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कर्मकाण्ड

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सूर्य कवच स्तोत्र

सूर्य कवच स्तोत्र

याज्ञवल्क्य कृत इस सूर्य रक्षा कवच स्तोत्र को धारण करने और उसका नियमित पाठ करने से भगवान सूर्य की कृपा से सुख-समृद्धि, सुरक्षा और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। प्रात: काल सूर्य नमस्कार करने के बाद सूर्य कवच का पाठ करना चाहिए। रविवार को विशेषरूप से इसका पाठ करना चाहिए ।

सूर्य कवच स्तोत्र

सूर्यरक्षाकवचस्तोत्रम्

सूर्य रक्षा कवच स्तोत्र

याज्ञवल्क्य उवाच ।

श्रृणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।

शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ १॥

याज्ञवल्क्य जी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।

देदीप्यमानमुकुटं स्फुरन्मकरकुण्डलम् ।

ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत् ॥ २॥

चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।

शिरो मे भास्करः पातु ललाटं मेऽमितद्युतिः ।

नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥ ३॥

मेरे सिर की रक्षा वे भास्कर करें। वे द्युतिरूप मेरे ललाट की रक्षा करें। नेत्र में दिनमणि तथा कान में वासरेश्वर  रक्षा करें।

घ्राणं धर्मंघृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।

जिह्वां मे मानदः पातु कण्ठं मे सुरवन्दितः ॥ ४॥

मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।

स्कन्धौ प्रभाकरः पातु वक्षः पातु जनप्रियः ।

पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वाङ्गं सकलेश्वरः ॥ ५॥

स्कन्धों की रक्षा प्रभाकर और वक्ष की रक्षा जनप्रिय करें। पैरों की द्वादशात्मा (१२सूर्य रूप) और सब अंगों की वे सकलेश्वर रूप रक्षा करें।

सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।

दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥ ६॥

सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।

सुस्नातो यो जपेत्सम्यग्योऽधीते स्वस्थमानसः ।

स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विन्दति ॥ ७॥

स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है। वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।

॥ इति श्रीमद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

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