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- श्रीदेवीरहस्य पटल ४
- श्रीदेवीरहस्य पटल ३
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- श्रीदेवीरहस्य पटल २
- देवीरहस्य पटल १
- जानकी द्वादशनामस्तोत्र
- जानकी अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र
- जानकी सहस्रनामस्तोत्र
- यक्षिणी साधना भाग ३
- यक्षिणी साधना भाग २
- शैवरामायण
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- शैव रामायण अध्याय ११
- अग्निपुराण अध्याय १००
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- अग्निपुराण अध्याय ९७
- अग्निपुराण अध्याय ९६
- शैव रामायण अध्याय १०
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- शैव रामायण अध्याय ७
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- अद्भुत रामायण सर्ग २६
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- सीता सहस्रनाम स्तोत्र
- शैव रामायण अध्याय ६
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मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
शैव रामायण अध्याय ९
शैव रामायण के अध्याय ९ में राम एवं
सहस्रकण्ठ का युद्ध वर्णन राम द्वारा नारायण अस्त्र से सहस्रकण्ठ का वध, सहस्रकण्ठ का हजार फण वाले शेषनाग रूप में विष्णु शय्या को प्राप्त होने,
देवताओं के प्रसन्न होने, इन्द्र द्वारा
पुष्पवृष्टि एवं सेना पर अमृतवृष्टि से राम की सेना पुनः जीवित होने तक का विवरण
वर्णित है।
शैव रामायण नौवाँ अध्याय
Shaiv Ramayan chapter 9
शैवरामायणम् नवमोऽध्यायः
शैवरामायण नवम अध्याय
शैव रामायण अध्याय ९
ईश्वर उवाच
अथ रामो महातेजाः भल्लैराशीविषोपमैः
।
छेदयामास हस्तांश्च शिरांस्यस्य
बहूनि च ।। १ ।।
समुद्वीक्ष्य तदा रामं स्वशिरः
करघातकम् ।
गृहीत्वा भ्रामइ (यि) त्वालं
वेगेनाक्षिपत् त्क्षि (क्षि) तौ ।।२।।
भगवान शङ्कर पार्वती से बोले- इसके
बाद महातेजस्वी राम ने विष बुझे बाणों की वर्षा से उस सहस्रकण्ठ राक्षस के बहुत से
हाथों और शिरों को काट डाला। तब अपने कटे हुए हाथों और शिर वाले सहस्त्रकण्ठ ने
राम को देखा और उन्हें पकड़कर चारों ओर घुमाकर पृथ्वी पर फेंक दिया ॥ १-२ ॥
अर्धचन्द्रेणान्तरिक्षे छित्वा तस्य
करौ भुवि ।
पातयामास रामोऽपि लाघवं दर्शयन्
रिपोः ।। ३ ।।
सहस्रकण्ठः दैत्येन्द्रो विस्मयाकुलमानसः
।
राममालक्ष्य समरे प्रवृद्धं
रणपण्डितम् ।।४।।
राम ने भी उसे अर्धचन्द्र अन्तरिक्ष
में अर्थात् आधे गोलाकार फेंककर उसके हाथों को पृथ्वी पर फेंककर उस शत्रु को नीचा
दिखाते हुए जमीन पर गिरा दिया। तब दैत्यराज सहस्रकण्ठ अत्यधिक व्याकुल मन वाला
होकर के,
राम को प्रबुद्ध रणपण्डित (रणबांकुरे) की तरह देखा ॥ ३-४ ॥
एकावशेषितशिरा उवाच रुषयान्वितः ।
कुतो गच्छसि राम त्वं रणे त्वां न
त्यजाम्यहम् ।। ५ ।।
यज्ञीयाश्वं न दास्यामि भवान् यदि
पुमान् भवेत् ।
जित्वा मां समरे राम गृहाण तुरगं तव
।। ६ ।।
तब बचे हुए एक शिर वाले सहस्रकण्ठ
ने क्रोध में आकर कहा ! हे राम ! तुम कहाँ जा रहे हो?
