
और सब वृत्तान्त कथन करके बोले हे
नारायण अविनाशी ! एकान्त में आपसे कुछ कहूंगा आपको प्रणाम है ।
ततः प्रहस्य गोविंदः सर्वात्मा
कर्मठम्निम् ।
ब्रूहीत्याह स विश्वात्मा मुनिराह च
केशवम् ॥ १६ ॥
तब सर्वात्मा गोविन्द हँसकर उन कर्म
करनेवाले मुनि से बोले, कहिये तव यह केशब
से वोले ।
त्वदीयो नृपतिः श्रीमानंबरीषो
महामतिः ।
तस्य कन्यां विशालाक्षी श्रीमती नाम
नामतः ॥ १७ ॥
परिणेतुमहं तां वा इच्छामि वचनं
शृणु ।
पर्वतोऽयं मुनिः श्रीमांस्तव
भृत्यस्तपोनिधिः ॥ १८ ॥
आपका भक्त एक अम्बरीष राजा है उसकी
विशाल लोचनी श्रीमती कन्या है । उससे मैं विवाह करनेकी इच्छा करता हूँ सो आप
सुनिये यह श्रीमान् पर्वत भी आपके बड़े भक्त हैं ।।१७- १८ ।।
तामैच्छत्सोऽपि भगवंस्तमाह च
जनाधिपः ।
अंबरीषो महातेजाः कन्येयं
युवयोर्वरम् ।। १९ ।।
लावण्ययुक्तं वृणुयाद्यदि तस्मै ददाम्यहम्
।
इत्याहावां नृपस्तत्र
तथेत्युक्त्वाप्यहं ततः ॥ २० ॥
आगमिष्यामि ते राजंछ्वः प्रभाते
गृहं प्रति ।
आगतोऽहं जगन्नाथ कर्तुमर्हसि मे
प्रियम् ॥ २१ ॥
यह भी उसकी इच्छा करते हैं और राजा ने
कहा है कि, यह कन्या तुम दोनों में जिसको
अधिक रूपवान् जानकर वरण करेगी उसी को मैं दे दूंगा यह राजा ने कहा तब मैं बहुत
अच्छा ऐसा कहकर कि, प्रातः काल तुम्हारे घर आऊँगा तो महाराज
! अब मैं आपके पास आया हूँ आप मेरा प्रिय कीजिये ॥ १९- २१ ।।
वानराननवद्भाति पर्वतस्य मुखं यथा ।
तथा कुरु जगन्नाथ मम चेदिच्छसि
प्रियम् ॥ २२ ॥
श्रीमती तु तदा पश्येन्नान्यः
पश्येत्तथाविधम् ।
तथेत्युक्त्वा स गोविंदः प्रहस्य
मधुसूदनः ।। २३ ।।
पर्वत का मुख तो वानर के समान हो जाय
ऐसा आप कीजिये जो हमारे प्रिय की इच्छा है तो और उस रूप को वह श्रीमती कन्या ही
देख सके और कोई नहीं, यह सुन मधुसूदन
गोविद हँसकर बोले ॥ २२-२३ ।।
त्वयोक्तं तत्करिष्यामि गच्छ सौम्य
यथासुखम् ।
एवमुक्तो मुनि ष्टः प्रणिपत्य
जनार्दनम् ॥ २४ ॥
मन्यमानः कृतात्मानमयोध्यां वै जगाम
सः ।
गते मुनिवरे तस्मि- पर्वतोऽपि
महामुनिः ।। २५ ।।
प्रणम्य माधवं हृष्टो रहस्येनमुवाच
ह ।
वृत्तांतं च निवेद्याग्रे नारदस्य
जगत्पतेः ॥ २६ ॥
गोलांगुलमुख यद्वन्मुखं भाति तथा
कुरु ।
श्रीमती तु तथा पश्ये- नान्यः
पश्येत्तथा विधम् ॥२७॥
जो आपने कहा वह मैं सब करूंगा आप
सुखपूर्वक पधारिये यह सुन मुनि प्रसन्न हो जनार्दन को प्रणाम कर अपने को कृतार्थं
मान अयोध्या में गये उनके जाने पर महामुनि पर्वत प्रणाम कर एकान्त में माधव से
कहने लगे और नारद का वृत्तान्त जगत्पति के आगे कहा कि,
नारद का मुख गोलांगुल के समान जिस प्रकार हो जाय वह करो, परन्तु वह राजकन्याही देखे दूसरा नहीं ऐसा करो ॥ २४-२७ ॥
तच्छ्रुत्वा
भगवान्विष्णुस्त्वयोक्तं च करोमि वै ।
गच्छ शीघ्रमयोध्यां त्वं मा
वादीर्नारदस्य वै ।। २८ ॥
यह सुन भगवान् विष्णु नारद से बोले-
