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अगहन बृहस्पति व्रत व कथा
मार्तण्ड भैरव स्तोत्रम्
भूमि पूजन विधि
भूमि पूजन विभिन्न कार्यों निमित्त किया जाता है- जैसे किसी भी प्रकार की शासकीय या गैर शासकीय भवन आदि(स्कूल,अस्पताल,मंदिर अथवा अन्य भवन अथवा मार्ग निर्माण आदि) । यहाँ हम इन्हें संक्षेप में कहते हुए गृह निर्माण के निमित्त किया जाने वाला भूमि पूजन विधि के विषय में कहते हैं।
गृह स्वामी अपने लिए वास्तु अनुरूप
जब भूमि चयन कर लें, तब गृह निर्माण से पूर्व सबसे पहले भूमि पूजन करवाते हैं। अब शुभ
मुहूर्त और भूमि खनन दिशा देखकर आचार्य उस भूमि पर जाकर उचित जगह पर भूमि पूजन
विधि प्रारंभ करवाएं-
अथ भूमि पूजन विधि
भूमि को गोबर से लीपकर अथवा पंचगव्य का छिड़काव कर शुद्ध कर लें। अब चौंक अथवा अलपना बनवा कर गौरी-गणेश,नवग्रह,कलश स्थापित करें और पूजन प्रारंभ करें-
सबसे पहले पवित्रीकरण करें-
बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ
से अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर छिड़कें-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां
गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स
बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ
पुण्डरीकाक्षः पुनातु । ॐ पुण्डरीकाक्षः पुनातु ।
अब हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्तिवाचन
करें-
ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु
विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः ।
देवा नो यथा सदमिद् वृधे
असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ॥
देवानां भद्रा सुमतिर्ॠजूयतां
देवाना ঌ
रातिरभि नो निवर्तताम् ।
देवाना ঌ सख्यमुपसेदिमा
वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे ॥
तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं
मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम् ।
अर्यमणं वरुण ঌ सोममश्विना
सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ॥
तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं
तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौः ।
तद् ग्रावाणः सोमसुतो
मयोभुवस्तदश्विना श्रृणुतं धिष्ण्या युवम् ॥
तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं
धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम् ।
पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता
पायुरदब्धः स्वस्तये ॥
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
पृषदश्वा मरुतः पृश्निमातरः शुभं
यावानो विदथेषु जग्मयः ।
अग्निजिह्वा मनवः सूरचक्षसो विश्वे
नो देवा अवसागमन्निह ॥
भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवा
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवा ঌ
सस्तनूभिर्व्यशेमहि देवहितं यदायुः ॥
शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा
नश्चक्रा जरसं तनूनाम् ।
पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो
मध्या रीरिषतायुर्गन्तोः ॥
अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता
स पिता स पुत्रः ।
विश्वे देवा अदितिः पञ्च जना
अदितिर्जातमदितिर्जनित्वम् ॥ (शु० य० २५।१४-२३)
द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष ঌ शान्तिः पृथिवी
शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः ।
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वे देवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्व ঌ शान्तिः
शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि ॥(शु० य० ३६।१७)
यतो यतः समीहसे ततो नो अभयं कुरु ।
शं नः कुरु प्रजाभ्योऽभयं नः
पशुभ्यः ॥
सुशान्तिर्भवतु ॥ (शु० य०
३६।२२)
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः ।
उमामहेश्वराभ्यां नमः ।
वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः ।
शचीपुरन्दराभ्यां नमः ।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नमः ।
इष्टदेवताभ्यो नमः । कुलदेवताभ्यो
नमः ।
ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
स्थानदेवताभ्यो नमः । सर्वेभ्यो
देवेभ्यो नमः ।
सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः ।
ॐ सिद्धिबुद्धिसहिताय
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लंबोदरश्च विकटो विघ्ननाशो गणाधिपः॥
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो
गजाननः । द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ॥
विद्यारंभे विवाहे च प्रवेशे
निर्गमे तथा । संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं
चतुर्भुजम् । प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशांतये ॥
अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजितो यः
सुरासुरैः । सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ॥
सर्व मंगलमांगल्ये शिवे
सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति
तेषाममंगलम् । येषां ह्रदिस्थो भगवान् मंगलायतनं हरिः ॥
तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं
चंद्रबलं तदेव । विद्याबलं देवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंऽघ्रियुगं स्मरामि ॥
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां
पराजयः । येषामिंदीवरश्यामो ह्रदयस्थो जनार्दनः ।
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो
धनुर्धरः । तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः
पर्युपासते । तेषां नित्याभियुक्ताना योगक्षेमं वहाम्यहम् ।
स्मृतेः सकलकल्याणं भाजनं यत्र
जायते । पुरुषं तमजं नित्यं व्रजामि शरणं हरिम् ॥
सर्वेष्वारम्भकार्येषु
त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः । देवा दिशंतु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ॥
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च
भैरवम् । वन्देकाशीं गुहां गङ्गां भवानीं मणिकर्णिकाम् ॥
वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ॥
हाथ का अक्षत और पुष्प वेदी पर छोड़
दें।
पुनः अब यजमान के हाथ
अक्षत,जल,द्रव्य देकर संकल्प करावें-
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो
महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वंतरे
अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जंबुद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे....