आज मैं युद्ध में तुम्हें नहीं छोडूंगा। तुम्हें अश्वमेधीय यज्ञ भी
नहीं दूँगा। तुम यदि पुरुष हो, तो मुझे युद्ध में जीतकर हे
राम ! अपना अश्वमेधीय अश्व ग्रहण करो ।।५-६ ॥
नो चेत् प्राणान् हरिष्यामि
सर्वेषां च वनौकसाम् ।
ससोदरस्य सैन्यस्य वृथायासेन किं
प्रभो ।।७।।
विदार्यमाणो यास्येऽहं
त्वदस्त्रैर्मुक्तिवल्लभाम् ।
इत्युक्तवन्तं दैत्येन्द्रं
सहस्रास्यं रघूत्तमः ।। ८ ।।
नारायणास्त्र सन्धाय कार्मुके
मुमुचे तदा ।
तदस्त्रं मन्त्रजुष्टं सत् ज्वलज्वा
(ज्ज्वा) लानलोपमम् ।। ९ ।।
प्रविश्य हृदयं तस्य प्राणान्
हृत्वाययौ पुनः ।
सहस्रकण्ठनालेभ्यस्तद्रामान्तिकमाययौ
।। १० ।।
सहस्रकण्ठ ने कहा कि इसमें कोई
सन्देह नहीं है कि मैं सभी वनवासियों के प्राणों को हर लूँगा । हे प्रभु! आप अपने
भाइयों और सेना के साथ यहाँ बेकार आये हो। मैंने तुम्हारे अस्त्रों की शोभा को
छिन्न- भिन्न कर दिया है। दैत्येन्द्र सहस्रकण्ठ के ऐसा कहने पर राम ने नारायणास्त्र
को धनुष में सन्धान करके छोड़ दिया । मन्त्र से चलायमान वह अस्त्र अद्वितीय ज्वाला
(अग्नि) की तरह सहस्रकण्ठ के हृदय में प्रवेश करके, प्राणों को हरण करके पुनः वापस आ गया, तब सहस्रकण्ठ
के नाभि से एक अद्वितीय (कान्ति) किरण निकली ॥७-१० ।।
रामबाणविनिर्भिन्नं शरीरं सन्त्यन्
(सन्त्यजन्) रणे ।
सहस्रफणवान् शेषः आसीद् विष्णुपदं
गतः ।
रामेण निहते दैत्यश्रेष्ठे शेषाः
प्रदुद्रुवुः ।। ११ ।।
राम के बाण से छिन्न-भिन्न शरीर
वाले सहस्रकण्ठ ने युद्ध में ही प्राण छोड़ दिये और हजार फनों वाला शेषनाग बन करके
विष्णुपद को प्राप्त हुआ। राम के द्वारा मारे गये अनेक श्रेष्ठ दैत्य शेषनाग के
सहचर (सर्प) बन गये ॥ ११ ॥
ततो हृष्टाः सगन्धर्वाः देवाः
ह्यर्षिगणास्तदा ।
बभूवुस्ते तत्र देवि रामचन्द्रप्रसादतः
।।१२।।
परस्परमवोचन्स्ते देवाः सेन्द्राः
मुदान्विताः ।
अहो भाग्यमहोधन्याः कृता रामेण वै
वयम् ।। १३ ।।
(सहस्रकण्ठ की मृत्यु के बाद) तब
भी गन्धर्व, देव, ऋषिगण अत्यधिक
प्रसन्न हुए। भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि हे देवि ! यह सब राम की कृपा से संभव
हो पाया । इन्द्रादि सहित सभी देवता आपस में बातचीत करते हुए बोले, अरे ! राम के इस कृत्य से हम सभी लोग भाग्यशाली होने के साथ-साथ धन्य हो
गये ॥ १२-१३ ॥
यदा प्रभृति रामोऽसौ
ह्यवतीर्णोऽस्ति भूतले ।
तदा प्रभृतिः लोकानां
क्षेममासीन्निरन्तरम् ।। १४ ।।
शुभं भवतु भो राम! त्वं हि
अवनिपालकः ।
इत्युक्त्वा च तदा रामं प्रणम्य च
