Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2021
(800)
-
▼
January
(88)
- आरुण्युपनिषद्
- हनुमान जी
- श्रीहनुमच्चतुर्विंशतिः
- श्रीहनूमन्नवरत्नपद्यमाला
- श्रीघटिकाचलहनुमत्स्तोत्रम्
- श्रीहनुमत्सहस्रनामावलिः अथवा आन्जनेयसहस्रनामावलिः
- हनुमत्सहस्रनामस्तोत्रम्
- हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्रम्, श्रीहनुमत्सहस्र नामावलिः
- लान्गूलोपनिषत्
- श्रीहनुमत्कल्पः
- श्रीहनुमत्सूक्तम्
- श्रीहनुमत्स्तोत्रम्
- श्रीहनुमद्वन्दनम्
- श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः
- हनुमान रक्षा स्तोत्र
- श्रीहनुमत्प्रशंसनम्
- श्रीहनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्
- लाङ्गूलास्त्रशत्रुञ्जय हनुमत्स्तोत्रम्
- एकादशमुखि हनुमत्कवचम्
- एकादशमुख हनुमत्कवचम्
- सप्तमुखीहनुमत्कवचम्
- पञ्चमुख हनुमत् हृदयम्
- पञ्चमुखिहनुमत्कवचम्
- पंचमुखहनुमत्कवचम्
- पञ्चमुखि वीरहनूमत्कवचम्
- एकमुखी हनुमत्कवचम्
- संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्
- श्रीहनुमत्कवचम्
- मारुतिकवच
- हनुमत्कवचं
- हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र
- हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
- सुन्दरकाण्डरामायणनिर्णयः
- आञ्जनेय गायत्री ध्यानम् त्रिकाल वंदनं
- श्रीरामचरित मानस- उत्तरकांड, मासपारायण, तीसवाँ विश...
- श्रीरामचरित मानस- उत्तरकांड मासपारायण, उन्तीसवाँ व...
- श्रीरामचरित मानस- उत्तरकांड, मासपारायण, अट्ठाईसवाँ...
- श्रीरामचरित मानस- लंकाकांड, मासपारायण, सत्ताईसवाँ ...
- श्रीरामचरित मानस- लंकाकांड, मासपारायण, छब्बीसवाँ व...
- श्रीरामचरित मानस- लंकाकांड, मासपारायण, पच्चीसवाँ व...
- श्री राम चरित मानस- सुंदरकांड, मासपारायण, चौबीसवाँ...
- श्री राम चरित मानस- किष्किंधाकांड, मासपारायण, तेईस...
- श्री राम चरित मानस- अरण्यकांड, मासपारायण, बाईसवाँ ...
- आदित्यहृदयम् भविष्योत्तरपुराणान्तर्गतम्
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, इक्कीस...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, बीसवाँ...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, उन्नीस...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, अठारहव...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, सत्रहव...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, सोलहवा...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, पन्द्र...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, चौदहवा...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड
- वज्रसूचिका उपनिषद्
- शिवसङ्कल्पोपनिषत्
- कालाग्निरुद्रोपनिषत्
- शरभोपनिषत्
- सर्वसारोपनिषत्
- रुद्राष्टाध्यायी
- कठरुद्रोपनिषत्
- रुद्राष्टकम्
- मुण्डकोपनिषद् तृतीयमुण्डक द्वितीय खण्ड
- मुण्डकोपनिषद् तृतीय मुण्डक प्रथम खण्ड
- मुण्डकोपनिषद् द्वितीय मुण्डक द्वितीय खण्ड
- मुण्डकोपनिषद् द्वितीय मुण्डक प्रथम खण्ड
- मुण्डकोपनिषद् प्रथममुण्डक द्वितीय खण्ड
- मुण्डकोपनिषद्
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, बारहवाँ व...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, ग्यारहवाँ...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, दसवाँ विश...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, नवाँ विश्राम
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, आठवाँ विश...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, सातवाँ वि...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, छठा विश्राम
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, पाँचवाँ व...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, चौथा विश्राम
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, तीसरा विश...
- श्री राम चरित मानस- बालकाण्ड, मासपारायण, दूसरा विश...
