शैव रामायण अध्याय ११

शैव रामायण अध्याय ११ 

शैव रामायण के अध्याय ११ में ब्रह्मा द्वारा राम की परब्रह्म रूप में स्तुति, पुष्कराक्ष द्वारा राम की अर्चना, राम का स्वजनों सहति पुष्पकयान से अयोध्या प्रत्यागमन तक का वर्णन अन्वित है।

शैव रामायण अध्याय ११

शैव रामायण ग्यारहवाँ अध्याय

Shaiv Ramayan chapter 11     

शैवरामायणम् एकादशोऽध्यायः

शैवरामायण एकादश अध्याय

शैव रामायण अध्याय ११ 

ईश्वर उवाच -

शृणु देवि प्रवक्ष्यामि ब्रह्मा देवर्षिसंयुतः ।

उवाच वचनं तत्र रामं राजीवलोचनम् ॥ १॥

भगवान शंकर ने पार्वती से कहा-हे देवि ब्रह्मा आदि देवताओं ने संयुक्त होकर कमल के समान नेत्रों वाले राम से जो कहा, वह अब मैं बताऊँगा, उसे सुनो ॥ १॥

शैव रामायण अध्याय ११     

इससे आगे श्लोक २ से १० तक ब्रह्मादि देवों द्वारा राम की स्तुति की गई है, इसे पढ़ने के लिए क्लिक करें- 

ब्रह्माकृता रामस्तुतिः

अब आगे

शैव रामायण अध्याय ११

इति स्तुत्वा दैवगणैश्चतुक्त्रोऽब्रवीत्पुनः ।

राम त्वं दुष्टनाशाय ह्यवतीर्णो रघोः कुले ॥ ११॥

अस्माभिः प्रार्थितः पूर्वं तत्सत्यं कृतवानसि ।

याहि राम गृहीत्वाश्वं यज्ञशेषं समापय ॥ १२॥

राम की ऐसी स्तुति करके देवगगणों से चतुर्मुख ब्रह्मा जी ने फिर कहा कि हे राम ! दुष्टों का विनाश करने के लिए ही आप राजा रघु के कुल में अवतीर्ण हुए । पूर्व में हम लोगों ने जो-जो प्रार्थना की, उसे सही रूप में आपने किया । हे राम ! अश्वमेधीय घोड़े को लेकर जाइये और अवशिष्ट यज्ञ को पूरा कीजिये ॥ ११-१२॥

कलास्तवसुरेन्द्रादीन्  सन्तर्पय  विधानतः ।

एकादशसहस्राणामब्दानां पालय क्षितिम् ॥ १३॥

ततः परं निजं धाम यास्यामि त्वं परात्परम् ।

इति विज्ञाप्य देवेशो ययौ देवगणैस्सहम् ॥ १४॥

तुम्हारी कलाओं के रूप में अवस्थित इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवताओं को विधि-विधान से सन्तर्पित करो और एक हजार युगों तक पृथ्वी का पालन करो । इसके बाद हे परात्पर ! आप अपने धाम जायेंगे । ऐसा कहकर इन्द्र अन्य देवताओं के साथ चले गये ॥ १३-१४॥

अथागमत्पुष्कराक्षो पूजामादाय सुप्रभाम् ।

रत्नसिंहासनं प्रादाद् रामायामिततेजसे ॥ १५॥

रामस्य चरणद्वन्द्वं रत्नपुष्पैरपूजत् ।

पुपूज परया भक्त्या नमस्कृत्वा पुनः पुनः ॥ १६॥

इसके बाद प्रातःकाल पुष्कराक्ष पूजन की साम्रगी लेकर आया और अखण्ड तेजस्वी राम के लिए रत्नसिंहासन प्रदान किया । राम के दोनों चरणों को उसने रत्न रूपी पुष्पों से पूजा की । भक्ति से पूजन करके बार-बार उन्हें प्रणाम किया ॥ १५-१६॥

रामाज्ञां च गृहीत्वाऽसौ ययौ स्वपुरीं प्रति ।

ततो रामस्तदा तत्र प्रोवाच जनसंसदि ॥ १७॥

किङ्कर्तव्यमितोऽस्माभिः यूयं वदत मामकाः ।

इत्युक्ते च तदा रामे सुग्रीवः प्राह भूमिपम् ॥ १८॥

और राम की आज्ञा लेकर वह पुष्कराक्ष अपनी नगरी चित्रवती की ओर प्रस्थान किया । उसके बाद राम ने एक जनसभा को सम्बोधित किया और कहा कि अब इसके बाद हम लोगों को क्या करना चाहिए, आप लोग मुझे बताइये । राम के ऐसा कहने पर सुग्रीव ने राजाराम से कहा ॥ १७-१८॥

अत्रेत्य कार्यं सर्वं वै जातं मे भावि तत्त्वतः ।

गमनं दृश्यते राजन् मेरौ हि कमलेक्षण ॥ १९॥

सुग्रीवस्य वचस्तथ्यं मत्वा रामः प्रतापवान् ।

सर्वानाज्ञाप्य गमने रामः सैन्य-समावृतः ॥  २०॥

यहाँ से जाने के बाद ही सभी कार्य अपने आप हो जायेंगे; क्योंकि ऐसी भावी सूचनाएँ मिल रही हैं; क्योंकि हे राजन् ! सुमेरु पर्वत विष्णु की शरण में जा रहा है । सुग्रीव के वचनों और तथ्यों को मानकर प्रतापी राम ने सेना सहित सभी को जाने का आदेश दिया ॥ १९-२०॥

पुष्पकं तत्समारुह्य देवतागणपूजितः ।

आगत्य येन मार्गेण ययौ मार्गेण तेन सः ॥ २१॥

सप्तद्वीपा नतिक्रम्य हेमाद्रिं सुमपागमत् ।

तत्र देवगणान्नत्वा मेरौ स्थित्वा महाबलः ॥ २२॥

देवता गणों को पूजित करके सभी लोग पुष्पक विमान पर आरूढ हुए । वह विमान जिस मार्ग से आया था, उसी मार्ग से वापस लौटा । सप्त द्वीपों को पार करके वह विमान हेमाद्रि पहुँचा वहाँ देवगणों को प्रणाम करके महाबली सुमेरु वहीं स्थित हो गया ॥ २१-२२॥

मेरुणा दत्तमखिलं यत्नप्राप्तः प्रगृह्य सः ।

भेरीरवैस्तूर्यघोषैर्विदारितदिगन्तरः ॥ २३॥

सर्वैः साकं मुदा रामो भ्रातृभिः सहितः प्रभुः ।

मङ्गलालङ्कृतं दिव्यमयोध्यानगरं ययौ ॥ २४॥

सुमेरु के द्वारा अपना सब कुछ (राम को) प्रदान कर दिया गया, जो उसने यत्नपूर्वक प्राप्त किया था, तभी भेरीरव एवं तूर्य निनाद से दिग-दिगन्तर-परिव्याप्त हो गये । सभी के साथ प्रसन्न राम, अपने भाईयों सहित, मंगलों से अलंकृत दिव्य अयोध्या नगरी गये ॥ २३-२४॥

इति श्रीशैवरामायणे पार्वतीश्वरसंवादे एकादशोऽध्यायः ।

इस प्रकार शिवपार्वती संवाद रूप में प्राप्त शैवरामायण का पार्वती - ईश्वर संवाद नामक ग्यारहवाँ अध्याय समाप्त हुआ।

आगे जारी.......... शैवरामायण अंतिम अध्याय 12 

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