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Adbhut Ramayan sarga 19
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अद्भुतरामायण एकोनविंश सर्ग
अद्भुत रामायण सर्ग १९ – रावणपुत्रनिर्याण
अथ अद्भुत रामायण सर्ग १९
रावणस्यौरसाः पुत्रासह
राक्षसपुंगवैः ।
नानाप्रहरणोपेता दुदुवू राघवं रणे ॥
१ ॥
रावण के औरस पुत्र महाराक्षसों के
साथ में अनेक प्रकार के प्रहार लेकर धावमान हुए ।। १ ।।
नामान्येषां प्रवक्ष्यामि भरद्वाज
शृणुष्व मे ॥
कालकण्ठः प्रभाषश्च तथा कुम्भाण्डको
परः ॥ २ ॥
हे भरद्वाज ! उनके नाम मैं कहता हूं
सो तू मुझसे सुन;कालकण्ठ, प्रभाष, कुम्भांडक ।। २ ।।
कालकक्ष शितश्चैव भूतलोन्मथनस्तथा ॥
यज्ञबाहुः प्रबाहुश्च देवयाजी च
सोमदः ॥ ३ ॥
कालकक्ष,
शित, भूतल, उन्मथन,
यज्ञबाहु, प्रवाहु देवयाजी, सोमप ॥ ३ ॥
मज्जालश्च महातेजाः क्रथः
क्राथोवसुव्रतः ।।
तुहरश्च तुहारश्च चित्रदेवश्च
वीर्यवान् ॥ ४ ॥
महातेजस्वी,
मज्जाल, ऋथ, क्राथ,
वसुव्रत, तुहर, तुहार,
वीर्यवान्, चित्रदेव ।। ४ ।।
मधुरः सुप्रासादश्च किरोटश्च महाबलः
।
वसनो मधुवर्णश्च कलशोदर एव च ।। ५
।।
मधुर, सुप्रसाद, 'महाबली, किरीट,
वसन, मधुवर्ण कलशोदर ।। ५ ॥
धर्मदो मन्मथकरः सूचीवक्रश्च
वीर्यवान् ॥
श्वेतवक्रः सुवक्रश्च चारुतक्रश्च
पाण्डुरः ॥ ६॥
धर्मंद,
मन्मथकर, वीर्यवान्, सूचिवक्त्र
श्वेतवक्त्र, सुवक्त्र, चारुवक्त्र, पाण्डुर ।। ६ ।।
दण्डबाहु;
सुबाहुश्च रजः कोकिलकस्तथा ॥
अचलः कालकाक्षश्च बालेशो बालभक्षकः
॥ ७ ॥
दण्डबाहु,
सुबाहु, कोकिलक, अचल,
कालाकाक्ष, बालेश, बालभक्षक
।। ७ ।।
संचानकः कोकनदो गृध्यपत्रश्च
जम्बुकः ।।
लोहाजवक्त्रो जवनः कुम्भवक्त्रश्च
कुम्भकः ॥ ८ ॥
सञ्चानक,
कोकनद, गृध्रपत्र, जम्बूक,
लोहाजवक्त्र, जवन, कुम्भवक्त्र
।। ८ ।।
मुंडग्रीवश्च कृष्णौजा हंसवकरच
कुर्यजरः ।
एते रावणपुत्राश्च महावीरपराक्रमाः
।। ९ ।।
मुंडग्रीव,
कृष्णौजा, हंसवक्त्र, कुञ्जर,
यह रावण के पुत्र महाबली और पराक्रमी थे ।। ९ ।।
बाहुशब्दः सिंहनादैः पूरयंतो दिशो
दश ।
एषां सैन्यसहस्राणां
सहलार्ण्यबुदानि च ॥ १० ॥
बाहुशब्द और सिंहनाद से दशों दिशाओं
को पूर्ण करते हुए, इनकी सेना के
सहस्त्रों और अरबों ।। १० ।।
नानाकृतिवयोरूपा विविधायुधपाणयः ।।
कूर्मकुक्कुटवक्त्राश्च
सर्पजम्भकवक्त्रकाः ।। ११ ।।
अनेक प्रकार की आकृति वय रूपवाले