नगरे/ग्रामे/क्षेत्रे (अविमुक्तवाराणसीक्षेत्रे आनन्दवने महाश्मशाने गौरीमुखे
त्रिकण्टकविराजिते).......
वैक्रमाब्दे... संवत्सरे..... मासे....शुक्ल/कृष्णपक्षे... तिथौ....वासरे....प्रातः/
सायंकाले .....गोत्र....शर्मा/ वर्मा/गुप्तः
निर्विघ्नपूर्वकचिरकालवास सुखसौमनस्यनरुज्यदीर्घायुष्टबलपुष्टिकामो वास्तुकर्म
तदङ्गतया कलशास्थापनपूर्वक गणेशादिपञ्चदेवता नवग्रह दशदिक्पालाष्टवसु-क्रूरक्षेत्रपालषोडशमातृकानन्त-पृथ्वीकूर्मनागाष्टकसहितवास्तुपुरुषपूजन
गृह निर्माण निमित्तिक भूमि पूजनमहं करिष्ये ।
अब गौरी-गणेश,नवग्रह,कलश,दशदिक्पाल,क्षेत्रपाल,षोडशमातृका
का विधिवत् पूजन संपन्न करावें। इनकी पूजन के लिए डी०पी० कर्मकांड का अवलोकन
करें।
अब पांच ईंट लेकर उसे लाल कपड़े पर
रखकर उन ईंटों का हल्दी, कुंकुम, चन्दन से लेपन कर स्वस्तिक चिह्न बना दें और उनका
विधिवत् पूजन संपन्न करावें-
ॐ नन्दायै नमः ॥ ॐ भद्रायै नमः ॥
ॐ जयायै नमः ॥ॐ रिक्तायै नमः ॥ॐ
पूर्णायै नमः ॥
अब इन ईंटों को वस्त्र से ढककर रख
यजमान को दे देवें । गृह निर्माण के समय इन ईंटों को निर्माण के मध्य अथवा एक को
मध्य में और शेष चारों को निर्माण के चारों कोणों पर लगाया जावें ।
अब सर्पाकार वास्तु का पूजन करावें।
इसके लिए आठ चांदी से बना नाग लेकर
उनका भी विधिवत् पूजन करावें-
ॐ वास्तु देवाय नमः ॥
ॐ वासुकि धृतराष्ट्रञ्च
कर्कोटकधनञ्जयौ ।
तक्षकैरावतौ चैव कालेयमणिभद्रकौ ।।
इन आठ नाग मूर्तियों को एक
हल्दी-सुपाड़ी, अक्षत और कुछ द्रव्य सहित आठ तांबे के कलश में निर्माण के आठ ओर
अथवा इन्हें युग्म में लेकर चार तांबे के कलश में निर्माण के चारों कोनों में
लगाने के लिए यजमान को दे देवें।
टीप-
यदि भूमि स्वामि नींव खुदाई के बाद शिलान्यास अथवा नींव की पूजन करवाते हैं तो नाग
और ईंटों का पूजन उस समय करावें अभी नहीं।
शिलान्यास पूजन विधि अगले अंक में
दिया जावेगा ।
अब पुनः यजमान को अक्षत और पुष्प
देकर भूमि पर भूदेवी,पृथ्वीदेवी का ध्यान करावें-
ॐ भूदेव्यै नमः ॥ ॐ पृथ्वीदेव्यै नमः
॥ ॐधरादेव्यै नमः॥
अब उस भूमि का विधिवत् पूजन संपन्न
करावें।
अब एक कुदाल या फावड़ा लेकर उसमें
विश्वकर्मा भगवान् का अक्षत और पुष्प लेकर ध्यान करें-
ॐ विश्वकर्मणे
नमः॥
अब उस कुदाल या फावड़ा का भी विधिवत्
पूजन संपन्न करावें। मौली बांध दें।
यहाँ गणपति सहित सभी देवों का
संक्षिप्त पूजन विधि दिया जा रहा है। आवश्यकता अनुसार ग्रहण करें। विस्तृत पूजन के
लिए डी०पी० कर्मकांड का अवलोकन करें।
अक्षत-पुष्प लेकर गणपत्यादिपञ्चदेवता
का आवाहन करें-
ओं भुर्भुवः स्वर्गणपत्यादिपञ्चदेवता
इहागच्छत इह तिष्टत (दिवसे वास्तुपूजनसमयश्चेत्तदा-सूर्यादिपञ्चदेवता इहागच्छत इह
तित इत्यावाह्य पूजनम् )।
तिल लेकर भगवान् विष्णु का
आवाहन करें-
ओं भगवन् विष्णो इहागच्छ इह तिष्ठ ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर नवग्रहादिदेवताओं
का आवाहन करें-
