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हनुमान साठिका
गोस्वामी तुलसीदासजी ने परमवीर हनुमानजी की कृपा से ही रामचरित मानस को संपूर्ण किया था। इस ग्रंथ को लिखने से पहले उन्होंने 'हनुमान चालीसा' और 'हनुमान साठिका' को लिखा था। हनुमान चालीसा की ही तरह यह पाठ भी अत्यंत चमत्कारी और प्रामाणिक स्तोत्र है। यह अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावी है अत: इसके पाठ में शुद्धता का ध्यान रखना अनिवार्य है। इसका प्रतिदिन पाठ करने से मनुष्य को जिंदगी-भर किसी भी संकट से सामना नहीं करना पड़ता । उसकी सभी कठिनाईयाँ एवं बाधाएँ श्री हनुमान जी आने के पहले हीं दूर कर देते हैं। हर प्रकार के रोग दूर हो जाती हैं तथा कोई भी शत्रु उस मनुष्य के सामने नहीं टिक पाता । साठिका का पाठ विधिपूर्वक साठ दिनों तक करने चाहिये । इसे किसी भी मंगलवार से शुरु कर सकते हैं । सुबह उठकर शुद्ध हो लें । उसके बाद विधिपूर्वक श्रीरामजी का पूजन कर, हनुमानजी का पूजन करें । तत्पश्चात् पाठ आरम्भ करें ।
हनुमान साठिका हिंदी भावार्थ सहित
HANUMAN SATHIKA
॥दोहा॥
बीर बखानौं
पवनसुत,जनत सकल जहान ।
धन्य-धन्य
अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥
वीर पवनकुमार की कीर्ति का वर्णन करता हूँ जिसको सारा संसार जानता है। हे आंजनेय ! हे भगवान शंकर के अवतार हनुमानजी ! आप धन्य हैं, धन्य हैं ।
गोस्वामीतुलसीदासरचित हनुमान साठिका
।।चौपाइयां।।
जय जय जय
हनुमान अडंगी । महावीर विक्रम बजरंगी ॥
जय कपीश जय
पवन कुमारा । जय जगबन्दन सील अगारा ॥
जय आदित्य अमर
अबिकारी । अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥
अंजनि उदर
जन्म तुम लीन्हा । जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥
हे हनुमानजी !
आपकी जय हो, जय हो, जय हो । आपकी गति अबाध है । कोई आपका मार्ग नहीं रोक सकता । हे वज्र के समान
कठोर अंगों वाले महावीर ! आपकी जय हो, जय हो । हे कपियों के राजा ! आपकी जय हो । हे पवनपुत्र !
आपकी जय हो । हे सारे संसार के वंदनीय ! हे गुणों के भंडार ! आपकी जय हो । हे
कर्तव्य- प्रवीण , हे देवता , हे अविकारी ! आपकी जय हो । हे शत्रुओं का नाश करने वाले !
आपकी जय हो। हे द्रोणाचल को उठाने वाले ! आपकी जय हो । आपने माता अंजनी के गर्भ से
जन्म लिया । तब देवताओं ने जय- जयकार की ।
बाजे दुन्दुभि
गगन गम्भीरा । सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥
कपि के डर गढ़
लंक सकानी । छूटे बंध देवतन जानी ॥
ऋषि समूह निकट
चलि आये । पवन तनय के पद सिर नाये ॥
बार-बार
अस्तुति करि नाना । निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥
आकाश में
हर्षोल्लास का माहौल था नगाड़े बजे, देवताओं के मन हर्षित हुए तथा असुरों के मन में बहुत पीड़ा
हुई। हे हनुमान आपके डर से लंका के किले में रहने वाले सभी राक्षस भयभीत हो गये ।
आपने सभी देवताओं को राक्षसों के कारागार से छुड़ाया। हनुमान जी,
ऋषियों के समूह आपके पास आए तथा सभी ने आपके चरणों में
नतमस्तक हो गए । आपकी जय हो । सभी ने अलग अलग तरह से बार-बार आपकी स्तुति की
और आपका पावन नाम ‘ हनुमान् ‘ रखा गया ।
सकल ऋषिन मिलि
अस मत ठाना । दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥
सुनत बचन कपि
मन हर्षाना । रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥
रथ समेत कपि
कीन्ह अहारा । सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥
विनय तुम्हार
करै अकुलाना । तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥
सभी ऋषियों ने
सर्वसम्मति से हे हनुमान जी आपको लाल रंग का फल खाने की प्रेरणा दी। हे हनुमान जी
लाल रंग का फल का नाम सुनकर आप बहुत खुश हुए और सूर्य को ही लाल फल समझ लिया ।
तब हे हनुमान जी आपने सूर्य को रथ सहित पकड़ कर मुँह में रख
लिया। तब सभी जगह बहुत अधिक भय छा गया और सृष्टि में हाहाकार मच गया। सूर्य के
बिना पूरी सृष्टि का जीवन संकट में आ गया तब सभी देवता तथा मुनि व्याकुल होकर हे
पवनसुत आपकी स्तुति करने लगे ।
सकल लोक
वृतान्त सुनावा । चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥
कहा बहोरि