अनेक आयुध हाथ में लिये, कूर्म
कुक्कुटमुखवाले सर्प जम्भ के से मुखवाले ।। ११ ।।
गोमायुमुखवक्त्राश्च
शशोलूकमुखास्तथा ।।
खरोष्ट्रवदनाश्चैव वराहवदनास्तथा ।।
१२ ।।
शृगालमुखवाले शशक और खरगोश के
मुखवाले,
खर उष्ट्र तथा वराह के मुखवाले ।। १२ ।।
मनुष्यमेषवक्त्राश्च शृगालवदनास्तथा
॥
मार्जारशशवक्त्राश्च
दीर्घवक्त्राश्च केचन ।। १३ ।।
मनुष्य मेष शृगाल मार्जार शशाके
मुखवाले,
कोई दीर्घमुख ।। १३ ।।
नकुलोलूकवक्त्रश्च
काकवक्त्रास्तथापरे ।।
आखुबभ्य कवक्त्राश्च मयूरवदनातस्था
॥ १४ ॥
नकुल, उलूकमुख, काक, आखु, बम्रमुख, मोरमुख ।। १४ ।।
मत्स्यमेधाननाश्चैव अजाविमहिषाननाः
।।
ऋक्षशार्दूलवक्त्राश्च
द्वीपिसिंहाननास्तथा ।। १५ ।।
मत्स्य मेष अजा मुखवाले ऋक्ष,
शार्दूल द्वीप और सिंहमुखवाले ।। १५ ।।
भीमा गजाननाश्चैव तथा नकमुखास्तथा ।
गोखरोष्ट्रमुखाश्चान्ये
वृषदंशमुखास्तथा ।। १६ ।।
भयंकर हाथी के से मुखवाले,
नाके के समान मुखवाले, गो, खर उष्ट्र वृष दंष्ट्रमानस के मुखवाले ।। १६ ।।
महाजठरपापांगाः स्तवकाक्षाश्च
दुर्मुखाः ॥
पारावतमुखाश्चान्ये तथा वृषमुखाः परे
।। १७ ।।
महाजठरपाद
अंगवाले,
स्तबकाक्ष, दुर्मुख, पारावतमुख,
वृषमुख ।। १७ ॥
कोकिलाभाननाश्चान्ये
श्येनतित्तिरिकाननाः ॥
कृकलासमुखाश्चैव विरजोऽम्बरधारिणः ॥
१८ ॥
कोकिलामुख,
तित्तिरि मुख, कृकलासमुख, श्वेतवस्त्र धारण किये ।। १८ ।।
व्यासवचाः शुकमुखाश्चंडवत्राः
शुभाननाः ।।
आशीविषाश्चोरधरा गोनासावरणास्तथा ।।
१९ ।।
व्यालमुख शुकमुख,
चण्डमुख, शुभानन, आशीविष,
चीरधारी, गोनासावरण ।। १९ ।।
स्थूलोदराः कृशांगाश्च स्थूलांगाश्च
कृशोदराः ॥
ह्रस्वग्रीवा महाकर्णा
नानाव्यालविभूषणाः ॥ २० ॥
स्थूलोदर,
कृशांग, कृशोदर, हस्वग्रीव,
महाकर्णं अनेक व्याल के भूषणवाले ।। २० ।।
गजेंद्रचर्मवसनास्तथा
कृष्णाजिनांबराः ।।
स्कंधेमुखा द्विजश्रेष्ठ तथा
ह्युदरतोमुखाः ।। २१ ।।
गजेन्द्र के चर्म का वस्त्र पहरे,
काले वस्त्र धारे, स्कंध में मुखवाले, उदर में मुखवाले ।। २१ ।।
पृष्ठेमुखा हनुमुखास्तथा
जंघामुखास्तथा ।
पावननाश्च बहवो नानादेशमुखास्तथा ॥
२२ ॥
पीठ में मुखवाले हनुमुख,
जंघामुख, पार्श्वनन नानादेश में मुखवाले ।। २२
।।
तथा कीटपतंगानां सदृशास्या महाबलाः
।
नानाव्यालमुखाचान्ये
बहुबाहुशिरोधराः ।। २३ ।।
कीट पतंगों के समान मुखवाले,