ओं साधिदैवतसप्रत्यधिदेवतविनायकादिपञ्चकसहितनवग्रहा
इहागच्छत इह तिष्ठत ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर दशदिक्पाल
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वः-इन्द्रादिदशदिक्पाला
इहागच्छत इह तिष्ठत ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर अष्टवसु
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वः अष्टवसव इहागच्छत
इह तिष्ठत ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर क्षेत्रपाल
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वः क्षेत्रपाल
इहागच्छ इह तिष्ठ ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर उस स्थान के क्रूरभूत-प्रेतों
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वः क्रूरभूतानि
इहागच्छत इह तिष्ठ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर षोडशमातृका
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः षोडशमातृकेभ्यो इहागच्छ
इह तिष्ठ ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर आम्रपत्र लगा
पूर्णघटपात्र में श्रीलक्ष्मीजी का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वर्लक्ष्मी इहागग्छ
इह तिष्ठ ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर धरतीमैया
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वर्धरित्रि इहागच्छ
इह तिष्ठ ।
‘ओं हिरण्यगर्भ वसुधे
शेषस्योपरि शायिनि ।'
वसाग्वहं तव पृष्ठे गृहाणार्घ धरित्रि
मे ॥
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर विश्वकर्मा
का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः विश्वकर्मणे इहागच्छ इह
तिष्ठ ।
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर भगवान्
कूर्म(कच्छप) का आवाहन करें-
ओं भूभुवः स्वः कूर्म्म इहागच्छ इह
तिष्ठ ।
ओं सर्वलक्षणसम्पन्न सर्वेश
कमलाधिप।
स्थानं देहि गृहं कर्तु विष्णुरूप
नमोऽस्तु ते ॥
पुनः अक्षत-पुष्प लेकर सर्पाकार
वास्तुदेव का आवाहन करें-
ओं भूर्भुवः स्वर्नन्तसहितनागेभ्यो इहागच्छ
इह तिष्ठ ।
ओं हिमकुन्दप्रतीकाश नागानन्त
महाफणिन् ।
स्थानं देहि गृहं कर्तु गृहाणार्घ
नमोऽस्तु ते ॥
अब पुनः अक्षत-पुष्प लेकर जलघट के गर्त
में शालग्राम व वास्तुपुरुष का आवाहन करें-
ओं वास्ताष्पतिम्महादेवं
सर्वसिद्धिविधायकम् ।
शान्तिकर्तारमीशानं तं वास्तुं
प्रणतोऽस्म्यहम् ॥
आवाहयामि देवेशं वास्तुदेवं महाबलम्
।
देवदेवं गणाध्यक्षं पातालतलवासिनम्
॥
ओ भूर्भुवः स्वः वास्तोष्पते
इहागच्छ इह तिष्ठ ।
अब पुनः अक्षत-पुष्प लेकर योगपीठ
का आवाहन करें-
ओं सर्वज्ञानक्रियाव्यक्तकमलासनाय
योगपीठाय नमः ।
ओं ब्रह्मन्निहागच्छ इह तिष्ठ ।
अब यदि वहाँ किसी भी प्रकार का स्तम्भरोपण
कर रहे हों तो अक्षत-पुष्प और स्तम्भ लेकर -
ओं यथाचलोगुरुर्मेरुरावासमचलं कृतम्
।
ममारोपितगृहस्तम्भ तथास्वप्रचलं
कुरु ॥
पृथ्वी के गर्त में स्तम्भ गाढ़ें ।
