बलिवैश्वदेव
हिन्दू शास्त्रों में स्नान, संध्या, जप,
देवपूजा, वैश्वदेव और अतिथिपूजा-ये छ:
नित्यकर्म माने गये हैं। देवपूजाके बाद बलिवैश्वदेव का विधान है। संध्या न करनेसे
जैसे प्रत्यवाय (पाप) लगता है, वैसे ही बलिवैश्चदेव न
करने से भी प्रत्यवाय लगता है ।
बलिवैश्वदेव
यज्ञ पञ्च महाभूतों में पाँचवाँ व
अन्तिम यज्ञ है। यह पांच महायज्ञ हैं:
'अध्यापनं ब्रह्म यज्ञः पित्र
यज्ञस्तु तर्पणं |
होमोदैवो
बलिर्भौतो न्रयज्ञो अतिथि पूजनं।।
ब्रह्मयज्ञ
- अध्यन, अध्यापन का नाम ब्रह्मयज्ञ।
पितृयज्ञ -
अन्न अथवा जलके द्वारा नित्य नैमितिक पितरों के तर्पण करने का नाम पितृयज्ञ।
देवयज्ञ -
देवताओं को लक्ष्य करके होम करनेका नाम देवयज्ञ।
भूतयज्ञ -
पशु पक्षी आदि को अन्न आदि दान करने का नाम भूतयज्ञ
नरयज्ञ -
अतिथि सेवा का नाम नरयज्ञ है।
बलिवैश्वदेव-विधि:
पवित्र आसन
पर पूर्वाभिमुख
बैठकर सर्वप्रथम
आचमन और
प्राणायाम करें
। पश्चात् निम्नाङ्कित मन्त्र
से अपने
दाएँ हाथ
की अनामिका
अङ्गुली में
कुश की
पवित्री धारण
करें---
ॐ पवित्रे स्थो व्वैष्णव्यौ सवितुर्व्व: प्रसव ऽउत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि: ।
तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम् ॥
पश्चात् नीचे
लिखे मन्त्र
से अपने
को पवित्र
करें---
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्माभ्यन्तर: शुचि: ।
अनन्तर निम्नाङ्कित
सङ्कल्प करें---
देशकालौ सङ्कीर्त्य
गोत्र: शर्माऽहं वर्माऽहम्, गुप्तोऽहम् मम गृहे कण्डनी-पेषणी-चुल्ली-सम्मार्जनी-गृहलेपनादि-हिंसाजन्य-दोषपरिहारपूर्वकान्नशुद्ध्यात्मसंस्कारसिद्धिद्वारा श्रीपरमेश्वर-प्रीत्यर्थं बलिवैश्वदेवकर्म करिष्ये ।
पश्चात् लौकिक
अग्नि प्रज्वलित
करके अग्निदेव
का निम्नाङ्कित
मन्त्र पढते
हुए ध्यान
करें---
ॐ चत्वारि श्रृङ्गा त्रयो ऽअस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो ऽअस्य ।
त्रिधा बद्धो वृषभो रोरवीति महो देवो मर्त्यां ऽआविवेश ॥
‘इस अग्निदेव
के चार सींग, तीन पैर, दो सिर और सात हाथ हैं । कामनाओं
की वर्षा करनेवाला
यह महान् देव तीन स्थानों
में बँधा हुआ शब्द करता है और प्राणियों
के भीतर जठरानलरूप
से प्रविष्ट
है ।’
फिर नीचे
लिखे मन्त्र
को पढकर
अग्निदेव को
मानसिक आसन
दें---
ॐ एषो ह देव: प्रदिशोऽनु सर्वा: पूर्वो ह जात: स ऽउ गर्भेऽअन्त: ।
स ऽएव जात: स जनिष्यमाण: प्रत्यङ जनास्तिष्ठति सर्वतोमुख: ॥
