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अथ अष्टनवतितमोऽध्यायः
ईश्वर उवाच
वक्ष्ये
गौरीप्रतिष्ठाञ्च पूजया सहितां शृणु ।
मण्डपाद्यं
पुरो यच्च संस्थाप्य चाधिरोपयेत् ॥१॥
शय्यायान्तांश्च
विन्यस्य मन्त्रान्मूर्त्यादिकान् गुह ।
आत्मविद्याशिवान्तञ्च
कुर्यादीशनिवेशनं ॥२॥
शक्तिं परां ततो
न्यस्य हुत्वा जप्त्वा च पूर्ववत् ।
सन्धाय च तथा
पिण्डीं क्रियाशक्तिस्वरूपिणीं ॥३॥
सदेशव्यापिकां
ध्यात्वा न्यस्तरत्नादिकां तथा ।
एवं संस्थाप्य
तां पश्चाद्देवीन्तस्यान्नियोजयेत् ॥४॥
भगवान् शिव
कहते हैं- स्कन्द ! अब मैं पूजासहित गौरी की प्रतिष्ठा का वर्णन करूँगा, सुनो। पूर्ववत् मण्डप आदि की रचना करके देवी
की स्थापना एवं शय्याधिवासन करे। पूर्वोक्त मन्त्रों और मूर्त्यादिकों का न्यास
करके आत्मतत्त्व, विद्यातत्त्व और शिवतत्त्व का परमेश्वर में
स्थापन करे। तदनन्तर पराशक्ति का न्यास, होम और जप पूर्ववत्
करके क्रियाशक्तिस्वरूपिणी पिण्डी का संधान करे। सर्वव्यापिनी पिण्डी का ध्यान करके
वहाँ रत्न आदि का न्यास करे। इस विधि से पिण्डी की स्थापना करके उसके ऊपर देवी को स्थापित
करे ॥ १-४॥
परशक्तिस्वरूपान्तां
स्वाणुना शक्तियोगतः ।
ततो
न्यसेत्क्रियाशक्तिं पीठे ज्ञानञ्च विग्रहे ॥५॥
ततोपि
व्यापिनीं शक्तिं समावाह्य नियोजयेत् ।
अम्बिकां
शिवनाम्नीञ्च समालभ्य प्रपूजयेत् ॥६॥
वे देवी
परमशक्तिस्वरूपा हैं। उनका अपने ही मन्त्र से सृष्टि- न्यासपूर्वक स्थापन करे।
तदनन्तर पीठ में क्रियाशक्ति का और देवी के विग्रह में ज्ञानशक्ति का न्यास करे। इसके
बाद सर्वव्यापिनी शक्ति का आवाहन करके देवी की प्रतिमा में उसका नियोजन करे। फिर 'शिवा' नामवाली अम्बिका
देवी का स्पर्शपूर्वक पूजन करे*॥५-६॥
* पाठान्तर के अनुसार 'अमुकेशी' इत्यादि
नाम से उनका स्पर्शपूर्वक पूजन करे यथा-'रामेश्वर्यै नमः।
कृष्णेश्यै नमः।' इत्यादि ।
ओं आधारशक्तये
नमः । ओं कूर्माय नमः ।
ओं स्कन्दाय च
तथा नमः । ओं ह्रीं नारायणाय नमः । ओं ऐश्वर्याय नमः।
ओं अं
अधश्छदनाय नमः । ओं पद्मासनाय नमः ।
ओं
ऊर्ध्वच्छदनाय नमः । ओं पद्मासनाय नमः ।
अथ सम्पूज्याः
केशवास्तथा ।
ओं ह्रीं
कर्णिकाय नमः । ओं क्षं पुष्कराक्षेभ्य इहार्चयेत् ।
ओं हां
पुष्ट्यै ह्रीं च ज्ञानायै ह्रूं क्रियायै ततो नमः ।
पूजा के
मन्त्र इस प्रकार हैं- ॐ आं आधारशक्तये नमः । ॐ कूर्माय नमः । ॐ कन्दाय नमः । ॐ
ह्रीं नारायणाय नमः । ॐ ऐश्वर्याय नमः । ॐ अधश्छदनाय नमः । ॐ पद्मासनाय नमः ।' तदनन्तर केसरों की पूजा करे। तत्पश्चात् 'ॐ ह्रीं कर्णिकायै नमः । ॐ क्षं
पुष्कराक्षेभ्यो नमः ।'-इन मन्त्रों द्वारा कर्णिका एवं कमलाक्षों का पूजन करे। इसके
बाद 'ॐ हां पुष्ट्यै नमः । ॐ ह्रीं ज्ञानायै नमः । ॐ हुं
क्रियायै नमः ।' – इन मन्त्रों द्वारा पुष्टि, ज्ञाना एवं क्रियाशक्ति का पूजन करे ॥ ७-१० ॥
ओं नालाय नमः
। रुं धर्माय नमः ।
रुं ज्ञानाय
वै नमः । ओं वैराग्याय वै नमः ।
ओं वै अधर्माय
नमः । ओं रुं अज्ञानाय वै नमः ।
ओं अवैराग्याय
वै नमः । अं अनैश्वर्याय नमः ।
हुं वाचे हुं
च रागिण्यै क्रैं ज्वालिन्यै ततो नमः ।
ओं ह्रौं
शमायै च नमः । ह्रुं ज्येष्ठायै ततो नमः ।
ओं ह्रौं रौं
क्रौं नवशक्त्यै गौं च गौर्यासनाय च ।
गौं
गौरीमूर्तये नमः । गौर्या मूलमथोच्यते ।
ओं ह्रीं सः
महागौरि रुद्रदयिते स्वाहा । गौर्यै नमः ।