पुनः पुनः ।। १५ ।।
जब-जब राम (विष्णु) ने इस भूतल पर
अवतार लिया है, तब तब निरन्तर उन्होंने सभी
लोकों का कुशल (क्षेम) या कल्याण किया है। हे राम तुम्हारा कल्याण हो, तुम पृथ्वी के पालक हो। ऐसा कहकर सभी देवतागण राम को बार-बार प्रणाम करने
लगे ।।१४-१५ ॥
रामचन्द्रोऽपि तान् वीक्ष्य मुमुदे
हर्षनिर्भरः ।
उवाच कृपयाविष्टो देवानां पुरतस्तदा
।। १६ ।।
भवतां कृपया मेऽभूद् विजयो नात्र
संशयः ।
इति वाक्यं समाकर्ण्य रामचन्द्रस्य
धीमतः ।। १७ ।।
आशिषं ते प्रयुञ्जानास्तदा (
स्वर्लोकम् ) आययुः ।
अथ दैत्येन्द्रनिहते राक्षसाश्च
वशानुगाः ।। १८ ।।
भगवान रामचन्द्र भी उन देवताओं को
हर्ष से प्रफुल्लित देखकर, उनसे कहा कि आप
सबकी कृपा से ही यह कार्य संभव हो पाया है। आप सब लोगों की कृपा से ही मेरी विजय
हुई है, इसमें कोई संशय नहीं है। बुद्धिमान रामचन्द्र के ऐसे
वाक्यों को सुनकर, सभी देवता लोग उन्हें आशीष देकर स्वर्ग
लोक चले गये। सहस्रकण्ठ की मृत्यु के बाद सभी राक्षस राम के वशीभूत या उनके
अनुयायी हो गये ।। १६-१८॥
कृता विभीषणेनैवं रणमूर्द्धनि
चासुराः ।
अगस्तिद (मना) द् भूमिं विशन्तमिव
भूधरम् ।। १९ ।।
विन्ध्याख्यं रामचन्द्रस्य सायकं नि
(?
सायकेन) हतं रणे ।
सहस्रकण्ठमुद्वीक्ष्य रामस्य निकटं ययौ
।। २० ।।
विभीषण के द्वारा भी युद्ध में अनेक
असुर मारे गये। अगस्त्य ऋषि का शिष्य विन्ध्याचल पर्वत अपने फैलाव से (बैठने से)
भूमि को अतिक्रान्त करता जा रहा था, उसे
रामचन्द्र के विन्ध्याख्य नामक धनुष ने ही युद्ध में मार दिया; क्योंकि वह सहस्रकण्ठ को देखकर राम के पास आया था ॥ १९-२० ॥
ब्रह्मादिभिः सुरैः सार्द्धं
पुष्पवृष्टिं मुदान्वितः ।
ततो ह्यमृतवृष्टिञ्च ववर्ष मघवा तदा
।। २१ ।।
तद् बभूवोत्थितं सर्वं रामसैन्यं
सविस्मयम ।
इति ते कथितं सुभ्रु रामस्य चरितं
शुभम् ।। २२ ।।
ब्रह्मादि देवताओं के साथ अन्य
देवतागण पुष्प वृष्टि करते हुए प्रसन्नतापूर्वक अपने-अपने धाम गये । तदनन्तर
इन्द्र ने अमृतवर्षा भी की । उससे राम की सेना के सभी लोग आश्चर्यचकित हो उठे खड़े
हुए। इस प्रकार (शिव ने कहा) हे पार्वती! मैंने तुमसे शुभ रामचरित की सुन्दर
(स्वच्छ ) कथा सुनायी ॥२१-२२ ॥
इति श्रीशैवरामायणे
पार्वतीश्वरसंवादे सहस्रकण्ठवघो नाम नवमोऽध्यायः ।
इस प्रकार शिवपार्वती संवाद रूप में
प्राप्त शैवरामायण का सहस्रकण्ठ वध नामक नवाँ अध्याय समाप्त हुआ।
आगे जारी.......... शैवरामायण अध्याय 10
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