सुनहु बलसीला । रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥
तब तुम उन्हकर
करेहू सहाई । अबहिं बसहु कानन में जाई ॥
असकहि विधि
निजलोक सिधारा । मिले सखा संग पवन कुमारा ॥
सारे संसार की
ऐसी दशा सुनकर ब्रह्मा जी ने सूर्य को मुक्त करने के लिए हे पवनसुत आपको मना लिया
। उस समय आपसे विनती की, हे महावीर, हे हनुमान; सुनिये भगवान श्री रामचंद्र जी आने वाले समय में महान
लीलाएं करेंगे। तब हनुमान जी से श्री राम प्रभु की सहायता करने के लिए कहा गया। हे
महावीर अभी आप वन में जाकर कुछ समय वहां रहिये। यह कहकर ब्रह्माजी अपने लोक को चले
गए और हनुमान जी आप अपने सखाओं से मिल गए।
खेलैं खेल महा
तरु तोरैं । ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥
जेहि गिरि चरण
देहि कपि धाई । गिरि समेत पातालहिं जाई ॥
कपि सुग्रीव
बालि की त्रासा । निरखति रहे राम मगु आसा ॥
मिले राम तहं
पवन कुमारा । अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥
हे हनुमान जी
आपने खेल-खेल में बड़े – बड़े वृक्ष गिरा डाले और बहुत से पर्वतों को फोड़ –
फोड़ कर ढेर कर दिया। हे हनुमान जी आपकी शक्ति अपरंपार है
आपने जिस भी पर्वत पर अपने चरण रखे वह पाताल में समा गया। सुग्रीव जी अपने बड़े
भाई बाली से बहुत डरे हुए थे। परन्तु उन्हें श्री रामचंद्र जी के आने की आस थी
जिसने उन्हें निर्भय रखा हुआ था । हे पवनसुत आपने लाकर उन्हें श्री रामचंद्र जी से
मिला दिया तब आपको बहुत ही प्रेम तथा आनंद मिला।
मनि मुंदरी
रघुपति सों पाई । सीता खोज चले सिरु नाई ॥
सतयोजन जलनिधि
विस्तारा । अगम अपार देवतन हारा ॥
जिमि सर गोखुर
सरिस कपीसा । लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥
सीता चरण सीस
तिन्ह नाये । अजर अमर के आसिस पाये ॥
हे महावीर !
आपको श्री राम जी से मणि जड़ित अंगूठी मिली जिसे लेकर आप सीता माता की खोज करने
निकल गए । हे हनुमान जी ! अब आपके सामने सौ योजन का विशाल समुद्र था जिसे देवता और
मुनि भी पार करने में असमर्थ थे। हे महावीर आपने उस समुद्र को ‘जय श्री राम‘ कहकर बिना किसी थकन के सहज ही गऊ के खुर के समान लाँघ लिया
। लंका में सीता माता के पास पहुंचकर आपने उनकी चरण वंदना की जिस पर सीता जी ने
आपको अजर अमर होने का आशीर्वाद दिया।
रहे दनुज उपवन
रखवारी । एक से एक महाभट भारी ॥
तिन्हैं मारि
पुनि कहेउ कपीसा । दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥
सिया बोध दै
पुनि फिर आये । रामचन्द्र के पद सिर नाये।
मेरु उपारि आप
छिन माहीं । बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥
वहां लंका
नगरी में एक से एक महाभयंकर राक्षस, राक्षस वाटिका की रखवाली करते थे। आपने उन महा भयंकर
राक्षसों का संहार कर दिया था तथा उस उपवन को भी नष्ट करके,
लंका नगरी को जला डाला जिससे लंकापति रावण भी भयभीत होकर
काँप उठा । फिर आपने सीता जी को धीरज दिया और वापस लौट कर श्री रामचंद्र जी के
चरणों में सिर नवाया । लंका नगरी पर सारी सेना को ले जाने के लिए अपने बड़े –
बड़े पर्वतों को लाकर आपने पलभर में समुद्र पर पुल बंधवाया।
लछमन शक्ति
लागी उर जबहीं । राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥
भवन समेत
सुषेन लै आये । तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥
मग महं
कालनेमि कहं मारा । अमित सुभट निसिचर संहारा ॥
आनि संजीवन
गिरि समेता । धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥
युद्ध के
दौरान जब जब श्री राम के भाई श्री लक्ष्मण जी को शक्ति लगी उस समय श्री रामचंद्र
ने बहुत विलाप किया। उस मुश्किल समय में हे महावीर आप लंका के सुषेन वैद्य को उनके
भवन समेत ही उठा लाए और जब लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए संजीवनी बूटी की
जरूरत पड़ी तो आप उसे बड़े वेग से लेने गए। बूटी लेने जाते समय रास्ते में आपने
कालनेमि को मारा और असंख्य योद्धा तथा निशाचर जिस किसी ने भी आपका रास्ता रोकने की
कोशिश की उन्हें आपने नष्ट कर दिया। अंत में आपने पर्वत सहित संजीवनी को लाकर
करुणा निधान श्री राम के पास रख दिया।
फनपति केर सोक
हरि लीन्हा । वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥
अहिरावण हरि
