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- श्रीघटिकाचलहनुमत्स्तोत्रम्
- श्रीहनुमत्सहस्रनामावलिः अथवा आन्जनेयसहस्रनामावलिः
- हनुमत्सहस्रनामस्तोत्रम्
- हनुमत्सहस्रनाम स्तोत्रम्, श्रीहनुमत्सहस्र नामावलिः
- लान्गूलोपनिषत्
- श्रीहनुमत्कल्पः
- श्रीहनुमत्सूक्तम्
- श्रीहनुमत्स्तोत्रम्
- श्रीहनुमद्वन्दनम्
- श्रीहनुमद्-ध्यानम्-स्तवः-नमस्कारः
- हनुमान रक्षा स्तोत्र
- श्रीहनुमत्प्रशंसनम्
- श्रीहनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्
- लाङ्गूलास्त्रशत्रुञ्जय हनुमत्स्तोत्रम्
- एकादशमुखि हनुमत्कवचम्
- एकादशमुख हनुमत्कवचम्
- सप्तमुखीहनुमत्कवचम्
- पञ्चमुख हनुमत् हृदयम्
- पञ्चमुखिहनुमत्कवचम्
- पंचमुखहनुमत्कवचम्
- पञ्चमुखि वीरहनूमत्कवचम्
- एकमुखी हनुमत्कवचम्
- संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्
- श्रीहनुमत्कवचम्
- मारुतिकवच
- हनुमत्कवचं
- हनुमान द्वादशनाम स्तोत्र
- हनुमान अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्
- सुन्दरकाण्डरामायणनिर्णयः
- आञ्जनेय गायत्री ध्यानम् त्रिकाल वंदनं
- श्रीरामचरित मानस- उत्तरकांड, मासपारायण, तीसवाँ विश...
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- श्रीरामचरित मानस- उत्तरकांड, मासपारायण, अट्ठाईसवाँ...
- श्रीरामचरित मानस- लंकाकांड, मासपारायण, सत्ताईसवाँ ...
- श्रीरामचरित मानस- लंकाकांड, मासपारायण, छब्बीसवाँ व...
- श्रीरामचरित मानस- लंकाकांड, मासपारायण, पच्चीसवाँ व...
- श्री राम चरित मानस- सुंदरकांड, मासपारायण, चौबीसवाँ...
- श्री राम चरित मानस- किष्किंधाकांड, मासपारायण, तेईस...
- श्री राम चरित मानस- अरण्यकांड, मासपारायण, बाईसवाँ ...
- आदित्यहृदयम् भविष्योत्तरपुराणान्तर्गतम्
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, इक्कीस...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, बीसवाँ...
- श्री राम चरित मानस- अयोध्याकांड, मासपारायण, उन्नीस...
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मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
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रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्
संकटमोचन हनुमान् स्तोत्र
।। अथ संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ।
संकट बेगि में
होहु सहाई ।।
नहिं जप जोग न ध्यान करो ।
तुम्हरे पद पंकज में
सिर नाई ।।
खेलत खात अचेत फिरौं ।
ममता-मद-लोभ रहे तन छाई
।।
हेरत पन्थ रहो निसि वासर ।
कारण कौन विलम्बु
लगाई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी सुत ।
संकट बेगि में होहु
सहाई ।।
जो अब आरत होई पुकारत ।
राखि लेहु यम फांस
बचाई ।।
रावण गर्वहने दश मस्तक ।
घेरि लंगूर की कोट
बनाई ।।
निशिचर मारि विध्वंस कियो ।
घृत लाइ लंगूर ने लंक
जराई ।।
जाइ पाताल हने अहिरावण ।
देविहिं टारि पाताल
पठाई ।।
वै भुज काह भये हनुमन्त ।
लियो जिहि ते सब संत
बचाई ।।
औगुन मोर क्षमा करु साहेब ।
जानिपरी भुज की
प्रभुताई ।।
भवन आधार बिना घृत दीपक ।
टूटी पर यम त्रास
दिखाई ।।
काहि पुकार करो यही औसर ।
भूलि गई जिय की
चतुराई ।।
गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु ।
रोषित देखि के जात
डेराई ।।
छाड़े हैं माता पिता परिवार ।
पराई गही शरणागत आई ।।
जन्म अकारथ जात चले ।
अनुमान बिना नहीं
कोउ सहाई ।।
मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी ।
भवसागर पार लगाओ गोसाईं
।।
पूज कोऊ कृत काशी गयो ।
मह कोऊ रहे सुर ध्यान
लगाई ।।
जानत शेष महेष गणेश ।
सुदेश सदा तुम्हरे गुण
गाई ।।
और अवलम्ब न आस छुटै ।
सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।
संतन के दुःख देखि सहैं नहिं ।
जान परि बड़ी वार
लगाई ।।
एक अचम्भी लखो हिय में ।
कछु कौतुक देखि रहो
नहिं जाई ।।
कहुं ताल मृदंग बजावत गावत ।
जात महा दुःख बेगि
नसाई ।।
मूरति एक अनूप सुहावन ।
का वरणों वह
सुन्दरताई ।।
कुंचित केश कपोल विराजत ।
कौन कली विच भऔंर
लुभाई ।।
गरजै घनघोर घमण्ड घटा ।
बरसै जल अमृत देखि
सुहाई ।।
केतिक क्रूर बसे नभ सूरज ।
सूरसती रहे ध्यान लगाई
।।
भूपन भौन विचित्र सोहावन ।
गैर बिना वर बेनु बजाई
।।
किंकिन शब्द सुनै जग मोहित ।
हीरा जड़े बहु झालर लाई
।।
संतन के दुःख देखि सको नहिं ।
जान परि बड़ी बार
लगाई ।।
संत समाज सबै जपते सुर ।
लोक चले प्रभु के
गुण गाई ।।
केतिक क्रूर बसे जग में ।
भगवन्त बिना
नहिं कोऊ सहाई ।।
नहिं कछु वेद पढ़ो,
नहीं ध्यान धरो ।
बनमाहिं इकन्तहि
जाई ।।
केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर ।
धन्य गुरु जिन
पन्थ दिखाई ।।
स्वारथ जन्म भये तिनके ।
जिन्ह को हनुमन्त
लियो अपनाई ।।
का वरणों करनी तरनी जल ।
मध्य पड़ी धरि पाल
लगाई ।।
जाहि जपै भव फन्द कटैं ।
अब पन्थ सोई तुम
देहु दिखाई ।।
हेरि हिये मन में गुनिये मन ।
जात चले अनुमान बड़ाई ।।
यह जीवन जन्म है थोड़े दिना ।
मोहिं का करि है यम
त्रास दिखाई ।।
काहि कहै कोऊ व्यवहार करै ।
छल-छिद्र में
जन्म गवाईं ।।
रे मन चोर तू सत्य कहा अब ।
का करि हैं यम
त्रास दिखाई ।।
जीव दया करु साधु की संगत ।
लेहि अमर पद लोक
बड़ाई ।।
रहा न औसर जात चले ।
भजिले भगवन्त
धनुर्धर राई ।।
काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत ।
संकट बेगि में
होहु सहाई ।।
संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् समाप्त ।।
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