यक्षिणी साधना भाग ३
कामरत्न नामक तन्त्र-ग्रन्थ में
यक्षिणी-साधना की विधियों का वर्णन उल्लिखित है। यहाँ पूर्व में भाग १ व भाग २ पढ़ा,
अब भाग ३ को दिया जा रहा है।
यक्षिणी साधना भाग ३
Yakshini sadhana
विविध यन्त्रोक्त यक्षिणी साधना विधि
अब विभिन्न तन्त्र ग्रन्थों से
उद्धत कर,
विभिन्न यक्षिणियों के साधना मंत्र और उनकी साधन-विधि का वर्णन किया
जाता है। पाठ भेद के अनुसार जिन यक्षिणियों के साधन-मंत्र और साधन-विधि में जो
अन्तर है, उसे अलग-अलग प्रकार से पृथक्-पृथक् दे दिया गया है
। पाठ-भेद से इसमें कई मन्त्र बार-बार प्रयुक्त हुए हैं। साथ ही साधन सम्बन्धी
देसी भाषा के मंत्रों को भी इसी प्रकरण में सन्निविष्ट कर दिया गया है।
यक्षिणी साधना का साधक के लिये निर्देश
जिस किसी यक्षिणी का साधना करना हो,
उसका माता, भगिनी (बहन), पुत्री अथवा मित्र, इनमें से किसी भी स्वरूप का ध्यान
करे । मांस-रहित भोजन करे, पान खाना छोड़ दे, किसी का स्पर्श न करे तथा निश्चिन्त होकर, एकान्त
स्थान में मन्त्र का तब तक जप करें, जब तक सिद्धि प्राप्त न
हो। जिन यक्षिणियों के साधन के लिए जिस स्थान पर बैठकर मंत्र जाप की विधि का वर्णन
किया गया है उनका साधन उसी प्रकार से करना चाहिए।
धनदा यक्षिणी
साधना
मंत्र-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं धनं कुरु कुरु
स्वाहा ।"
साधन विधि - अश्वत्थ (पीपल) के
वृक्ष पर बैठकर उक्त मंत्र का एकाग्रचित्त से १०००८ जप करने से 'धनदा यक्षिणी' प्रसन्न होकर साधक को धन प्रदान करती
है ।
पुत्रदा यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ ह्रीं ह्री पुत्रं कुरु
कुरु स्वाहा ।"
साधन विधि-आम के वृक्ष पर बैठकर
उक्त मन्त्र का एकाग्रचित्त से १०००० जप करने से 'पुत्रदा यक्षिणी' प्रसन्न होकर अपुत्री साधक को
पुत्र प्रदान करती है।
महालक्ष्मी यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै
नमः ।"
साधन विधि-बरगद के वृक्ष पर बैठकर
उक्त यंत्र का एकाग्र- चित्त से १०००० जप करने ले 'महालक्ष्मी' यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को स्थिर
लक्ष्मी प्रदान करती है ।
जया यक्षिणी साधना
मंत्र-
ॐ जय कुरु कुरु स्वाहा ।"
साधन विधि-पाक के पौधे की जड़ में
बैठकर उक्त यंत्र का एकाग्रचित्त से १०००० जप करने से जया यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक
को सभी कार्यों में विजय प्रदान करती है ।
अशुभ क्षयकारिणी यक्षिणी
साधना
मंत्र- "ॐ क्लीं नमः ।”
साधन विधि - धात्री (आँवला) वृक्ष
की जड़ में बैठकर उक्त मंत्र का एकाग्रचित्त से १०००० जप करने से अशुभ क्षयकारिणी
यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक के सभी अशुभ (अमंगलों) का विनाश करती है ।
राज्यप्रदा यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ ऐं ह्रीं नमः ।"
साधन विधि-तुलसी के पौधे की जड़ के
समीप बैठकर उक्त यंत्र का एकाग्रचित्त से १००० बार जप करने से राज्यप्रदा यक्षिणी
प्रसन्न होकर साधक को अकस्मात् ही राज्य की प्राप्ति कराती है ।
राज्यदाता यक्षिणी साधना
मंत्र-
“ॐ ह्रीं नमः ।"
साधन-विधि -- अंकोल वृक्ष पर बैठकर
उक्त मंत्र का एकाग्रचित्त से १०००० जप करने से राज्यदाता यक्षिणी साधक पर प्रसन्न
होकर,
उसे राजाधिराज बनाती है ।
सर्व कार्यसिद्धिदा
यक्षिणी साधना
मंत्र-
“ॐ वाङमयं नमः ऐं
।"
साधन विधि-कुश की जड़ में बैठकर
उक्त मंत्र का एकाग्रचित्त से १०००० जप करने से सर्व कार्यं सिद्धिदा यक्षिणी साधक
पर प्रसन्न होकर उसके सब कार्यों को सिद्ध करती है ।
वाचासिद्धि: यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ ह्रीं श्रीं भारत्यै नमः
।"
साधन विधि-अपामार्ग पौधे पर बैठकर
उक्त मंत्र का एकाग्रचित्त से १०००० जप करने से वाचासिद्धि यक्षिणी प्रसन्न होकर, साधक की वाचा सिद्ध करती है, अर्थात् साधक जो कहता है,
वही होता है ।
सर्व विद्या यक्षिणी साधना
मंत्र-
ॐ ह्रीं श्रीं शारदायै नमः ।"
साधन विधि- औदुम्बर के वृक्ष पर
बैठकर उक्त मंत्र का एकाग्रमन से १०००० जप करने से सर्व विद्या यक्षिणी साधक पर
प्रसन्न होकर, उसे सभी चौदह विद्याओं की
सिद्धि प्रदान करती है।
सन्तोष यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ सरस्वत्यै नमः ।"
साधन विधि - श्वेत घुंघची की जड़ पर
बैठकर उक्त मंत्र का एकाग्रमन से १०००० जप करने से सन्तोष नामक यक्षिणी प्रसन्न
होकर साधक को वांछित फल प्रदान करती है ।
विद्यादाता यक्षिणी साधना
मंत्र--
ॐ नमो जगन्मात्रे नमः ।
साधन विधि-निर्गुण्डी के पौधे पर
बैठकर उक्त मन्त्र का एकाग्रचित्त से १००० जप करने पर विद्यादाता यक्षिणी प्रसन्न
होकर साधक को विद्या प्रदान करती है ।
सुरसुन्दरी यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ ह्रीं आगच्छ आगच्छ
सुरसुन्दरी स्वाहा ।"
साधन विधि- त्रिकाल में एकलिंग
महादेव की विधिपूर्वक पूजा कर, धूप देकर,
उक्त मन्त्र का प्रतिदिन ३००३ को संख्या में जप करे तथा सुरसुन्दरी
यक्षिणी को प्रणाम कर अपनी अभिलाषा को प्रकट करता रहे। इस भाँति नियमपूर्वक एक मास
तक साधन करने से सुरसुन्दरी यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दर्शन देती है । साधक को
चाहिए कि यक्षिणी दर्शन के समय उसे अर्घ्य देकर अपनी मनोभिलाषा को प्रकट करे ।
फलस्वरूप सुरसुन्दरी यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक की धन, आयु
एवं चिरजीवन सम्बन्धी इच्छाओं को पूर्ण करती है।
अनुरागिरणी यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ अनुरागिरिण मैथुनप्रिये स्वाहा
।"
साधन विधि- किसी भी प्रतिपदा से इस
साधन को आरम्भ करना चाहिये । सर्वं प्रथम कुंकुम से भोजपत्र के ऊपर उक्त यन्त्र को
लिखे फिर तीनों सन्ध्याकाल में उक्त मंत्र का ३००० जप करे। इस प्रकार जब एक महीना
पूरा हो जाय, तब आधी रात के समय पूजन करके
उक्त मंत्र का ३००० जप करें तो अनुरागिणी यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को दर्शन देती
है और उससे उसकी मनोभिलाषा के सम्बन्ध में प्रश्न करती है। उस समय साधक को चाहिए
कि वह यक्षिणी के समक्ष अपनी मनोभिलाषा को प्रकट करे । यक्षिणी उसकी पूर्ति कर
देती है तथा साधक को प्रतिदिन सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ प्रदान करती है। ऐसा
तंत्रशास्त्रों में लिखा है ।
अमृता यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ ह्रीं चण्डिके हंसः ह्रीं
क्लीं स्वाहा ।"
साधन विधि - इस साधन को किसी भी
शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरम्भ कर पूर्णिमा तक जब तक चन्द्रमा दिखाई दे,
करना चाहिए। इस सम्पूर्ण अवधि में एक लाख मंत्र का जप करना चाहिए।
इसके फलस्वरूप अमृता नामक यक्षिणी साधक को अमृत देकर चिंरजीवी बना देती है-ऐसा
तंत्र शास्त्रों का कथन है ।
कर्णपिशाचिनी यक्षिणी साधना
मंत्र-
“ॐ ह्रीं चण्डवेगिनी वद वद स्वाहा
।"
साधन विधि - सर्व प्रथम इस मंत्र का
१०००० जप करना चाहिए। तदुपरान्त किसी कृष्ण वर्ण (काले रंग) की क्वारी कन्या को
अभिमंत्रित कर उसका पूजन करे और उसके हाथों, पाँवों
में कुमकुम लगाये । अलकों में मल्लिका- पुष्प तथा कनेर के पुष्प लगाकर लाल रंग के
डोरे से वेष्टित करे। इस साधन के द्वारा कर्ण पिशाचिनी यक्षिणी साधक के वशीभूत
होकर उसे तीनों लोक और तीनों काल के शुभाशुभ का ज्ञान कराती रहती है। साधक को
चाहिये कि वह मंत्र सिद्ध हो जाने पर अभिमंत्रित लाल सूत्र, मल्लिका
पुष्प तथा लाल कनेर के पुष्प को धारण किये रहे ।
भोग यक्षिणी साधना
मंत्र-
"ॐ नमो आगच्छ सुरसुन्दरी
स्वाहा ।"
साधन विधि-स्नान करके शुद्ध वस्त्र
धारण कर उक्त मंत्र का ६०००० जप करे तथा पंचखाद्य (मेवा) का दशांश हवन कर,
उसका दशांश तर्पण करे । पुरश्चरण की पूर्ति तक भूमि में शयन करे ।
वाणी को रोके और लघु दूध-भात का भोजन करे तो भोग यक्षिणी सिद्ध होकर साधक को
प्रतिदिन स्वर्णमुद्रा देती है।
भोग यक्षिणी साधना २
मंत्र-
“ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमः ।"
साधन विधि - इस मंत्र का २०००० जप करके नैवेद्य,
गरम दूध और खीर का भोजन करे तो भोग यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक का
विविध प्रकार के भोग प्रदान करती है और भूत-प्रेत पिशाचादि साधक की सेवा करते रहते
हैं।
धनदा यक्षिणी साधना
मंत्र-
" ह्रां ह्रीं ह्रीं ह्र'
ह्रौं ह्रः । "
साधन विधि - इस मंत्र का १२५००० जप
करने से धनदा यक्षिणी साधक पर प्रसन्न होकर उसे धन प्रदान करती है ।
श्मशान यक्षिणी साधना (१)
मंत्र-
“ॐ क्लीं भगवतोभ्यो नमः ।"
साधन विधि - इस मंत्र का ५०००० जप
करे तथा मद्य के ३ खाली घड़े रख छोड़े, उनमें
भोजन करे तो श्मशान यक्षिणी सिद्ध होकर साधक के कान में तीनों लोक की बात कहती है
तथा उसे फल-फूल बीज लाकर देती है।
श्मशान यक्षिणी साधना (२)
मंत्र-
“ॐ ह्रूं ह्रीं स्फूं
श्मशाने वासिनी श्मशाने स्वाहा । "
साधन विधि - श्मशान में नंगा होकर
बैठे तथा बाल खोलकर ५०००० मंत्र का जप करे तो श्मशान यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को
ऐसा वस्त्र देती है, जिसे धारण करने से
साधक दूसरों की दृष्टि में अदृश्य हो जाता है।
वशीकरण यक्षिणी साधना
मंत्र-
ॐ द्वार देवतायै ह्रीं स्वाहा
।"
साधन विधि-नदी के तट पर,
पवित्र होकर बैठे तथा इस मंत्र का २६००० जप करके दशांश गूगल तथा घी
का हवन करे तो वशीकरण यक्षिणी प्रसन्न होकर साधक को इच्छित वर देती है। इस हवन की
भस्म जिस स्त्री के शरीर से लगा दी जाय, वह वशीभूत हो जाती
है।
बन्ध मोचन यक्षिणी साधना
मंत्र--
“ॐ नमो हटेले कुमारी
स्वाहा।”
साधन विधि - इस मंत्र का सात दिन तक
प्रतिदिन २००० जप करे तथा दशांश दूध और घृत का हवन करके एक क्वारी कन्या को पंच
खाद्य वस्तुओं से भोजन कराये तो देवी प्रसन्न होकर साधक को बन्धन मुक्त कर देती है
।
अदृष्ट करण यक्षिणी साधना
मंत्र-
ॐ कनकवती करवीर के स्वाहा ।"
साधन विधि- कृष्णपक्ष की अष्टमी से
प्रारम्भ करके अमावस्या तक प्रतिदिन इस मंत्र का तीन सहस्र जप करे तथा दशांश कड़वे
नीम की समिधाओं पर घृत से हवन करे तो अदृष्टकरण यक्षिणी प्रसन्न होती है। इस हवन
की भस्म का तिलक मस्तक पर लगाने से अदृश्य करण होता है अर्थात् साधक दूसरों की
दृष्टि में अदृश्य हो जाता है।
विद्या यक्षिणी साधना
मंत्र-
ॐ ह्रीं वेदमातृभ्यः स्वाहा ।"
साधन विधि - इस मन्त्र का २५००० जप
करके दशांश पंच मेवा का हवन करने से विद्या यक्षिणी सिद्ध होकर साधक को विद्या
प्रदान करती है।
आगे जारी...........यक्षिणी साधना भाग 4
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