महाबली, सर्वमुखवाले, बहुत
बाहु और शिरवाले ।। २३ ।।
नानावक्षोभुजाः केचिद्भुजंगवदनाः
परे ।।
खङ्गमुखा वृकमुखा अपरे गरुडाननाः ।।
२४ ।।
अनेक छाती भुजावाले,
कोई भुजंगमुख, खड्ग, वृक
गरुड के समान मुखवाले ॥ २४ ॥
चोलसंवृतगात्राश्च नानाफलकवाससः ।।
नानावेषधराश्चान्ये
नानामाल्यानुलेपनाः ।। २५ ।।
कुरतों से शरीर ढके फलक वस्त्रवाले,
नानावेषधारी नाना मालाओं का अनुलेपन लगाये, नाना
वेषधारी अनेक माला और अनुलेपन लगाये ।। २५ ।।
नानावस्त्रधराश्चान्ये चर्मवासस एव
च ॥
उष्णीषिणो मुकुटिन: कंबुग्रीवाः
सुवर्च्चसः ॥ २६ ॥
नाना वस्त्र और चर्म धारण किये पगडी
मुकुटवाले शंख के सी गर्दन सुन्दर कान्तिवाले ।। २६ ॥
किरीटिन: पंचशिखास्तथा
कठिनमूर्द्धजाः ।।
त्रिशिखा द्विशिखाश्चैव तथा
सप्तशिखा अपि ।। २७ ।।
किरीटधारी,
पंचशिख, कठिन केशवाले, तीन
शिखा और दो शिखावाले सात शिखावाले ।। २७ ।।
शिखण्डिनोऽमुकुटिनो मुंडाश्च
जटिलास्तथा ॥
चित्रमालाधराः
केचित्केचिद्रोमाननास्तथा ॥ २८ ॥
शिखण्डी,
मुकुटरहित, मुण्ड जटित, चित्रमालाधारी
कोई रोमानन ।। २८ ।।
विग्रहैकवशा नित्यमजेयाः
सुरसप्तमैः।
कृष्णा निर्भसवक्त्राश्च
दीर्घपृष्ठा निरूदराः ॥२९॥
युद्ध में देवताओं को अजय,
काले निर्मस मुख, दीर्घपृष्ठ, और उदरवाले ।। २९ ।।
दीर्घपृष्ठा स्थूलपृष्ठाः
प्रलम्बोदरमेहनाः ॥
महाभुजा ह्रस्वभुजा हस्वगात्रास्थ
वामनाः ॥ ३० ॥
दीर्घपृष्ठ,
स्थूलपृष्ठ, प्रलम्ब उदर और मेहनवाले, महाभुज, ह्रस्वभुज, ह्रस्वगात्र,
वामन (बौने) ।। ३० ।।
कुब्जाश्च हस्वजंघाश्च
हस्तिकर्णशिरोधराः ।।
हस्तिनासाः कूर्मनासा
वृकनासास्तथापरे ।। ३१ ।।
कुबडे,
हृस्वजंघ, हाथी के से कान और शिरवाले, हस्तिनास, कुर्मनास वृकनास, ।।
३१ ।।
वारणेंद्रनिभाश्चान्ये दीप्तिमंतः
स्वलंकृताः।
पिंगाक्षा: शंकुकर्णाश्च
वक्रनासास्तथापरे ॥ ३२ ॥
कोई वारणेन्द्र के समान,
दीप्तिमान्, अलंकृत, पिंगाक्ष,
शंकुकर्णं, वक्रनास ।। ३२ ।।
पृथुदष्ट्रा महादंष्ट्राः
स्थूलोष्ठा हरिमूर्द्धजाः ।
नानापादौष्ठदंष्ट्राश्च
नानाहस्तशिरोधराः ॥ ३३ ॥
पृथुदंष्ट्र,
महादंष्ट्र, स्थूलोष्ठ, हरिकेश,
नाना चरण ओष्ठ डाढोंवाले, अनेक हाथ और शिरवाले
।। ३३ ।।
नानाचर्मभिराच्छन्ना नानावासाश्च
सुव्रत ।
हृष्टाः परिपतन्ति स्म महापरिघ
बाहवः ॥ ३४ ॥
अनेक चर्मो से आच्छादित;
अनेक प्रकार के वस्त्र धारे, महापरिध के समान भुजवाले,