‘यह अग्निस्वरूप
परमात्मदेव
ही सम्पूर्ण
दिशा-विदिशाओं
में व्याप्त
है, यही हिरण्यागर्भरूप
से सबसे प्रथम उत्पन्न
प्रकट हुआ था, माता के गर्भ में भी यही रहता है और यही उत्पन्न
होनेवाला
है, हे मनुष्यो ! यही सर्वव्यापक
और सब ओर मुखोंवाला
है ।’
पश्चात् अग्निदेव
को नमस्कार
करके घर
में बने
हुए बिना
नमक के
पाक को
अथवा घृताक्त
कच्चे चावल
को एक
पात्र में
रख लें
और यज्ञोपवीत
को सव्य
कर अन्न
की पाँच
आहुतियाँ नीचे
लिखे पाँच
मन्त्रों को
क्रमश: पढ़ते हुए बारी-बारी से
अग्नि मे
छोडें अग्नि
के अभाव
में एक
पात्र में
जल रखकर
उसी में
आहुतियाँ छोड़
सकते हैं
।
(१)
देवयज्ञ
१ ॐ
ब्रह्मणे स्वाहा, इदं
ब्रह्मणे न मम
।
२ ॐ
प्रजापतये स्वाहा, इदं
प्रजापतये न मम
।
३ ॐ
गृह्याभ्य: स्वाहा,
इदं गृह्यभ्यो न मम ।
४ ॐ
कश्यपाय स्वाहा,
इदं कश्यपाय न मम ।
५ ॐ
अनुमतये स्वाहा,
इदमनुमतये न मम
।
पुन: अग्नि के पास हो पानी से एक चौकोना चक्र बनाकर उसका द्वार पूर्व की ओर रखे और उसी में बतलाये जाने वाले स्थानों पर क्रमश: बीस ग्रास अन्न देना चाहिये । जिज्ञासुओं की सुविधा के लिये नक्शा और ग्रास अर्पण करने के मन्त्र नीचे दिये जाते हैं । नक्शे में केवल अङ्क रखा गया है, उसमें जहाँ एक है वहाँ प्रथम ग्रास और दो की जगह दूसरा ग्रास देना चाहिये । इसी प्रकार तीन से चलकर बीस तक क्रमश: निर्दिष्ट स्थान पर ग्रास देना चाहिये । क्रमश: बीस मन्त्र दिये जाते हैं, एक-एक मन्त्र पढकर एक-एक ग्रास अर्पण करना चाहिये ।
(२)
भूतयज्ञ
१ ॐ
धात्रे नम:,
इदं धात्रे
न मम
।
२ ॐ
विधात्रे नम:, इदं
विधात्रे न मम
।
३ ॐ
वायवे नम:,
इदं वायवे
न मम
।
४ ॐ
वायवे नम:,
इदं वायवे
न मम
।
५ ॐ
वायवे नम:,
इदं वायवे
न मम
।
६ ॐ
वायवे नम:,
इदं वायवे
न मम
।
७ ॐ
प्राच्यै नम:, इदं
प्राच्यै न मम
।
८ ॐ
अवाच्यै नम:,
इदमवाच्यै न मम
।
९ ॐ
प्रतीच्यै नम:, इदं
प्रतीच्यै न मम
।
१० ॐ
उदीच्यै नम:,
इदमुदीच्यै न मम
।
११ ॐ
ब्रह्मणे नम:, इदं
ब्रह्मणे न मम
।
१२ ॐ
अन्तरिक्षाय नम:, इदमन्तरिक्षाय न
मम ।
१३ ॐ
सूर्याय नम:,
इदं सूर्याय न मम ।
१४ ॐ
विश्वेभ्यो देवेभ्यो नम:, इदं
विश्वेभ्यो देवेभ्यो न मम
।
१५ ॐ
विश्वेभ्यो भूतेभ्यो नम:, इदं
विश्वेभ्यो भूतेभ्यो न मम
।
१६ ॐ
उषसे नम:,
इदमुषसे न
मम ।
१७ ॐ
भूतानां पतये
नम:, इदं
भूतानां पतये
न मम
।
(३)
पितृयज्ञ
यज्ञोपवीत को
अपसव्य करके
बाएँ घुटने
को पृथ्वी
पर रखकर
दक्षिण की
ओर मुख
करके हो
सके तो
साथ में
तिल लेकर,
पव्क अन्न
अङ्कित मण्डल
में निदिष्ट
स्थानपर मन्त्र
पढकर रख
दें ।
१८ ॐ
पितृभ्य: स्वधा
नम:, इदं
पितृभ्य: स्वधा
न मम
।
निर्णेजनम्
यज्ञोपवीत को
सव्य करके
अन्न के
पात्र को
धोकर वह
जल अङ्किन
मण्डल में
१६वें अङ्क
की जगह
मन्त्र पढकर
छोड दें
।
१९ ॐ
यक्ष्मैतत्ते निर्णेजनं नम:, इदं
यक्ष्मणे न मम
।
(४)
मनुष्ययज्ञ
यज्ञोपवीत को
माला की
भाँति कण्ठ
में करके
उत्तराभिमुख हो
पव्क अन्न
अङ्कित मण्डल
में २०वें
अङ्क की
जगह मन्त्र द्वारा
छोड दें
।
२० ॐ
हन्त ते
सनकादिमनुष्येभ्यो नम:, इदं
हन्त ते
सनकादिमनुष्येभ्यो न मम
।
( ५) ब्रह्मयज्ञ-विधि:
अब संक्षेप
में ब्रह्मयज्ञ
की विधि
दी जा
रही है
। सर्बप्रथम अपने दाहिने
हाथ की
कनिष्ठिका अङ्गुली
में पवित्री
धारणकर जल
ले और
देश,
काल तथा
नाम-गोत्र आदि
का उच्चारण
करके ‘श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं
यथाशक्ति ब्रह्मयज्ञेनाहं
यक्ष्ये’---इस
प्रकार संकल्प पढें
और फिर
नीचे लिखे
प्रकार से
अङ्गन्यास करें
।
ॐ तिर्य्यग्विलाय चमसोर्ध्वबुध्नाय छन्दःपुरुषाय नम: । शिरसि
।
इस वाक्य
को पढ़कर
दाहिने हाथ
से सिर
का स्पर्श
करें ।
ॐ गौतमभरद्वाजाभ्यां नम:
। नेत्रयो:
। यह
दो बार
पढ़कर दोनों
नेत्रों का
स्पर्श करें
।
ॐ विश्वामित्रजमदग्निभ्यां नम: । श्रोत्रयो: । इसको दो बार पढ़कर दोनों कानों का स्पर्श करें ।
ॐ वसिष्ठकश्यपाभ्यां नम: ।
नासापुटयो: ।
इसको दो
बार पढ़कर
नाक का स्पर्श
करें ।
ॐ अत्रये
नम: ।
वाचि ।
इसको पढ़कर
वाक-इन्द्रिय मुख
का स्पर्श
करें ।
ॐ गायत्र्यै छन्दसेऽग्नये नम: ।
शिरसि ।
इस वाक्य
को पढ़कर
मस्तक का
स्पर्श करें
।
ॐ उष्णिहे छन्द्से सवित्रे नम:
। ग्रीवायाम् । इसको पढ़कर
गले का
स्पर्श करें
।
ॐ बृहत्यै छन्दसे वृहस्पतये नम: ।
अनूके ।
इस वाक्य
करे पढ़कर
पीठ के
बीच की
हडडी का
स्पर्श करें
।
ॐ बृहद्रथन्तराभ्यां द्यावापृथिवीभ्यां नम:
। बाह्वो:
। इसको
दो बार
पढ़कर दोनों
भुजाओं का
स्पर्श करें
।
ॐ त्रिष्टुभे छन्दसे इन्द्राय नम: ।
मध्ये ।
इसको पढ़कर
उदर का
स्पर्श करें
।
ॐ जगत्यै
छन्दसे आदित्याय नम: । श्रोण्यो:
। इसको
दो बार
पढ़कर दोनों
नितम्बों का
स्पर्श करें
।
ॐ अतिच्छन्दसे प्रजापतये नम: ।
लिङ्गे ।
इस वाक्य
को पढ़कर
लिङ्ग इन्द्रिय
का स्पर्श
करें ।
ॐ यज्ञायज्ञियाय छन्दसे
वैश्वानराय नम: ।
पायौ ।
इसको पढ़कर
गुदा इन्द्रिय
का स्पर्श
करें ।
ॐ अनुष्टुभे छन्दसे विश्वेभ्यो देवेभो नम: । ऊर्वो: । इसको दो बार-पढ़कर दोनों जंघाओं का स्पर्श करें ।
ॐ पङ्कयै छन्दसे मरुद्भयो नम: । अष्ठीवतो: । इसको दो बार-पढ़कर दोनों घुटनों का स्पर्श करें ।
ॐ द्विपदायै छन्दसे विष्णवे नम:
। पादयो:
। इसको
दो बार
पढ़कर दोनों
चरणों का
स्पर्श करें
।
ॐ विच्छन्दसे वायवे नम: ।
प्राणेषु । इस
वाक्य को
पढ़कर नासिका-छिद्रों का
स्पर्श करें
।
ॐ न्यृनाक्षरायच्छन्दसे अद्भयो
नम: ।
सर्वाङ्गेषु । इसको
पढ़कर दाहिने
हाथ के
द्वारा बाएँ
अङ्ग का
और बाएँ
हाथ के
द्वारा दाहिने
अङ्ग का
शिर से
लेकर पैरों तक
स्पर्श करें
।
इसके बाद
निम्नाङ्कित वाक्य
पढकर विनियोग करें
।
इषे त्त्वेत्यादि-खंत्रह्मान्तस्य माध्यन्दिनीयकस्य वाजसनेयकस्य यजुर्वेदाम्नायस्य विवस्वानृषि: गायत्र्यादीनि सर्वाणि छन्दांसि, सर्वाणि यजूंषि
सर्वाणि सामानि
प्रतिलिङ्गोक्ता देवता ब्रह्मयज्ञारम्भे विनियोग:
।
हरि ॐ
भूभुव: स्व:
तत्सवितुर्व्व रेण्ण्यं भर्गो देवस्य
धीमहि ।
धियो यो
न: प्प्रचोदयात् ॥
ॐ इषे त्त्वोर्ज्जे त्त्वा व्वायव स्थ देवो व: सविता प्प्रार्प्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्म्मणऽआप्प्यायध्वमघ्न्या ऽइन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवा ऽअयक्ष्मा मा वस्तेन ऽइशत माऽघश, सो ध्रुवा ऽअस्मिन् गोपतौ स्यात बह्णीर्य्यजमानस्य पशून्पाहि ॥
ॐ व्रतमुपैष्ष्यन्नन्तरेणाऽऽहवनीयं च गार्हपत्त्यं च प्प्राङ तिष्ठ्ठन्नप ऽउपस्पृशति तद्यदप ऽउपस्पृशत्त्यमेध्यो वै पुरुषो यदनृतं व्वदति तेन पूतिरन्तरतो मेद्धया वा ऽआपो मेध्यो भूत्वा व्व्रतमुपाऽयानीति पवित्रं वा ऽआप: एवित्रपूतो व्व्रतमुपाऽयानीति तस्माद्वा ऽअप ऽअप ऽउपस्पृशति ।
ॐ अग्निमीले पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ॥
ॐ अग्न
ऽआ याहि
वीतये गृणानो
हव्यदातये । हि
होता सत्सि
बर्हिषि ॥
ॐ शन्नो
देवीरभिष्टय ऽआपो भवन्तु
पीतये ।
शंय्योरभिस्त्रवन्तु न: ॥
अथानुवाकान् वक्ष्यामि । मण्डलं दक्षिणमक्षि हृदयम् । अथातोऽधिकार: । फलयुक्तानि कर्माणि । अथातो गृह्मस्थालीपाकानां कर्म । अथ शिक्षां प्रवक्ष्यामि । पञ्च संवत्सरमयम् , म य र स त ज भ न । गौ: । ग्मा, ज्मा । वृद्धिरादैच् । समाम्नाय: रामाम्नात: ।
आथातो धर्मजिज्ञासा । अथातो
ब्रह्मजिज्ञासा ।
योगीश्वरं याज्ञवल्क्यं प्रणम्य मुनयोऽब्रुवन् ।
वर्णाश्रमेतराणां नो ब्रूहि
धर्मानशेषत: ।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् । देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥
उपर्युक्त उद्धरणों
का पाठ
करके ब्रह्मणे नम:’ ऐसा तीन
बार उच्चारण
करें फिर
निम्नाङ्कित श्लोक
पढकर यह
ब्रह्मयज्ञ भगवान्
को समपित
करें ।
इति विद्यातपोयोनिरयोनिविष्णुरीडित: ।
वाग्यज्ञेनार्चितो देव: प्रीयतां मे जनादेव:॥
ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: । ॐ विष्णवे नम: ।
इन्हे ही पञ्चमहायज्ञ भी कहते हैं।
बलिवैश्वदेव-विधि:
पञ्चबली विधान
(१) गोबलि
इसके वाद
निम्नाङ्कित मन्त्र
पढते हुए
सव्य भाव
से ही
गौओं के
लिये बलि
अर्पण करें---
ॐ सौरभेय्य: सर्वहिता: पवित्रा: पुण्यराशय: । प्रतिगृह्णन्तु मे ग्रासं गावस्त्रैलोक्यमातर: ॥ इदमन्नं गोभ्यो न मम ।
(२)
श्वानबलि
फिर यज्ञोपवीत
को कण्ठ
में माला
की भाँति
करके कुत्तों
के लिये
ग्रास दें
। मन्त्र यह है---
ॐ द्वौ श्वानौ श्यामशवलौ वैवस्वतकुलोद्भवौ । ताभ्यामन्नं प्रदास्यामि स्यातामेतावहिंसकौ ॥
इसमन्नं श्वभ्यां न मम ।
(३)
काकबलि
पुन:
यज्ञोपवीत को
अपसव्य करके
नीचे लिखे
मन्त्र को
पढते हुए
कौओं के
लिये भूमिपर
ग्रास दें---
ॐ ऐन्द्रवारुणवायव्या याम्या वै नैऋतास्तथा । वायसा: प्रतिगृह्णन्तु भूमौ चाऽन्नं मयापिंतम् ॥
इदमन्नं वायसेभ्यो न मम ।
(४)
देवादिबलि
फिर सव्यभाव
से निम्नाङ्कित
मन्त्र पढकर
देवता आदि
के लिये
अन्न अर्पण
करें---
ॐ देवा मनुष्या: पशवो वयांसि सिद्धा: सयक्षोरगदैत्यसङ्घा: ।
प्रेता: पिशाचास्तरव: समस्ता ये चान्नमिच्छन्ति मया प्रदत्तम् ॥
इदमन्नं देवादिभ्यो
न मम ।
(५)
पिपीलिकादिबलि
इसी प्रकार
निम्नाङ्कित मन्त्र
से चींटी
आदि के
लिये अन्न
दें---
ॐ पिपीलिका: कीटपतङ्गकाद्या वुभुक्षिता: कर्मनिबन्धबद्धा: ।
तेषां हि तृप्त्यर्थमिदं मयाऽन्नं तेभ्यो विसृष्टं सुखिनो भवन्तु ॥
इदमन्नं पिपीलिकादिभ्यो
न मम ।
तदनन्तर हाथ
धोकर भस्म
लगावें और
निम्नाङ्कित मन्त्र
से अग्नि का विसर्जन करें---
ॐ यज्ञ यज्ञं गच्छ यज्ञपतिं गच्छ स्वां योनिं गच्छ स्वाहा ।
एष ते यज्ञो यज्ञपते सहसूक्तवाक: सर्ववीरस्तं जुषस्व स्वाहा ॥
‘हे यज्ञ ! तुम अपनी प्रतिष्ठा
के लिये यज्ञस्वरूप
विष्णु
भगवान्को प्राप्त
हो, कर्म के फलरूप से यज्ञपति-यजमान को प्राप्त
हो तथा अपनी सिद्धि
के लिये तुम अपने कारणभूत
वायुदेव
की क्रियाशक्तिको
प्राप्त
हो, यह हवन सुन्दररूप
से सम्पन्न
हो । हे यजमान ! स्तवनीय
चरु, पुरोडाश
आदि सब अङ्गों
तथा सूक्त, अनुवाक
और स्तोत्रों
सहित यह किया जानेवाला
यज्ञ तुम्हारा
हो, तुम इस यज्ञ का सेवन करो ।यह हवनकर्म
सुन्दररूप
से सम्पन्न
हो।’
तत्पश्चात् कर्म
में न्यूनता की पूर्ति के
लिये निम्नाङ्कित
श्लोकों को
पढते हुए
भगवान् से
प्रार्थना करें---
ॐ प्रमादात्कुर्वतां कर्म प्रच्यवेताध्वरेषु यत् । स्मरणादेव तद्विष्णो: सम्पूर्णं स्यादिति श्रुति: ॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तपोयज्ञक्रियदिषु । न्यूनं सम्पूर्णतां याति सद्यो वन्दे तमच्युतम् ॥
फिर नीचे
लिखे वाक्य
को पढकर
यह कर्म
भगवान् को
अर्पण करें ।
अनेन बलिवैश्वदेवाख्येन कर्मणा परमेश्वर: प्रीयतां न मम ।
ॐ विष्णवे
नम: । ॐ विष्णवे
नम: । ॐ विष्णवे
नम: ।
इति बलिवैश्वदेव-विधि: समाप्त।
संक्षिप्त भोजन-विधि:
बलिवैश्वदेव के
बाद अतिथि-पूजनादि से
निवृत्त होकर
अपने परिवार
के साथ
भोजन करें
। पहले ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस
मन्त्र आ
उच्चारण करके
अपने आगे
जल से
चार अँगुल
का चौकोना
मण्डप बनावें
और उसी
पर भोजन-पात्र रखकर
उसमें घृतसहित
व्यञ्जन रखावें
तथा अपने
दाहिने तरफ
जलपात्र रखें,
फिर भगवद्बुद्धि से
अन्न को
प्रणाम करके---
ब्रह्मार्पणं
ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ
ब्रह्मणा हुतम् । ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥
इस मन्त्र
का तथा---
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये । गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ॥
इस मन्त्र
का उच्चारण
करते हुए
अन्न में
तुलसीदल छोडकर
जलसहित अन्न
भगवान् नारायण
को अर्पण
करें, फिर दोनों हाथों
से अन्न
को ऊपर
से आवृत
कर इस
मन्त्र का
पाठ करें---
ॐ नाभ्या ऽआसीदन्तरिक्ष, शीर्ष्णो द्यौ: समवर्तत । पद्भ्यां भूचिर्द्दिश: श्रोत्रात्तथा लोकाँ२॥ अकल्पयन् ॥
‘परमेश्वर
की नाभि से अन्तरिक्ष, शिर से द्युलोक, पैरों से भूमि और कानों से दिशाओं
की उत्पत्ति
हुई । इस प्रकार
परमात्मा
ने समस्त लोकों की रचना की ।’
तदनन्तर ‘ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा’ इस
मन्त्र से
आचमन करके
आगे लिखे
हए पाँच
मन्त्रों में
से क्रमश:
एक-एक को
पढकर एक-एक ग्रास
अन्न जो
बेर या
आँवले के
फल के
बराबर हो
मुँह में
डालें---
ॐ प्राणाय स्वाहा ॥१॥ ॐ अपानाय स्वाहा ॥२॥ ॐ व्यानाय स्वाहा ॥३॥ ॐ समानाय स्वाहा ॥४॥ ॐ उदानाय स्वाहा ॥५॥
इसके वाद पुन: आचमन करके मौन होकर यथाविधि भोजन करें ।
0 Comments