Slide show
Ad Code
JSON Variables
Total Pageviews
Blog Archive
-
▼
2022
(523)
-
▼
October
(40)
- शाबरी कवच
- मुण्डमालातन्त्र पटल १६
- दशमहाविद्या स्तोत्र
- महाविद्या कवच
- रुद्रयामल तंत्र पटल १९
- मुण्डमालातन्त्र पटल १५
- श्रीभुवनेश्वरी शतनाम स्तोत्र
- श्रीरामहृदय स्तोत्र
- रुद्रयामल तंत्र पटल १८
- महालक्ष्मी स्तोत्र
- त्रैलोक्य मंगल लक्ष्मीस्तोत्र
- कल्याण वृष्टि स्तोत्र
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ४
- श्रीराम उत्तर तापिनी उपनिषद्
- श्रीरामोत्तरतापिनीयोपनिषद्
- श्रीराम उत्तरतापिनी उपनिषद
- श्रीराम पूर्व तापिनी उपनिषद्
- श्रीरामपूर्वतापिनीयोपनिषद्
- श्रीरामपूर्वतापनीयोपनिषद
- शिक्षाष्टक
- गंगाष्टक
- सूर्याष्टक
- श्रीराधा उपसुधा निधि
- शिलान्यास विधि
- सूर्य कवच स्तोत्र
- भूमि पूजन विधि
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय ३
- करवा चौथ सम्पूर्ण व्रत कथा
- मन्त्रात्मक श्रीमारुतिस्तोत्र
- संकष्टमोचन स्तोत्र
- हनुमत् स्तोत्र
- हनुमत्पञ्चरत्न स्तोत्र
- श्रीहनुमत्सहस्रनाम स्तोत्र
- मुण्डमालातन्त्र पटल १४
- रुद्रयामल तंत्र पटल १७
- गीतगोविन्द अष्ट पदि १- दशावतार स्तोत्र कीर्तिधवल
- श्रीराधा सप्तशती अध्याय २
- वीरविंशति हनुमत् स्तोत्र
- मुण्डमालातन्त्र पटल १३
- देवी कृत शिवस्तव
-
▼
October
(40)
Search This Blog
Fashion
Menu Footer Widget
Text Widget
Bonjour & Welcome
About Me
Labels
- Astrology
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड
- Hymn collection
- Worship Method
- अष्टक
- उपनिषद
- कथायें
- कवच
- कीलक
- गणेश
- गायत्री
- गीतगोविन्द
- गीता
- चालीसा
- ज्योतिष
- ज्योतिषशास्त्र
- तंत्र
- दशकम
- दसमहाविद्या
- देवी
- नामस्तोत्र
- नीतिशास्त्र
- पञ्चकम
- पञ्जर
- पूजन विधि
- पूजन सामाग्री
- मनुस्मृति
- मन्त्रमहोदधि
- मुहूर्त
- रघुवंश
- रहस्यम्
- रामायण
- रुद्रयामल तंत्र
- लक्ष्मी
- वनस्पतिशास्त्र
- वास्तुशास्त्र
- विष्णु
- वेद-पुराण
- व्याकरण
- व्रत
- शाबर मंत्र
- शिव
- श्राद्ध-प्रकरण
- श्रीकृष्ण
- श्रीराधा
- श्रीराम
- सप्तशती
- साधना
- सूक्त
- सूत्रम्
- स्तवन
- स्तोत्र संग्रह
- स्तोत्र संग्रह
- हृदयस्तोत्र
Tags
Contact Form
Contact Form
Followers
Ticker
Slider
Labels Cloud
Translate
Pages
Popular Posts
-
मूल शांति पूजन विधि कहा गया है कि यदि भोजन बिगड़ गया तो शरीर बिगड़ गया और यदि संस्कार बिगड़ गया तो जीवन बिगड़ गया । प्राचीन काल से परंपरा रही कि...
-
रघुवंशम् द्वितीय सर्ग Raghuvansham dvitiya sarg महाकवि कालिदास जी की महाकाव्य रघुवंशम् प्रथम सर्ग में आपने पढ़ा कि-महाराज दिलीप व उनकी प...
-
रूद्र सूक्त Rudra suktam ' रुद्र ' शब्द की निरुक्ति के अनुसार भगवान् रुद्र दुःखनाशक , पापनाशक एवं ज्ञानदाता हैं। रुद्र सूक्त में भ...
