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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
संकष्टमोचन स्तोत्र
काशीपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य
स्वामी श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचित इस संकष्टमोचन स्तोत्र का पाठ करने से
दरिद्रता और दुःखों का दहन, वाद-विवाद में विजय
प्राप्ति, समस्त कल्याण मङ्गलों की प्राप्ति तथा अमङ्गलों की
निवृत्ति, गृहस्थ-जीवन में दीर्घकालपर्यन्त सुख-प्राप्ति तथा
सभी मनोरथों की पूर्ति होती है।
श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रम्
सिन्दूरपूररुचिरो बलवीर्यसिन्धुः
बुद्धिप्रभावनिधिरद्भुतवैभवश्रीः ।
दीनार्तिदावदहनो वरदो वरेण्यः
सङ्कष्टमोचनविभुस्तनुतां शुभं नः ॥ १॥
जो सिन्दूर-स्नान से सुन्दर
देहयुक्त,
बल-वीर्य के सागर, बुद्धि-प्रवाह के आकर और
अद्भुत ऐश्वर्य के धाम हैं, जो दीनों के दु:खों का नाश करने के
लिये दारुण दावानल के समान हैं तथा जो वरदान-तत्पर, सर्वकामपूरक,
संकटघटाविदारक और सर्वव्यापी हैं, वे संकटमोचन
प्रभु हमलोगों के लिये मङ्गलकारी हों॥१॥
सोत्साहलङ्घितमहार्णवपौरुषश्रीः
लङ्कापुरीप्रदहनप्रथितप्रभावः ।
घोराहवप्रमथितारिचयप्रवीरः
प्राभञ्जनिर्जयति मर्कटसार्वभौमः ॥ २॥
उन वानरराज-चक्रवर्ती की जय हो,
जो उत्साहपूर्वक महासिन्धु को लाँघ गये, जिनकी
पुरुषार्थ-लक्ष्मी देदीप्यमान है, लंकानगरी के दहन से जिनकी
प्रभाव-प्रभा दिग्दिगन्त व्याप्त है और जो घोर राम-रावण-युद्ध में शत्रु-सेना का
मथन करने में महान् वीर तथा प्रभञ्जन-पवन को आनन्द देनेवाले-पवनकुमार हैं॥२॥
द्रोणाचलानयनवर्णितभव्यभूतिः
श्रीरामलक्ष्मणसहायकचक्रवर्ती ।
काशीस्थदक्षिणविराजितसौधमल्लः
श्रीमारुतिर्विजयते भगवान् महेशः ॥ ३॥
जो संजीवनी के लिये द्रोणगिरि को ही
उठा लाये थे, जो सुन्दर भव्य विभूतिसम्पन्न,
श्रीराम-लक्ष्मण के सेवक-सहायकों में चक्रवर्तिशिरोमणि और मल्लवीर
काशीपुरी के दक्षिण भाग-स्थित दिव्य भवन में विराजमान हैं, ऐसे
महेश-रुद्रावतार भगवान् मारुति की जय हो॥३॥
नूनं स्मृतोऽपि ददते भजतां
कपीन्द्रः
सम्पूजितो दिशति वाञ्छित-सिद्धिवृद्धिम् ।
संमोदकप्रिय उपैति परं प्रहर्षं
रामायणश्रवणतः पठतां शरण्यः ॥ ४॥
वे वानरराज स्मरणमात्र से भक्तों पर
दया करनेवाले हैं और विधिपूर्वक सम्पूजित होने पर सभी मनोरथों की तथा सुख-समृद्धि की
पूर्ति-वृद्धि करनेवाले हैं। वे मोदक (लड्डू)-प्रिय अथवा भक्तों को विशेष मुदित
करनेवाले हैं। रामायण-श्रवण से उन्हें परम हर्ष प्राप्त होता है और वे
पाठकों की पूर्णतया रक्षा करनेवाले हैं ॥४॥
श्रीभारतप्रवरयुद्धरथोद्धतश्रीः
पार्थैककेतनकरालविशालमूर्तिः ।
उच्चैर्घनाघनघटाविकटाट्टहासः
श्रीकृष्णपक्षभरणः शरणं ममाऽस्तु ॥ ५॥
महाभारत-महायुद्ध में रथ पर जिनकी
शोभा समुद्यत हुई है, पृथानन्दन अर्जुन के
रथकेतु पर जिनकी विकराल विशाल मूर्ति विराजमान है, घनघोर मेघ-घटा
के गम्भीर गर्जन के समान जिनका विकट अट्टहास है, ऐसे
श्रीकृष्णपक्ष (पाण्डव-सैन्य)-के पोषक (अद्भुत चन्द्र) मेरे शरणदाता हों॥५॥
जङ्घालजङ्घ उपमातिविदूरवेगो
मुष्टिप्रहारपरिमूर्च्छितराक्षसेन्द्रः ।
श्रीरामकीर्तितपराक्रमणोद्धवश्रीः
प्राकम्पनिर्विभुरुदञ्चतु भूतये नः ॥ ६॥
उन विशाल जङ्घावाले श्रीहनुमान का
वेग उपमा से रहित-अनुपम है, जिनकी मुष्टि के