अब सभी देवों का संक्षिप्त में पूजन
करें-
पाद्य- एतानि पाद्यार्वाचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि
ओं भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
चन्दन- इदमनुलेपनं ओं भुर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
रक्तचन्दन - इदं रक्तचन्दनं ओं
भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
अक्षत - इदमक्षतं ओं भूर्भुवः
स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
पुष्प - एतानि पुष्पाणि ओं
भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
दूर्वादल - एतानि दुर्व्वादलानि
ओं भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
बिल्वपत्र - एतानि बिल्वपत्राणि
ओं भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
माला - इदं माल्यं ओं भूर्भुवः
स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलनानाविधनैवेद्य-
एतानि गन्धपुष्पधूपदीपताम्बूलनानाविधनैवेद्यानि ओं भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः
।
आचमन- इदमाचमनीयं ओं भूर्भुवः
स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
पुष्पाञ्जलि - एष पुष्पाञ्जलिः
ओं भूर्भुवः स्व: सर्वदेवताभ्यो नमः ।
बलिदान-अब
सभी देवों के लिए दही उड़द का बलिदान करें-
ओं गणपत्यादिपञ्चदेवताभ्यः एष
सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ओं भगवते श्रीविष्णवे एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
साधिदैवतसप्रत्यधिदैवतविनायकादिपञ्चकसहितनवग्रहेभ्य
एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ओं अष्टवसुभ्य: एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ओं क्षेत्रपाल नमस्तुभ्यं
सर्वकामफलप्रद ।
ममात्र विघ्नशान्त्यर्थंगृहाण
स्वमिमं बलिम् ॥
ओं क्षेत्रपालाय एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ओं क्रूरभूत नमस्तुभ्यं
सर्वकामफलप्रद ।
ममात्र विघ्नशान्त्यर्थंगृहाण
स्वमिमं बलिम् ॥
ओं क्रूरभूताय एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ओं गौर्यादिषोडशमातृभ्यो लक्ष्म्यै
च प्रत्येकं सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
धरित्र्यै,
कूर्माय, अनन्ताय च सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
अब पूर्व में - ओं गजवाहनाय वज्रहस्याय
तेजोऽधिपतये इन्द्राय एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
अग्निकोण में - ओं छागवाहनाय
शक्तिहस्ताय वैश्वानरमूर्तये एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
दक्षिण में - दण्डहस्ताय महिषवाहनाय
यममूर्तये एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
नैर्ऋत्य में – ॐ गजवाहनाय
खड्गहस्ताय निर्ऋतिमूर्तये एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
पश्चिम में- ओं गरुडवाहनाय
शङ्खचक्रगदापद्महस्ताय वरुणाय एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