Popular Posts
अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
मुण्डमालातन्त्र पटल १४
मुण्डमालातन्त्र (रसिक मोहन विरचित अष्टम
पटल) पटल १४ में काली शतनाम स्तोत्र, तारा शतनाम स्तोत्र, स्तोत्र पाठ-दिवस का वर्णन है।
मुण्डमालातन्त्रम् चतुर्दश: पटलः
मुंडमाला तंत्र पटल १४
रसिक मोहन विरचितम् मुण्डमालातन्त्रम्
अष्टमः पटलः
रसिक मोहन विरचित मुण्डमालातन्त्र
पटल ८
श्रीदेव्युवाच -
नमस्ते पार्वतीनाथ ! विश्वनाथ !
दयामय !।
ज्ञानात् परतरं नास्ति श्रुतं
विश्वेश्वर ! प्रभो ! ॥1॥
श्री देवी ने कहा
- हे पार्वतीनाथ ! हे विश्वनाथ ! हे दयामय ! आपको नमस्कार । हे विश्वेश्वर ! हे
प्रभो ! मैंने सुना है, ज्ञान से श्रेष्ठतर
और कुछ नहीं है ।।1।।
दीनबन्धो ! दयासिन्धो ! विश्वेश्वर
! जगत्पते ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि गोप्यं
परम-कारणम् ।
रहस्य कालिकायाश्च तारायाश्च
सुरोत्तम ! ।।2।।
हे दीनबन्धो ! हे दयासिन्धो ! हे
विश्वेश्वर ! हे जगत्पते ! हे सुरोक्तम ! सम्प्रति परम कारण,
गोपनीय, कालिका
एवं तारा के रहस्य को सुनने की इच्छा कर रही हूँ ।।2।।
श्री शिव उवाच -
रहस्यं किं वदिष्यामि
पञ्चवक्त्रैर्महेश्वरि !।
जिह्वाकोटिसहस्रैस्तु
वक्त्रकोटिशतैरपि ॥3॥
श्री शिव ने कहा
- हे महेश्वरि ! मैं पाँच मुखों के द्वारा रहस्य को क्या बताऊँ ?
तथापि सहस्र कोटि जिह्वाओं के द्वारा, शत कोटि
मुखों के द्वारा किसी प्रकार उनके माहात्म्य को नहीं बता सकता हूँ ।।3।।
तथापि तस्या महात्म्यं न शक्नोमि
कथञ्चन ।
तस्या रहस्यं गोप्यञ्च किं न जानासि
शङ्करि !।
स्वस्यैव चरितं वक्तुं स्वयमेव
क्षमो भवेत् ।।4।।
हे शङ्करि ! उनका रहस्य अति गोपनीय
है। क्या आप यह नहीं जानती है ? अपने चरित को
कहने में आप स्वयं ही समर्था हैं ।।4।।
अन्यथा नैव देवेशि ! न जानाति
कथञ्चन ।
कालिकायाः शतं नाम नानातन्त्रे
त्वया श्रुतम् ।
रहस्यं गोपनीयञ्च तन्त्रेऽस्मिन्
जगदम्बिके ।।5।।
हे देवेशि ! अन्य प्रकार से,
किसी प्रकार भी इसे बताया नहीं जा सकता है । क्या यह आप नहीं जानती
हैं ? नाना तन्त्रों में आपने कालिका के शतनाम का श्रवण
किया है। हे जगदम्बिके ! इस तन्त्र में रहस्य गोपनीय है ।।5।।
अब इससे आगे श्लोक 6
से 34 में कालिका शतनाम
दिया गया है इसे पढ़ने के लिए क्लिक करें-
॥
ककारादि काली शतनाम स्तोत्रम् ॥
मुण्डमाला-महातन्त्रं महामन्त्रस्य
साधनम् ।
मुंडमाला तंत्र पटल 14
रसिक मोहन विरचितम् मुण्डमालातन्त्रम्
अष्टमः पटलः
भक्त्या भगवती दुर्गा
दुःख-दारिद्रय-नाशिनीम् ।।35।।
संस्मरेत् प्रजपेद् ध्यायेत् स
मुक्तो नात्र संशयः ।
जीवन्मुक्तः स विज्ञेयस्तन्त्र
भक्ति-परायणः ।।36।।
'मुण्डमाला महातन्त्र'
महातन्त्र का साधन है। भक्ति के साथ दुःख एवं दारिद्रय-नाशिनी भगवती दुर्गा का स्मरण करें, उनके मन्त्र का जप करें एवं उनका
ध्यान करें। वह मुक्त हो जावेगा-इसमें संशय नही है । तन्त्र-भक्ति-परायण वह
व्यक्ति जीवनमुक्त है-ऐसा जानें ।।35-36।।
स साधको महाज्ञानी यश्च
दुर्गापदानुगः ।
न च भुक्तिर्न वा भक्तिर्न
मुक्तिनगनन्दिनि !।
विना दुर्गा जगद्धात्रीं जायते
नात्र संशयः ।।37।।
जो व्यक्ति दुर्गा के पदयुगल
का अनुगामी है, वह साधक महाज्ञानी है । हे
नगनन्दिनि ! हे जगद्धात्रि ! दुर्गा के बिना भोग उत्पन्न नहीं होता है,भक्ति उत्पन्न नहीं होता है, मुक्ति भी उत्पन्न नहीं
होता है। इसमें संशय नहीं है।
शक्तिमार्गरतो भूयो योऽन्यमार्गे
प्रधावति ।
न च शाक्तास्तस्य वक्त्रं
परिपश्यन्ति शङ्करि ! ॥38॥
हे शङ्कर ! जो व्यक्ति शक्तिमार्ग
में अनुरक्त रहकर, पुनः अन्य मार्ग के
प्रति गमन करता है, शाक्तगण उसके मुख का दर्शन नहीं करते ।।38।।
विना दुर्गा जगद्धात्रि !