- स्कन्दोपनिषत्
- शिव प्रश्नावली चक्र
- श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र
- नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र
- हनुमान प्रश्नावली चक्र
- श्रीराम शलाका प्रश्नावली
- रामचरितमानस बालकांड पहला विश्राम
- श्रीरामचरित मानस- पारायण विधि
- श्रीरामदशावरणपूजा
- राम पूजन विधि
-
▼
January
(88)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
मुण्डकोपनिषद् प्रथममुण्डक द्वितीय खण्ड
मुण्डकोपनिषद्
मुण्डकोपनिषद्
प्रथम मुण्डक के द्वितीय खण्ड में कुल १३
मंत्र है। मुण्डकोपनिषद् प्रथम मुण्डक के
प्रथम खण्ड में 'ब्रह्मविद्या', 'परा-अपरा विद्या' तथा 'ब्रह्म से जगत् की उत्पत्ति' आपने पढ़ा। अब द्वितीय खण्ड में निम्न पढ़ेंगे-
• इस खण्ड में 'यज्ञ,' अर्थात अग्निहोत्र को मान्यता दी गयी है। यज्ञ में दो
आहुतियां देने की उन्होंने बात की है- 'ॐ प्रजापते स्वाहा' और 'ॐ इन्द्राय स्वाहा, अर्थात समस्त प्रजाओं के परम ऐश्वर्यवान प्रभु के प्रति हम
आत्म-समर्पण करते हैं।
• महान चैतन्यतत्त्व 'अग्नि' (ब्रह्म), जो हम सभी का उपास्य है, श्रद्धापूर्वक उसे दी गयी आहुति अत्यन्त कल्याणकारी होती
है। जिस अग्निहोत्र में आत्म-समर्पण की भावना निहित होती है और जो निष्काम भाव से
किया जाता है, उससे समस्त लौकिक वासनाओं का नाश हो जाता है और आहुतियां प्रदान करने वाला
साधक ब्रह्मलोक में आनन्दघन परमात्मा का सान्निध्य प्राप्त करता है,
परन्तु जो अविद्या-रूपी अन्धकार से ग्रसित होकर कर्मकाण्ड
करते हैं,
वे मूर्खों की भांति अनेक कष्टों को सहन करते हैं।
• जिसने यम-नियमों आदि की साधना से,
अपने चित्त को तामसिक व राजसिक वृत्तियों से दूर कर लिया हो,
ऐसे ज्ञानवान शिष्य के पास आने पर,
गुरु को उसे 'ब्रह्मविद्या' का उपदेश अवश्य देना चाहिए।
॥ अथ मुण्डकोपनिषद् प्रथममुण्डके: द्वितीयः खण्डः ॥
द्वितीय खण्ड
तदेतत् सत्यं
मन्त्रेषु कर्माणि कवयो
यान्यपश्यंस्तानि
त्रेतायां बहुधा सन्ततानि ।
तान्याचरथ
नियतं सत्यकामा एष वः
पन्थाः
सुकृतस्य लोके ॥ १॥
यह सर्वविदित
सत्य है कि बुद्धिमान् ऋषियों ने जिन कर्मों को वेदमन्त्रों में देखा था,
वह तीनो वेदों मे बहुत प्रकार से व्याप्त है । हे सत्य को
चाहनेवाले मनुष्यों तुम लोग उनका नियमपूर्वक अनुष्ठान करो,
इस मनुष्य शरीर में तुम्हारे लिये यही शुभ कर्म की फल
प्राप्ति का मार्ग है। ॥१॥
यदा लेलायते
ह्यर्चिः समिद्धे हव्यवाहने ।
तदाऽऽज्यभागावन्तरेणाऽऽहुतीः
प्रतिपादयेत् ॥ २॥
जिस समय
हविष्य को देवताओं के पास पहुंचानेवाली अग्नि के प्रदीप्त हो जानेपर उसमें
ज्वालाएँ लपलपाने लगती हैं। उस समय आज्यभाग के बीच में अन्य आहुतियों को डालें।
॥२॥
यस्याग्निहोत्रमदर्शमपौर्णमास-
मचातुर्मास्यमनाग्रयणमतिथिवर्जितं
च ।
अहुतमवैश्वदेवमविधिना
हुत-