वायव्य में- ओं क्षेत्रपालाय मृगवाहनाय
वायवे एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
उत्तर में- ओं कुबेराय गदाहस्ताय
नरवाहनाय एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ईशान में- ॐ वृषवाहनाय
निशूलशक्तिहस्ताय निवाब एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
अब मध्यगृह में- ॐ पातालक्षेत्राय
सहस्त्रफणाय द्विसहस्रलोचनाय वासुकिनागाय शक्तिहस्ताय सर्वनागधिपतये एष सदधिधृतमाषभक्तबलिर्नमः।
ॐ यज्ञभागं प्रतीक्षस्व पूजां चैव
बलिम्मम ।
नमस्ते देवदेवेश मम स्वस्तिकरो भव ॥
एह्योहिवास्तो सपरिवार इमं ममोपनीतं
बलिं गृहाण मम यज्ञमच्छिद्रं कुरु सर्व उपद्रेभ्यो मां रक्ष रक्ष
एष सदधिधृतमाषभक्तबलि: ओं वास्तोष्पतये
नमः ।।
अब यजमान भूमि पर नारियल फोड़ कर
कुदाल या फावड़ा लेकर पांच बार भूमि को खोदें। आचार्य पृथ्वी सूक्त अथवा पृथ्वी स्तोत्र
का पाठ करें।
यदि भूमि पूजन के साथ ही बोर या
ट्यूबवेल का भी पूजन हो रहा हो तो गंगा माँ का आवाहन कर बोर या ट्यूबवेल में
पंचगव्य,दूध,दही,घृत,शक्कर,मधु डाल कर विधिवत् पूजन करावें। गंगाबालू
और जलीय जंतु कछुआ,मछली आदि चांदी का डलवा दें और गंगा मैया का आरती सम्पन्न
करावें। तत्पश्चात देव विसर्जन व दक्षिणा लेकर यजमान को शुभ आशीर्वाद देकर भूमि
पूजन विधि सम्पन्न करें।
यदि शासकीय या गैर शासकीय भवन
आदि(स्कूल,अस्पताल, मंदिर अथवा अन्य भवन अथवा मार्ग निर्माण आदि) के निमित्त भूमि
पूजन हो रहा हो तो संकल्प में
ॐ अद्य.....................गृह
निर्माण निमित्तिक के स्थान पर मार्ग निर्माण
निमित्तिक अथवा अमुक भवन निर्माण निमित्तिक अथवा अमुक
देवमंदिर निमित्तिक भूमि पूजनं करिष्ये । कहें ।
अब कुदाल या फावड़ा से पांच बार भूमि
को खुदाकर देव विसर्जन और दक्षिणा लेकर यजमान को शुभ आशीर्वाद देकर भूमि पूजन विधि
सम्पन्न करें।
टीप-
मार्ग निर्माण में अथवा शासकीय कार्य में नाग और ईंटों का पूजन नहीं करावें,
अपितु ॐ वास्तु देवाय नमः ॥ मन्त्र पृथ्वी पूजन के साथ ही करा देवें।
प्रार्थना-नमस्कार- अब सभी देवों को
नमस्कार-प्रार्थना करें-
ओं यथा मेरुगिरे: श्रृङ्गे देवानामालयं
सदा ।
तथा ब्रह्मादिदेवानां गेहे मम
स्थिरं भव ।।
इत्यनेन वास्तुपुरुष ग्रार्थयेत् ।
देव विसर्जन-
अब अक्षत पुष्प जल लेकर सभी देवों का विसर्जन करें –
ॐ भूर्भुवः स्व: सर्वदेवेभ्यो पूजितोऽसि
प्रसीद क्षमस्व स्वस्थानं गच्छ- गच्छ ।
अथवा
ॐ यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय
याज्ञिकीम् । इष्टकामप्रसिद्धयर्थं पुनरागमनाय च ।
दक्षिणा-
अब आचार्य दक्षिणादान का संकल्प करावें-
ॐ अद्य
कृतैतद्वास्तुकर्मप्रतिष्ठार्थमेतावद्द्रव्यमूल्यकहिरण्यमग्निदैवतं यथानामगोत्राय
ब्राह्मणाय दक्षिणामहन्ददे ।
इति: वास्तुपूजाप्रक्रेणांर्तागत् भूमि
पूजन विधि: ॥
-पं०डी०पी०दुबे
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