वाग्जाल-शास्त्र-मोहिताः ।
अन्यदेवं भजन्त्येते ये
चान्य-शास्त्र घूर्णिताः ।।39।।
हे जगद्धात्रि जो (व्यक्ति)
वागजाल-शास्त्र के द्वारा मुग्ध बन गया है, अन्य
शास्त्र के द्वारा भ्रान्त बन गया है, वही दुर्गा का
परित्याग कर, अन्य देवता की भजना करता है ।।39।।
विना तन्त्राद् विना मन्त्राद् विना
यन्त्रान्महेश्वरि !।
न च भक्तिश्च मुक्तिश्च जायते
वरवर्णिनि ! ॥40॥
हे वरवर्णिनि ! हे महेश्वरि !
तन्त्र के बिना, मन्त्र के बिना, यन्त्र के बिना भक्ति उत्पन्न नहीं होती है, मुक्ति
भी उत्पन्न नहीं होती है ।।40।।
तन्त्र-वक्ता गुरुः साक्षाद् यथा च
ज्ञानदः शिवः ।
यथा गुरुर्महेशानि! यथा च परमो
गुरुः ॥41॥
यथा परापरगुरुः परमेष्ठी यथा गुरुः
।
तथा चैव हि तन्त्रज्ञ स्तन्त्रवक्ता
गुरुः स्वयम् ॥42।।
हे महेशानि ! ज्ञानप्रद शिव
जिस प्रकार गुरु हैं, तन्त्र वक्ता
भी उसी प्रकार साक्षात् गुरु हैं । गुरु जिस प्रकार गुरु हैं, परमगुरु जिस प्रकार गुरु हैं, परापरगुरु जिस प्रकार
गुरु हैं, परमेष्ठी गुरु जिस प्रकार गुरु हैं, तन्त्रज्ञ तन्त्रवक्ता भी उसी प्रकार स्वयं गरु हैं ।।41-42।।
तन्त्रञ्च तन्त्रवक्तारं निन्दन्ति
तन्त्रिकी क्रियाम् ।
ये जना भैरवास्तेषां
मांसास्थि-चर्वणोद्यताः ।।43।।
जो व्यक्ति तन्त्र की,
तन्त्र वक्ता की एवं तान्त्रिकी क्रिया की निन्दा करता है, भैरवगण उसके मांस एवं अस्थि को चर्वण के लिए उद्यत हो जाते हैं ।।43।।
अतएव च तन्त्रज्ञं न निन्दन्ति
कदाचन ।
न हसन्ति न हिंसन्ति न वदन्त्यन्यथा
इति ।।44॥
इसलिए कोई कभी तन्त्रज्ञ व्यक्ति की
निन्दा नहीं करता है, तन्त्रज्ञ व्यक्ति
को देखकर नहीं हँसता है, तन्त्रज्ञ व्यक्ति से कभी ईर्ष्या
नहीं करता है एवं अन्य प्रकार बातें भी नहीं करता है ।।44।।
श्री पार्वत्युवाच -
शृणु देव ! जग्बन्धो! मद्वाक्यं
दृढ़ निश्चितम् ।
तव प्रासादाद् देवेश! श्रुतं
कालीरहस्यकम् ।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि ताराया वद
साम्प्रतम् ।।45 ।।
श्री पार्वती ने कहा
- हे देव ! हे जगद्वन्धो ! दृढ़ निश्चित होकर मेरे वाक्य को सुने । हे देवेश !