प्रसन्न हो युद्ध करने को चले।।३४।।
दीर्घग्रीवा दीर्घनखा
दीर्घपादशिरोभुजाः ।।
पिंगाक्षा नीलकण्ठाश्च
स्वर्णकर्णाश्च सुव्रत ।। ३५ ।।
दीर्घगर्दन,
दीर्घनख, दीर्घचरण, दीर्घ
शिर और भुजवाले, पिंगाक्ष, नीलकंठ,
स्वर्णकर्णवाले ।। ३५ ।।
वृकोदरनिभाः केचित्केचिदंजनसं निभाः
॥
श्वेताक्षा लोहितग्रीवा:
पिंगाक्षाश्चतथापरे ।। ३६ ।।
कोई वृकोदर के समान,
कोई अञ्जञ्जन पर्वत के समान, श्वेताक्ष,
लोहितग्रीव, पिंगाक्ष ।। ३६ ।।
कल्माषमाहवो विप्र चित्रवर्णाश्च
केचन ।।
चामरापीडकनिभाः श्वेत लोहितकान्तयः
।। ३७ ।।
हे विप्र ! कोई कल्माष (काली)
भुजावाले,
कोई चित्रवर्ण, चमर की पीडा के समान,श्वेत और लाल कांतिवाले ।। ३७ ।।
नानावर्णाः सुवर्णाश्च मयूरसदृश-
प्रभाः ।
पाशोद्यतकराः केचिद्यादितास्याः
खराननाः ।। ३८ ॥
अनेक वर्णं और सुवर्ण मोर के समान
कांतिवाले, कोई पाश हाथ में उठाये, कोई मुख फैलाये खर के समान मुखवाले ।। ३८ ।।
शतघ्नीच हस्ताश्च तथा मुसलपाणयः ।
असिमुद्गरहस्ताश्च दंडहस्ताश्च केचन
।। ३९ ।।
शतघ्नी,
चक, हाथ में लिये, मुसल
हाथ में लिये; कोई असि मुद्गर हाथ में लिये, कोई दंड हाथ में लिये ।। ३९ ।।
गदाभुशुण्डिहस्ताश्च तथा तोमरपायः ॥
आयुधैविविधैर्घोरमेंहात्मानो महौजसः
॥ ४० ॥
गदा भुशुण्डी हाथ में लिये,
तोमर हाथ में लिये तथा महात्मा लोग अनेक घोर आयुध हाथ में लिये ।।
४० ।
महाबला महावेगा असंख्याता
विनिर्ययुः ।।
घंटाजालपिनद्धांगा ननृतुस्ते
रणाजिरे । ४१ ।।
महाबली महावेगवान् असंख्यों चले और
घंटाजाल से नद्ध हुए रणस्थल में नृत्य करने लगे ।। ४१ ।।
कोटिशो विकृतरूक्षभाषिणो
यातुधानगणसैन्यपालकाः।।
दुदुवू रघुकुलावतं सकं गृह्णधावनपोथ
वादिन ४२ ॥
असंख्य विकृत और रूखे बोलनेवाले,
राक्षसों की सेना पालनेवाले रामचन्द्र के ऊपर धावमान हुए; और पकड़ो २ ऐसे कठोर वचन बोलने लगे ।। ४२ ।।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायण वाल्मीकीये
आदिकाव्ये अद्भुतोत्तरकाण्डे रावणपुत्रनिर्याण नामंकोनविंश सर्गः ।। १९ ।।
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिविरचित
आदिकाव्य रामायण के अद्भुतोत्तरकाण्ड में रावण- पुत्रनिर्याणं नामक उन्नीसवाँ सर्ग
समाप्त हुआ ॥
आगे जारी...........अद्भुत रामायण सर्ग 20
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