गां ह्रूं
ह्रीं शिवो गूं स्यात्शिवायै कवचाय च ।
गों नेत्राय च
गों अस्त्राय ओं गौं विज्ञानशक्तये ।
'ॐ नालाय नमः । ॐ रं धर्माय नमः । ॐ रुं ज्ञानाय नमः । ॐ वैराग्याय नमः । ॐ
अधर्माय नमः । ॐ र अज्ञानाय नमः । ॐ अवैराग्याय नमः । ॐ अनैश्वर्याय नमः ।' - इन मन्त्रों द्वारा नाल आदि की पूजा करे। ॐ
ह्रूं वाचे नमः । ॐ ह्रूं रागिण्यै नमः । ॐ ह्रूं ज्वालिन्यै नमः । ॐ ह्रौं शमायै
नमः । ॐ ह्रूं ज्येष्ठायै नमः । ॐ ह्रौं रौं क्रौं नवशक्त्यै नमः ।- इन
मन्त्रों द्वारा वाक् आदि शक्तियों की पूजा करे। 'ॐ गौं
गौर्यासनाय नमः । ॐ गौं गौरीमूर्तये नमः ।' अब गौरी का
मूलमन्त्र बताया जाता है- ॐ ह्रीं सः महागौरि रुद्रदयिते स्वाहा गौर्यै नमः । ॐ
गां हृदयाय नमः, ॐ गीं शिरसे स्वाहा । ॐ गूं शिखायै
वषट् । ॐ मैं कवचाय हुम् । ॐ ग नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ गः अस्त्राय फट् । ॐ गाँ
विज्ञानशक्तये नमः ।' - इन मन्त्रों से शिखा आदि की पूजा
करे ॥ ११-१५ ॥
ओं गूं
क्रियाशक्तये नमः । पूर्वादौ शाक्रादिकान् ।
ओं सुं
सुभागायै नमः । ह्रीं वीजललिता ततः ।
ओं ह्रीं
कामिन्यै च नमः ।
ओं ह्रूं
स्यात्कामशालिनीमन्त्रैर्गौरीं प्रतिष्ठाप्य प्रार्च्य जप्त्वाथ सर्वभाक् ॥
ॐ गूं
क्रियाशक्तये नमः । - इस
मन्त्र से क्रियाशक्ति की पूजा करे। पूर्वादि दिशाओं में इन्द्रादि देवताओं का
पूजन करे। इनके मन्त्र पहले बताये गये हैं। ॐ सुं सुभगायै नमः - इससे सुभगा
का, 'ॐ ह्रीं ललितायै नमः ।' से ललिता का पूजन करे।'ॐ ह्रीं कामिन्यै नमः ।'
'ॐ हूँ काममालिन्यै नमः ।'- इन मन्त्रों से
गौरी की प्रतिष्ठा, पूजा और जप करने से उपासक सब कुछ पा लेता
है * ॥ १६-१७ ॥
* सोमशम्भु की 'कर्मकाण्ड-क्रमावली' में इन मन्त्रों के स्वरूप और
बीज कुछ भिन्न रूप में मिलते हैं। अतः उन्हें अविकल रूप में यहाँ उद्धृत किया जाता
है-ॐ आं आधारशक्तये नमः ॐ ईं कन्दराय नमः । ॐ ॐ नालाय नमः ॐ ऋं धर्माय नमः । ॐ ऋॄं
ज्ञानाय नमः । ॐ लृं वैराग्याय नमः ॐ लॄं ऐश्वर्याय नमः । ॐ ऋं अधर्माय नमः । ॐ ऋॄं
अज्ञानाय नमः । ॐ लृं अवैराग्याय नमः । ॐ लॄं अनैश्चर्यांय नमः । ॐ अः
ऊर्ध्वच्छदनाय नमः । ॐ ह्रां पद्माय नमः । ॐ ह्रं केसरेभ्यो नमः । ॐ ह्रं
कर्णिकायै नमः । ॐ ह्रं पुष्करेभ्यो नमः । ॐ ह्रं प्रायै नमः । ॐ ह्रौं ज्ञानवत्यै
नमः । ॐ ह्रूं क्रियायै नमः । ॐ ह्लृं वामायै नमः । ॐ ह्लृं वागीश्वर्यं नमः ॐ
ह्रीं ज्यालिन्यै नमः । ॐ ह्रों ज्येष्ठायै नमः । ॐ ह्रौं रौद्र नमः इति
सर्वशक्तयः । ॐ गां गौर्यासनाय नमः ॥ ॐ गों गौरीमूर्तये नमः । ॐ ह्रीं सः महागौरि
रुद्रदयिते स्वाहा । इति मूलमन्त्रः । गां हृदयाय नमः। गीं शिरसे स्वाहा। गूं
शिखायै वषट् । गैं कवचाय हुम्। गौं नेत्रेभ्यो वौषट् । गः अस्त्राय फट् । ॐसीं
ज्ञानशक्तये नमः । ॐ सूं क्रियाशक्तये नमः । लोकपालमन्त्रास्तु पूर्वोक्ता: । ऐं स्हें
सुभगायै नमः । ॐ स्हैं ललितायै नमः । ॐ स्हं कामिन्यै नमः । ॐ स्हौं काममालिन्यै
नमः। इत्येता गौरीसमानसख्यः ।
इत्याग्नेये
महापुराणे गौरीप्रतिष्ठा नामाष्टनवतितमोऽध्यायः॥९८॥
इस प्रकार आदि
आग्नेय महापुराण में 'गौरी-प्रतिष्ठा विधि का वर्णन' नामक अट्ठानवेवाँ
अध्याय पूरा हुआ ॥९८॥
आगे जारी.......... अग्निपुराण अध्याय 99
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