श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः

श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः

'संकट से हनुमान छुड़ावैं मन क्रम वचन ध्यान जो लावैं' तुलसीदास जी ने इस चौपाई में बजरंगबली की महिमा का वर्णन करते हुए बताया है कि हनुमान जी का ध्यान करने से सारे कष्ट और परेशानियां दूर हो जाती हैं

कलियुग में भगवान शिव के अवतार संकटमोचन हनुमान की उपासना करने का फल जल्दी मिलता है किसी भी तरह का कष्ट या डर हो बजरंगबली का ध्यान,स्तवन व नमस्कार करें हर परेशानी का अचूक हल साबित होगा।पाठकों के लाभार्थ यहाँ श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः तीनो हि दिया जा रहा है-

श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः


श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः


॥ श्रीहनुमद्ध्यानम् मार्कण्डेयपुराणतः ॥                                                                                     

मरकतमणिवर्णं दिव्यसौन्दर्यदेहं नखरदशनशस्त्रैर्वज्रतुल्यैः समेतम् । 

तडिदमलकिरीटं मूर्ध्नि रोमाङ्कितं च हरितकुसुमभासं नेत्रयुग्मं सुफुल्लम् ॥ १॥                              

रामदेवस्य योग्या - न्निखिलगुरुचरित्राण्यास्यपद्माद्वदन्तम् ।                              

स्फटिकमणिनिकाशे कुण्डले धारयन्तं गजकर इव बाहुं रामसेवार्थजातम् ॥ २॥

अशनिसमद्रढिम्नं दीर्घवक्षःस्थलं च नवकमलसुपादं मर्दयन्तं रिपूंश्च । 

हरिदयितवरिष्ठं प्राणसूनुं बलाढ्यं निखिलगुणसमेतं चिन्तये वानरेशम् ॥ ३॥                       

इति मार्कण्डेयपुराणतः श्रीहनुमद्ध्यानम् ।

श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः


॥ श्रीहनुमत्स्तवः ॥

                                                                                                                   कन्दर्पकोटिलावण्यं सर्वविद्याविशारदम् । उद्यदादित्यसङ्काशमुदारभुजविक्रमम् ॥ १॥

श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम् । अभयं वरदं दोर्भ्यां कलये मारुतात्मजम् ॥ २॥ 

वामहस्तं महाकृत्स्नं दशास्यशिरखण्डनम् । उद्यद्दक्षिणदोर्दण्डं हनूमन्तं विचिन्तयेत् ॥ ३॥

बालार्कायुततेजसं त्रिभुवनप्रक्षोभकं सुन्दरं सुग्रीवाद्यखिलप्लवङ्गनिकरैराराधितं साञ्जलिम् । 

नादेनैव समस्तराक्षसगणान् सन्त्रासयन्तं प्रभुं श्रीमद्रामपदाम्बुजस्मृतिरतं ध्यायामि वातात्मजम् ॥ ४॥ 

आमिषीकृतमार्ताण्डं गोष्पदीकृतसागरम् । तृणीकृतदशग्रीवमाञ्जनेयं नमाम्यहम् ॥ ५॥      

चित्ते मे पूर्णबोधोऽस्तु वाचि मे भातु भारती । क्रियासुर्गुरवः सर्वे दयां मयि दयालवः ॥ ६॥

इति श्रीहनुमत्स्तवः॥

श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः


॥ श्रीहनुमन्नमस्कारः ॥

                                                                                                                      गोष्पदी-कृत-वारीशं मशकी-कृत-राक्षसम् । रामायण-महामाला-रत्नं वन्देऽनिलात्मजम् ॥ १॥

अञ्जना-नन्दनं-वीरं जानकी-शोक-नाशनम् । कपीशमक्ष-हन्तारं वन्दे लङ्का-भयङ्करम् ॥ २॥

महा-व्याकरणाम्भोधि-मन्थ-मानस-मन्दरम् । कवयन्तं राम-कीर्त्या हनुमन्तमुपास्महे ॥ ३॥

उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं यः शोक-वह्निं जनकात्मजायाः ।  

आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥ ४॥

मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् ।                            

वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीराम-दूतं शिरसा नमामि ॥ ५॥

आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रि-कमनीय-विग्रहम् ।   

पारिजात-तरु-मूल-वासिनं भावयामि पवमान-नन्दनम् ॥ ६॥

यत्र यत्र रघुनाथ-कीर्तनं तत्र तत्र कृत-मस्तकाञ्जलिम् ।

बाष्प-वारि-परिपूर्ण-लोचनं मारुतिर्नमत राक्षसान्तकम् ॥ ७॥

इति श्रीहनुमन्नमस्कारः ॥

श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारःसमाप्त

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