प्रहार से राक्षसराज रावण मूर्छित हो गया था, जिनके पराक्रम की
अद्भुत श्री का कीर्तन स्वयं भगवान् श्रीराम करते हैं, ऐसे प्रकम्पन (मारुत)-नन्दन, सर्वव्यापक श्रीहनुमान
हमें विभूति प्रदान करने के लिये तत्पर हो॥६॥
सीतार्तिदारणपटुः प्रबलः प्रतापी
श्रीराघवेन्द्रपरिरम्भवरप्रसादः ।
वर्णीश्वरः सविधिशिक्षितकालनेमिः
पञ्चाननोऽपनयतां विपदोऽधिदेशम् ॥ ७॥
सीता के शोक-संताप के विनाश में निपुण, प्रबल प्रतापी श्रीहनुमान भगवान् श्रीराघवेन्द्र के आलिङ्गनरूप दिव्य वर-प्रसाद से सम्पन्न हैं। जो वर्णियों-ब्रह्मचारियों के शिरोमणि तथा कपट-साधु कालनेमि को विधिवत् शिक्षा देनेवाले हैं, वे पञ्चमुख हनुमानजी हमारी विपत्तियों का सर्वथा अपसारण (दूर) करें॥७॥
उद्यद्भानुसहस्रसन्निभतनुः
पीताम्बरालङ्कृतः
प्रोज्ज्वालानलदीप्यमाननयनो निष्पिष्टरक्षोगणः ।
संवर्तोद्यतवारिदोद्धतरवःप्रोच्चैर्गदाविभ्रमः
श्रीमान् मारुतनंदनः प्रतिदिनं ध्येयो विपद्भञ्जनः ॥ ८॥
जिनका श्रीविग्रह उदीयमान सहस्र सूर्य
के सदृश अरुण तथा पीताम्बर से सुशोभित है, जिनके
नेत्र अत्यन्त प्रज्वलित अग्नि के समान उद्दीप्त हैं, जो राक्षस-समूह को निःशेषतया पीस देनेवाले हैं, प्रलयकालीन
मेघ-गर्जना के तुल्य जिनकी घोर गर्जना है, जिनके मुद्गर
(गदा)-का भ्रमण अतिशय दिव्य है, ऐसे शोभाप्रभा-संवलित
मारुतनन्दन विपद्विभञ्जन श्रीहनुमानजी का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिये॥८॥
रक्षःपिशाचभयनाशनमामयाधि
प्रोच्चैर्ज्वरापहरणं हननं रिपूणाम् ।
सम्पत्तिपुत्रकरणं विजयप्रदानं
सङ्कष्टमोचनविभोः स्तवनं नराणाम् ॥ ९॥
संकट-मोचन
प्रभु श्रीहनुमान का स्तवन (गुण-गान) मानवमात्र के लिये राक्षस-पिशाच (भूत-प्रेत) के
भय का विनाशक, आधि-व्याधि-शोक-संताप-ज्वर-दाहादि
का प्रशमन करनेवाला, शत्रु-दमन, पुत्र-सम्पत्ति
का दाता एवं विजय प्रदान करनेवाला है॥९॥
दारिद्र्यदुःखदहनं शमनं विवादे
कल्याणसाधनममङ्गलवारणाय ।
दाम्पत्यदीर्घसुखसर्वमनोरथाप्तिं
श्रीमारुतेः स्तवशतावृतिरातनोति ॥ १०॥
श्रीमारुतनन्दन की इस स्तुति का सौ
बार पाठ करने से दरिद्रता और दुःखों का दहन, वाद-विवाद
में विजय प्राप्ति, समस्त कल्याण मङ्गलों की अवाप्ति तथा
अमङ्गलों की निवृत्ति, गृहस्थ-जीवन में दीर्घकालपर्यन्त
सुख-प्राप्ति तथा सभी मनोरथों की पूर्ति होती है॥१०॥
स्तोत्रं य एतदनुवासरमाप्तकामः
श्रीमारुतिं समनुचिन्त्य पठेत् सुधीरः ।
तस्मै प्रसादसुमुखो वरवानरेन्द्रः
साक्षात्कृतो भवति शाश्वतिकः सहायः ॥ ११॥
जो कोई विवेकशील धीर मानव
निष्कामभाव से श्रीमारुतनन्दन का विधिपूर्वक चिन्तन करते हुए इस स्तोत्र का पाठ
करता है,
उसके समक्ष प्रसादसुमुख-परमसौम्य वानरेन्द्र श्रीहनुमानजी साक्षात्
प्रकट होते हैं और नित्य उसकी रक्षा-सहायता करते हैं॥११॥
सङ्कष्टमोचनस्तोत्रं
शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।
महेश्वरेण रचितं
मारुतेश्चरणेऽर्पितम् ॥ १२॥
भिक्षु (संन्यासी) शंकराचार्य
श्रीमहेश्वर (श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वती महाराज)-ने इस 'संकष्टमोचनस्तोत्र'की रचना की है और वे इसे
श्रीमारुति के चरणों में समर्पित कर रहे हैं॥ १२ ॥
इति काशीपीठाधीश्वर
जगद्गुरुशङ्कराचार्यस्वामि
श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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