अनुज समेता । लै गयो तहां पाताल निकेता ॥
जहां रहे देवि
अस्थाना । दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥
पवनतनय प्रभु
कीन गुहारी । कटक समेत निसाचर मारी ॥
इस प्रकार
आपने लक्ष्मण जी के संकट को दूर किया और देवताओं ने मिलकर आप पर पुष्प-वर्षा करके
आपकी जय-जयकार की। उसके उपरांत जब अहिरावण श्री राम तथा लक्ष्मण को पाताल में ले
गया । वहाँ देवी के स्थान पर श्री राम तथा लक्ष्मण जी की बलि देने के लिए उसने
तलवार निकाल ली। उसी समय हे परम प्रतापी महावीर, आपने वहाँ पहुँच कर उस राक्षस को ललकारा और उसे उसकी पूरी
सेना समेत मार डाला।
रीछ कीसपति
सबै बहोरी । राम लषन कीने यक ठोरी ॥
सब देवतन की
बन्दि छुड़ाये । सो कीरति मुनि नारद गाये ॥
अछयकुमार दनुज
बलवाना । कालकेतु कहं सब जग जाना ॥
कुम्भकरण रावण
का भाई । ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥
तत्पश्चात आप
हनुमान जी जहां पर जामवंत और सुग्रीव थे, वहाँ आप श्रीराम तथा लक्ष्मण को लौटा लाए। आपने सब देवताओं
को राक्षसों के बंधन से मुक्त कर दिया और नारद मुनि ने आपका यशगान किया। अक्षय
कुमार राक्षस एक बहुत ही बलवान राक्षस था। जिसे केतु के नाम से यह सारा संसार
जानता है। रावण का एक भाई कुंभकरण भी था । हे वानर राज ! आपने ही इन सभी राक्षसों
का विनाश किया।
मेघनाद पर
शक्ति मारा । पवन तनय तब सो बरियारा ॥
रहा तनय
नारान्तक जाना । पल में हते ताहि हनुमाना ॥
जहं लगि भान
दनुज कर पावा । पवन तनय सब मारि नसावा।
जय मारुत सुत
जय अनुकूला । नाम कृसानु सोक सम तूला ॥
हे हनुमान जी
आपने युद्ध में रावण के भाई मेघनाथ को भी पछाड़ा है । हे पवन कुमार ! आपके समान और
कौन बलवान है ? मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले नरान्तक नाम के राक्षस जो की रावण का पुत्र
था हे हनुमान जी उसे भी आपने क्षण भर में परास्त कर दिया । जहाँ –
जहाँ भी आपने राक्षसों को पाया,
हे शिव अवतार ! आपने संहार कर दिया । हे मारुती सुत ! आपकी
जय हो । आप सेवकों के हर कार्य को सिद्ध करने में सहायक हुए हो । उनके शोक रूपी
रूई को जलाने में आपका नाम अग्नि के समान है।
जहं जीवन के
संकट होई । रवि तम सम सो संकट खोई ॥
बन्दि परै
सुमिरै हनुमाना । संकट कटै धरै जो ध्याना ॥
जाको बांध
बामपद दीन्हा । मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥
सो भुजबल का
कीन कृपाला । अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥
जिस किसी के
भी जीवन में किसी भी प्रकार का कोई भी संकट हो, आप उसे पल भर में ही दूर कर देते हैं जैसे कितना भी घना
अँधेरा हो सूर्य उसे पल भर में समाप्त कर देता है । हे हनुमान जी ! बंदी होने पर
जो आपका स्मरण करता है उसकी रक्षा करने के लिये आप गदा और चक्र लेकर उसे कारगर से
मुक्त कराने पहुंच जाते हो । हे वीर हनुमान आप तो यमराज को भी ऊपर दिशा में फेंक
देते हैं तथा मृत्यु की भी बुरी दशा करते हो । हे कृपा के सागर ! आपकी सभी
शक्तियां कहाँ गयी जो आपके रहते मेरी यह दशा हो रही है।
आरत हरन नाम
हनुमाना । सादर सुरपति कीन बखाना ॥
संकट रहै न एक
रती को । ध्यान धरै हनुमान जती को ॥
धावहु देखि
दीनता मोरी । कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥
कपिपति बेगि
अनुग्रह करहु । आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥
हे हनुमान जी
! आपका नाम संकटमोचन है। स्वयं सरस्वती माता और देवराज इंद्र ने ऐसा वर्णन किया
है। जो भी व्यक्ति हनुमान जी आपका ध्यान करता है उसके जीवन में एक रत्ती के बराबर
भी संकट नहीं रह सकता। हे कृपा निधान कृपा कर आप मेरी दीनता देखकर अति तीव्र गति
से आइये और मुझे इन बंधनों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता
हूँ। हे हनुमान जी ! आप मुझ पर शीघ्र अपनी कृपा बरसाए। मेरा दुःख दूर करने के लिए
आप उतावले होकर आइये।
राम सपथ मैं
तुमहिं सुनाया । जवन गुहार लाग सिय जाया ॥
यश तुम्हार
सकल जग जाना । भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥
यह बन्धन कर
केतिक बाता । नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥
करौ कृपा जय
जय जग स्वामी । बार अनेक नमामि नमामी ॥
हे महावीर !