आपके अनुग्रह से मैंने कालीरहस्य को सुना है । सम्प्रति तारा के रहस्य को
सुनने की इच्छा कर रही हूँ। सम्प्रति आप इसे बतावें ।
श्री शिव उवाच -
धन्यासि देवदेवेशि ! दुर्गे !
दुर्गार्त्तिनाशिनि ! ।
यं श्रुत्वा मोक्षमाप्नोति पठित्वा
नगनन्दिनि ! ॥46॥
श्री शिव ने कहा
- हे देवदेवेशि ! हे दुर्गे ! हे दुर्गार्त्तिनाशिनि ! आप धन्य हैं । हे नगनन्दिनि
! जिस रहस्य-स्तोत्र का श्रवण कर एवं पाठ कर लोग मोक्ष लाभ करते हैं,
उसे सुनें ।।46।।
अब इससे आगे श्लोक 47
से 63 में तारा शतनाम स्तोत्र दिया गया है इसे
पढ़ने के लिए क्लिक करें-
॥
तारा तारणी शतनामस्तोत्रम् ॥
मुण्डमालातन्त्रम् चतुर्दश: पटलः
रसिक मोहन विरचित मुण्डमालातन्त्र
पटल 8
ते कृतार्था महेशानि! मृत्यु-संसार
बन्धनात् ।
रहस्यं तारिणी-देव्याः कालिकायाः
श्रुतं त्वया ।।64।।
हे महेशानि ! वे कृतार्थ होकर
मृत्युतुल्य संसार-बन्धन से मुक्त हो जाता है । कालिका एवं तारिणी देवी
के रहस्य को आपने सुना है ।।64।।
सारं परमगोप्यञ्च शिवध्येयं
शिव-प्रदम् ।
इदानीञ्च वरारोहे ! भूयः किं
श्रोतुमिच्छसि ।।65।।
यह सार (तत्त्व) परम गोप्य,
शिवध्येय एवं शिवप्रद है । हे वरारोहे ! सम्प्रति पुनः यह बतावें कि
आप किस विषय को सुनने की इच्छा कर रहीं है ।।65।।
इति देवीश्वर-संवादे
मुण्डमालातन्त्रे कालीतारा-रहस्ये अष्टमः पटलः ॥8॥
मुण्डमालातन्त्र में देवी एवं ईश्वर
के संवाद में काली-तारा रहस्य में अष्टम पटल का अनुवाद समाप्त ।।8।।
आगे जारी............. रसिक मोहन विरचित मुण्डमालातन्त्र पटल 9
Related posts
vehicles
business
health
Featured Posts
Labels
- Astrology (7)
- D P karmakand डी पी कर्मकाण्ड (10)
- Hymn collection (38)
- Worship Method (32)
- अष्टक (54)
- उपनिषद (30)
- कथायें (127)
- कवच (61)
- कीलक (1)
- गणेश (25)
- गायत्री (1)
- गीतगोविन्द (27)
- गीता (34)
- चालीसा (7)
- ज्योतिष (32)
- ज्योतिषशास्त्र (86)
- तंत्र (182)
- दशकम (3)
- दसमहाविद्या (51)
- देवी (190)
- नामस्तोत्र (55)
- नीतिशास्त्र (21)
- पञ्चकम (10)
- पञ्जर (7)
- पूजन विधि (80)
- पूजन सामाग्री (12)
- मनुस्मृति (17)
- मन्त्रमहोदधि (26)
- मुहूर्त (6)
- रघुवंश (11)
- रहस्यम् (120)
- रामायण (48)
- रुद्रयामल तंत्र (117)
- लक्ष्मी (10)
- वनस्पतिशास्त्र (19)
- वास्तुशास्त्र (24)
- विष्णु (41)
- वेद-पुराण (691)
- व्याकरण (6)
- व्रत (23)
- शाबर मंत्र (1)
- शिव (54)
- श्राद्ध-प्रकरण (14)
- श्रीकृष्ण (22)
- श्रीराधा (2)
- श्रीराम (71)
- सप्तशती (22)
- साधना (10)
- सूक्त (30)
- सूत्रम् (4)
- स्तवन (109)
- स्तोत्र संग्रह (711)
- स्तोत्र संग्रह (6)
- हृदयस्तोत्र (10)
No comments: