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- श्रीघटिकाचलहनुमत्स्तोत्रम्
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- हनुमत्सहस्रनामस्तोत्रम्
- हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्रम्, श्रीहनुमत्सहस्र नामावलिः
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- हनुमान रक्षा स्तोत्र
- श्रीहनुमत्प्रशंसनम्
- श्रीहनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्
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- एकादशमुख हनुमत्कवचम्
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- पञ्चमुख हनुमत् हृदयम्
- पञ्चमुखिहनुमत्कवचम्
- पंचमुखहनुमत्कवचम्
- पञ्चमुखि वीरहनूमत्कवचम्
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीहनूमन्नवरत्नपद्यमाला
वे किसी ना
किसी वेश में भक्तों के बीच उपस्थित होते हैं। लेकिन उन्हें पहचानने के लिए गहरी
भक्ति भावना की आवश्यकता होती है। और जो उन्हें पहचान ले उसका जीवन हनुमान जी सफल
बना देते हैं। श्रीहनूमन्नवरत्नपद्यमाला का पाठ करने से भक्त की जो भी अभीष्ट हो हनुमानजी उन्हें शीघ्र ही पूरी कर देते हैं।
श्रीहनूमन्नवरत्नपद्यमाला
श्रितजनपरिपालं
रामकार्यानुकूलं
धृतशुभगुणजालं
यातुतन्त्वार्तिमूलम् ।
स्मितमुखसुकपोलं
पीतपाटीरचेलं
पतिनतिनुतिलोलं
नौमि वातेशबालम् ॥ १॥
दिनकरसुतमित्रं
पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रं
शिशुतनुकृतचित्रं
रामकारुण्यपात्रम् ।
अशनिसदृशगात्रं
सर्वकार्येषु जैत्रं
भवजलधिवहित्रं
स्तौमि वायोः सुपुत्रम् ॥ २॥
मुखविजितशशाङ्कं
चेतसा प्राप्तलङ्कं
गतनिशिचरशङ्कं
क्षालितात्मीयपङ्कम् ।
नगकुसुमविटङ्कं
त्यक्तशापाख्यश्रृङ्गं
रिपुहृदयलटङ्कं
नौमि रामध्वजाङ्कम् ॥ ३॥
दशरथसुतदूतं
सौरसास्योद्गगीतं
हतशशिरिपुसूतं
तार्क्ष्यवेगातिपातम् ।
मितसगरजखातं
मार्गिताशेषकेतं
नयनपथगसीतं
भावये वातजातम् ॥ ४॥
निगदितसुखिरामं
सान्त्वितैक्ष्वाकुवामं
कृतविपिनविरामं
सर्वरक्षोऽतिभीमम् ।
रिपुकुलकलिकामं
रावणाख्याब्जसोमं
मतरिपुबलसीमं
चिन्तये तं निकामम् ॥ ५॥
निहतनिखिलशूरः
पुच्छवह्निप्रचारः
द्रुतगतपरतीरः
कीर्तिताशेषसारः ।
समसितमधुधारो
जातपम्पावतारो
नतरघुकुलवीरः
पातु वायोः कुमारः ॥ ६॥
कृतरघुपतितोषः
प्राप्तसीताङ्गभूषः
कथितचरितशेषः
प्रोक्तसीतोक्तभाषः ।
मिलितसखिहनूषः
सेतुजाताभिलाषः
कृतनिजपरिपोषः
पातु कीनाशवेषः ॥ ७॥
क्षपितबलिविपक्षो
मुष्टिपातार्तरक्षः
रविजनपरिमोक्षो
लक्ष्मणोद्धारदक्षः ।
हृतमृतिपरपक्षो
जातसीतापरोक्षो
विरमितरणदीक्षः
पातु मां पिङ्गलाक्षः ॥ ८॥
सुखितसुहृदनीकः
पुष्पयानप्रतीकः
शमितभरतशोको दृष्टरामाभिषेकः
।
स्मृतपतिसुखिसेको
रामभक्तप्रवेकः
पवनसुकृतपाकः
पातु मां वायुतोकः ॥ ९॥
अष्टाश्रीकृतनवरत्नपद्ममालां
भक्त्या
श्रीहनुमदुरःस्थले निबद्धाम् ।
सङ्गृह्य
प्रयतमना जपेत् सदा यः
सोऽभीष्टं
हरिवरतो लभेत शीघ्रम् ॥ १०॥
इति श्रीहनूमन्नवरत्नपद्यमाला समाप्ता ।
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