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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
श्रीहनुमत्प्रशंसनम्
हनुमान जी को अपनी शक्ति भूले हुए से रहते हैं अतः जब सब साधक उन्हें चालीसा,स्तोत्र,कवच अदि स्तुतियों से उन्हें पूजते है तो हनुमान जी अति बलशाली होकर भक्त की सारी मनोकामनाए की सिद्ध करते हैं हनुमान जी की प्रसन्नता के लिए ऐसा ही स्तोत्र है श्रीहनुमत्प्रशंसनम् ।
॥ श्रीहनुमत्प्रशंसनम् ॥
मुक्तिप्रदानात् प्रतिकर्तृता मे सर्वस्य बोधो भवतां भवेत ।
हनूमतो न प्रतिकर्तृता स्यात् स्वभावभक्तस्य निरौषधं मे ॥ १॥
मद्भक्तौ ज्ञानपूर्तावनुपधिकबलप्रोन्नतिस्थैर्यधैर्य -
स्वाभाव्याधिक्यतेजःसुमतिदमशमेष्वस्य तुल्यो न कश्चित् ।
शेषो रुद्रः सुपर्णोऽप्युरुगुणसमितौ नो सहस्रांशुतुल्या
अस्येत्यस्मान्मदैशं पदमहममुना सार्धमेवोपभोक्ष्ये ॥ २॥
पूर्वं जिगाय भुवनं दशकन्धरोऽसा -
वब्जोद्भवस्य वरतो न तु तं कदाचित् ।
कश्चिज्जिगाय पुरुहूतसुतः कपित्वाद् -
विष्णोर्वरादजयदर्जुन एव चैनम् ॥ ३॥
दत्तो वरो न मनुजान् प्रति वानरांश्च धात्रास्य तेन विजितो युधि वालिनैषः ।
अब्जोद्भवस्य वरमाश्वभिभूय रक्षो जिग्ये त्वहं रणमुखे बलिमाह्वयन्तम् ॥ ४॥
बलेर्द्वास्थोऽहं वरमस्मै सम्प्रदाय पूर्वं तु ।
तेन मया रक्षोऽस्तं योजनमयुतं पदाङ्गुल्या ॥ ५॥
पुनश्च युद्धाय समाह्वयन्तं न्यपातयं रावणमेकमुष्टिना ।
महाबलोऽहं कपिलाख्यरूपस्त्रिकूटरूपः पवनश्च मे सुतः ॥ ६॥
आवां स्वशक्त्या जयिनाविति स्म शिवो वरान्तेऽजयदेनमेवम् ।
ज्ञात्वा सुराजेयमिमं हि वव्रे हरो जयेयाहममुं दशाननम् ॥ ७॥
अतः स्वभावाज्जयिनावहं च वायुश्च वायुर्हनुमान् स एषः ।
अमुष्य हेतोस्तु पुरा हि वायुना शिवेन्द्रपूर्वा अपि काष्ठवत्कृताः ॥ ८॥
अतो हनूमान् पदमेतु धातुर्मदाज्ञया सृष्ट्यवनादिकर्म ।
मोक्षं च लोकस्य सदैव कुर्वन् मुक्तश्च मुक्तान् सुखयन् प्रवर्तताम् ॥ ९॥
भोगाश्च ये यानि च कर्मजातान्यनाद्यनन्तानि ममेह सन्ति ।
मदाज्ञया तान्यखिलानि सन्ति धातुः पदे तत् सहभोगनाम ॥ १०॥
एतादृशं मे सहभोजनं ते मया प्रदत्तं हनुमन् सदैव ।
इतीरितस्तं हनूमान् प्रणम्य जगाद वाक्यं स्थिरभक्तिनम्रः ॥ ११॥
इति श्रीमदानन्दतीर्थीयमहाभारततात्पर्यनिर्णयतः
श्रीहनुमत्प्रशंसनम् ।
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