मैं तुम्हारे कहे वचन करूंगा, शीघ्र अयोध्या
को जाओ और न कहो ॥२८॥
त्वया में मंत्रितं यच्च
तथेत्युक्त्वा जगाम सः ।
ततो राजा समाज्ञाय प्राप्तौ मुनिवरौ
तदा ।। २९ ।।
जो आपने मंत्रित किया है वह वैसा ही
होगा,
तब राजा ने देखा कि, मुनीश्वर आकर प्राप्त हुए
।। २९ ।।
मङ्गलैविविधैर्भद्वैरयोध्यां ध्वज-
मालिनीम् ।
मंडयामास लाजैश्च पुष्पैश्चैव
समंततः ॥ ३० ॥
कि, अनेक प्रकार के मङ्गलों से युक्त अयोध्यापुरी हो रही है चारों ओर से खीलों
और पुष्पों से उसको मंडित किया ।। ३० ॥
अभिषिक्तगृहद्वारां
सिक्तांगणमहापथाम् ।
दिव्यगंधरसोपेतां धूपितां
दिव्यधूपकैः ॥ ३१ ॥
और बडे बडे महापथ में छिडकाव किये
गये,
दिव्य गन्ध और रस से युक्त दिव्य धूपों से धूपित किया ।। ३१ ।।
कृत्वा च नगरों राजा मंडयामास तां
सभाम् ।
दिव्यगंधैस्तथा धूपै रत्नेश्च
विविधैस्तथा ॥ ३२ ॥
इस प्रकार नगरी को करके राजा ने सभा
को शोभित किया, दिव्य गंध धूप और विविध प्रकार के
रत्नों से अलंकृत किया । ३२ ।
अलंकृतां
मणिस्तंभैर्नानामात्योपशोभितैः ।
परार्ध्यास्तरणो- पेतैदिव्यभद्रासनैर्वृताम्
॥ ३३ ॥
अनेक प्रकार की मालाओं से स्तंभों को
शोभित किया और अनेक मणियों को उसमें जटिल किया और अनेक प्रकार के श्रेष्ठ बिछौने
और आसन बिछाये गये ।। ३३ ।।
नानाजनसभावेशैर्नरेन्द्ररभि-
संवृताम् ।
कृत्वा नृपेंद्रस्तां कन्यामादाय
प्रविवेश ह ॥ ३४ ॥
अनेक प्रकार के राजा और बड़े बड़े
मनुष्य वहां आकर स्थित हुए तब राजा उस कन्या को लेकर सभा में आये ।। ३४ ।।
सर्वाभरणसंपन्नां श्रीरिवायतलोचना ।
करसंमितमध्यांगी पंचास्ति-
धाशुभानना ।
स्त्रीभिः परिवृता दिव्या श्रीमती
संस्थिता सती ॥ ३५ ॥
जो सम्पूर्ण गहने पहरे साक्षात्
दीर्घलोचना लक्ष्मी के समान थी । मुट्ठीभर कमरवाली, पांच स्थान में चिकने शरीरवाली सुन्दर मुखवाली दिव्य स्त्रीजनों से संवृत
श्रीमती स्थित हुई ।। ३५ ।।
सभा तु सा भूमिपतेः समृद्धा
मणिप्रवेकोत्तमरत्नचित्रा ।
न्यस्तासना माल्यवती सुगंधा
तामन्वयुस्ते सुरराजवर्याः ॥ ३६ ॥
वह राजा की सभा अनेक मणिरत्नों से
संयुक्त थी, वहां आसन के ऊपर बैठी माला हाथ में
लिये सुरराज कन्या के समान उसके साथ हुई ।। ३६ ।।
अथाययौ ब्रह्मबरात्मजो
महांस्त्रविद्य वृद्धोभगवान्महात्मा ।
सपर्वतो ब्रह्मविदां वरिष्ठो
महामुनिर्नारद आजगाम ॥ ३७ ॥
उसी समय ब्रह्मवरात्मज महान्
त्रिविद्या वृद्ध महात्मा नारदजी पर्वत को साथ लेकर उस स्थान में आये ॥३७॥
इत्यार्थे श्रीमद्रामायणे
वाल्मीकीयेऽद्भुतोत्तरकांडे नारदपर्वत-सभाप्रवेशो नाम तृतीयः सर्गः ॥ ३ ॥
इस प्रकार वाल्मीकी श्रीमद्रामायण अद्भुतोत्तरकाण्ड
आदिकाव्य का नारदपर्वत- सभाप्रवेशो नाम तृतीय सर्ग पूर्ण हुआ ॥ ३ ॥
आगे जारी...........अद्भुत रामायण सर्ग 4
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: