बजरंग बाण
इस युग में
साक्षात देवों में से एक हैं श्री हनुमानजी और हनुमानजी का अचूक व तीव्र असरकारक स्तोत्र
है बजरंग बाण। बजरंग बाण तांत्रोक्त प्रभाव वाला है। सारे अशुभ ग्रह,
शत्रु,
अवरोध का शमन
बजरंग बाण पाठ से होता है। बजरंग बाण के पाठ से भूत,
पिशाच,
तंत्र बाधा,
डायन, मूठ, मारण या आसुरी शक्तियों का कोप, सारे संकट दूर हो जाते है। हनुमान जी की मूर्ति
या चित्र एक लाल वस्त्र पर रख कर बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए।
बजरंग बाण
दोहा :
निश्चय प्रेम
प्रतीति ते, विनय करैं सनमान।
तेहि के कारज
सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
चौपाई :
जय हनुमंत संत
हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज
विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि
सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय
लंकिनी रोका। मारहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को
सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि
सिंधु महँ बोरा। अति आतुर यमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार
मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक
जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर महँ भई॥
अब विलम्ब
केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥
जय जय लक्ष्मण
प्राण के दाता। आतुर होई दुख करहु निपाता॥
जय गिरिधर जय
जय सुखसागर। सुर-समूह समरथ भटनागर॥
ॐ हनु हनु हनु
हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
गदा वज्र लै
बैरिहि मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥
ॐकार हुँकार
महाबीर धावो। बज्र गदा हनु बिलम्ब न लावो॥
ॐ ह्रीं ह्रीं
ह्रीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा॥
सत्य होहु हरि
शपथ पाय के । रामदूत धरु मारु जाय के ॥
जय जय जय
हनुमंत अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ॥
पूजा जप तप
नेम अचारा । नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ॥
वन उपवन,
मग गिरि गृह
माहीं । तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥
पाँय परौं कर
जोरि मनावौं । यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ॥
जय अंजनि
कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमंता॥
बदन कराल
काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत,
प्रेत,
पिशाच निशाचर
। अग्नि बैताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु,
तोहिं शपथ राम
की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
जनकसुता हरि
दास कहावो । ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥
जय जय जय धुनि
होत अकाशा । सुमिरत होय दुसह दुख नाशा ॥
चरण शरण,
कर जोरि
मनावौं। यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु,
उठु,
चलु,
तोहि राम
दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं
चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक
देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को
तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारो ॥
यह बजरंग-बाण
जेहि मारै। ताहि कहौ फिर कवन उबारै॥
पाठ करै
बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्राण की॥
यह बजरंग बाण
जो जापैं। तेहि ते भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय अरु
जपै हमेशा । ताके तन नहिं रहै कलेशा ॥
दोहा :
प्रेम
प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ॥
इति बजरंग बाण ॥
0 Comments