यदि आप मेरी पुकार सुनकर न आए तो मैं आप को श्री राम की शपथ देता हूं । हे पवनसुत
आपका यश सारा संसार जानता है । हे हनुमान जी, आप संसार में बार-बार जन्म लेने के भय को भी दूर कर देते
हैं। प्रभु फिर मेरा तो यह बंधन उसके आगे कुछ भी नहीं है ।
आपको जगत में सभी सुख देने वाला सुखदाता भी कहते हैं। हे जग
के स्वामी ! आपकी जय हो । आप मुझ दीन पर कृपा कीजिये। मैं अनेक बार आपको नमस्कार
करता हूँ।
भौमवार कर होम
विधाना । धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥
मंगल दायक को
लौ लावे । सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥
जयति जयति जय
जय जग स्वामी । समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥
अंजनि तनय नाम
हनुमाना । सो तुलसी के प्राण समाना ॥
जो भी भक्त मंगलवार को विधि पूर्वक हवन करें तथा धूप – दीप और नैवेद्य समर्पित करता है। और इसके साथ ही साथ मंगलकारी श्री हनुमान जी में ध्यान लगाता, वह चाहे देवता हो या मनुष्य या मुनि हो, तुरंत ही उसका फल पाता है । हे जगत के स्वामी ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, जय हो ! हे हनुमान जी ! आप समर्थ विश्वात्मा सभी के मन की बात जानने वाले हो। अंजनी सुत होने के कारण आपका नाम आंजनेय है । आप तुलसी के कृपा-निधान हैं।
श्री हनुमान साठिका
।।
दोहा।।
जय कपीस
सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ॥
राम लषन सीता
सहित, सदा करो कल्याण ॥
बन्दौं हनुमत
नाम यह, भौमवार परमान ॥
ध्यान धरै नर
निश्चय, पावै पद कल्याण ॥
जो नित पढ़ै
यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।
रहै न संकट
ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥
सुग्रीव जी की
जय,
अंगद जी की जय, हनुमान जी की जय, श्री राम लक्ष्मण जी, सीता जी सहित सदा हमारा कल्याण कीजिए । मंगलवार के दिन को
प्रमाण मानकर हनुमान जी का यह पाठ जो भी करता है और यदि वह मनुष्य निश्चय करके
ध्यान करे तो अवश्य ही कल्याणकारी परम पद को प्राप्त करता है। तुलसीदास की यह
घोषणा है कि जो इस हनुमान साठिका का नित्य पाठ करेगा वह कभी संकट में नहीं पड़ेगा।
स्वयं शिव जी इसके साक्षी हैं।
।। सवैया।।
आरत बन पुकारत
हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।
अंगद औ नल-नील
महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥
जाम्बवन्त्
सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।
दुःख दोष हरो
तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी
॥
श्री तुलसीदास जी कहते हैं – हे हनुमानजी ! मैं भारी विपत्ति में आपको पुकार रहा हूँ। आप मेरी प्रार्थना सुनिये। अंगद, नल, नील, महादेव, राजा बलि, भगवान राम ( देव ) बलराम, शूरवीर जांबवंत, सुग्रीव, पवन पुत्र हनुमान, द्विद और मयन्द – इन बारह वीरों को मैं बलिहारी (न्यौछावर) हूँ । कृपा कर भक्त के दुःख और दोष को दूर कीजिये।
इति हनुमान साठिका समाप्त॥
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