मासप्तमांस्तस्य
लोकान् हिनस्ति ॥ ३॥
जिसका
अग्रिहोत्र दर्श नामक यज्ञ से रहित है, पौर्णमास नामक यज्ञ से रहित है,
चातुर्मास्य नामक यज्ञ से रहित है,
आग्रयण कर्म से रहित है तथा जिसमें अतिथि सत्कार नहीं किया
जाता। जिसमें समय पर आहुति नहीं दी जाती। जो बलिवैश्वदेव
नामक कर्म से रहित है तथा जिसमें शास्त्र-विधि की अवहेलना करके हवन किया गया है,
ऐसा अग्निहोत्र उस अग्निहोत्री के सातों पुण्य लोकों का नाश
कर देता है अर्थात् उस यज्ञ के द्वारा उसे मिलने वाले जो पृथ्वीलोक से लेकर
सत्यलोक तक सातों लोकों में प्राप्त होने योग्य भोग हैं,
उनसे वह वञ्चित रह जाता है। ॥३॥
काली कराली च
मनोजवा च
सुलोहिता या च
सुधूम्रवर्णा ।
स्फुलिङ्गिनी
विश्वरुची च देवी
लेलायमाना इति
सप्त जिह्वाः ॥ ४॥
जो काली,
कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुलिंगनी तथा विश्वरुची देवी,
यह सात अग्निदेव की लपलपाती हुई जिह्वाएँ हैं। ॥४॥
एतेषु यश्चरते
भ्राजमानेषु यथाकालं
चाहुतयो
ह्याददायन् ।
तं
नयन्त्येताः सूर्यस्य रश्मयो यत्र
देवानां
पतिरेकोऽधिवासः ॥ ५॥
जो कोई भी
अग्निहोत्री इन देदीप्यमान ज्वालाओं में ठीक समय पर, अग्निहोत्र करता है। उस अग्रिहोत्री को निश्चय ही अपने साथ
लेकर यह आहुतियां सूर्य की किरनें बनकर वहाँ पहुँचा देती है। जहाँ देवताओं का
एकमात्र स्वामी इंद्र निवास करता है। ॥५॥
एह्येहीति
तमाहुतयः सुवर्चसः
सूर्यस्य
रश्मिभिर्यजमानं वहन्ति ।
प्रियां
वाचमभिवदन्त्योऽर्चयन्त्य
एष वः पुण्यः
सुकृतो ब्रह्मलोकः ॥ ६॥
वह देदीप्यमान
आहुतियां आओ, आओ,
यह तुम्हारे शुभ कर्मों से प्राप्त पवित्र ब्रह्मलोक है। इस
प्रकार की वाणी बार बार कहती हुई और उसका आदर सत्कार करती हुई,
उस यजमान को सूर्य की रश्मियों द्वारा ले जाती हैं। ॥६॥
प्लवा ह्येते
अदृढा यज्ञरूपा
अष्टादशोक्तमवरं
येषु कर्म ।
एतच्छ्रेयो
येऽभिनन्दन्ति मूढा
जरामृत्युं ते
पुनरेवापि यन्ति ॥ ७॥
निश्चय ही यह
यज्ञरूप अठारह नौकाएँ अदृढ (अस्थिर )हैं। जिनमें नीची श्रेणी का उपासनारहित सकाम
कर्म बताया गया है। जो मूर्ख यही श्रेष्ठ कल्याण का मार्ग है ऐसा मानकर इसकी
प्रशंसा करते हैं। वह बार-बार निसंदेह वृद्धावस्था और मृत्यु को प्राप्त होते रहते
है |७॥
अविद्यायामन्तरे
वर्तमानाः
स्वयं धीराः
पण्डितं मन्यमानाः ।
जङ्घन्यमानाः
परियन्ति मूढा
अन्धेनैव
नीयमाना यथान्धाः ॥ ८॥
अविद्या के
भीतर स्थित होकर भी अपने-आप बुद्धिमान् बनने वाले और अपने को विद्वान् माननेवाले
वह मूर्ख लोग बार-बार आघात (कष्ट ) सहन करते हुए ठीक वैसे ही भटकते रहते हैं,
जैसे अन्धे के द्वारा ही
चलाये जाने वाले अंधे अपने लक्ष्य तक न पहुँचकर बीच में ही इधर-उधर भटकते और कष्ट
भोगते रहते है।॥ ८॥
अविद्यायं
बहुधा वर्तमाना वयं
कृतार्था
इत्यभिमन्यन्ति बालाः ।
यत् कर्मिणो न
प्रवेदयन्ति रागात्
तेनातुराः
क्षीणलोकाश्च्यवन्ते ॥ ९॥
वह मूर्ख लोग
उपासना रहित सकाम कर्मों में बहुत प्रकार से भोगते हुए,
हम कृतार्थ हो गये ऐसा अभिमान कर लेते हैं क्योंकि वे सकाम
कर्म करनेवाले लोग विषयों की आसक्ति के कारण, कल्याण के मार्ग को नहीं जान पाते। इस कारण बार बार दुःख से
आतुर हो पुण्योर्जित लोकों से हटाये जाने पर नीचे गिर जाते हैं। ॥९॥
इष्टापूर्तं
मन्यमाना वरिष्ठं
नान्यच्छ्रेयो
वेदयन्ते प्रमूढाः ।
नाकस्य पृष्ठे
ते सुकृतेऽनुभूत्वेमं
लोकं हीनतरं
वा विशन्ति ॥ १०॥
इष्ट और पूर्त(यज्ञ-यागादि
श्रोत कर्मोको 'इष्ट तथा बावली, कुआँ खुदवाना और बगाचे लगाना आदि स्मृति विहित कर्म को
पूर्तः कहते है।) इत्यादि सकाम कर्मों को ही श्रेष्ठ माननेवाले अत्यन्त मूर्ख लोग
उससे भिन्न वास्तविक श्रेय को नहीं जानते। वह पुण्यकर्मों के फलस्वरूप स्वर्ग के
उच्चतम स्थान में जाकर श्रेष्ठ कर्मों के फलस्वरूप वहाँ के भोगों का अनुभव करके इस
मनुष्यलोक में अथवा इससे भी अत्यन्त हीन योनियों मे प्रवेश करते हैं। ॥१०॥
तपःश्रद्धे ये
ह्युपवसन्त्यरण्ये
शान्ता
विद्वांसो भैक्ष्यचर्यां चरन्तः ।
सूर्यद्वारेण
ते विरजाः प्रयान्ति
यत्रामृतः स
पुरुषो ह्यव्ययात्मा ॥ ११॥
किन्तु यह जो
वन में रहने वाले शांत स्वभाव वाले विद्वान् तथा भिक्षा के लिये विचरनेवाले मयमरूप
तप तथा श्रद्धा का सेवन करते हैं, वह रजोगुण रहित सूर्य के मार्ग से वहाँ चले जाते है,
जहाँ पर वह जन्म-मृत्यु से रहित,
नित्य, अविनाशी, परम पुरुष परमात्मा रहते हैं। ॥११॥
परीक्ष्य
लोकान् कर्मचितान् ब्राह्मणो
निर्वेदमायान्नास्त्यकृतः
कृतेन ।
तद्विज्ञानार्थं
स गुरुमेवाभिगच्छेत्
समित्पाणिः
श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम् ॥ १२॥
कर्म से
प्राप्त किये जाने वाले लोकों की परीक्षा करके, ब्राहाण वैराग्य को प्राप्त हो जाय अथवा यह समझ ले कि किये
जानेवाले सकाम कर्मों से स्वत: सिद्ध नित्य परमेश्वर नहीं मिल सकता। वह उस परब्रहा
का ज्ञान प्राप्त करने के लिये हाथ में समिधा लेकर, वेद को भलीभाँति जाननेवाले और परब्रहा परमात्मा में स्थित
गुरु के पास ही विनयपूर्वक जाय। ॥१२॥
तस्मै स
विद्वानुपसन्नाय सम्यक्
प्रशान्तचित्ताय
शमान्विताय ।
येनाक्षरं
पुरुषं वेद सत्यं प्रोवाच
तां तत्त्वतो
ब्रह्मविद्याम् ॥ १३॥
वह विद्वान
ज्ञानी महात्मा शरण में आये हुए पूर्णतया शान्त चित्तवाले मन और इन्द्रियों पर
विजय प्राप्त किये हुए, उस शिष्य को ब्रह्मविद्या का तत्त्व-विवेचनपूर्वक भली भाँति
उपदेश करे। जिससे वह शिष्य नित्य अविनाशी परब्रह्म पुरुषोत्तम का ज्ञान प्राप्त कर
सके। ॥१३॥
॥ इति मुण्डकोपनिषद्
प्रथममुण्डके द्वितीयः खण्डः ॥
शेष जारी......आगे पढ़े- मुण्डकोपनिषद् द्वितीय मुण्डक
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: